इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार 17 दिसम्बर 2024 को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस और महिला दिवस के उपलक्ष्य में पूरे देश के विभिन्न वर्गों की हज़ारों महिलाओं से मुलाक़ात में अहम स्पीच दी।(1)
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीचः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए है और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार और हमारे नबी अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
मैं हज़रत सिद्दीक़ए ताहेरा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के जन्म दिवस की बधाई पेश करता हूँ और मुझे ख़ुशी है कि यह बैठक इस साल भी आयोजित हुई। मेरे विचार में, यह बैठक इस इमामबाड़े में आयोजित होने वाली सबसे अच्छी और असाधारण बैठकों में से एक है। हमारी अज़ीज़ महिलाओं और बेटियों की इतनी बड़ी संख्या के साथ, इतनी भरपूर भावनाओं के साथ, आदरणीय वक्ताओं और महिलाओं द्वारा दिए गए इतने अच्छे भाषणों के साथ, वास्तव में यह एक यादगार बैठक है।
बयान की गई समस्याओं पर ज़िम्मेदार विभाग काम करें
बहुत अच्छी बातें बयान की गईं। मैं इसी समय यहीं से अपने कार्यालय, कार्यालय के मामलों पर नज़र रखने वाले अधिकारियों को इन महिलाओं की बातों पर गंभीरता से विचार करने का निर्देश देता हूँ। इनमें से कुछ काम हमारे हैं, मुझसे या मेरे कार्यालय से संबंधित हैं, इनमें से कुछ काम बल्कि इनमें से अधिकांश काम सरकारी विभागों आदि से संबंधित हैं, जो काम हम से संबंधित हैं, उन्हें किया जाए, जो काम अन्य विभागों से संबंधित हैं, उन्हें करवाया जाए, उन पर नज़र रखी जाए।
पेश की गई समस्याओं और मुद्दों की अहमियत
जो बातें की गईं उनमें "महिला के तीसरे आदर्श" के बारे में बात हुई जो मुस्लिम क्रांतिकारी महिला है, साइबर स्पेस में घराने के अहमियत के विषय पर बहुत अच्छी और व्यापक चर्चा हुई, परिवार की इकाई के माध्यम से जनसंख्या की समस्या के समाधान की बात हुई जिसे इन मोहतरमा ने बयान किया और जनसंख्या, प्रजनन आदि के बारे में बात की, हालाँकि उन्होंने ख़ुद कहा कि उनके दो बच्चे हैं, जो कम हैं, कला, विशेष रूप से ईरानी सिनेमा और थिएटर के बारे में एक मोहतरमा ने जो बातें कहीं, वे महत्वपूर्ण हैं, शादी को आसान बनाने की बातें बहुत अहम हैं, वास्तव में, हमारी वर्तमान समस्याओं में से एक, यही है। और इन मोहतरमा ने जो बातें बयान कीं, वो बहुत अच्छी बातें हैं। इन कामों पर अमल की निगरानी की जाए, ये अहम मुद्दे हैं। मैंने मोहतरमा आयदा सुरूर को पहले भी यहाँ देखा है। वह वही दिन था जब उन्हें अपने दूसरे बेटे की शहादत की ख़बर मिली थी। इसी इमामबाड़े में हमारी बैठक थी और मैंने उन्हें यहीं देखा था। मैं इस जज़्बे पर उन्हें बधाई देता हूँ और बेटों के बिछड़ने पर संवेदना पेश करता हूँ।
मैंने यहां कुछ बातें नोट की हैं और जितना समय होगा इंशाअल्लाह बयान करूंगा। हज़रत सिद्दीक़ए कुबरा फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में कुछ बातें, इस्लाम के नज़रिए के अनुसार औरत के बारे में कुछ बातें, जो आज पूरी दुनिया में एक महत्वपूर्ण मानवीय मामला है, और फिर कुछ बातें क्षेत्र की वर्तमान स्थिति के बारे में अर्ज़ करूंगा।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) का आध्यात्मिक स्थान और महानता
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के संबंध में मैं कहना चाहूँगा कि यह महान हस्ती, यह युवा महिला, सृष्टि के सबसे आश्चर्यजनक तथ्यों में से एक है। यदि इंसान हज़रत फ़ातेमा के अस्तित्व के सभी पहलुओं को दृष्टि में रखे और देखे तो उसे विश्वास हो जाएगा कि यह सृष्टि की हैरतअंगेज़ हक़ीक़त है, वह ऐसी हस्ती हैं। एक युवा लड़की जो अपनी युवावस्था में ही -एक रिवायत के अनुसार वे अट्ठारह वर्ष की उम्र में शहीद हुई हैं, एक दूसरी रिवायत के अनुसार वे बीस-बाईस वर्ष की उम्र में शहीद हुई हैं, पैग़म्बर या दूसरों ने जो कुछ भी कहा है वह सत्रह-अट्ठारह साल की लड़की के बारे में है – आध्यात्मिक व रूहानी दृष्टि से और अलौकिक दर्जे के लिहाज़ से उस स्थान तक पहुँच जाए कि उसका क्रोध, अल्लाह के क्रोध और उसकी खुशी, अल्लाह की खुशी का कारण बन जाए। इस रिवायत को शियों ने भी और सुन्नियों ने भी नक़्ल किया है। शिया किताबों की रिवायत में इस प्रकार आया है: "बेशक अल्लाह फ़ातेमा के क्रोध से क्रोधित और उनकी ख़ुशी से ख़ुश होता है।"(2) यह हमारी किताबों में है। अहले सुन्नत की किताबों में यही रिवायत स्वयं हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से पैग़म्बर के संबोधन के रूप में है कि पैग़म्बर ने हज़रत फ़ातेमा से कहा: "हे फ़ातेमा! बेशक अल्लाह तुम्हारे क्रोध से क्रोधित और तुम्हारी ख़ुशी से ख़ुश होता है।"(3) यह बड़ी अजीब चीज़ है! ऐसा नहीं है कि हम कहें कि यह महान हस्ती, जहां अल्लाह नाराज़ होता है, वह भी नाराज़ होती है, नहीं! इसके विपरीत है, जब भी वह क्रोधित होती है तो अल्लाह भी क्रोधित हो जाता है। आप महानता देखिए!
