जवान साइन्टिस्ट व प्रतिभाशाली लोगों के (एलिट) ग्रुप ने 17 नवंबर 2021 को सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने असाधारण प्रतिभा वाले जवान साइंटिस्ट के एलिट ग्रुप से मुलाक़ात पर ख़ुशी जताते हुए कुछ अहम बिन्दुओं की ओर इशारा किया। उन्होंने असाधारण प्रतिभा को अल्लाह की नेमत बताते हुए जवानों पर अल्लाह की इस नेमत का शुक्र अदा करने पर बल दिया।
उन्होंने असाधारण प्रतिभा की ख़ूबियों को बयान करते हुए कहा: जो चीज़ इंसान को असाधारण बनाती है वह सिर्फ़ मानसिक क्षमता नहीं है, क्योंकि ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास मानसिक क्षमता है, लेकिन बर्बाद हो जाती है।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने आगे कहा कि व्यक्तिगत प्रतिभा होने के साथ-साथ इस नेमत की क़द्र भी समझना चाहिए और उसे कोशिश और मेहनत का सहारा देना चाहिए। उन्होंने कहाः “एक प्रतिभाशाली शख़्स अगर दिमाग़ का इस्तेमाल न करे, इस क्षमता से फ़ायदा न उठाए, सुस्ती, लापरवाही और ग़फ़लत में जीवन गुज़ार दे, तो ऐसा शख़्स एलिट कभी नहीं बन पाएगा। एलिट वह है जो क़द्र करता है।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने असाधारण क्षमता की क़द्र को सबसे पहले ख़ुद एलिट शख़्स की ज़िम्मेदारी, फिर दूसरे नंबर पर माहौल यानी फ़ैमिली और टीचर की ज़िम्मेदारी और उससे आगे देश की प्रशासनिक व्यवस्था और अधिकारियों की ज़िम्मेदारी बताया।
उन्होंने मानसिक क्षमता की नज़र से ईरान को दुनिया की औसत सतह से बेहतर बताते हुए कहाः यह हमेशा से रहा है और आज भी है कि साम्राज्यवादी ताक़तों की साफ़्ट वॉर का एक अहम हिस्सा राष्ट्र को उसकी क्षमता की ओर से बेख़बर रखना है, उन्हें उस क़ाबिलियत की ओर से ग़ाफ़िल करना है या उन्हें ऐसी हालत में पहुंचाना कि वह ख़ुद अपनी क्षमता का इंकार करें।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने अफ़्रीक़ा महाद्वीप को बड़ी सभ्यताओं का केन्द्र बताते हुए वहाँ साम्राज्यवादी ताक़तों की करतूतों का ज़िक्र किया और कहा कि इन ताक़तों के पहुंचने से यह महाद्वीप तबाह हो गया। उन्होंने नेहरू की किताब का हवाला देते हुए कहाः “नेहरू कहते हैं कि अंग्रेज़ों के भारत में आने से पहले, भारत आंतरिक उद्योग, उस वक़्त के उद्योग की नज़र से उन्नीसवीं सदी के आग़ाज़ में एक आत्म निर्भर देश था। पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की शक्ल में आए, फिर ब्रिटिश सरकार ने हालात ऐसे बना दिए कि भारत वासियों को लगने लगा कि ब्रिटिश व विदेशी चीज़ों के बग़ैर ज़िन्दगी जीना मुमकिन नहीं, (इसका मतलब है) एक राष्ट्र की क्षमताओं का इंकार।”
उन्होंने 200 साल पहले ईरान के हालात को बयान करते हुए उसे भी इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले तक इसी मुश्किल में फंसा हुआ देश बताया।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने साम्राज्यवादी ताक़तों के अपने उपनिवैशिक देशों में रवैये की समीक्षा में कहाः जब क़ौम पर अपनी क्षमता की ओर से गफ़लत छा जाए, तो उस वक़्त उस क़ौम को लूटना आसान हो जाता है। ग़फ़लत और लूट-खसोट एक दूसरे के पूरक हैं। ग़फ़लत, लूट-खसोट की पृष्ठिभूमि है, लूट-खसोट, ग़फ़लत को बढ़ाती है। यह बात साम्राज्यवादी ताक़तों के अधीन रहने वाले देशों पर पूरी तरह चरितार्थ होती है, हमारे देश पर भी चरितार्थ होती है हालांकि हम साम्राज्य के सीधे तौर पर उपनिवेश नहीं थे, इसलिए वे चाहते हैं कि हम ग़ाफ़िल रहें।
