इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सिद्दीक़ए ताहेरा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस पर ज़ाकिरों, वक्ताओं और अहले बैत के मद्दाहों और शायरों से मुलाक़ात की। 22 दिसम्बर 2024 को होने वाली इस मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी की महानताओं का ज़िक्र किया और क्षेत्रीय तथा वैश्विक हालात पर रौशनी डाली। (1)
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
मैं कायनात की औरतों की सरदार, आख़िरी पैग़म्बरे के जिगर का टुकड़ा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शुभ जन्म दिवस की मुबारकबाद पेश करता हूं। आज हमारी यह सभा बहुत प्रकाशमय, आत्मिक और मिठास से भरी हुयी थी। आप भाइयों और बहनों ने भी और शेर पढ़ने वालों और नात पढ़ने वालों ने भी सचमुच इस दिन की हम सबकी रूहानी तश्नगी को दूर किया। अल्लाह, आप सबको सुरक्षित रखे और ज़्यादा तौफ़ीक़ दे इंशाअल्लाह। मैं हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में संक्षेप में कुछ बातें पेश करुंगा, मद्ह करने और मद्दाहों से विशेष मसलों पर कुछ बातें कहूंगा और आज के हालात और मुद्दों के बारे में भी कुछ बातें संक्षेप में पेश करुंगा।
अल्लाह ने सारे इंसानों के लिए, चाहे वे मर्द हों या औरतें, दो औरतों के आदर्श क़रार दिया हैः "और अहले ईमान के लिए फ़िरऔन की बीवी (आसिया) की मिसाल पेश करता है..." और इसके बाद " और (दूसरी) मिसाल मरयम बिन्ते इमरान की..." (2) (सूरए तहरीम, आयत-11, 12) दो औरतें हैं, जिन्हें अल्लाह ने पूरी इंसानियत के लिए नमूना और आदर्श क़रार दिया है, सिर्फ़ औरतों के लिए नहीं, मर्दों और औरतों दोनों के लिए। मुख़्तलिफ़ रावियों के ज़रिए शिया और सुन्नी दोनों के यहाँ एक रवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि मेरी ज़हरा की अज़मत इन दोनों महिलाओं से ज़्यादा है।(3) यह जो कहा जाता है कि यह आदर्श हैं, यह सिर्फ़ महानता नहीं है, इस बात पर ध्यान रहे, आदर्श तो हैं ही, चरम हैं, ऊंचाई हैं, मुमकिन है कि मैं और आप उस चरम पर, उस चोटी पर न पहुंच पाए, लेकिन उसकी ओर बढ़ना तो चाहिए ही। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के बाद, अलग अलग रवायतों के मुताबिक़ दो महीने या तीन महीने बाद शहादत तक की अपनी इसी छोटी सी ज़िंदगी में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने जो कारनामे अंजाम दिए, उन्हें सबने देखा, वो सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए नमूना हो सकती हैं।
यह बात कि एक अकेली महिला, एक जवान महिला, एक बड़े मजमे, एक ताक़त, एक शासन के सामने खड़ी हो जाए, सत्य की रक्षा करे, बहादुरी का प्रदर्शन करे, उसका तर्क, सभी तर्कशील लोगों को संतुष्ट कर दे, काम को अधूरा न छोड़े और अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिनों तक कि जब मदीने की औरतें उनका हाल चाल लेने के लिए आती हैं, उन्हीं तथ्यों को, धर्म की उन्हीं मज़बूत बुनियादों को बयान करे, यह ऐसी चीज़ है जो हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी नुमायां, श्रेष्ठ और बेमिसाल शख़्सियत के अलावा किसी के बस की बात नहीं है। इनमें से हर बात आदर्श हैः सत्य के लिए उठ खड़े होना, बहादुरी, साफ़ अंदाज़ में खुलकर बोलना, तर्क की ताक़त दृढ़ता। यह वही चीज़ है जिसके बारे में अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया है कि "तुम दो-दो और एक-एक होकर ख़ुदा के लिए खड़े हो जाओ..."