फ़ातेमा ज़हरा (स) सृष्टि की अद्भुत वास्तविकता और महिलाओं का सर्वोच्च आदर्श
वे कठिनाइयों में पैग़म्बर का दुख बांटने वाली, जेहाद में अमीरुल मोमिनीन का साथ देने वाली, इबादत में फ़रिश्तों की आंखें चकाचौंध कर देने वाली और राजनीति में वह शानदार और ज्वलंत ख़ुतबे देने वाली थीं। उनके ख़ुतबों में, चाहे वो जो उन्होंने मस्जिद में मुहाजिरों और अंसार के सामने दिए और चाहे वो जो उन्होंने मदीना की महिलाओं के बीच दिए, सियासत भी है, इल्म भी है, शिकायत भी है, गुणगान भी है, सब कुछ है। एक असाधारण चीज़ है और वह भी सबसे अच्छे और ऊंचे शब्दों में, जैसे नहजुल बलाग़ा के ख़ुतबे। वे इमाम हसन का पालन-पोषण करने वाली हैं, हुसैन इब्ने अली का पालन-पोषण करने वाली हैं, हज़रत ज़ैनब का पालन-पोषण करने वाली हैं, देखिए, जब ये गुण एक-दूसरे के साथ मिल जाते हैं, तो वास्तव में मनुष्य के सामने दुनिया की एक आश्चर्यजनक वास्तविकता आ जाती है। उनका बचपन आदर्श है, उनकी युवावस्था आदर्श है, उनका विवाह आदर्श है, उनके जीवन का चरित्र आदर्श है, ये सभी सर्वोत्तम आदर्श हैं जो एक मुस्लिम महिला की उच्चतम सीमाओं को उजागर करते हैं। यह चरम है। इस्लाम मुस्लिम महिलाओं को, सभी महिलाओं को, इस चरम की ओर बुलाता है। यह सही है कि सभी इस मुक़ाम तक नहीं पहुंच सकते लेकिन वे इस दिशा में आगे बढ़ तो सकते ही हैं। साथ ही ये मुस्लिम महिला के आदर्श के बारे में सबसे सुंदर, सबसे उपयुक्त और सबसे प्रमुख बात है जिसे इन महिलाओं ने "तीसरे आदर्श" का नाम दिया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) एक आदर्श हैं। तो ये थी सिद्दीक़ए ताहेरा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में कुछ बातें।
राजनैतिक एवं साम्राज्यवादी हस्तक्षेप, राजनेताओं एवं पूंजीपतियों का महिलाओं के बारे में लक्ष्य
जहां तक महिलाओं की समस्या का सवाल है तो आज दुनिया में महिलाओं की समस्या अलग-अलग पहलुओं से सामने है। दुनिया के हर कोने में, हर समूह अपने एक ख़ास लक्ष्य और ख़ास मक़सद के तहत महिलाओं के मुद्दे पर बोलता और बात करता है। दुनिया के पूंजीपति और दुनिया के राजनेता, वे राजनेता भी उन्हीं पूंजीपतियों के पिट्ठू हैं, जीवनशैली के सभी मुद्दों की तरह औरत के इस मुद्दे में भी हस्तक्षेप करते हैं। आज और कल, दुनिया के राजनेता और पूंजीपति, जो दुनिया में साम्राज्यवाद की जड़ रहे हैं, इंसान की जीवन शैली से जुड़े सभी मामलों में हस्तक्षेप करते हैं, उनके पास मीडिया भी है, उनके पास सबसे प्रभावशाली संचार माध्यम हैं और वे मीडिया की भाषा भी जानते हैं। उनका प्रेरक, औरत की समस्या में दुनिया के पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों के हस्तक्षेप का प्रेरक, कोई बौद्धिक या दार्शनिक सिद्धांत नहीं है। ऐसा नहीं है कि उनके पास यहां महिला के बारे में कोई दार्शनिक दृष्टिकोण है और वे उसका प्रचार करना चाहते हैं, नहीं, ऐसा नहीं है। एक मानवीय भावना और जज़्बा भी नहीं है, ऐसा नहीं है कि उन्हें लगता है कि दुनिया में कुछ मामलों में महिला कमज़ोर है और वे उसका समर्थन करना चाहते हों, उनकी मानवीय भावनाएं जाग गई हों, नहीं! ऐसा भी नहीं है। सामाजिक और मानवीय कर्तव्य का पालन भी नहीं, ये सब, राजनेताओं और पूंजीपतियों के हस्तक्षेप का प्रेरक नहीं हैं। तो प्रेरक क्या है? प्रेरक राजनीतिक और सामाजिक हस्तक्षेप है। वे इस मुद्दे में शामिल होते हैं ताकि उनके और अधिक हस्तक्षेप, प्रभाव और दबाव के दायरे के और अधिक विस्तार का बहाना रहे। वे इस आपराधिक प्रेरक को, दुष्ट प्रेरक को विदित रूप से एक दार्शनिक चोले में, विदित रूप से एक तार्किक चोले में और विदित रूप से एक मानवता प्रेमी भावना के नाम पर पेश करते हैं। यह पश्चिम वालों का झूठ है, यह पश्चिमी पूंजीपतियों का झूठ है जो आज दुनिया पर हावी हैं। यह झूठ विभिन्न मामलों में देखा गया है, इसी झूठ को, इसी पाखंड को हमने विभिन्न मामलों में, पश्चिम के राजनेताओं और अर्थशास्त्रियों के क्रियाकलाप में देखा है।
यूरोप में महिलाओं की आज़ादी और वित्तीय आत्म निर्भरता के मुद्दों में पश्चिम वालों का झूठ
