सुप्रीम लीडर ने इस मुलाक़ात में ऐसी ऐतिहासिक घटना की याद को बाक़ी रखना ज़रूरी बताया जिसमें आने वाली नस्लों के लिए गहरे संदेश छिपे हुए हैं और 9 जनवरी की घटना को ऐसी ही घटनाओं में बताया। 
उन्होंने 9 जनवरी की घटना को अवाम की गहरी आस्था की निशानी बताते हुए कहाः “अगर इस घटना के केन्द्र में इमाम (इमाम ख़ुमैनी) न होते तो इस तरह की घटना न होती। कोई दूसरा शख़्स या धड़ा ऐसी हालत एक शहर में पैदा नहीं कर सकता था।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात का ज़िक्र किया कि पिछले 150 साल में अवाम के हाथों घटने वाली ज़्यादातर सामाजिक घटनाओं या अहम क्रांतियों का स्रोत राजनीति की समझ रखने वाले वरिष्ठ धर्मगुरू रहे हैं। 
सर्वोच्च नेता ने मीरज़ाए शीराज़ी के तंबाकू के बारे में फ़तवे, जनाब मोहसिन क़ुम्मी के नेतृत्व में गौहरशाद मस्जिद की घटना और इमाम ख़ुमैनी की अगुवाई में 15 ख़ुर्दाद बराबर 5 जून की घटना को नमूने के तौर पर पेश किया। 
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इन घटनाओं को धर्म व राजनीति की समझ रखने वाले धर्मगुरुओं से साम्राज्यवादी ताक़तों की खुली दुश्मनी और धर्म और राजनीति के एक साथ होने की इन ताक़तों की ओर से मुख़ालेफ़त की वजह बताया। उन्होंने ग़ैरते दीनी (धार्मिक स्वाभिमान) की भावना को मज़बूत करने पर ताकीद करते हुए इन घटनाओं को ग़ैरते दीनी का नतीजा बताया। उन्होंने कहा कि ग़ैरते दीनी, पहचान से और पहचान, तर्क के इस्तेमाल व धर्म पर ईमानदारी से अमल करने से आती है। उन्होंने इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी को ऐसे लोगों के नमूने के तौर पर पेश किया जो धर्म पर अमल के साथ साथ तर्कवितर्क में चरम बिंदु पर थे।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने 9 जनवरी की घटनाओं को बयान करते हुए ईरान के बारे में पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति कार्टर की स्पीच और उनके ईरान को स्थिरता का द्वीप समझने की ग़लती का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि क़ुम के अवाम के आंदोलन ने पहलवी शासन और अमरीका के ग़लत अनुमानों को उलट पुलट कर रख दिया। 
सुप्रीम लीडर ने आगे कहाः “अमरीका अभी भी ग़लत कैल्कुलेशन कर रहा है जिसका नमूना शहीद सुलैमानी की शहादत है। वह सोच रहा था कि इस शहीद को रास्ते से हटा कर इस महाआंदोलन को बुझा देगा लेकिन हमने देखा कि इस साल उनकी शहादत की दूसरी बरसी पर यह महा घटना घटी। श्रद्धांजलि देने के लिए जनसैलाब निकल पड़ा। इस बात में शक नहीं कि दुश्मन का कैलकुलेशन सिस्टम नाकारा है।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने दायित्व और आगे उठने वाले क़दम की समझ, स्पष्ट सोच और दृढ़ता के साथ प्रगति को इस्लामी क्रांति की सच्ची कामयाबी के लिए ज़रूरी बताया। 
वरिष्ठ नेता ने ग़ैरते दीनी(धार्मिक स्वाभिमान) की रक्षा पर ताकीद की और इसे निर्णायक मौक़ों पर देश को बचाने वाला तत्व बताया। उन्होंने कहाः “ग़ैरते दीनी (धार्मिक स्वाभिमान) ख़तरों को मौक़े में बदल देता है, जिसका नमूना थोफी गयी जंग और 8 साल की पवित्र प्रतिरक्षा थी। जवानों, माँ-बाप, बहनों और बीवियों की गैरते दीनी थी जिसकी वजह से, जवान मोर्चे पर गए और ईरान ने उस अंतर्राष्ट्रीय जंग को जीत लिया जिसमें इमाम और क्रांति को हराने के लिए सभी एकजुट हो गए थे।”
