आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने उन आयतों का हवाला दिया जिसमें अल्लाह को भूलने के बुरे नतीजों का ज़िक्र है। उन्होंने कहा कि अगर इंसान अल्लाह को भूल जाए तो अल्लाह भी उसे भुला देता है, यानी अपनी रहमत और हिदायत के दायरे से उसे निकाल देता है और उसकी ओर से उदासीन होकर उसे तनहा और उसके हाल पर छोड़ देता है। 
उन्होंने ख़ुद को भुला देने के भारी सामाजिक आयाम की व्याख्या में सूरए तौबा की आयत का हवाला देते हुए कहा कि अगर इस्लामी गणराज्य में पूर्ववर्तियों की तरह यानी सरकश शाही शासन के अधिकारियों की तरह हम भी अमल करें तो मनो हम बहुत बड़ा और चिंताजनक अपराध करेंगे जिसका बहुत भारी नुक़सान होगा। 
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने राष्ट्रपति की अच्छी व लाभदायक बातों और इसी तरह उनके जज़्बे और ज़िम्मेदारी की भावना की सराहना करते हुए उसे बहुत मूल्यवान बताया और कहा कि जनाब पेज़िश्कियान का अल्लाह और बड़े काम करने की क्षमता पर भरोसे पर ताकीद, पूरी तरह मुश्किल को हल करने वाली है। 
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेश मंत्रालय की सरगर्मियों पर ख़ुशी जताते हुए और पड़ोसियों और दूसरे देशों से संबंध विस्तार पर ताकीद करते हुए कहा कि कुछ विदेशी बदमाश सरकारें और नेता वार्ता पर इसरार कर रहे हैं हालांकि वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य मसले का हल नहीं है बल्कि वे अपने मद्देनज़र मसलों में हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना चाहते हैं, अगर सामने वाले पक्ष ने मान लिया तो ठीक! नहीं तो प्रोपैगंडा करके उस पर वार्ता की मेज़ छोड़ने का इल्ज़ाम लगाएं। 
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि मसला सिर्फ़ परमाणु विषय का नहीं है, बल्कि उनके लिए वार्ता मुल्क की रक्षा सलाहियतों, मुल्क की अंतर्राष्ट्रीय क्षमताओं सहित नए मुतालबे पेश करने का रास्ता और मार्ग है और इस तरह की अपेक्षाएं पेश करने के लिए है कि आप फ़ुलां काम न कीजिए, फ़ुलां शख़्स से न मिलिए, मिसाइल की रेंज फ़ुलां सीमा से ज़्यादा न हो! निश्चित तौर पर इस तरह की बातें ईरान नहीं मानेगा। 
उन्होंने सामने वाले पक्ष की ओर से वार्ता की रट का लक्ष्य जनमत पर दबाव डालना बताया और कहा कि वे चाहते हैं कि जनमत के मन में संदेह पैदा करें कि क्यों उनकी ओर से वार्ता के लिए तैयार होने के वावजूद हम वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं? वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना है। 
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने तीन योरोपीय देशों के परमाणु समझौते जेसीपीओए में ईरान के अपने वचन पर अमल न करने पर आधारित बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि क्या आपने जेसीपीओए में अपने वचन पर अमल किया? उन्होंने तो पहले दिन से कोई अमल नहीं किया और अमरीका के परमाणु समझौते से निकलने के बाद, उसकी भरपाई के वचन के बावजूद वे लोग दो बार अपने वचन से मुकर गए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने योरोपियों की ओर से वचन पर अमल न किए जाने के साथ ही उनकी ओर से ईरान पर ख़िलाफ़वर्ज़ी का इल्ज़ाम लगाने को उनकी ढिठाई की इंतेहा बताया और कहा कि तत्कालीन सरकार ने एक साल तक इंतेज़ार किया और फिर संसद मैदान में आ गयी और एक प्रस्ताव पास हुआ क्योंकि इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं था और इस वक़्त भी धौंस और धमकी के मुक़ाबले में इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं है। 
उन्होंने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में इस्लामी सिस्टम के ढांचे को क़ुरआन के नियमों और उसूलों और क़ुरआन तथा सुन्नत के मानदंडों और लक्ष्यों पर आधारित बताया और कहा कि इस बुनियाद पर हम पश्चिमी सभ्यता के पिछलग्गू नहीं हो सकते, अलबत्ता दुनिया में पश्चिमी सभ्यता सहित जहाँ भी अच्छी चीज़ होगी, हम उससे फ़ायदा उठाएंगे लेकिन हम पश्चिम के मानदंडों पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि वे ग़लत और इस्लामी मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं। 
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पश्चिम वालों की साम्राज्यवादी हरकतों, राष्ट्रों के स्रोतों की लूटमार, बड़े पैमाने पर नरसंहार, मानवाधिकार और महिला अधिकार के बारे उनके झूठे दावे और इसी तरह अनेक मुद्दों पर उनके दोहरे मानदंडों के कारण पश्चिमी सभ्यता के रुसवा होने की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि पश्चिम में सूचना की आज़ादी की बात, निरा झूठ है जैसा कि पश्चिम के सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्ज़ पर जनरल सुलैमानी, सैयद हसन नसरुल्लाह, शहीद हनीया और कुछ दूसरे मशहूर लोगों के नाम का उल्लेख करना मुमकिन नहीं है और फ़िलिस्तीन तथा लेबनान में ज़ायोनियों के अपराधों पर विरोध नहीं जताया जा सकता। 
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान की स्थिति के बारे में पश्चिमी मीडिया में बोले जाने वाले झूठ की ओर इशारा करते हुए कहा कि इनमें किस मीडिया में ईरान की वैज्ञानिक तरक़्क़ी, बड़ी जनसभाओं, इस्लामी सिस्टम और राष्टॉ की कामयाबियों का ज़िक्र होता है जबकि कमज़ोर बिंदुओं को दस गुना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है। 
उन्होंने पश्चिम के कुछ समाज शास्त्रियों के कथनों का हवाला देते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता दिन ब दिन पतन की ओर बढ़ रही है अतः हमें उसका पालन करने की इजाज़त नहीं है। 
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरान के दुश्मनों के इस प्रकार के नकारात्मक प्रचार के बावजूद, ईरानी क़ौम की ज़्यादा से ज़्यादा होने वाली तरक़्क़ी को एक हक़ीक़त बताया और इसे बनाए रखने को देश के अधिकारियों की सही दिशा में प्रगति और पहचान की रक्षा पर निर्भर बताया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच में देश से विशेष मुद्दों में मुख्य रूप से आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करते हुए कहा कि आर्थिक मुश्किलों के बावजूद 21वीं सदी के दूसरे दशक के आग़ाज़ में दुश्मन की सुरक्षा और सूचना से संबंधित धमकियों सहित ज़्यादातर धमकियों का लक्ष्य, अवाम की आर्थिक स्थिति को ख़राब करना था। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य यह है कि इस्लामी गणराज्य अवाम की आर्थिक स्थिति का सही तरह संचालन न कर पाए इसलिए आर्थिक स्थिति बहुत अहम है और इसमें सुधार के लिए गंभीर रूप से कोशिश की ज़रूरत है।