इस प्रोग्राम में गृहमंत्री ने जारी साल के चुनावों की प्रक्रिया के बारे में एक रिपोर्ट पेश की और निर्वाचित राष्ट्रपति को मिलने वाले जनादेश की पुष्टि का आदेश पढ़े जाने के बाद राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने भाषण दिया। इसके बाद इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उपस्थित लोगों को संबोधित किया।

वरिष्ठ नेता के संबंधोन के कुछ अहम अंश इस प्रकार हैं।

सबसे पहले तो अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए कि उसने ईरानी राष्ट्र को यह तौफ़ीक़ दी। ईरानी जनता ने एक बार फिर चुनाव के अर्थपूर्ण काम को, जो धार्मिक प्रजातंत्र की निशानी है, कामयाबी से पूरा किया। हम जनता का आभार प्रकट करते हैं। बारहवीं सरकार, बारहवीं सरकार के राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए और श्री रईसी साहब, उनकी सरकार और उनके सहयोगियों के लिए ख़ुदा से तौफ़ीक़, मदद और विशेष कृपा की दुआ करनी चाहिए। यह प्रोग्राम, राष्ट्र के जनादेश की पुष्टि का प्रोग्राम जो संविधान और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की ओर से शुरू की गई परंपरा पर आधारित है, पिछले दशकों में कई बार दोहराया जा चुका है। यह वास्तव में देश की व्यवस्था चलाने वाले विभाग यानी कार्यपालिका की अहम ज़िम्मेदारी के बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से और शांतिपूर्ण व वैभवशाली हस्तांतरण का एक प्रतीक है जो बहुत अहम है। आम तौर पर बहुत से देशों में यह हस्तांतरण, कशमकश के साथ होता है। ख़ुदा का शुक्र है कि यहां पर यह काम विभिन्न शासन कालों में शांतिपूर्ण ढंग से और पूरे आराम से हुआ है। यह राष्ट्रपति काल भी अल्लाह की कृपा से ऐसा ही था। यह देश और इसी तरह जनता व अधिकारियों के बीच पाई जाने वाली बुद्धिमत्ता, शांति व संतोष की भी निशानी है और राजनैतिक विविध का भी चिन्ह है। एक के बाद एक जो सरकारें आईं और जिन्होंने एक दूसरे को सत्ता हस्तांतरित की है, उनके अलग अलग राजनैतिक रुझान रहे हैं। यह चीज़ विविधता को दर्शाती है और निश्चित रूप से यह विविधता, चुनावों की आज़ादी और उनके पारदर्शी व स्वस्थ होने की निशानी है। ये चीज़ें बड़ी अहम हैं। इन घटनाओं में इंसान को इन चीज़ों को देखना चाहिए।

अल्लाह का शुक्र है कि चुनाव पूरी सुरक्षा व पारदर्शिता से आयोजित हुआ। विभिन्न मैदानों में, इलेक्शन की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने वालों के बारे में भी, जो बड़ा ही अहम काम था और जनता के बारे में भी, देश के दुश्मनों और इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों के नीति निर्धारक हलक़ों में काफ़ी पहले से चुनाव के बायकॉट की एक साज़िश रची गई थी। देश के अंदर भी कुछ लोग निश्चेतना की वजह से और कुछ लोग शायद द्वेष की वजह से इस साज़िश को हवा दे रहे थे। जनता ने करारा जवाब दिया और चुनाव में भरपूर ढंग से भाग लिया। जिस तरह के हालात थे उनके मद्देनज़र, जनता की भागीदारी अच्छी थी और मैदान में उसकी भरपूर उपस्थिति का संकेत थी। हम ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं और अवाम के भी आभारी हैं।

राष्ट्रपति महोदय के लिए एक नसीहत यह है कि अपने नारों में उन्होंने अवामी होने, अवाम की बात सुनने और अवाम के बीच रहने की जो बात बार बार दोहराई थी, उसे हाथ से न जाने दें, यह बहुत अहम चीज़ है। “अवामी सरकार” को, उनका नारा है, सही अर्थ में व्यवहारिक बनाएं और सही अर्थ में जनता के साथ, उसके क़रीब और उसके बीच रहें। जनता या अवाम का मतलब बिना किसी वर्ग और गुट भेद के सारी जनता। अलबत्ता जनता के बीच उपस्थिति, जो राष्ट्रपति महोदय के पिछले रिकॉर्ड में शामिल है, असाधरण योग्यताओं वाले लोगों से संपर्क की ओर से निश्चेत न कर दे। इस तरह के लोगों से संपर्क और संबंध अपने आपमें एक बहुत ज़रूरी और लाभदायक क़दम है। जीनियस लोगों से विचार-विमर्श और उनकी राय से फ़ायदा उठना बहुत अहम है।

