ईरानी क़ौम ने हालिया थोपी गयी जंग में ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ बड़ा कारनामा अंजाम दिया यह बड़ा काम, सैन्य आप्रेशन का नहीं था, इरादे का था। ख़ुद यह इरादा, ख़ुद यह आत्मविश्वास एक बहुत ही असाधारण अहमियत रखता है।
ईरान ने नवातीम एयरबेस पर इसलिए हमला किया क्योंकि ज़ायोनी सरकार का कमांड ऐन्ड कंट्रोल सेंटर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफ़ेयर सेंटर वहाँ था। इस्लामी गणराज्य ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के मीज़ाईल हमलों के नतीजे में इस अड्डे को भारी नुक़सान पहुंचा।
अल्लाह ने इस्लामी व्यवस्था के तहत और क़ुरआन व इस्लाम की छाया में, ईरानी राष्ट्र के लिए मदद निश्चित कर दी है कि ईरानी राष्ट्र निश्चित रूप से विजयी होगा।
दस घंटे से भी कम वक़्त में शहीद कमांडरों की रैंक के कमांडर नियुक्त किए जाते हैं और सफल आप्रेशन भी उसी सीमित वक़्त में शुरू हो जाते हैं। यह ख़ुसूसियत, सुप्रीम कमांडर की प्रशासनिक सलाहियत की नुमायां मिसाल है। अलबत्ता यह चीज़ सिर्फ़ बहादुरी से हासिल नहीं हुयी है बल्कि मामलों पर उनकी भरपूर पकड़ और उसमें उनका मूल किरदार है।
उस रात उनका आना असमान्य घटना थी। शुरू के दो तीन मिनट सभी लोग हतप्रभ और एक ख़ास हालत में थे। एक बहुत ही आध्यात्मिक और क़ीमती माहौल था जिसका हम सभी पर प्रभाव पड़ा।
बैत हानून का नाम, ज़ायोनियों के लिए कुछ कड़वी यादें लिए हुए है। यह एक ऐसा इलाक़ा है जिसने रेज़िस्टेंस के मुजाहिदों की बहादुरी से ज़ायोनी शासन की अपराधी फ़ौज की धौंस को बार बार मिट्टी में मिलाया है। ज़ायोनी मीडिया ने इस आप्रेशन को, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का 7 अक्तूबर के बाद का सबसे जटिल और बड़ा आप्रेशन क़रार दिया है।
ईरानी, हमेशा आशूरा के संदेश से प्रेरित रहे हैं। यह घटना सिर्फ़ एक ऐतिहासिक वाक़या नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई के लिए संघर्ष और अत्याचार के ख़िलाफ़ डट जाने का प्रतीक है। ईरानियों के लिए, आशूरा सच और झूठ के बीच अनंत लड़ाई का एक शक्तिशाली प्रतीक है जो आज भी जारी है।
इस्लामी गणराज्य ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के हमले के जवाब में ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने गावयाम टेक्नॉलोजी पार्क को बड़ी सटीकता से मीज़ाइलों का निशाना बनाया। ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने 20 जून को इस सेंटर पर ज़बरदस्त हमला किया और ज़ायोनी सरकार की वॉर मशीन पर भारी वार किया।
आज हमें इस बात की ज़रूरत है कि दुनिया को इमाम हुसैन इबने अली से परिचित कराएं। इस्लामी जगत को हुसैन इबने अली अलैहिस्सलाम का सबक़ यह है कि सत्य के लिए, इंसाफ़ के लिए, इंसाफ़ क़ायम करने के लिए, ज़ुल्म के मुक़ाबले के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और अपना सब कुछ मैदान में ले आना चाहिए।
किसी भी तर्क के मुताबिक़ यह बात स्वीकार्य नहीं है कि किसी क़ौम से कहा जाए कि वह सरेंडर कर दे, ईरानी क़ौम से यह कहना कि समर्पण कर दो, अक़्लमंदी की बात नहीं है।
फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा इलाक़ों पर ईरान की ओर से पहली बार मीज़ाईल बरसाए जाने के कुछ ही दिन के अंदर ज़ायोनी शासन के कमज़ोर होने की निशानियां ज़ाहिर हो गयीं।
अमरीकी सरकार सीधे तौर पर जंग में कूद पड़ी क्योंकि उसे लगा कि अगर वह नहीं कूदी तो ज़ायोनिस्ट रेजीम पूरी तरह मिट जाएगी। जंग में कूदी ताकि उसे बचाए लेकिन इस जंग से उसे कुछ हासिल नहीं हुआ।
इस्लामी गणराज्य ने अमरीका को बहुत ज़ोरदार थप्पड़ लगाया। क्षेत्र में अमरीका की बड़ी अहम छावनियों में से एक अल-उदैद बेस पर हमला किया और उसे नुक़सान पहुंचाया।
ईरानी क़ौम ने इस वाक़ए में अपनी महानता का अपनी अज़ीम शख़्सियत का परिचय दिया और यह दर्शा दिया कि ज़रूरत पड़ने पर इस क़ौम से एक सुर सुनाई देगा और बेहम्दिल्लाह ऐसा हुआ।
अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, "ईरान सरेंडर हो जाए।" अस्ल बात युरेनियम संवर्धन नहीं है, ईरान के सरेंडर होने का विषय है। यह बात अमरीकी राष्ट्रपति के मुंह से छोटा मुंह बड़ी बात जैसी है।
