विदेश मंत्री अब्बास इराक़ची ने शनिवार 26 अक्तूबर की शाम KHAMENEI.IR से इंटरव्यू में कहा कि ईरान की अपने हितों और संप्रभुता की रक्षा में कोई सीमा नहीं है और क्षेत्र के हालिया दौरों में ईरान की रक्षा ताक़त और ईरान पर हमले का इरादा रखने वालों के ख़िलाफ़ जवाबी कार्यवाही की उसकी क्षमता से विदेशी पक्षों को आगाह कर दिया गया है।
इंटरव्यूः
सवालः इराक़ची साहब! आपने क्षेत्र के हालिया दौरों में जिसकी इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने सराहना भी की है, इन मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों से अहम मुलाक़ातें कीं। इन मुलाक़ातों में ईरान को धमकाने में संभवतः ज़ायोनी शासन का साथ देने के संदर्भ में आपने उन्हें क्या चेतावनी दी और आपके ख़याल में इन चेतावनियों का घटनाओं की प्रक्रिया पर क्या असर पड़ा?
जवाबः बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम। देखिए इन दौरों में हमने क्षेत्र के मुद्दों के बारे में, अपनी सुरक्षा और रेज़िस्टेंस के मोर्चे की रक्षा के बारे में इस्लामी गणराज्य ईरान के ठोस स्टैंड को खुलकर बयान किया है और यह भी कहा कि इस्लामिक रिपब्लिक अपने इरादे में पूरी तरह गंभीर है और उसने फ़िलिस्तीन के अवाम की मदद और ज़ायोनी शासन से निपटने की जो राह अख़्तियार की है, उसे वह पूरी गंभीरता से जारी रखेगी। हमने यह भी कहा कि पिछले चार दशकों में इस तरह के उतार चढ़ाव बहुत आए हैं और ऐसा नहीं है कि इनसे इस्लामिक रिपब्लिक के इरादे व संकल्प में तनिक भी रुकावट आए। इसी तरह अपनी रक्षा के लिए ईरान की क्षमता और ईरान पर हमले का इरादा रखने वालों के ख़िलाफ़ जवाबी कार्यवाही की उसकी क्षमता को भी उनके सामने बयान किया और उनसे कहा गया कि बेहतर होगा कि कोई नेशनल सेक्युरिटी के मामले में ईरानी क़ौम और इस्लामी गणराज्य ईरान के संकल्प को आज़माने की कोशिश न करे। यह वह संदेश था जो इन सभी मुल्कों को दिया गया। इस संदेश के साथ ही तनाव कम करने और पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध क़ायम होने की ज़रूरत पर बल दिया गया।
हमने उनसे कहा कि जिस तरह इस्लामी गणराज्य ईरान, मर्दे मैदान है, उसी तरह अपने पड़ोसियों के सिलसिले में शांति व सुलह का अग्रदूत है। हम तनाव नहीं चाहते, हम फ़ार्स की खाड़ी और इससे भी आगे तक के इलाक़े में अपने पड़ोसियों के लिए ख़तरा नहीं हैं। ज़ायोनी शासन का हिसाब अलग है, क्षेत्र से बाहर की ताक़तों का हिसाब अलग है लेकिन पड़ोसी मुल्कों से संबंधित नीति में, जो शहीद रईसी की पिछली सरकार में शुरू हुयी थी, हम पूरी तरह से गंभीर हैं और इसीलिए हमने इन दौरों में एक समग्र कूटनीति को आगे बढ़ाया और मुझे लगता है कि इसके नतीजे भी सामने आ गए हैं।
सवालः जनाब मंत्री साहब! अपने हितों और संप्रभुता की रक्षा के लिए इस्लामी गणराज्य के संकल्प की क्या सीमा है? क्या ईरान से संयम से काम लेने की जो पाखंड भरी बातें की जा रही हैं, उनकी वजह से हमलावर ज़ायोनिस्ट शासन को सज़ा देने में कुछ कोताही की जाएगी?
जवाबः मुझे लगता है कि हम साबित कर चुके हैं कि अपनी रक्षा के लिए हमारे संकल्प की कोई हद नहीं है। यह बात हमने सद्दाम के साथ 8 साल की जंग में भी साबित की। पिछले बरसों के दौरान अमरीका की दुश्मनी से मुक़ाबले में भी हम यह साबित कर चुके हैं। अमरीकी पाबंदियों का मुक़ाबला करने में और दूसरे वाक़यों में हमने साबित कर दिया है कि अपने अवाम की रक्षा में हम किसी भी सीमा के क़ायल नहीं हैं। हम अपनी सरज़मीन और अपने वतन की हर बालिश्त नहीं बल्कि हर सेंटीमीटर की रक्षा करेंगे, हम इस्लामी गणराज्य के हितों की रक्षा करेंगे और इन लक्ष्यों के लिए हम पूरी तरह डट कर खड़े हैं, मुझे लगता है कि यह चीज़ पूरी तरह दुनिया देख चुकी है, इसका आख़िरी नमूना आप्रेशन सच्चा वादा-1 और 2 हैं जिन पर ठोस तरीक़े से अमल भी किया गया और इस्लामी गणराज्य ईरान और ईरान के अवाम पूरी ताक़त से उसके सारे नतीजों का सामना करने के लिए डट कर खड़े हैं।
सवालः डाक्टर साहब! आख़िरी सवाल यह है कि आप्रेशन सच्चा वादा-1 और आप्रेशन सच्चा वादा-2 का मुल्क की कूटनैतिक ताक़त की मज़बूती और कूटनीति का हाथ मज़बूत बनाने में किस तरह का असर रहा?
जवाबः देखिए सैद्धांतिक तौर पर कूटनीति मुल्क की आंतरिक ताक़त के तत्वों पर निर्भर होती है। अलबत्ता ख़ुद कूटनीति भी ताक़त पैदा कर सकती है लेकिन कूटनीति की कामयाबी इस बात पर निर्भर होती है कि उसे मुल्क के भीतर ताक़त के किन तत्वों का सहारा हासिल है। कूटनीतिज्ञों के हाथ मुल्क की ताक़त से मज़बूत होते हैं। यह मुल्क की ताक़त, फ़ौजी ताक़त भी हो सकती है, आर्थिक ताक़त भी हो सकती है, राजनैतिक ताक़त भी हो सकती है और वार्ता की ताक़त भी हो सकती है। इस्लामी गणराज्य ने जो वार्ताएं की हैं, वह भी उसकी ताक़त का एक तत्व है, अलबत्ता उसके रक्षा
उद्योग और उसके रक्षा हथियारों के साथ ही ये सारी चीज़ें हैं जो एक कूटनीतिज्ञ को मज़बूत बनाकर प्लेटफ़ार्म पर भेजती हैं और उसे ताक़त देती हैं कि वह अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सके। अलबत्ता आगे बढ़ते बढ़ते ख़ुद कूटनीतिज्ञ भी ताक़त पैदा कर सकता है यानी वह ख़ुद भी अपने मुल्क के लिए ताक़त का एक तत्व बन सकता है। आप्रेशन सच्चा वादा-1 और 2 तो अपनी रक्षा के सिलसिले में इस्लामी गणराज्य की ताक़त का संपूर्ण जलवा थे और मेरे ख़याल में हमारी विदेश नीति को आगे बढ़ाने वाले एक इंजन थे और आगे भी इंशाअल्लाह रहेंगे।
आपका शुक्रिया
सलामत रहिए।