आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई: अल्लाह रहमत नाज़िल करे मरहूम ख़ुशवक़्त पर उन्होंने ज़िक्र किया कि एक आरिफ़ ने ‘मुकाशेफ़े’ में देखा कि एक बुलंद मक़ाम है, नौजवान आते हैं और एक ही छलांग में उस बुलंद मक़ाम पर पहुंच जाते हैं। उन आरिफ़ ने बार बार छलांग लगाई, बड़ी कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए, ज़मीन पर गिर पड़े। बाद में उन्हें समझ में आया कि वह बूढ़े हैं और वे सब नौजवान हैं।

रूहानी दुनिया भी ऐसी ही है, सत्य के रास्ते पर चलना भी ऐसा ही है, अल्लाह के जलवे व जमाल को देखने के सिलसिले में भी यही हालत है; वहां नौजवान जल्द इस हालत में पहुंच सकता है, बेहतर तरीक़े से रूहानी परवाज़ कर सकता है और ऊंची से ऊंची उड़ान भर सकता है। बूढ़े जब तक मुतवज्जे हों और हरकत में आएं तब तक देर हो चुकी होती है और उनकी ताक़त जवाब दे जाती है। 9 नवम्बर 2016