(4) (सूरए सबा, आयत-46) अगर दो लोग हुए तो अल्लाह के लिए उस चीज़ के मुक़ाबले में खड़े हो जाओ और आंदोलन करो जो अल्लाह के हुक्म के ख़िलाफ़ है, अगर दो लोग न हुए, एक ही हो, अकेले हो तब भी आंदोलन करो। यह आयत निश्चित तौर पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पर चरितार्थ होती है।
ख़ारज़्मी ने जो सुन्नी धर्मगुरू हैं, एक रवायत का हवाला दिया है, वह कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः ऐ सलमान! पैग़म्बरे इस्लाम यह बात सलमान से कह रहे हैं जो पहले दर्जे के सहाबी हैं, पैग़म्बरे इस्लाम अपनी यह बात अपने सबसे क़रीबी सहाबी से बयान करते हैं: फ़ातेमा की मोहब्बत, 100 जगहों पर फ़ायदा पहुंचाएगी यानी इस सांसारिक ज़िंदगी के बाद के चरण में 100 जगहों पर तुम्हारे काम आएगी, उनमें सबसे आसान मौत की स्थिति और क़ब्र की है।(5) फ़ातेमा की यह मोहब्बत जहाँ तुम्हारे काम आएगी, उनमें सबसे आसान जगह मौत और क़ब्र है। यह फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की मोहब्बत के बारे में हदीस है। पहली नज़र में इस हदीस के मानी यह हैं कि अगर तुम फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से मोहब्बत रखोगे तो यह फ़ज़ीलत तुम्हारे लिए है, यह ठीक भी है, यानी इस मानी में कोई मुश्किल नहीं है। फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से तुम्हारी मोहब्बत की ख़ुसूसियत यह है कि वह 100 जगह तुम्हारे काम आएगी लेकिन जब हम ग़ौर करते हैं तो इस मानी के साथ एक दूसरा मतलब भी पाया जाता है और वह यह है कि "किसी से फ़ातेमा ज़हरा की मोहब्बत" का यह फ़ायदा है। यह चीज़ आम बोल चाल में भी प्रचलित है, कहते हैं कि फ़ुलां की दोस्ती तुम्हारे काम आएगी, इसका क्या मतलब है? यानी तुमसे उनकी मेहरबानी, यह बहुत अहम है, यह कठिन है। वह पहला मतलब आसान है, जो भी इस चमकते सूरज को देखे, इस दमकते चाँद को देखे, इस उज्जवल सितारे को देखे, इन महानताओं को देखे उसे मोहब्बत हो जाएगी लेकिन यह दूसरा मतलब कि वह तुम्हे चाहने लगें, यह मुश्किल हिस्सा है।
जो चीज़ मद्दाहों की महफ़िल के लिए मुनासिब है वह इसी बात का हिस्सा हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा उस शख़्स को चाहेंगी जो इन ख़ुसूसियतों को अपनी ज़िंदगी में उतार ले। इन ख़ुसूसियतों में से एक, सही या वास्तविक बात को बयान करना और वास्तविकता की व्याख्या है। हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने उस पहले क्षण से ही तथ्य को बयान करना शुरू कर दिया, उन्होंने उन सभी सुनने वालों और उन सभी लोगों को जो नहीं जानते थे या जानते थे लेकिन जान बूझकर अनजान बनते थे या भूल जाने वालों को वास्तविकता के सामने खड़ा कर दिया। सत्य बयान करना, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का सबसे अहम काम है।
