हज़रत ज़हरा ने अपने दौर की हक़ीक़त को बयान किया। जो मसले उस दिन पेश आए, वे उस दौर के मसले थे। उन्हें हज़रत फ़ातेमा ने बयान किया। अपने दौर के मुद्दों को पेश करना, बहुत अहम फ़रीज़ा है।