बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

पिछले बरसों के चेहलुम की तरह आज भी आप अज़ीज़ नौजवानों ने इस इमामबाड़े को अपने आगमन से और अपने पाकीज़ा एहसास व जज़्बात से प्रकाशमान कर दिया। आप सबका शुक्रिया अदा करता हूँ इस आगमन के लिए और इस प्रोग्राम के लिए जो आपने बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया। प्रोग्राम बहुत अच्छे थे। तराना अच्छा था। क़ुरआन की तिलावत अच्छी थी। जो ज़ियारत पढ़ी बहुत अच्छी थी। स्पीच बहुत अच्छी थी। जनाब मुतीई का प्रोग्राम (1) बहुत अच्छा था। बेहम्दिल्लाह वे सारे प्रोग्राम जो आपने यहाँ पेश किए समृद्ध, अर्थपूर्ण और सबक़ लेने योग्य थे। ज़ियारते आशूरा पढ़ते वक़्त आप इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहते हैं: "ऐ अबा अब्दिल्लाह! मैं क़यामत तक उसके साथ सुलह की हालत में हूं जो आपके साथ सुलह की हालत में है और मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" (2) क़यामत के दिन तक। क्या मतलब? यानी यह लड़ाई ख़त्म होने वाली नहीं है। हुसैनी मोर्चे और यज़ीदी मोर्चे के बीच यह लड़ाई। यह जंग जारी है। हुसैनी मोर्चे ने अपना परिचय करा दिया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इसी कर्बला के सफ़र में, कई जगहों पर स्पष्ट कर दिया कि वो क्या कहना चाहते हैं, उनका लक्ष्य क्या है? उन्होंने फ़रमा दियाः "ऐ लोगो! अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहि  वआलेही व सल्लम ने फ़रमायाः जिस मुसलमान को ज़ालिम शासक का सामना हो" यह मामला ज़ुल्म का है, अत्याचार का मामला है। "जो अल्लाह के हराम को हलाल करे और अल्लाह के अहद को तोड़े और अल्लाह के बंदों के साथ ज़ुल्म व अत्याचार से पेश आए" (3) मामला यह है। यह हुसैनी मोर्चा है जो ज़ुल्म के मुक़ाबले में काम करता है, जेहाद करता है। उसके सामने ज़ुल्म का मोर्चा है, अत्याचार का मोर्चा है, अल्लाह से किया हुआ अहद तोड़ने वाले का मोर्चा है।

आज आप दुनिया में यह देख रहे हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दौर से पहले भी दो मोर्चों के बीच यह स्थिति मौजूद थी, आपके बाद भी मौजूद थी और आज भी मौजूद है और आख़िर तक मौजूद रहेगी। इन सभी ज़मानों में: "मैं क़यामत तक उसके साथ सुलह की हालत में हूँ जो आपके साथ सुलह की हालत में है।" हर उस शख़्स के साथ जो आपके मोर्चे में शामिल है मेरा अच्छा रिश्ता है, "मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" और जो भी आपके मोर्चे के ख़िलाफ़ लड़ रहा है उसके ख़िलाफ़ मैं जंग करुंगा। इस जंग के कई रूप हैं। तलवार और भाले के दौर में अलग अंदाज़ में होती है, परमाणु तकनीक के दौर और आर्टिफ़ीशल इंटेलीजेंस के दौर में किसी और तरीक़े से, लेकिन है। शेर व शायरी और हदीस तथा कथन बयान करने के दौर में किसी दूसरे अंदाज़ में और इंटरनेट और क्वांटम वग़ैरह के दौर में किसी और तरह से है। मगर यह जंग है।