अहलेबैत की प्रशंसा करना, सत्य बयान करने में हज़रत ज़हरा का अनुसरण है। मैं यहीं पर यह बात भी कहता चलूं कि आज इन हज़रात ने जो प्रोग्राम पेश किया, वह हक़ीक़त का वर्णन था। यानी अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से श्रद्धा का इज़हार, इश्क़ व मोहब्बत के इज़हार के साथ उन्होंने तथ्यों का वर्णन किया, आज की हक़ीक़तों को बयान किया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने भी अपने दौर के तथ्यों को बयान किया, उन मुद्दों को जो उस दौरान पेश आए थे, उसी दौर के मुद्दे थे, आपने उन्हें बयान किया। आज के मुद्दों को बयान करना, उनकी व्याख्या करना एक अहम फ़रीज़ा है। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम की रवायत में हैः "बेशक मोमिन अपनी ज़बान और तलवार से जेहाद करता है।" (6) मोमिन जेहाद करता है, कभी अपनी जान से यानी मोर्चे पर जाता है, कभी अपनी तलवार से यानी हथियार से काम लेता है और कभी अपनी ज़बान से। ज़बान से जेहाद, जेहाद की अहम क़िस्मों में से एक है और कभी कभी इसकी अहमियत और इसका असर जान से किए जाने वाले जेहाद से भी ज़्यादा होता है। आप मद्दाह हज़रात जो यहाँ मौजूद हैं और पूरे मुल्क के सभी मद्दाहों के लिए यह बात हैः ज़बान से जेहाद।
इस जेहाद के साधन आपके अख़्तियार में हैं। आपके पास बहुआयामी कला है, मद्दाही एक कंपोज़िट आर्ट है, अंदाज़ भी, मैटर भी, दोनों कला हैं, लफ़्ज़ भी कला है, अर्थ भी कला है। यानी कई कला एक दूसरे के साथ हो गए हैं और उन्होंने मद्दाही को वजूद दिया है। मैं चाहता हूं कि हम मद्दाही की क़द्र को समझें, हम भी समझें और वे ख़ुद भी समझें। मद्दाही कई कलाओं का संगम है, आवाज़ की कला, धुन की कला, शेर की कला, मजमे को कंट्रोल करने की कला, जो ख़ुद एक बड़ी कला है, लोगों से नज़रें मिलाने की कला। आप साइबर स्पेस में लोगों से नज़रें नहीं मिलाते हैं बल्कि वास्तविक महफ़िल या मजलिस में, वास्तविक माहौल में आप लोगों से बात करते हैं, उनसे नज़र मिलाकर अपनी बात पेश करते हैं, यह ख़ुद एक अहम कला है। इसलिए मद्दाही एक संपूर्ण मीडिया है, यह हक़ीक़त को बयान करने का साधन हो सकती है, हक़ीक़त की व्याख्या का एक अहम साधन।
आज हमें हक़ीक़त को बयान करने और उसकी व्याख्या की ज़रूरत है। आज लोगों में शक व संदेह पैदा करना दुश्मन की मूल चालों में से एक है। वे योजनाबंदी करते हैं, कुछ चीज़ें ख़बरों में स्पष्ट होती हैं जिन्हें आप भी देखते हैं, कुछ चीज़ें ख़बरों में स्पष्ट नहीं होतीं, उनकी हमें जानकारी होती है। वे योजना बनाते हैं, पैसे ख़र्च करते हैं ताकि लोगों के मन को हक़ीक़त की ओर से हटा दें। इसका जवाब किसको देना चाहिए? किसे इस टेढ़ी लाइन को सीधा करना चाहिए? किसे हक़ीक़त को बयान करना चाहिए? आप उन लोगों में से हैं जो यह बड़ा काम कर सकते हैं।