इसका एक उदाहरण यह है कि लगभग एक सदी पहले उन्होंने औरत की आज़ादी और उसकी वित्तीय आत्म निर्भरता का मुद्दा उठाया कि महिला को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहिए या उसे स्वतंत्रता हासिल होनी चाहिए। इस बात की ज़ाहिरी शक्ल तो अच्छी थी लेकिन इसकी सच्चाई क्या थी? इसकी सच्चाई यह थी कि उनकी फ़ैक्टरियों को श्रमिकों की आवश्यकता थी, वहाँ पर्याप्त पुरुष श्रमिक नहीं थे, वे महिलाओं को मज़दूरी के लिए लाना चाहते थे और वह भी पुरुषों की तुलना में कम वेतन पर, यही इस बात की असलियत थी। यह बात ज़्यादातर यूरोप और पश्चिम में हुई, यह केवल अमरीका से ही विशेष नहीं थी, उन्होंने इस सच्चाई को मानवताप्रेम के दिखावे की आड़ में छुपाया, इस नाम पर कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, उन्हें आज़ादी मिलनी चाहिए, वे घर से बाहर निकल सकें, काम कर सकें, इंसानियत ने वहां भी यह झूठ देखा।
अमरीका में ग़ुलामों की आज़ादी के मामले में पश्चिम का झूठ
इसका एक और उदाहरण, हालाँकि इसका महिलाओं के मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है, अमरीका में दासों की आज़ादी का मामला है। उन्नीसवीं सदी के अंत में, वर्ष 1860 के आसपास, अमरीकियों ने अब्राहम लिंकन के माध्यम से, जो उस समय संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के नेता थे, दासों की स्वतंत्रता का नारा लगाया। मामले का विदित रुख़ यह था कि ग़ुलामों को आज़ाद होना चाहिए, वे इस मामले में मदद भी करते थे और ग़ुलामों को तस्करी करके दक्षिण अमरीका से उत्तरी अमरीका ले जाते थे क्योंकि उत्तर और दक्षिण के बीच युद्ध था, लेकिन असली मामला यह नहीं था, मामले की सच्चाई यह थी कि दक्षिण के लोग कृषि कार्य में दक्ष थे, वहां कृषि योग्य भूमि थी और इन भूमियों में दास मुफ़्त में काम करते थे, वे दास थे, उन्हें केवल ज़िंदा रहने भर के पैसे मिलते थे। उत्तर वालों ने हाल ही में उद्योग तक पहुंच हासिल की थी और उन्हें मज़दूरों की ज़रूरत थी, उनके पास पर्याप्त मज़दूर नहीं थे, वे इन दासों से अपने कारख़ानों में मज़दूरों के रूप में काम कराना चाहते थे, इसका रास्ता यह था कि उनसे कहें कि आप स्वतंत्र हैं, यहां आइए और कारख़ानों में काम कीजिए! दरअसल, इन लोगों ने उन्हें खेत के ग़ुलाम से कारख़ानों का ग़ुलाम बना दिया। अस्ल बात यह थी। यह पश्चिम का झूठ है।
महिलाओं के मसले और अधिकारों के बारे में पश्चिमी राजनेताओं की ख़तरनाक नीतियां और लक्ष्य
आज भी ऐसा ही है। महिला के सिलसिले में इस वक़्त दुनिया में जो हंगामा मचा है, फ़ेमिनिज़्म या नारीवाद का मसला, महिला अधिकार का मसला, महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकारों का मसला, ये सब ज़ाहिरी पहलू हैं, इनके पीछे बहुत सी नीतियां हैं, ख़तरनाक लक्ष्य हैं। ये लक्ष्य क्या हैं? कुछ के बारे में तो आज हम जानते हैं, कुछ के बारे में आगे चलकर जानेंगे, यह बाद में ज़ाहिर होंगे लेकिन बहरहाल इन लक्ष्यों के पीछे मानवता नहीं है। यह झूठ और बेइमानी आज भी मौजूद है। लक्ष्य सिर्फ़ राजनैतिक हैं, सिर्फ़ साम्राज्यवादी हैं, पैठ का ज़रिया हैं, अलबत्ता इस सिलसिले में बहस हमारी इस सभा से संबंधित नहीं है।
तो हम दुनिया में इस तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं कि कुछ लोग "महिला" के अहम मसले में बात करते हैं लेकिन उनमें इस सिलसिले में ईमानदारी नहीं है। हम मुसलमान की हैसियत से "महिला" के मसले में बोलना चाहते हैं, बात करना चाहते हैं, अपनी राय और तर्क पेश करना चाहते हैं, अपने बीच इस विचार को प्रचलित करना और इस विचार के मुताबिक़ अमल करना चाहते हैं। यह हमारी ज़िम्मेदारी है और आज यह काम अंजाम पाना चाहिए। अलबत्ता इंक़ेलाब के आग़ाज़ से ही इसे अंजाम पाना चाहिए था और बड़ी हद तक काम हुआ भी है लेकिन काम पूरा होना चाहिए, ख़त्म होना चाहिए। मैं इस सिलसिले में कुछ बिन्दु पेश करना चाहता हूँ।
दाम्पत्य, औरत के सिलसिले में इस्लाम के घोषणापत्र और नज़रिए का पहला विषय
