ये शिकस्त यक़ीनन जारी रहेगी, ये नाकाम कोशिशें भी, जैसे ये हरकत जो उन्होंने सीरिया में की, अलबत्ता इसका ख़मियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ेगा, इस तरह की हरकतें उनके काम नहीं आएंगी।
जब इंसान अपनी ओर से चौकन्ना रहता है तो वो दीनदार होता है, लेकिन जैसे ही वो अपनी ओर से ग़ाफ़िल होता है, ख़ुद पर अपना अख़्तियार खो देता है और फिर धीरे-धीरे दीन से बाहर निकल जाता है।
जहाँ तक हो सके नमाज़े शब पढ़िए, नमाज़े शब छूटने ने पाए। जवानी का ये मौक़ा जो आपके पास है, दोबारा नहीं मिलता इससे अल्लाह से मोहब्बत के लिए फ़ायदा उठाइये।
पश्चिम के समर्थन से अंजाम पाने वाले ज़ायोनी सरकार के अपराध और दरिंदगी पर ग़ज़ा के अवाम का तारीख़ी सब्र एक अज़ीम हक़ीक़त है जिसने इस्लाम की मर्यादा बढ़ाई।
अगर हम अल्लाह को मानते हैं तो फिर बिखराव का कोई मतलब ही नहीं है और अगर वैचारिक मतभेद भी है तो उसे सच्चे ईमान और अल्लाह से सच्चे लगाव के साए में छिप जाना चाहिए।
बहुत से लोग नमाज़ के लफ़्ज़ों के मानी को नहीं समझते या बहुत थोड़ा समझते हैं, वो भी अगर नमाज़ की हालत में और उसके लफ़्ज़ों को अदा करते हुए इस बात की ओर ध्यान रखें कि वो अल्लाह से बात कर रहे हैं तो इसका असर होगा। मतलब ये कि इंसान नमाज़ पढ़ते हुए मानसिक तौर पर हाज़िर रहे और अल्लाह के सामने अपनी हाज़िरी को महसूस करे तो असर होगा।
मज़लूम फ़िलिस्तीनी बच्ची जिसने अपनी शहादत से पहले एक वसीयतनामा लिखा था और इस वसीयतनामे में ड्राइंग की थी। जो कुछ उसके पास था उसने बख़्श दिया था। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शबे विलादत इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में बच्ची को शेर पढ़कर श्रद्धांजलि दी गई।
दुनिया का मोह, इच्छाओं के पूरे न होने और हैवानी इच्छाओं और वासनाओं को कुचले न जाने की वजह से इंसान धीरे-धीरे ईमान से कुफ़्र की ओर झुकने लगता है। हमें इस बात की ओर से चौकन्ना रहना चाहिए कि मोमिन होने के बाद हम मुनाफ़िक़ न बन जाएं।
वाक़ई आप बेमिसाल शख़्सियत के मालिक हैं। आम तौर पर राजनेता और मुल्क चलाने वाले लोग सामाजिक व आर्थिक मामलों पर तो गहरी नज़र रखते हैं मगर शेर व साहित्य की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं होता।
जब भूखा खाना खा लेता है तो जी भर जाता है और जब प्यासा पानी पी लेता है तो जी भर जाता है लेकिन अल्लाह के पैग़म्बर फ़रमाते हैं कि नमाज़ से मेरा जी कभी नहीं भरता।
अगर हम ये सोचें तो ग़लत होता कि जवानी से फ़ायदा उठाने का मतलब, जवानी की भौतिक इच्छाओं का आनंद लेना है, जवानी की सरगर्मियां हैं, जवानी में बेहूदा बातों में पड़े रहना है।
आप बहुत देखते हैं ऐसे जवानों को जो दुनिया से चले जाते हैं। तो इस सफ़र की मंज़िल निश्चित नहीं है कि आप जो आगे बढ़ रहे हैं, आप का कहाँ तक आगे बढ़ना और कहाँ गिरना तय है।
