क़ुरआन से "उंस की महफ़िल" में क़ुरआन के क़ारियों को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की नसीहतः क़ुरआन की तिलावत के वक़्त ख़ुद को अल्लाह के सामने महसूस करें। क़ुरआन के मानी पर ध्यान देने का असर होता है।
अगर क़ुरआन की सही तरीक़े से तिलावत हो और ध्यान से सुना जाए तो हर बीमारी दूर हो जाती है। क़ुरआन की अच्छे तरीक़े से तिलावत हो और हम उसे सुनें और उस पर अच्छी तरह ध्यान दें तो हमें बहुत बड़े नतीजे हासिल होंगे।
अभी एक महीना -कुछ कम या ज़्यादा- का समय मेरे ईरान के सफ़र और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात को नहीं गुज़रा था कि फ़िलिस्तीन का इंतेफ़ाज़ा आंदोलन भड़क उठा।
हम जब भी इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की सेवा में पहुंचते और क्षेत्र के हालात के बारे में उनसे बात करते तो वे मुस्कुराते थे और कहते थे कि हमें रेज़िस्टेंस के रास्ते को जारी रखना होगा और इंशाअल्लाह समझौते की साज़िश सफल नहीं होगी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के प्रतिनिधियों ने, जो शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह और शहीद सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए लेबनान पहुंचे थे, आज दोपहर को सूर शहर के दैर क़ानून अन्नहर इलाक़े में बहादुर व बलिदानी मुजाहिद सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन के पाकीज़ा शव के अंतिम संस्कार में शिरकत की।
हम सबके सब अज़ीज़ सैयद की शहादत पर दुखी और सोगवार हैं। अलबत्ता हमारी सोगवारी अवसाद, मानसिक परेशानी और निराशा के मानी में नहीं है। यह शहीदों के सरदार इमाम हुसैन बिन अली अलैहेमस्सलाम की अज़ादारी जैसी है।
हिज़्बुल्लाह और शहीद सैयद ने ग़ज़ा की रक्षा और मस्जिदुल अक़्सा के लिए जेहाद और क़ाबिज़ व ज़ालिम शासन पर वार करके पूरे क्षेत्र की निर्णायक सेवा में क़दम बढ़ाया। अल्लाह का सलाम हो शहीद रहनुमा नसरुल्लाह पर।
हज़रत सैयद हसन नसरुल्लाह (अल्लाह उनके दर्जे बुलंद करे) आज इज़्ज़त की चोटी पर हैं। उनका पाकीज़ा शरीर अल्लाह की राह में जेहाद करने वालों की सरज़मीन में दफ़्न होगा लेकिन उनकी रूह और राह हर दिन ज़्यादा से ज़्यादा कामयाबी का जलवा बिखेरेगी इंशाअल्लाह और रास्ता चलने वालों का मार्गदर्शन करेगी।
दुश्मन जिस रास्ते से अवाम के मन में पैठ बनाना चाहता है, उस रास्ते को बंद करें, दुश्मन के मुक़ाबले में डट जाएं, कंटेन्ट बनाएं, विचार पेश करें, आज के बुद्धिजीवियों का यह काम, हार्डवेयर से रक्षा से ज़्यादा अहम है।
दुनिया के साम्राज्यवादी, दुनिया की इम्पीरियल ताक़तें और दुष्ट तत्व, इस्लामी गणराज्य से इस वजह से क्रोधित हैं कि इस्लामी गणराज्य बाक़ी रह गया, डटा रह गया, इन्हें मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत दिखा सका।
