कम मुद्दत में ईरानी क़ौम के साम्राज्यवाद की नीतियों के ख़िलाफ़ कारनामे से घबराया हुआ दुश्मन, ख़ामोश नहीं बैठ सकता इसलिए वह बचकाना व बेवक़ूफ़ी भरा रिएक्शन दिखा रहा है।
यह आशूर का पैग़ाम है जो हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब के गले से बड़ी बेबसी और तनहाई के वक़्त निकला और आज आलमगीर बन गया है, दुनिया पर छा गया है। यह अल्लाह की अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।
शिया सुन्नी की जंग, अरब व ग़ैर अरब की जंग, कभी शियों की शियों से और सुन्नियों की सुन्नियों से जंग, यह इम्पीरियल ताक़तों का काम है, यह अमरीका का काम है। इसकी ओर से होशियार रहने की ज़रूरत है।
मुहर्रम के महीेने के आख़िरी दिनों में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मशहद शहर के सफ़र में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़रीह की सफ़ाई के प्रोग्राम में शिरकत की।
युक्रेन के मसले में सबने यूरोप की नस्ल परस्ती देखी। वे खुले आम इस बात पर दुख ज़ाहिर करते हैं कि इस बार जंग मध्यपूर्व में नहीं बल्कि यूरोप में छिड़ गयी है। दूसरे लफ़्ज़ों में यूं कहें कि अगर जंग और क़त्लेआम मध्यपूर्व में हो तो ठीक है।
ईदे ग़दीर के दिन ईरान की राजधानी तेहरान के अवाम ने, वली-ए-अस्र स्ट्रीट पर आयोजित अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की विलायत की बड़ी ईद का जश्न मनाया। अवाम की सेवा के लिए 600 मौकिब लगाए गए थे। जश्न के लिए तय किए गए 10 किलोमीटर लंबे रास्ते पर लाखों की तादाद में तेहरान के अवाम ने शिरकत की।
मुबाहेला वह मौक़ा है जब पैग़म्बरे इस्लाम अपने सबसे चहेते लोगों को मैदान में लेकर आते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी हक़ीक़त बयान करने के लिए अपने प्यारों को मैदान में ले आते हैं।