अगर हम इस्लाम के नज़िरए के मुताबिक़, औरत के सिलसिले में एक घोषणापत्र तैयार करना चाहें जिसमें मुख़्तलिफ़ अनुच्छेद हों, तो मेरे ख़याल में उस घोषणापत्र में जो सबसे पहला विषय आना चाहिए, वह दाम्पत्य का विषय है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि मर्द और औरत एक दूसरे का जोड़ा हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, औरत और मर्द एक दूसरे के लिए पैदा हुए हैं। यह बात क़ुरआन मजीद में साफ़ तौर पर बयान हुयी हैः "और अल्लाह ने ही तुम्हारी जिन्स से तुम्हारे लिए जोड़ा बनाया।" (4)(सूरए नहल, आयत-72) यह ख़ेताब "तुम्हारे लिए क़रार दिया" मर्दों से नहीं है, इंसान से ख़ेताब है, चाहे वह औरत हो या मर्द। हे मानव जाति! अल्लाह ने ख़ुद तुम्हारी जिंस से तुम्हारे लिए जोड़ा बनाया है, क़रार दिया है। 'ज़ौज' सिर्फ़ मर्द को नहीं कहा जाता, यह शब्द मर्द के लिए भी इस्तेमाल हुआ है और औरत के लिए भी। मैंने इसके लिए आयत भी नोट की है; जिस आयत में, औरत के मानी में इस्तेमाल हुआ है वह आयत "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी बीवी दोनों बहिश्त में रहो।"(5) (सूरए बक़रह, आयत-35) है, यहाँ पर 'ज़ौज' बीवी और औरत के मानी में। एक दूसरे जगह फ़रमाता हैः "बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली है जो अपने शौहर के बारे में आपसे बहस कर रही है।"(6) (सूरए मुजादेला, आयत-1) यहाँ पर 'ज़ौज' मर्द के लिए इस्तेमाल हुआ है। इसलिए हमने तुम्हारी ही जिन्स से तुम्हारे लिए जोड़ा पैदा किया। यह इंसान से भी विशेष नहीं है, यह बात मैंने बहस के अंतर्गत कह दी है और जो इस तरह के कामों के योग्य हैं वे इस पर काम करें।
दाम्पत्य जीवन, इस्लाम की नज़र में इतिहास के जारी रहने का सबब
इस्लाम में, इस्लाम के नज़रिए की बिना पर सृष्टि, मानव इतिहास और दुनिया के इतिहास की बुनियाद की समन्वय, सहयोग, शादी और रिश्ते पर आधारित है, उस चीज़ के ठीक विपरीत जो हेगल और मार्क्स वग़ैरह के डिबेट में है, जिसके मुताबिक़, दुनिया की बुनियाद विरोधाभास (टकराव) पर है। वे कहते हैं कि कोई चीज़ वजूद में आती है तो उसकी प्रतिकूल वस्तु भी वजूद में आती है और यह क्रम जारी रहता है, इतिहास इस तरह आगे बढ़ता है। इस्लाम कहता है कि नहीं, कोई चीज़ वजूद में आती है, फिर कोई चीज़ उसके साथ और सहयोग के लिए वजूद में आती है और उन दोनों के सहयोग से, योग से, उन दोनों के जोड़ा बनने से एक तीसरी चीज़ वजूद में आती है और इतिहास इस तरह आगे बढ़ता है। अलबत्ता जैसा कि मैंने अर्ज़ किया कि इस सिलसिले में उसके योग्य लोग सोचें, काम करें, एक सिरा पकड़ें और आगे बढ़ें और देखें कि कहाँ तक पहुंचते हैं, यह एक अहम मसला है।
फ़ैमिली, पाक परम्परा और ईरानी क़ौम की सांस्कृतिक ताक़त की एक निशानी
तो इंसान के सिलसिले में अल्लाह ने औरत और मर्द को जोड़ा बनाया यानी एक दूसरे को पूरा करने वाले। जोड़े के मानी, जोड़े का नतीजा यह है कि एक इकाइ वजूद में आए वरना जोड़ा नहीं है। अगर दो इकाइयां एक दूसरे के साथ आएं, एक दूसरे से जुड़ गयीं तो एक तीसरी इकाइ वजूद में आती है जो फ़ैमिली है। मतलब यह कि फ़ैमिली के सिलसिले में इस्लाम की वैचारिक बुनियाद इस तरह की है। फ़ैमिली एक पाकीज़ा परम्परा है, सृष्टि की एक परम्परा है। यह कि एक मर्द और औरत, एक दूसरे का हालचाल पूछें या हालचाल पूछने से आगे एक दूसरे के क़रीब से गुज़र जाएं तो यह जोड़ा नहीं है, जोड़ा होने का मतलब है एक तीसरी इकाइ का गठन, फ़ैमिली का गठन, जोड़ा होने का मतलब यह है। अलबत्ता फ़ैमिली के गठन पर इस्लाम में भी बल दिया गया है और बेहम्दिल्लाह ईरान में भी पारम्परिक फ़ैमिली, ईरानी क़ौम की सांस्कृतिक ताक़त और गहराई की एक अहम निशानी है। इसलिए इस्लामी घोषणापत्र का पहला अनुच्छेद, फ़ैमिली का गठन, जोड़ा होना और औरत-मर्द का एक दूसरे का पूरक होना है।
पाकीज़ा ज़िंदगी तक पहुंचने में औरत-मर्द के बीच कोई अंतर न होना, इस्लाम के घोषणापत्र का दूसरा विषय
दूसरा विषय यह है कि इस जोड़े में, इन दो लोगों में, इस औरत और मर्द में पाकीज़ा ज़िंदगी तक पहुंचने के लिए, जो इंसान के पैदा होने का उद्देश्य है, एक दूसरे से कोई अंतर नहीं है, इनमें से कोई भी दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है। अलबत्ता इंसान एक तरह के नहीं है, औरतों के बीच, मर्दों के बीच कुछ लोगों में ज़्यादा क्षमता होती है, कुछ सलाहियत के लेहाज़ से कम होते हैं, लेकिन औरत और मर्द के बीच, औरत की हैसियत से और मर्द की हैसियत से पाकीज़ा ज़िंदगी तक पहुंचने में कोई अंतर नहीं है, यह बात क़ुरआन में हैः "जो कोई भी नेक अमल करे ख़्वाह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह मोमिन हो तो हम उसे (दुनिया में) पाक व