अपने जवानों, अपने वैज्ञानिकों, अपने टेक्नॉलोजी के माहिरों की कोशिश की बर्कत से, आज हार्ड डिफ़ेंस के लेहाज़ से, दुश्मन के सैन्य ख़तरों से निपटने के लेहाज़ से, हमें कोई चिंता और परेशानी नहीं है।
जल्द ही फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख मोहम्मद इस्माईल दरवीश का Khamenei.ir को दिया गया ख़ुसूसी इंटरव्यू पेश किया जाएगा।
अल्लाह ने क़ुरआन मजीद की इस आयत को "ख़ुदा के हुक्म से कई छोटी जमाअतें बड़ी जमाअतों पर ग़ालिब आ जाती हैं..." (सूरए बक़रह, आयत-249) आपके ज़रिए पूरी दुनिया के सामने मिसाल के तौर पर पेश किया।
अमरीकी, धमकी दे रहे हैं। अगर हमें धमकी देंगे तो हम उन्हें धमकी देंगे। अगर वह इस धमकी पर अमल करेंगे तो हम भी धमकी पर अमल करेंगे। यह व्यवहार, इस्लाम से लिया गया सबक़ और इस्लाम का हुक्म है और यह हमारा फ़रीज़ा है।
इस शख़्स ने जो इस वक़्त सत्ता में है, उस समझौते को फाड़ दिया, ऐसी सरकार से वार्ता नहीं करनी चाहिए, वार्ता करना अक़्लमंदी नहीं है, समझदारी नहीं है, शराफ़तमंदाना काम नहीं है।
अगर आपसे कहा जाता कि एक बालिश्त ज़मीन वाला ग़ज़ा अमरीका की सैन्य ताक़त जैसी एक बड़ी ताक़त से टकराने वाला है और उस पर हावी हो जाएगा तो क्या आपको यक़ीन आता?! आपको यक़ीन नहीं आता, यह नामुमकिन चीज़ों में से है। लेकिन अल्लाह के हुक्म से यह काम मुमकिन है।
दूसरे भी समझते हैं कि अमरीका झूठा है, लेकिन उनमें कहने की हिम्मत नहीं है। दूसरी बहुत सी क़ौमों और ईरानी क़ौम में फ़र्क़ यह है कि ईरानी क़ौम में यह कहने की हिम्मत है कि अमरीका हमलावर है, अमरीका झूठा है, अमरीका धोखेबाज़ है, अमरीका साम्राज्यवादी है और अमरीका मुर्दाबाद।
कूटनैतिक मुस्कुराहटों के पीछे इस तरह की दुश्मनियां, इस तरह के द्वेष इस तरह के घिनौने अंतर्मन छिपे हुए हैं, हम अपनी आँखें खोलें। हमें मालूम होना चाहिए कि हमारा सामना किससे है, हम किससे डील कर रहे हैं, किससे बात कर रहे हैं।
यह रेज़िस्टेंस और उसका आगे बढ़ना, इसी बेसत की एक किरण हैं। रेज़िस्टेंस जो इस्लामी ईरान से शुरू हुआ, उसने मुस्लिम क़ौमों को जागरुक किया। कुछ मुस्लिम क़ौमों को मैदान में ले आया। उसने अवाम की सतह पर मुस्लिम क़ौमों को बेदार किया और बहुत से ग़ैर मुसलमानों के ज़मीरों को भी जगा दिया। वर्चस्ववादी सिस्टम पहचाना गया, पहचनवाया गया।
आज सारे सियासी व दुनियावी समीकरण दक्षिणी लेबनान के मोमिन व मुख़लिस अवाम के हाथों ध्वस्त हो गए जो क़ाबिज़ ज़ायोनी सेना को धता बताते हुए बलिदान के जज़्बे और अल्लाह के वादे पर यक़ीन के साथ जान हथेली पर रख कर मैदान में आ गए।
इमाम ख़ामेनेई
ज़ालिम व निर्दयी ज़ायोनी सरकार, हमास के साथ जिसे वह ख़त्म करना चाहती थी, वार्ता की मेज़ पर बैठी है।और युद्ध विराम पर अमल के लिए उसकी शर्तें मान चुकी है। यह जो हम कहते हैं कि रेज़िस्टेंस ज़िंदा है, इसका अर्थ यह है।
