इमाम हसन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:शबे जुमा (गुरूवार की रात) को मेरी माँ पूरी रात जागती रहीं इबादत करती रहीं,मैंने जब भी उनकी आवाज़ सुनी तो देखा कि वह दूसरों के लिए दुआ कर रही हैं सुबह मैंने कहाः माँ आपने दूसरों के लिए दुआ की,अपने लिए दुआ नहीं की?उन्होंने फ़रमायाः मेरे लाल! पहले पड़ोसी, फिर घर वाले।

 

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