पाकीज़ा ज़िंदगी बसर कराएंगे।" (सूरए नहल, आयत-97) (7) और और मर्द अगर नेक अमल करें और ईमान रखते हों तो वे समान हैं, यह सूरए नहल में है। या सूरए अहज़ाब की उस आयत में जिसे मैं कई बार औरतों के मजमे में पढ़ चुका हूँ: "बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें, मोमिन मर्द और मोमिन औरतें, इताअत गुज़ार मर्द और इताअत गुज़ार औरतें, सच्चे मर्द और सच्ची औरतें, साबिर मर्द और साबिर औरतें, रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें, अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें और अल्लाह को बा-कसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें, अल्लाह ने उनके लिए मग़फ़ेरत और बड़ा अज्र व सवाब मुहैया कर रखा है।"(8)(सूरए अहज़ाब, आयत-35) औरत और मर्द के बीच दस ख़ुसूसियतें हैं, अल्लाह की ओर, पाकीज़ा जिंदगी की ओर आध्यात्मिक सफ़र में, परलोक में और तौहीद के उच्च अर्थ और आत्मिक जगत में इंसान के उन्नति की ओर बढ़ने में मर्द और औरत के बीच कोई अंतर नहीं है। यह भी एक बुनियादी उसूल है जिसे इस घोषणापत्र में शामिल किया जाना चाहिए।
मुख़्तलिफ़ मैदानों में पहुंचने के लिए ज़रूरी वैचारिक व आत्मिक क्षमताएं, घोषणापत्र का तीसरा विषय
अगला विषय यह है कि अगरचे शारीरिक लेहाज़ से औरत और मर्द का ज़ाहिरी रूप अलग है, उसका क़द ज़्यादा है, आवाज़ा ज़्यादा भारी है, लेकिन वैचारिक और आत्मिक सलाहियतों के लेहाज़ से दोनों ही लिंगों में अथाह सलाहियत पायी जाती हैं और इस लेहाज़ से उनमें कोई अंतर नहीं है। यानी इल्म में मर्द और औरत प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, ऐसा नहीं है कि मर्द, औरतों से ज़्यादा विद्वान हों, नहीं! महान मर्तबे वाली, इल्म के लेहाज़ से नुमायां हैसियत रखने वाली औरतें इतिहास में रही हैं, अलबत्ता आज सैकड़ों गुना ज़्यादा है, यूनिवर्सिटियों में भी और उच्च धार्मिक केन्द्रों में भी। इल्म के लेहाज़ से, कला के लेहाज़ से, वैचारिक और व्यवहारिक इनोवेशन के लेहाज़ से, सामाजिक, वैचारिक और राजनैतिक प्रभाव के लेहाज़ से, आर्थिक सरगर्मियो के लेहाज़ से, ये सलाहियतें दोनों लिंगों में, औरत और मर्द में पायी जाती हैं। इसलिए इन मैदानों में औरत उतर सकती है और कुछ मौक़ों पर उसे उतरना ही चाहिए, कुछ जगहों पर ज़रूरी और अनिवार्य है कि औरत उन मैदानों में आए, राजनीति में, अर्थव्यवस्था में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में, इल्मी मुद्दों में, सांस्कृतिक और कला संबंधित मसलों में, हर जगह। यह भी एक ऐसा विषय है जो औरतों से संबंधित इस्लामी घोषणापत्र में निश्चित तौर पर पाया जाता है।
फ़ैमिली में औरत और मर्द के समान अधिकार, घोषणापत्र का चौथा विषय
अगला विषय यह है कि घराने के माहौल में औरत और मर्द के अलग अलग रोल हैं, यह श्रेष्ठता की दलील नहीं है। मिसाल के तौर पर फ़ैमिली का ख़र्च मर्द की ज़िम्मेदारी है, यह उसकी श्रेष्ठता की दलील नहीं हो सकती, बच्चों को वजूद देना, औरत की ज़िम्मेदारी है, यह भी श्रेष्ठता की दलील नहीं है। यह सब प्वाइंट्स हैं, एक ऐसा प्वाइंट है जो औरत-मर्द दोनों के पास है। औरत और मर्द के अधिकारों को इन आधारों पर तोला नहीं जा सकता, उनके अधिकार समान हैं। यह चीज़ भी क़ुरआन मजीद में हैः "औरतों के कुछ अधिकार हैं जिस तरह मर्दों के अधिकार हैं।" (सूरए बक़रह, आयत-228) (9) फ़ैमिली में औरत और मर्द के अधिकार समान हैं, यानी अगर हम अधिकार के लेहाज़ से फ़ैमिलों पर नज़र डालें तो दो लोग जो अधिकारों के लेहाज़ से बराबर हैं, एक साथ ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। अलबत्ता जज़्बात के लेहाज़ से औरत और मर्द की कुछ ख़ुसूसियतें हैं, पैग़म्बरे इस्लाम ने औरतों के बारे में फ़रमायाः "औरत फूल की तरह कोमल है, सेविका नहीं है" (10) घर में औरत को फूल की तरह देखा जाना चाहिए। फूल की देखभाल की जानी चाहिए, उसकी ताज़गी, उसकी ख़ुशबू से माहौल को सुगंधित करना चाहिए, यह जज़्बात के लेहाज़ से है लेकिन अधिकार के लेहाज़ से दोनों बराबर हैं। तो यह भी इस घोषणापत्र का एक विषय है।
चरित्र का विषय और औरत-मर्द के बीच मेल-जोल में सीमा, महिलाओं के बारे में इस्लाम के घोषणापत्र का पांचवा विषय