अगर आपकी मद्दाही जागरुकता पैदा करने वाली हो, पहले जागरुकात और फिर उम्मीद जगाने वाली यानी निराश करने वाली न हो और आगे बढ़ाने वाली भी हो तब आपने एक बुनियादी और बड़ा काम किया है जो बात करने और प्रौपैगंडा करने के बहुत से साधनों से नहीं किया जा सकता। आप दुश्मन की डराने वाली साज़िश का मुक़ाबला कर सकते हैं, दुश्मन की एक बड़ी चाल भयभीत करना है, डर फैलाना है, आप दुश्मन की मतभेद फैलाने की हरकत का मुक़ाबला कर सकते हैं, आप दुश्मन की निराशा पैदा करने की हरकत का मुक़ाबला कर सकते हैं। देखिए! ये चीज़ें जो मैं अर्ज़ कर रहा हूं, इनमें से हर एक, बुनियादी तत्व है, समाज को जागरुक करना और यही बातें जो आपने यहाँ कहीं कि "हम बैठे नहीं रहेंगे", "हम इस्लाम का परचम गोलान पर लहराएंगे", "हम सीरिया में पाकीज़ा रौज़ों की रक्षा करेंगे" वग़ैरह, ये सब, इन बातों पर निर्भर है, यानी दुश्मन के डर फैलाने की योजना का मुक़ाबला करना चाहिए, दुश्मन के मतभेद पैदा करने की चाल का मुक़ाबला करना चाहिए, दुश्मन की निराशा फैलाने की साज़िश का मुक़ाबला करना चाहिए। दुश्मन का मुख्य साधन डराना और भयभीत करना है। आप मज़बूत हैं, वह आपकी कमज़ोरी का प्रोपैगंडा करता है ताकि आपको डराए। आपके हाथ मज़बूत हैं, वह प्रचार करता है कि आपके हाथ ख़ाली हैं ताकि आपको निराश कर दे। इन बातों पर ध्यान देना चाहिए।
इस्लाम के शुरुआती काल में, ओहोद की लड़ाई में मुसलमानों को चोट पहुंची, हमज़ा सैयदुश्शोहदा जैसी हस्ती शहीद हो गई, अमीरुल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती सिर से पैर तक घायल हो गई, ख़ुद पैग़म्बरे अकरम घायल हो गए, कई लोग शहीद हो गए। जब ये लोग मदीना लौटे तो मुनाफ़िक़ों ने देखा कि लोगों को गुमराह करने और इस स्थिति का फ़ायदा उठा कर ज़हरीले प्रचार का अच्छा मौक़ा है तो उन्होंने लोगों के दिलों में बुरे विचार डालना शुरू कर दिया: "बेशक तुम्हारे ख़िलाफ़ लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।"(7) उन लोगों ने कहा कि सभी तुम्हारे ख़िलाफ़ एक हो गए हैं, डरो। उन्होंने इस तरह की बातें शुरू कीं। अल्लाह ने इस बात की वजह से वहि नाज़िल की। क़ुरआन की आयत कहती है: बेशक यह तो शैतान है जो अपने मित्रों से तुम्हें डराता है। अतः तुम उनसे न डरो ...(8) क़ुरआन ने मुनाफ़िक़ों और डराने वालों के मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़ रसीद किया। क़ुरआन की यह बात आज आपको कहनी चाहिए, शायरों, साहित्यकारों और विचारकों को बैठना चाहिए, सोचना चाहिए और सुनने व देखने वालों के लिए स्वीकार्य और दिल में उतर जाने वाले तर्क तैयार करने चाहिए, शेर के ढांचे में, मद्दाही की लय में और अहलेबैत की मद्दाही के विश्वस्त स्थान से उसे लोगों तक पहुंचाना चाहिए। बेशक यह तो शैतान है जो अपने मित्रों से तुम्हें डराता है।
आज हमारे क्षेत्र में समाचारों के हेडलाइन सीरिया की समस्याएं हैं। मैं विश्लेषण नहीं करना चाहता, दूसरे लोग विश्लेषण करें। मैं इस संबंध में कुछ बातें कहना चाहूंगा, कुछ अहम बातें बयान करनी हैं।
