सुलैमानी को उस मौक़े पर अपने फ़रीज़े का एहसास हुआ। उन्होंने उन लोगों से संपर्क करना शुरू किया, उनकी मदद की, उन्हें मुक्ति दिलायी। अलबत्ता एक बहुत अच्छा और बहुत प्रभावी क़दम उस वक़्त इराक़ के वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व की तरफ़ से उठाया गया, उसका असाधारण प्रभाव हुआ। 
 

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