KHAMENEI.IR ने “आख़री बात” शीर्षक के अंतर्गत पाबंदियों और JCPOA के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के रुख़ पर संसद सभापति मुहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ से बात की है जिसके कुछ अंश प्रस्तुत हैं।

 

सवालः पाबंदियों की समाप्ति के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान पर आपकी क्या टिप्पणी है?

जवाबः परमाणु समझौते का उद्देश्य यह था कि अमरीका की ओर से लगाए गए ग़ैर इंसानी, ग़ैर क़ानूनी और निर्दयतापूर्ण प्रतिबंध समाप्त हो जाएं। वास्तव में JCPOA का अस्ल उद्देश्य उन सभी प्रतिबंधों का ख़ात्मा था जो ईरान पर लगाए गए थे। ट्रम्प ने एक दस्तख़त करके सभी तय पा चुके मामलों को ख़त्म कर दिया जिससे यह साफ़ हो गया कि वे लोग किस तरह ग़ुंडागर्दी के साथ और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के ख़िलाफ़ काम करते हैं बल्कि अमरीका ने नई पाबंदिया भी लगा दी हैं। अगर परमाणु समझौते का मक़सद यह था कि वह प्रतिबंधों को पूरी तरह से ख़त्म कर दे और वह ऐसा न कर पाए तो फिर ऐसे समझौते का क्या फ़ायदा है?

सवालः अमरीकियों के इस क़दम से वास्तव में और व्यवहारिक रूप से परमाणु समझौते का लक्ष्य ही पूरा नहीं हुआ है?

जवाबः जी हां यहां तक कि ओबामा के सत्ताकाल में भी पाबंदियों का ख़ात्मा नहीं हुआ। उसके बाद ट्रम्प ने ग़ैर परमाणु और कई तरह की दूसरी पाबंदियां लगा दीं जिनमें दवाओं और खाने-पीने की चीज़ों को भी शामिल कर दिया गया।

सवालः इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने यह शर्त लगाई है कि JCPOA में अमरीका की वापसी के लिए यह ज़रूरी है कि वह पाबंदियां ख़त्म करे। आपकी नज़र में अमरीका व यूरोप को प्रतिबंधों की समाप्ति के लिए किस प्रकार के व्यवहारिक और ख़ास क़दम उठाने चाहिए?

जवाबः JCPOA में अमरीका की वापसी हमारे और हमारे राष्ट्र के लिए बिलकुल ही अहम नहीं है। क्यों अहम नहीं है? इस लिए अहम नहीं है कि हमारे लिए JCPOA का विषय ही प्रतिबंधों का ख़ात्मा है। बहरहाल अमरीका ख़ुद ज JCPOA से निकला है और JCPOA के अलावा भी उसने हमारे राष्ट्र पर अनेक पाबंदियां लगाई हैं और उसने इस समझौते में दर्ज अपने वादों को भी पूरा नहीं किया है। अब अगर अमरीका, JCPOA में वापस आएगा तो वह आकर क्या करेगा? सबसे पहले तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह इस समझौते से निकलने के बाद लगाए गए सभी प्रतिबंधों को ख़त्म करे और JCPOA के अंतर्गत अपने जिन वादों को उसने पूरा नहीं किया है, उन्हें समझौते के मुताबिक़ पूरा करे।

सवालः कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) पर अमल के जवाब में कमिटमेंट पर अमल के बारे में संसद और सरकार ने कुछ क़दम उठाए हैं जिनकी वजह से पश्चिमी पक्ष की कार्यवाहियों के मद्देनज़र ईरान की ओर से वादों पर अमल में कमी की गई और यूरेनियम का 20 प्रतिशत संवर्धन भी शुरू हो गया है। आपके विचार में JCPOA के अनुभव की बुनियाद पर क्या इस बार ताक़त के हथकंडों को इस्तेमाल किया जा सकता है?

जवाबः बीस प्रतिशत संवर्धन का मामला, प्रतिबंधों की समाप्ति के रणनैतिक प्रस्ताव के अंतर्गत था जिसे संसद में क़ानून के रूप में स्वीकृति दी गई। ऐसा क्यों हुआ? ज़ाहिर है, तय यह था कि सभी पक्ष अपने अपने वादों को पूरा करेंगे, हमने अपने सभी वादों को पूरा किया लेकिन उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए। इस बिल में हम ताक़त का प्रदर्शन चाहते थे। वैसे में स्पष्ट कर दूं कि संसद में जो क़ानून पास हुआ है वह JCPOA के दायरे में है। JCPOA की कुछ धाराओं में पक्षों को यह अधिकार दिया गया है कि अगर कोई पक्ष अपने वादों को पूरा नहीं करता है तो दूसरा पक्ष भी अपने कमिटमेंट्स पर अमल न करे।

संसद में जो क़ानून पास हुआ है, वास्तव में उसने कूटनीति को शक्ति प्रदान की है, निश्चित रूप से एक वास्तविक शक्ति क्योंकि हमने कोई दिखावे का क़ानून पास नहीं किया है।