पहली बात, एक उपद्रवी गुट ने विदेशी सरकारों की मदद और उनकी योजनाओं से, उनके षड्यंत्रों से सीरिया की आंतरिक कमज़ोरियों से फ़ायदा उठाने में सफलता हासिल की और देश को अस्थिरता में धकेल दिया, अराजकता की स्थिति में पहुंचा दिया। मैंने शायद दो तीन हफ़्ते पहले यहाँ एक स्पीच (9) में कहा थाः अमरीका देशों पर वर्चस्व जमाने के लिए दो में से किसी एक योजना को अपनाता है, या तो एक आंतरिक तानाशाही सरकार का गठन जो उसके साथ हाथ मिला ले, उससे बात करे, मुल्क के हितों को आपस में बांट ले, या तो यह। और अगर ऐसा न हो तो अराजकता, उपद्रव। सीरिया में उपद्रव का रास्ता अपनाया, अराजकता फैलायी। अब वे अपने ख़याल में जीत महसूस कर रहे हैं। अमरीकी, ज़ायोनी शासन और जो उनके साथ हैं। ये लोग सोच रहे हैं कि जीत गए हैं और इसी लिए बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं। शैतान वालों की ख़ासियत यही है कि जब वे महसूस करते हैं कि कामयाब हो गए हैं तो अपनी ज़बान पर से उनका कंट्रोल ख़त्म हो जाता है, वे बड़ी बड़ी बातें करने लगते हैं, बकवास करने लगते हैं। ये लोग आज बकवास करने लगे हैं। अमरीकी अधिकारियों में से एक की बकवासों में से एक यही है, उसकी मूल बात यह है लेकिन वो साफ़-साफ़ नहीं कहता, दबे अंदाज़ में कहता है लेकिन साफ़ ज़ाहिर है कि वो यही कह रहा है। उसने कहा कि जो भी ईरान में उपद्रव करेगा हम उसकी मदद करेंगे। मूर्खों को बिल्ली की तरह सपने में छीछड़े दिखाई देने लगे हैं। पहली बात तो यह है कि ईरानी क़ौम उस शख़्स को, जो इस संबंध में अमरीका का पिट्ठू बनना चाहेगा, अपने मज़बूत पैरों तले कुचल देगी।
दूसरी बात, ज़ायोनी जीतने का दिखावा कर रहे हैं, वे विजयी लोगों जैसा चेहरा बना रहे हैं, बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, वे हुंकार भर रहे हैं। मूर्खो! तुम कहाँ जीत पाए हो? क्या तुम ग़ज़ा में जीते हो? वो इंसान जो 40 हज़ार, 45 हज़ार महिलाओं और बच्चों को बमबारी से क़त्ल कर दे और अपने पूर्व घोषित लक्ष्यों में से एक भी हासिल न कर पाए, क्या वह विजेता है? क्या तुमने हमास को ख़त्म कर दिया? क्या तुमने अपने क़ैदियों को ग़ज़ा से छुड़ा लिया? तुमने कहा था कि हम हिज़्बुल्लाह को ख़त्म कर देना चाहते हैं और तुमने सैयद हसन नसरुल्लाह जैसे महान इंसान को शहीद कर दिया, क्या तुम हिज़्बुल्लाह को ख़त्म कर पाए? हिज़्बुल्लाह ज़िंदा है, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ज़िंदा है, हमास ज़िंदा है, जिहादे इस्लामी ज़िंदा है, तुम विजेता नहीं हो, तुम हार गए हो। हां, सीरिया में तुम्हारे सामने रास्ता साफ़ था, एक सैनिक भी तुम्हारे सामने एक बंदूक़ लेकर भी खड़ा नहीं हुआ और तुम टैंकों और सैन्य संसाधनों के साथ कुछ किलोमीटर आगे बढ़ने में कामयाब रहे लेकिन यह जीत नहीं है, तुम्हारे सामने कोई रुकावट थी ही नहीं, यह जीत नहीं है। अलबत्ता निश्चित रूप से सीरिया के बहादुर और साहसी युवा तुम्हें यहाँ से खदेड़ देंगे।