अमरीकी सरकार सीधे तौर पर जंग में कूद पड़ी, क्योंकि उसे लगा कि अगर वह नहीं कूदी तो ज़ायोनिस्ट रेजीम पूरी तरह मिट जाएगी। इस्लामी गणराज्य ने पलट कर अमरीका को बहुत ज़ोरदार थप्पड़ लगाया। हमारी संस्कृति और सभ्यता की धऱोहर अमरीका और उसके जैसों से सैकड़ों गुना ज़्यादा है। कोई यह अपेक्षा रखे कि ईरान किसी देश के आगे सरेंडर होगा यह एक निरर्थक बात है।
ईरानी क़ौम थोपी गयी जंग के मुक़ाबले में मज़बूती से डट जाएगी जैसा कि अब तक डटी हुयी है थोपी गयी सुलह के मुक़ाबले में भी मज़बूती से डट जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
18 जून 2025
आज इस घमंडी, जाहिल और धर्मांधी ने मुक़ाबले के ऐसे मैदान में क़दम रखा है जिसमें उसकी क़ब्र खुदी हुयी है। पूरी क़ौम तैयार है, हम सब ल़ड़ेंगे। हम बड़ी ताक़तों पर क्षेत्रीय स्तर पर फ़तह हासिल करने के लिए बढ़ने वाले हैं। यह जंग हमारे लिए, एक मुक़द्दस और मुबारक जंग है।
वे अमरीकी जो इस इलाक़े को पहचानते हैं, जानते हैं कि इस मामले में अमरीका का कूदना, सौ फ़ीसदी उसके नुक़सान में है। इस मामले में जो नुक़सान उसे पहुंचेगा, वह ईरान को संभवतः पहुंचने वाले नुक़सान से ज़्यादा होगा। इस मैदान में कूदने पर, इस मैदान में सैनिक हस्तक्षेप करने पर अमरीका को पहुंचने वाला नुक़सान, ऐसा होगा जिसकी निश्चित तौर पर वह भरपाई नहीं कर पाएगा।
इमाम ख़ामेनेई
18 जून 2025
यह वही चीज़ है जिसके बारे में दसियों साल पहले, ज़ायोनी हुकूमत के मुख्य संस्थापकों में से एक और इस हुकूमत के प्रधान मंत्री बिन गोरियन ने उसने कहा था कि जब भी हमारी डिटेरन्स ताक़त ख़त्म हो जाएगी, हमारी हुकूमत बिखर जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
22 अप्रैल 2023
दुश्मन के मुक़ाबले में चेतना के मामले में भी चरम सीमा पर हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि “और जो सो गया तो उससे कोई ग़फ़लत नहीं करेगा” अगर तुम्हें दुश्मन की लोरी से नींद आ गयी तो जान लो इसका यह मतलब नहीं कि दुश्मन भी सो गया होगा, वह जाग रहा है।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2024
हम ज़ायोनिस्टों को इस बड़े जुर्म के बाद जो उन्होंने अंजाम दिया है, बच कर नहीं जाने देंगे। यक़ीनन इस्लामी जम्हूरिया ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ इस ख़बीस ज़ायोनी दुश्मन पर भारी वार करेंगी।
ग़दीर का अर्थ, इलाही व इस्लामी शासन के सिलसिले को जारी रखना है ताकि यह शासन इमामत की मदद से विकसित इस्लामी जीवन शैली के आदर्श पेश करने का सिलसिला जारी रखे।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2024
सचमुच हमारी क़ौम अटल इरादे की मालिक क़ौम है, क्या आप किसी ऐसी क़ौम को जानते हैं जो उन ताक़तों के मुक़ाबले में जो दूसरों पर अपना हुक्म चला रही हैं, डट जाए, सीना तान कर खड़ी हो जाए और पूरी दृढ़ता से और स्पष्ट अंदाज़ में अपनी बात रखे? हमारी क़ौम के अलावा बहुत ढूंढने पर कोई ऐसी क़ौम मिलेगी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हर साल की तरह इस साल भी सम्मानीय हाजियों के नाम एक पैग़ाम जारी करके, इस्लामी जगत के अहम मुद्दों की ओर उन्हें ध्यान दिलाया है।
हैरत होती है कि इंसान कितना पस्त, दुष्ट, निर्दयी और शैतान हो जाए कि ऐसी करतूत करे। अलबत्ता इस अपराध में अमरीका भी भागीदार है। यही वजह है कि हमने कहा है, बारंबार कहा है और हम इसरार कर रहे हैं कि अमरीका इस इलाक़े से निकल जाए।
रमिये जमरात (कंकड़ियाँ मारना) यानी शैतान को मारो, जहां भी हो, जिस शक्ल में भी हो, जहाँ भी शैतान मिले, उसे कुचल दो। शैतान को कुचल दो, शैतान को पहचानो और मार दो।
इमाम ख़ामेनेई
4 मई 2025
ज़ायोनी सरकार पर भरोसे से कोई भी सरकार सुरक्षित नहीं रह पाएगी। ज़ायोनी शासन अल्लाह के अटल फ़ैसले की वजह से बिखर रहा है और इंशाअल्लाह इसमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा।
सफ़ा व मरवा के बीच सई (तेज़ क़दमों से चलना) एक इबादत है, लेकिन इसका एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश है। (यानी) ज़िंदगी की मुश्किलों के पहाड़ों के बीच लगातार आगे बढ़ते रहिए, कोशिश करते रहिए।
तवाफ़ आपको यह सबक़ देता है: ज़िंदगी का अस्ली सबक़ तौहीद है। और यह सबक़ सिर्फ़ मोमिनों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए हैः और लोगों में हज का एलान कर दीजिए। (सूरए हज, आयत-27)