इस घोषणापत्र में एक और विषय यह है कि आपसी मोल-जोल के लेहाज़ से औरत और मर्द से विशेष कुछ सीमाएं हैं, ये उन खुसूसियतों में से हैं जिन पर इस्लाम ताकीद करता है। अलबत्ता आज पश्चिम में जो अश्लीलतात दिखाई देती है, यह हमेशा से नहीं थी, यह नए जम़ाने की है, शायद दो सदी पहले तीन सदी पहले- इंसान जब कुछ किताबें पढ़ता है, अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के नावेल पढ़ता है और उनमें योरोपीय महिलाओं की विशेषताओं को पढ़ता है तो वह देखता है कि बहुत सी चीज़ों का लेहाज़ रखा जाता था जो आज पश्चिम वालों के बीच नहीं है। इस्लाम उन पर ताकीद करता है, इस्लाम हेजाब के मसले पर, चरित्र के मसले पर, निगाह के मसले पर ताकीद करता है। यह भी उन ख़ुसूसियतों में से एक है जो इस घोषणापत्र में होनी चाहिए।
माँ होना फ़ख़्र के क़ाबिल और इसकी क़द्र व क़ीमत, महिलाओं के घोषणापत्र का छठा विषय
एक बहुत ही अहम विषय माँ होने की रूहानी लेहाज़ से क़द्र व क़ीमत है। माँ होना फ़ख़्र की बात है। आज मैं देखता हूँ कि कुछ लोग, उन्हीं नीतियों के प्रभाव में जिनकी ओर मैंने इशारा किया, यानी वही पूंजिवादी, साम्राज्यवादी और स्वाधीन समाजों ख़ास तौर पर हमारे दुश्मनों की नीतियां, माँ होने का एक ग़लत ख़ाका पेश करती हैं, अगर कोई कहे कि फ़ैमिली के लिए नस्ल बढ़ाना ज़रूरी है तो ताना मारते हैं, मज़ाक़ उड़ाते हैं कि "आपको औरत बच्चे के लिए चाहिए, नस्ल बढ़ाने के लिए चाहिए।" माँ होना गर्व की बात है, आप जो एक मानवीय वजूद को बहुत ज़्यादा ज़हमत के साथ अपने भीतर या बाहर, उसके आग़ाज़ में पालती हैं, उसकी ज़हमतों को बर्दाश्त करती है, उसकी एक इंसान के तौर पर परवरिश करती हैं, कोई मामूली बात है? यह बहुत अहम है, बहुत क़ीमती है। यही वजह है कि इस्लाम में, माँ के सिलसिले में बहुत ताकीद की गयी है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम से पूछा गयाः "किसे प्राथमिकता हासिल है?" एक शख़्स ने आकर पूछा कि किसे प्राथमिकता हासिल है कि मैं उसके साथ अच्छाई करूं, भलाई करूं? पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "अपनी माँ के साथ" उसने पूछाः उसके बाद किसके साथ? आपने फिर फ़रमायाः "अपनी माँ के साथ।" उसने तीसरी बार पूछाः फिर किसके साथ? आपने फिर फ़रमायाः "अपनी माँ के साथ।" आपने तीन बार कहा कि आपनी माँ के साथ! उसने पूछाः फिर किसके साथ? पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "अपने बाप के साथ।" (11) यानी बाप चौथे चरण में है। या एक शख़्स आया जो जेहाद के लिए जाना चाह रहा था, अलबत्ता इस मामले में और इस घटना के वक़्त ज़रूरी सैन्य ताक़त मौजूद थी, उसने कहा कि मेरी माँ राज़ी नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि अपनी माँ की सेवा करो, उसका पुन्य जेहाद से ज़्यादा है। (12) अलबत्ता मैंने अर्ज़ किया कि यह उस वक़्त के लिए है जब ज़रूरी मैन पावर मौजूद हो। तो माँ होने का मसला इस तरह का है।
यह रवायत में है कि "जन्नत तुम्हारी माँओं के पैरों के नीचे है" (13) इसमें "पैरों के नीचे" अलंकार के तौर पर इस्तेमाल हुआ है। स्वर्ग, माँओं के पैरों के नीचे है यानी माँ के पास ही है। अगर तुम्हें स्वर्ग चाहिए तो माँ के पास जाओ, वह तुम्हें स्वर्ग देगी। उससे मोहब्बत करो, मेहरबानी से पेश आओ, उसकी सेवा करो, उसका कहना मानो, उसका सम्मान करो, वह तुम्हें स्वर्ग देगी। यह भी इस घोषणापत्र का एक और अनुच्छेद।
ये कुछ बातें थीं "औरत" के मसले और औरत के बारे में इस्लाम के नज़रिए के सिलसिले में। अलबत्ता अगर कोई इस घोषणापत्र को तैयार करना चाहे तो शायद इसमें मिसाल के तौर पर 30 या 40 अनुच्छेद, अहम अनुच्छेद होंगे जिनमें से कुछ को मैंने पेश किया।
इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी में महिलाओं का प्रभावी रोल
हमारे मुल्क में इसी सोच की बुनियाद पर हम बेहम्दिल्लाह इंक़ेलाब के आग़ाज़ से आज तक मोमिन, विद्वान और सरगर्म महिलाओं के विकास और तरक़्क़ी को देख रहे हैं। अलबत्ता संघर्ष के आख़िरी बरसों में यानी उन आख़िरी महीनों में या आख़िरी साल में भी महिलाओं की मौजूदगी निर्णायक थी और यही वजह थी कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह इस मसले में कभी नहीं झुके। कुछ लोग थे जो रैलियों में महिलाओं की शिरकत के विरोधी थी, इमाम ख़ुमैनी इस सोच को, इस विचार को, इस राय को रद्द कर देते थे। महिलाओं की मौजूदगी प्रभावी थी, सचमुच प्रभावी थी। जब महिलाएं मैदान में आ गयीं तो मर्दों ने, यहाँ तक कि हमेशा अलग थलग रहने वाले मर्दों ने भी महसूस किया कि उन्हें मैदान में आना होगा। औरतें जब मैदान में आ गयीं तो उनके शौहरों और नौजवान बच्चों ने महसूस किया कि उनकी जिम्मेदारी है कि मैदान में आएं। इस तरह से कहा जाए तो महिलाओं ने इंक़ेलाब को कामयाबी दिलायी।