हम ख़याल रखें कि अपने काम में, अपनी बातों में, अपने वादों में सच्चे रहें, ये चीज़ अमल से समझ में आती है, ज़िंदगी में होने वाले बदलाव से समझ में आती है।
अमरीका, इस्लामी इंक़ेलाब को मानने के लिए क्यों तैयार नहीं है? इसलिए कि उसके हित ख़तरे में पड़ जाएंगे। इस वक़्त भी वो कह रहा है, खुलकर बिना किसी झिझक के कह रहा है कि ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब और इस्लामी गणराज्य ने इलाक़े में हमारे हित को ख़तरे में डाल दिया है।
इस्लाम और दूसरे आसमानी धर्म, कभी भी अपने दुश्मनों के सिलसिले में उदासीन रवैया नहीं रखते। सभी पैग़म्बरों ने अपने कट्टर दुश्मनों के मुक़ाबले में इसी तरह का रवैया अख़्तियार किया है, वो तलवार उठाते थे।
ऐ अबूज़र! अल्लाह की इस तरह इबादत करो मानो तुम उसे आँखों से देख रहे हो, जान लो कि अल्लाह की इबादत का पहला स्तंभ ये है कि उसकी पाक हस्ती की पहचान हासिल करो, उसकी मारेफ़त पैदा करो।
इस वक़्त ग़ज़ा में जो हो रहा है दोनों तरफ़ से अपनी इंतेहा को पहुंचा हुआ है। अपराध और वहशीपन के लेहाज़ से भी और ग़जा के अवाम के बेमिसाल सब्र के एतेबार से भी।
अपनी नौजवानी की क़द्र करें। हमारी जो मसरूफ़ियतें हैं, वो आम तौर पर सांसारिक फ़ायदों से जुड़ी हैं। हमें पूरे दिन में अल्लाह से अकेले में बात करने का मौक़ा नहीं मिलता, उन हस्तियों की बात अलग है जो हमेशा हालते नमाज़ में रहती हैं।
सरकारों, देशों और क़ौमों से हमारा कोई विवाद नहीं है। हमारा विरोध ज़ुल्म, अतिक्रमण और साम्राज्यवाद से है। हमारा विरोध उन घटनाओं पर है जो आप ग़ज़ा में देख रहे हैं।
ज़ैतून का पेड़ लगाने का मक़सद फ़िलिस्तीन के अवाम से एकजुटता और हमदिली का इज़हार है कि वह जगह ज़ैतून का केन्द्र है और हम दूर से इन मज़लूम, प्यारे और संघर्षशील अवाम को सलाम करना चाहते हैं और कहना चाहते हैं कि हम हर तरह से आपको याद करते हैं। जैसे यही कि आपकी याद में ज़ैतून का पेड़ लगाते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
5 मार्च 2024
फ़िलिस्तीनियों के लिए ज़ैतून आर्थिक पहलू के साथ ही एक प्रतीक भी है। रेज़िस्टेंस का प्रतीक, संयम का प्रतीक और उस सरज़मीन से जुड़ाव का प्रतीक जिसका नाम फ़िलिस्तीन है।
अमरीका की अमानवीय नीतियां इतनी शर्मनाक हो चुकी हैं कि आपने सुना ही होगा कि एक अमरीकी फ़ौजी अफ़सर ने आत्मदाह कर लिया। इसका मतलब यह है कि इस कलचर में पलने वाले नौजवान के लिए भी यह बात बर्दाश्त के बाहर है।
इमाम ख़ामेनेई
28 फ़रवरी 2024
क़ुरआन कहता है किः “वो काफ़िरों पर कठोर और आपस में मेहरबान हैं।” क्या अमल में यह कठोरता दुष्ट ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ दिखाई जाती है? आज इस्लामी दुनिया के बड़े दर्द यह हैं।
इमाम ख़ामेनेई
22 फ़रवरी 2024