तीसरी बात, अपने तरह तरह के प्रोपेगंडों में – क्योंकि उनका सामना इस्लामी गणराज्य से है– बार बार कह रहे हैं कि क्षेत्र में इस्लामी गणराज्य ने अपनी प्रॉक्सी फ़ोर्सेज़ को गंवा दिया! यह भी एक दूसरी बकवास है! इस्लामी गणराज्य की कोई प्रॉक्सी फ़ोर्स नहीं है। यमन लड़ रहा है क्योंकि उसके पास ईमान है, हिज़्बुल्लाह लड़ रहा है क्योंकि उसकी ईमान की ताक़त उसे मैदान में लाती है, हमास और इस्लामी जेहाद लड़ रहे हैं क्योंकि उनका अक़ीदा उनसे यह काम करवाता है। ये हमारी प्रॉक्सी फ़ोर्सेज़ नहीं हैं। अगर हमें किसी दिन कोई कार्यवाही करनी होती है तो हमें किसी प्रॉक्सी की ज़रूरत नहीं पड़ती। यमन में, इराक़ में, लेबनान में, फ़ीलिस्तीन में और इंशा अल्लाह निकट भविष्य में सीरिया में, ऐसे मोमिन और ग़ैरतमंद लोग हैं जो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, अपराध के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, थोपे गए दुष्ट ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, हम भी लड़ रहे हैं और इंशा अल्लाह हम इस सरकार को क्षेत्र से ख़त्म करके रहेंगे।
जो बातें मैं अर्ज़ कर रहा हूं वह कोई राजनैतिक बयान नहीं है बल्कि वो ऐसे तथ्य हैं जिन्हें हमने क़रीब से महसूस किया है। आपके लिए यह जानना भी बेहतर है: लेबनान का हिज़्बुल्लाह संगठन एक सम्मानित, मज़बूत, ठोस और फौलादी समूह है जो 1980 के दशक में लेबनान में होने वाले हंगामों को बीच से उभरा। वहां पूरे क्षेत्र को तबाह कर दिया था, गृह युद्ध से, दंगों से, अशांति से और असुरक्षा के बीच हिज़्बुल्लाह का जन्म हुआ और उसने सिर उठाया। हमारे अज़ीज़ शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह से पहले मरहूम सैयद अब्बास मूसवी भी थे, दूसरे भी थे, वे भी शहीद हो गए, उनकी शहादत ने अगर हम यह न कहें कि मज़बूत किया, तो हिज़्बुल्लाह को कमज़ोर भी नहीं किया। आज भी ऐसा ही है, कल भी ऐसा ही होगा। अवसर, ख़तरों के भीतर से आते हैं, अगर हम सचेत रहें, ज़िम्मेदारी महसूस करते रहें, जो कुछ हमारे दिल में है और जो हमारी ज़बान पर है, उसे काम के वक़्त दिखाएं, तो ऐसा होगा।
और मेरा अंदाज़ा है कि यह चीज़, यानी सीरिया में भी एक मज़बूत व ग़ैरतमंद गुट के सामने आने की घटना होकर रहेगी। सीरिया के जवान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उसकी यूनिवर्सिटी असुरक्षित है, उसका स्कूल असुरक्षित है, उसका घर असुरक्षित है, उसकी सड़क असुरक्षित है, उसकी ज़िंदगी असुरक्षित है, वह क्या करे? उसे चाहिए कि संकल्प की शक्ति के साथ उन लोगों के मुक़ाबले में, जिन्होंने इस असुरक्षा की साज़िश तैयार की है और जिन्होंने इसे फैलाया है, डट जाए और इंशा अल्लाह वह उन्हें नियंत्रित करके रहेगा। क्षेत्र का भविष्य अल्लाह की कृपा से आज से बेहतर होगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।
1. इस मुलाक़ात की शुरुआत में कुछ ज़ाकिरों और मद्दाहों ने अहलेबैत (अ) का गुणगान किया और इस संबंध में शेर पढ़े।
2. सूरए तहरीम, आयत 11 और 12, और ईमान वालों के लिए अल्लाह फ़िरऔन की पत्नी (आसिया) की मिसाल पेश करता है, ... और इमरान की बेटी मरयम की ...
3. मनाक़िबे आले अबी तालिब, जिल्द 3, पृष्ठ 323, दुर्रे मन्सूर, जिल्द 2, पृष्ठ 23
4. सूरए सबा, आयत 46, तुम अल्लाह के लिए दो-दो और एक-एक करके खड़े हो जाओ।
5. मक़तलुल हुसैन, जिल्द 1, पृष्ठ 100
6. तफ़सीरे नमूना, जिल्द 15, पृष्ठ 383
7. सूरए आले इमरान, आयत 173
8. सूरए आले इमरान, आयत 175
9. पूरे देश से आए हुए बसीजियों (स्वयंसेवियों) के मुलाक़ात में स्पीच, 25/11/2024