मुल्क की पहचान और संस्कृति की रक्षा करते हुए मुख़्तलिफ़ मैदानों में महिलाओं की संजीदगी के साथ मौजूदगी
इंक़ेलाब की कामयाबी और इस्लामी गणराज्य व्यवस्था के गठन के बाद भी मुख़्तलिफ़ विभागों में महिलाएं मैदान में आयीं। कुछ बातें इन महिलाओं ने बयान कीं जो बहुत ठोस, तथ्य पर आधारित और परिपक्व सोच का चिन्ह थीं। निश्चित तौर पर इस सभा में सैकड़ों या इससे भी ज़्यादा इस तरह की सोच रखने वाली महिलाएं मौजूद हैं और निश्चित तौर पर मुल्क में महिलाओं की एक बड़ी तादाद ने वैज्ञानिक, वैचारिक, इनोवेशन, आविष्कार, ‘इज्तेहाद’ के मैदानों में कारनामे अंजाम दिए हैं, जिसका मतलब यह है कि सचमुच बहुत काम हुआ है। ईरानी महिलाओं ने अपनी संजीदगी से, अपनी हया से, अपने चरित्र से मुल्क की पहचान, मुल्क की संस्कृति की रक्षा की है, वह मुल्क की ऐतिहासिक व मूल परम्पराओं की रक्षा कर सकी हैं। वह यूनिवर्सिटी पहुंची हैं, वह राजनैतिक सरगर्मियों में शामिल हुयी हैं, उसने अंतर्राष्ट्रीय सरगर्मियां अंजाम दी हैं लेकिन वह महान चरित्र की मालिक रही हैं, यह बहुत अहम है। आज हम बहुत से पश्चिमी मुल्कों में देखते हैं कि महिलाएं कुछ नुक़सान उठा रही हैं, हमारे मुल्क की औरतें उन नुक़सानों से सुरक्षित हैं। ईरानी महिला, आज तक इस तरह आगे बढ़ी है और इंशाअल्लाह इसके बाद भी इसी तरह आगे बढ़ेगी। बड़े बड़े वाक़यों में हमारी महिलाओं ने उज्जवल रोल अदा किया है, जंग में बड़ा रोल अदा किया, रौज़ों की हिफ़ाज़त में बहुत बड़ा योगदान दिया, राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में बड़ा रोल अदा किया, शोध केन्द्रों में नुमायां काम अंजाम दिए, यूनिवर्सिटियों में भी ऐसा ही किया, उच्च धार्मिक शिक्षा केन्द्रों में भी ऐसा ही रहा। जब हम धार्मिक शिक्षा केन्द्रों में थे तो मुझे याद नहीं पड़ता कि कोई महिला धर्मशास्त्र में "इज्तेहाद" के दर्जे पर पहुंची हो लेकिन आज अल्लाह की कृपा से ऐसी महिलाएं हैं जो मुजतहिद हैं, जो ज्यूरिसप्रूडेंस में इज्तेहाद के दर्जे तक पहुंच चुकी हैं, उनकी संख्या कम नहीं है। मेरा तो यहां तक ख़याल है कि महिलाओं से विशेष मसलों में, महिलाओँ से विशेष जो विषय हैं और पुरुष उस विषय को ठीक तरह से निर्धारित नहीं कर पाते, उनमें औरतों को महिला मुजतहिद का अनुसरण करना चाहिए। इसलिए इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद से हमारे मुल्क में महिलाओं की तरक़्क़ी अच्छी रही है। हमारे यहाँ कभी भी महिला वैज्ञानिकों की तादाद इतनी ज़्यादा नहीं रही, इतनी ज़्यादा महिला प्रोफ़ेसर कभी नहीं रहीं, इतनी ज़्यादा शायर, इतनी ज़्यादा लेखिका, इतनी ज़्यादा महिला कलाकार वह भी धर्म पर अमल के साथ, इतनी ज़्यादा नहीं थी। अल्लाह की कृपा से हमारे यहाँ इस तरह की महिलाएं हैं। अलबत्ता ध्यान रहे कि दुश्मन भी बेकार नहीं बैठा है। दुश्मन भी साज़िश करने में लगा हुआ है।
इस्लामी गणराज्य के दुश्मन बहुत जल्द समझ गए कि हार्डवेयर के तरीक़ों से इंक़ेलाब को शिकस्त नहीं दी जा सकती। वे साफ़्ट हथकंडे इस्तेमाल करने लगे। वे समझ गए कि जंग, बमबारी, अराजक तत्वों और नस्लपरस्ती वग़ैरह से इस्लामी ईरान को नहीं तोड़ सकते, उसे झुका नहीं सकते तो वे साफ़्ट हथकंडे इस्तेमाल करने लगे। साफ़्ट हथकंडे, प्रोपैगंडा है, वरग़लाना है, बेइमानी है जो उनके नारों में पायी जाती है जिसे इंसान देखता है। नाम रखते हैं महिला अधिकार की रक्षा, महिला सोसाइटी की रक्षा के नाम पर, औरतों के एक गिरोह की रक्षा के नाम पर, एक औरत की रक्षा के नाम पर किसी मुल्क में हंगामे करा देते हैं। साफ़्ट हथकंडे इस्तेमाल करते हैं। हमारी बेटियां, हमारी महिलाएं, हमारी टीचर्ज़, हमारी छात्राएं, पूरा महिला समाज इस सिलसिले में अपनी ज़िम्मेदारी को समझे। एक मोहतरमा ने कहा कि "जो सुबह उठे और मुसलमानों के मामले के सिलसिले में कोशिश न करे, वह मुसलमान नहीं है।" (14) यह बात मर्दों से विशेष नहीं है, महिलाएं भी इसमें शामिल हैं। अभी यहाँ कहा गया, बिलकुल सही है। मुसलमानों का एक काम जिसके बारे में कोशिश करनी चाहिए, इन्हीं भ्रामक विचारों, शैतानी साज़िशों, साफ़्ट हथकंडों की साज़िशों और सॉफ़्ट वॉर के हथकंडे की ओर से सावधान रहना चाहिए जो बहुत से मसलों में, ख़ास तौर पर महिलाओं और औरतों के मसलों से संबंधित अनेक मूल्यों में फेरबदल के लिए इस्तेमाल होते हैं और आपको इस ओर से सावधान रहना चाहिए। तो यह कुछ बातें महिलाओं के बारे में थीं।