इंसान की स्टूडेंट लाइफ़ में किसी और अंदाज़ से है और अधिकारियों तथा प्रशासनिक वर्ग में शामिल हो जाने के दौर में किसी और अंदाज़ से है। सभी हालात में है। "मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" भूलना नहीं चाहिए। "मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" से मुराद हमेशा बंदूक़ उठा लेना नहीं है। इसका अर्थ सही सोच रखना भी है, सही बात करना है, सही पहचान हासिल करना और ठीक निशाने पर वार करना है। यह "मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" इस तरह है। आपको पता हो कि फ़रीज़ा क्या है। आपको समझ हो कि किस राह पर चलना है। अगर हमने इस अंदाज़ से सोचा, इस अंदाज़ से समझ हासिल की, इस तरह हिम्मत व हौसले से काम लिया तो ज़िंदगी अर्थपूर्ण बना जाएगी। ज़िंदगी मक़सद वाली बना जाएगी। पैसा इस लायक़ नहीं है कि उसे ज़िंदगी का मक़सद बना लिया जाए। पद व ओहदा और सामाजिक मक़ाम व रुतबे की क़ीमत इससे कम है कि वे ज़िंदगी का लक्ष्य क़रार पाएं। ज़िंदगी का लक्ष्य बंदगी है, अल्लाह तक पहुंचना है और इसका रास्ता यही है। "सिलमुन लेमन सालमकुम अर्थातः उसके साथ सुलह की हालत में हूँ जो आपके साथ सुलह की हालत में है और मैं उसके साथ जंग की हालत में हूँ जो आपके साथ जंग की हालत में है।" अपनी जवानी के दौर की क़द्र कीजिए। आपके सामने बड़ा विशाल मैदान है। इंशाअल्लाह 60 साल बाद 70 साल तक आप इस दुनिया में मौजूद रहेंगे और काम करेंगे। इस मौक़े से फ़ायदा उठाइये। इस लंबी मुद्दत के लिए योजना बनाइये। योजनाबंदी को ठीक और सही डगर पर रखने के लिए ग़ौर कीजिए। सोच विचार और सोच के अंदाज़ को सही रखने के लिए क़ुरआन की समझ हासिल कीजिए। क़ुरआन पढ़िए, उस पर ग़ौर कीजिए। जिन लोगों ने आपसे पहले और आपसे ज़्यादा ग़ौर व फ़िक्र किया है उनसे सीखिए। दूसरों से सीखने में कोई हरज नहीं है, गर्व की बात है। हमेशा सीखने की कोशिश कीजिए। ज़िंदगी के आख़िरी लम्हे तक सीखिए। ग़ौर कीजिए, अध्ययन की जिए, पहचान हासिल कीजिए। जहाँ क़दम उठाने की ज़रूरत है क़दम उठाइये। कभी यह काम प्रयोगशाला में करना होता है, कभी क्लास रूम में करना होता है, कभी यूनिवर्सिटी के अंदर करना होता है, कभी सामाजिक माहौल के भीतर क़दम उठाना होता है, कभी राजनीति के मैदान में काम करना होता है, कभी कर्बला का रास्ता तय करने के लिए क़दम उठाना है और कभी फ़िलिस्तीन का रास्ता तय करने के लिए क़दम उठाना होता है, कभी इस्लाम के आला मक़सद के लिए क़दम उठाना होता है।

इस्लामी इंक़ेलाब ने हमारे लिए यह रास्ता खोल दिया है। मेरे अज़ीज़ो! मेरे जवानो! उस दौर को आपने नहीं देखा, आप इस पर ख़ुश रहिए कि वह दौर नहीं देखा। हमने वह दौर देखा है। बहुत बुरा दौर था, बहुत कठिन दौर था। सियाह दौर था, मायूसी का दौर था। इंक़ेलाब ने पेज पलट दिया। इंक़ेलाब ने रास्ता खोल दिया। इंक़ेलाब ने हमें यह मौक़ा दिया। हम इस मौक़े से फ़यदा उठा सकते हैं, आप सही तरीक़े से फ़ायदा हासिल कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि आप फ़ायदा न उठाएं। अगर सही उपयोग न किया तो घाटा है। अगर उपयोग किया तो कामयाबी है। यक़ीनन वो अहले ईमान फ़लाह पा गए। (4)

इंशाअल्लाह कामयाब व सफल रहें!

आप सबको सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो आप पर।

1 ज़ाकिरे अहले बैत मीसम मुतीई के ज़रिए पढ़ा गया शेर

2 कामेलुल ज़ियारात जिल्द 1 पेज 176

3 बेहारुल अनवार जिल्द 44 पेज 381 (थोड़े अंतर के साथ)

4 सूरए मोमेनून आयत 1