सिर्फ़ ईमान काफ़ी नहीं है, तक़वा ज़रूरी है। तक़वा न हो तो ईमान भी ख़तरे में पड़ जाएगा। तक़वा न हो तो मुमकिन है कि तुम अल्लाह के कलाम को भी न समझ पाओ।

कीवर्ड्ज़