सरकार को एकता का प्रतीक होना चाहिए, जनता के बीच पाई जाने वाली कुछ विरोधाभासी बातों को एकताजनक और प्रेमपूर्ण नज़रों के माध्यम से कमज़ोर किया जाना चाहिए। संभव है कि ये मतभेद और दृष्टिकोण पूरी तरह ख़त्म न हों लेकिन समाज की प्रगति में उनके नकारात्मक प्रभावों को रोक देना चाहिए।

अवाम से सच्चाई के साथ बातचीत उन कामों में से एक है जो अवामी होने में सहायक हैं। राजनैतिक दिखावे से दूर रहते हुए जनता से पूरी सच्चाई के साथ बात करनी चाहिए। सच्चाई से बात करें, जनता को समस्याएं बताएं, हल बताएं, अवाम से जो अपेक्षाएं हैं, उन्हें बयान करें और जनता की मदद करें। आम लोगों से बात करना उन अहम कामों में से एक है जिनका अवामी सरकार को कड़ाई से पालन करना चाहिए।

एक दूसरी नसीहत, संभावनाओं पर नज़र रखने के बारे में है। आजकल आप बयानों, लेखों और भाषणों में देखते और सुनते हैं कि लगातार कमियों के बारे में बात की जाती है, ठीक है, कमियां बहुत हैं, समस्याएं और कठिनाइयां भी ज़्यादा हैं लेकिन क्षमताएं, समस्याओं से कहीं ज़्यादा हैं। देश में बेहिसाब संभावनाएं व क्षमताएं हैं। पानी, तेल, खदानों, बड़ी आंतरिक मंडी, पड़ोसियों और जवानों की हैरत में डाल देने वाली योग्यता और तैयारी के मैदानों में असाधारण संभावनाएं हैं, हमारी संभावनाएं हैं। निश्चित रूप से ये संभावनाएं, समस्याओं को नियंत्रित कर सकती हैं, शर्त यह है कि इन योग्यताओं को सही ढंग से पहचाना जाए, इस्तेमाल किया जाए और इन पर ध्यान दिया जाए और इसके लिए दिन रात की अथक मेहनत की ज़रूरत है। पूरा विश्वास है कि इन संभवनाओं से लाभ उठाने से मौजूदा कमियों को दूर किया जा सकेगा।

आख़री बात दुश्मन की प्रोपेगंडा जंग या प्रचारिक लड़ाई के बारे में है। आज हमारे ख़िलाफ़ हमारे दुश्मनों की सबसे ज़्यादा कार्यवाहियां, सुरक्षा व आर्थिक गतिविधियों से भी ज़्यादा, प्रोपेगंडे की गतिविधियों, सॉफ़्ट वॉर और मीडिया प्रोपेगंडों पर आधारित हैं। वे जनमत पर हावी होने के लिए बेहिसाब पैसे ख़र्च कर रहे हैं। बहुत से काम कर रहे हैं। इस काम के लिए वे अपनी बौद्धिक व वैचारिक इकाई में लगातार लोगों को नौकरी दे रहे हैं ताकि मनोवैज्ञानिक युद्ध के ज़रिए, तरह तरह के प्रोपेगंडों के ज़रिए देशों और ख़ास कर हमारे देश के जनमत पर, जो बड़ी शक्तियों की दुर्भावना के निशाने पर है, क़ब्ज़ा कर लें और उसे अपने नियंत्रण में ले लें। जब किसी राष्ट्र का जनमत, ग़ैरों के कंट्रोल में चला गया तो उस राष्ट्र की तरक़्क़ी भी स्वाभाविक रूप से उन्हीं की मर्ज़ी के मुताबिक़ होगी। प्रोपेगंडे का काम, अहम काम है और हम इस मामले में कमज़ोर हैं। हमें प्रोपेगंडे के मैदान में ज़्यादा मज़बूत और ज़्यादा होशियारी से काम करना चाहिए। उन निश्चेत लोगों की तो अनदेखी ही कर देनी चाहिए जो स्वदेशी मीडिया को भी दुश्मन के पक्ष में इस्तेमाल करते हैं। यह हमारी बातचीत का विषय भी नहीं है लेकिन जो लोग इस बारे में सद्भावना से काम लेते हैं, उनके बारे में भी हम ढिलाई करते हैं। प्रोपेगंडे के काम, सही प्रचारिक क़दम और मीडिया की संभावनाओं के बारे में हमें ज़्यादा मज़बूती और ज़्यादा होशियारी से काम करना चाहिए।