उन्होंने ईरान के मीज़ाईल व रक्षा प्रोग्राम के बारे में प्रचारिक हंगामों की ओर इशारा करते हुए, इसे भी दुश्मनों के, ईरानी जनता को उसकी क्षमताओं की ओर से ग़ाफ़िल करने की दिशा में उठाए गए प्रचारिक क़दम बताया।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने ईरान में असाधारण प्रतिभा वाले जवानों के रास्ते में मौजूद कुछ रुकावटों की ओर इशारा करते हुए, उनसे मुश्किलों के ख़िलाफ़ संघर्ष और रुकावटों को हटाने की नसीहत की।
उन्होंने दुनिया में ईरान को साइंस के ध्रुव में बदलने के लिए, एक तयशुदा वक़्त पर आधारित क्षितिज के ख़ाके के साथ, कुछ चरण बयान करते हुए कहाः “पहला चरण यह है कि हम दुनिया में साइंस की सरहद से अपने फ़ासले को कम करें। हम अभी उस हद से दूर हैं।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आगे कहाः “अलबत्ता हम अपने आंकड़ों में जो अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों पर आधारित है, अपनी वैज्ञानिक तरक़्क़ी की सराहना करते हैं, यह चीज़ सराहे जाने के क़ाबिल है, हमने वाक़ई तरक़्क़ी की है,
लेकिन दुनिया में साइंस की फ़्रंट लाइन से हम काफ़ी पीछे हैं। हमें 200 साल पीछे रखा गया।”
उन्होंने इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद तेज़ी से वैज्ञानिक तरक़्क़ी की रफ़्तार शुरू होने का ज़िक्र करते हुए देश के दूसरे और तीसरे व्यवहारिक चरण को इस तरह बयान कियाः “दूसरा चरण यह है कि हम ज्ञान विज्ञान की वैश्विक सरहदों को पार कर जाएं, यानी हम दुनिया के सामने नई वैज्ञानिक खोज व सेवा पेश कर सकें... उसके बाद के चरण में नई इस्लामी सभ्यता की स्थापना की हम कोशिश करें।”
उन्होंने असाधारण क्षमता के लोगों को विज्ञान के क्षेत्र में क्रिएटिविटी और इनोवेशन से काम लेने पर बल देते हुए कहाः ज्ञान के क्षेत्र में इनोवेशन यह है कि प्रकृति में जिस क़ानून को अब तक खोजा नहीं जा सका है आप उसे खोजिए, उसकी बुनियाद पर ज्ञान की उत्पत्ति कीजिए, जिसकी बुनियाद पर अनेक टेक्नॉलोजी वजूद में आएगी। इस दिशा में कोशिश कीजिए।
उन्होंने देश के वैज्ञानिक हल्क़ों से अपील की कि वे देश के मौजूदा मुद्दों पर ध्यान दें, प्राब्लम बेस्ड रिसर्च करें और मुश्किलों के हल का वैज्ञानिक रास्ता ढूंढने पर ध्यान लगाएं। उन्होंने क्लाइमेट और ट्रैफ़िक को उन्ही मुद्दों में गिनवाया।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एआई या आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में वैज्ञानिक रिसर्च की ओर इशारा करते हुए, ईरान का एक वैज्ञानिक लक्ष्य इस क्षेत्र में दुनिया के दस सबसे आगे देशों में क़रार पाना बताया, और वैज्ञानिकों से इस विषय को अपना मक़सद बनाने की अपील की।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अंत में कहा कि देश जवानों का है और वही इस्लामी ईरान के भविष्य के निर्माता हैं। उन्होंने सरकार से जवानों को विभिन्न पदों पर नियुक्त करने की मांग की और असाधारण क्षमता वाले जवानों से भी कहा कि वे ख़ुद को तैयार करें और देश के संचालन में अपना रोल हासिल करें।