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने आगे कहाः “मौजूदा दौर में भी शहीद सुलैमानी की शहादत एक अजीब ऐतिहासिक घटना बन गयी। किसी ने सोचा भी नहीं था, दोस्तों के ख़्याल में भी नहीं होगा कि यह घटना इतनी महान हो जाएगी, अल्लाह उसे इतना महान बना देगा, ईरानी अवाम की वास्तविक पहिचान को दुनिया के सामने ले आएगा, ईरानी राष्ट्र ने शहीद सुलैमानी के ताबूत की छाया में एकजुटता व पहचान का प्रदर्शन किया।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने क्रांति के नियमों के प्रति लोगों में संवेदनशीलता ख़त्म करने की दुश्मन की साज़िश के बारे में कहाः “इस्लामी गणराज्य और इस्लामी क्रांति अल्लाह के धर्म के प्रभुत्व के लिए क़ायम हुयी। लोगों ने जानें दीं, ख़ून दिया ताकि यह लक्ष्य पूरा हो। यह क्रांति के उसूलों में है जिसे दुश्मन कमज़ोर करना चाहता है।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आगे कहाः “दुश्मन से बातचीत और संपर्क अलग विषय है, लेकिन उसकी धौंस धमकी के सामने न झुके हैं न झुकेंगे। दुश्मन इस जज़्बे को कमज़ोर करना चाहते हैं, इस अहम उसूल को कमज़ोर करना चाहते हैं। यह दुश्मन की बड़े पैमाने पर सॉफ़्ट वॉर का हिस्सा है।” 
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने इस बात पर बल दिया कि पिछले 43 साल में जहां भी कामयाबी मिली उसके पीछे अवाम की क्रांतिकारी भावना थी। उन्होंने राजनैतिक, इल्मी और सामाजिक मंच पर कामयाबी को क्रांतिकारी व मोमिन लोगों के योगदान पर निर्भर बताया और भ्रष्टाचार, रईसाना ठाठबाट और ग़ैर क्रांतिकारी नज़रिये को नाकामी के तत्व गिनवाए। 
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने दुश्मन की राष्ट्रों के बीच फूट डाटने की शैली का ज़िक्र करते हुए कहाः “देश में ऐसा न होने दें कि यह चीज़ जड़ पकड़े। देश में सदियों से शिया-सुन्नी आपस में मेल-जोल से रहते आ रहे हैं, बरसों साथ ज़िन्दगी गुज़ारी है, कोई मुश्किल नहीं थी। हमारे यहाँ कभी कुछ क़ौमों के बीच मतभेद रहा। विभिन्न जातियों व क़ौमों के बीच झड़पें हुयीं, लेकिन शिया-सुन्नी के बीच मतभेद व लड़ाई नहीं रही।” 
सर्वोच्च नेता ने इस बिन्दु की अहमियत के बारे में आगे कहाः “इस्लामी गणराज्य एक इस्लामी हुकूमत है जिसका पर्चम शिया मत है, लेकिन ऐसे इस्लामी देशों में जहाँ सुन्नी मत के लोग हैं, इस्लामी गणराज्य के बारे में अकसर मोहब्बत से भरी भावना दिखाते हैं, उनकी तरफ़ से सहयोग व समर्थन भी नज़र आता है। पूर्वी एशिया में अनेक देशों से लेकर पश्चिमी अफ़्रीक़ा तक ऐसे लोग हैं जो इस्लामी गणराज्य के संबंध में ऐसा रवैया अपनाते हैं हालांकि वे शिया भी नहीं है, इस आधार पर आज इस्लामी जगत में इस्लामी गणराज्य इस्लामी उम्मत में एकता का सिम्बल है।” उन्होंने शहीद क़ासिम सुलैमानी की शहादत की बरसी पर विभिन्न देशों में अवाम की तरफ़ से होने वाले प्रोग्राम को भी इसी सच्चाई का नमूना बताया।