रीगन ने इसी ख़याल से कि ईरान कमज़ोर हो गया है, सद्दाम शासन की इतनी ज़्यादा मदद की। वह भी और दसियों दूसरे ख़याली पुलाव पकाने वाले नरक में पहुंच गए, इस्लामी सरकार दिन ब दिन आगे बढ़ती गयी।
ब्रिक्स (BRICS) के वित्तीय सिस्टम से सदस्य देशों की मुद्राओं से जो लेन-देन होना तय है, अगर उस पर गंभीरता से काम किया गया तो निश्चित तौर पर यह बहुत मदद करेगा।
शहीद राज़ीनी और शहीद मुक़ीसा को अल्लाह के दुश्मनों के हाथों, अल्लाह की राह में शहीद होने का बदला मिला। जो लोग दुनिया से शहीद जाते हैं उन्हें हक़ीक़त में अल्लाह के पास से बदला मिलता है।
कुछ लोग कहते हैं कि जनाब आप अमरीका के साथ न तो वार्ता के लिए तैयार हैं और नहीं संपर्क क़ायम करना चाहते हैं, योरोपीय देशों के साथ जबकि वे भी अमरीका की ही तरह हैं, क्या अंतर है, क्यों संपर्क बना रखा है? नहीं! फ़र्क़ है।
जो लोग भी सांस्कृतिक मसलों में, हेजाब के मसले वग़ैरह में फ़ैसला ले रहे हैं, उनका इस बात की ओर ध्यान रहे कि अमरीका और ज़ायोनियों के स्टैंड को अहमियत न दें, देश के हितों को मद्देनज़र रखें, इस्लामी गणराज्य के हितों को मद्देनज़र रखें।
पहलवी दौर का ईरान, अमरीकी हितों का मज़बूत क़िला था। इस क़िले के गर्भ से इंक़ेलाब निकला और फैल गया। अमरीकी समझ नहीं पाए, अमरीकी धोखा खा गए, अमरीकी सोते रह गए, अमरीकी ग़ाफ़िल थे, अमरीका की अंदाज़े की ग़लती का मतलब यह है।
आज बुनियादी काम, हमारे प्रचारिक तंत्र का अहम काम साइबर स्पेस पर हमारे सरगर्म लोगों का बुनियादी काम यह है कि दुश्मन की ताक़त के भ्रम को चकनाचूर कर दें, जनमत पर दुश्मन के प्रचार का असर न होने दें।
यहया इब्राहीम हसन सिनवार की दास्तान, सिर्फ़ एक इंसान की दास्तान नहीं है। यह नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ संघर्ष, प्रतिरोध और एक लड़ाई की दास्तान है जिसका दशकों से प्रभाव न सिर्फ़ पश्चिमी एशिया के इलाक़े बल्कि दुनिया पर पड़ा है। उन्होंने हिब्रू ज़बान भी सीखी, वह अपनी क़ौम और अपनी सरज़मीन के दुश्मनों को पहचानते थे और उनके आस-पास के लोग उनका सम्मान भी करते थे।
जो आख़िर में विजयी होगा, वह ईमान की ताक़त है और ईमान वाले हैं। लेबनान, रेज़िस्टेंस का प्रतीक है, वही विजयी होगा। यमन भी रेज़िस्टेंस का प्रतीक है, वही विजयी होगा।
सीला फ़सीह, ग़ज़ा में हाल में ठंड से शहीद होने वाली नवजात शिशु है। ग़ज़ा में सिर छिपाने की जगह न होने और ईंधन की कमी की वजह से बेघर होने वालों के पास ठंडक और गर्मी से बचाव का कोई साधन नहीं है।
सीरिया की जवान नस्ल को चाहिए कि इच्छा शक्ति से उन लोगों के मुक़ाबले में, जो इस अशांति के योजनाकार और इसे फैलाने वाले हैं, डट जाए और इंशाअल्लाह उन्हें हरा देगी।