रेज़िस्टेंस के शहीदों की राह और सोच का जारी रहना और इस्राईल का विनाश
कुछ जुमले क्षेत्र के हालात के बारे में अर्ज़ करूं। क्षेत्र में उस उपद्रव की वजह से जो सीरिया में हुआ और उन अपराधों की वजह से जो ज़ायोनी सरकार कर रही है और उन अपराधों की वजह से जो अमरीका कर रहा है और कुछ दूसरों ने जो मदद की है उसकी वजह से यह सोच लिया कि रेज़िस्टेंस का काम तमाम हो गया, ये सख़्त ग़लतफ़हमी में हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह की रूह ज़िंदा है, सिनवार की रूह ज़िंदा है। शहादत ने उन्हें वजूद के मैदान से बाहर नहीं निकाला है, उनका जिस्म गया, उनकी आत्मा बाक़ी है, उनकी सोच बाक़ी है, उनकी राह जारी है। आप देखिए कि ग़ज़ा पर रोज़ाना हमले हो रहे हैं, लोग शहीद हो रहे हैं, रोज़ाना! लेकिन वे फिर भी डटे हुए हैं, फिर भी रेज़िस्टेंस कर रहे हैं, लेबनान रेज़िस्टेंस कर रहा है। अलबत्ता ज़ायोनी सरकार अपने ख़याल में अपने आपको सीरिया के रास्ते से हिज़्बुल्लाह को घेरने और उन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए तैयारी कर रही है लेकिन जो जड़ से उखड़ेगा वह इस्राईल है। हम फ़िलिस्तीन के मुजाहिदों के साथ खड़े हैं, हम हिज़्बुल्लाह के मुजाहिदों के साथ खड़े हैं और उनका सपोर्ट कर रहे हैं, हम उनकी हर संभव मदद करेंगे और हमें उम्मीद है कि ये लोग वह दिन देखेंगे जब उनका दुष्ट दुश्मन उनके पैरों के नीचे रौंदा जा रहा होगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।
1) इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में महिलाओं और लड़कियों से विशेष मैदानों में सरगर्म छह महिला कार्यकर्ताओं ने अपने विचार पेश किए। इसी तरह लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के दो शहीदों की माँ मोहतरमा आएदा सरवर ने रेज़िस्टेंस मोर्चे की महिलाओं के प्रतिनिधित्व में रेज़िस्टेंस जारी रहने और उसकी कामयाबी के सिलसिले में कुछ बातें पेश कीं।
2) अमालिए सदूक़, मजलिस-61, पेज-384, (बेशक अल्लाह फ़ातेमा की ख़ुशी से ख़ुश और उनके क्रोधित होने से क्रोधित होता है।)
3) ओसदुल ग़ाबा, जिल्द-6, पेज-224, (ऐ फ़ातेमा! बेशक अल्लाह तुम्हारे क्रोधित होने से क्रोधित होता और तुम्हारे ख़ुश होने से ख़ुश होता है।)
4) "और अल्लाह ने ही तुम्हारी जिन्स से तुम्हारे लिए जोड़ा बनाया।" (4)(सूरए नह्ल, आयत-72)
5) "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी बीवी दोनों बहिश्त में रहो।"(5) (सूरए बक़रह, आयत-35)
6) "बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली है जो अपने शौहर के बारे में आपसे बहस कर रही है।"(6) (सूरए मुजादेला, आयत-1)
7) "जो कोई भी नेक अमल करे ख़्वाह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह मोमिन हो तो हम उसे (दुनिया में) पाक व पाकीज़ा ज़िंदगी बसर कराएंगे।" (सूरए नह्ल, आयत-97)
8) "बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें, मोमिन मर्द और मोमिन औरतें, इताअत गुज़ार मर्द और इताअत गुज़ार औरतें, सच्चे मर्द और सच्ची औरतें, साबिर मर्द और साबिर औरतें, रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें, अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें और अल्लाह को बहुत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें, अल्लाह ने उनके लिए मग़फ़ेरत और बड़ा अज्र व सवाब मुहैया कर रखा है।"(सूरए अहज़ाब, आयत-35)
9) "औरतों के कुछ अधिकार हैं जिस तरह मर्दों के अधिकार हैं।" (सूरए बक़रह, आयत-228)
10) काफ़ी, जिल्द-5, पेज-510
11) काफ़ी, जिल्द-2, पेज-159
12) काफ़ी, जिल्द-2, पेज-160
13) मुस्तदरकुल वसाएल, जिल्द-15, पेज-180
14) एललुल शराए, पेज-131