मोहम्मद महदी अब्बासीः अमरीकी मामलों के रिसर्च स्कॉलर

ग़ज़ा जंग ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम अवाम के लिए अपनी सभी मुसीबतों और पीड़ाओं और आज़ादी के समर्थक हर इंसान के लिए सभी दुखों को तो सामने रखा लेकिन इस जंग ने योरोप और अमरीका के लिए बहुत से नारों और दावों की पूरी तरह पोल खोल दी है। पश्चिम का प्रजातंत्र, मानवाधिकार और सबसे बढ़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अर्थों की ग़ज़ा जंग की वजह से पूरी तरह पोल खुल गयी है। वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिसकी पिछले दशकों में सबसे बड़ी समर्थक होने की दावेदार पश्चिमी सरकारें रही हैं और उन्होंने हमेशा ही पाबंदियों, बयानों और वैश्विक संगठनों में चिंता जताने जैसे हथकंडों के साथ उसे दूसरी क़ौमों के ख़िलाफ़ दबाव के एक हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल किया है। फिर भी ग़ज़ा की जंग ने दिखा दिया है कि इससे पहले तक ग़लत तरीक़े से फ़रियादी और मुल्ज़िम की जगह बदल दी गयी थी और यह लिबरल डेमोक्रेसी है जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ख़िलाफ़वर्ज़ी के लिए जवाबदेह होना चाहिए। पिछले 9 महीनों में दुनिया में जो कुछ हुआ है वह इस दावे की दलील है।

7 अक्तूबर और अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन के अगले कुछ दिनों में हमने ग़ज़ा में ज़ायोनी सरकार के अपराधों पर बहुत से संवाददाताओं और पत्रकारों के प्रदर्शन को देखा था। इस प्रदर्शन पर पश्चिमी मीडिया के ज़ायोनी मालिकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई थी। अमरीकी मीडिया वॉइस न्यूज़ के पत्रकार लामा आरयान ने लिखाः "मैंने ऑफ़ द रिकॉर्ड अपने बहुत से साथियों से सुना है कि ग़ज़ा में मानव संकट के बारे में ट्वीट करना भी उन्हें बेरोज़गार बना सकता है, इसी वजह से वो लोग ख़ामोश हैं।" (1) पश्चिम में इस्राईल की निंदा करने वालों की तादाद जितनी बढ़ती जा रही थी, उतनी दिन प्रतिदिन काम से निकाले जाने वाले संवाददातओं की तादाद भी बढ़ती जा रही थी। मशहूर मैग्ज़ीन (2) Elife के उच्च अधिकारी माइकल आयज़न से अमरीकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्ज़ (3) के फ़ोटॉग्रफ़र होसाम सलाम तक फ़िलिस्तीन का सपोर्ट करने की वजह से अपनी नौकरी से हाथ धो चुके हैं।

कुछ हफ़्ते पहले ही अमरीकी यूनिवर्सिटियों में फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में स्टूडेंट्स के प्रोटेस्ट के चरम के दिनों में एक बार फिर पश्चिम के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दावे की पोल खुल गयी। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, अमरीका में इस प्रोटेस्ट के दौरान 3200 लोग जिनमें से क़रीब 100 प्रोफ़ेसर और बाक़ी यूनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स थे, पुलिस और सुरक्षा बलों के ज़रिए हिरासत में लिए गए। (4) इसी तरह पिछले कुछ महीनों के दौरान मीडिया में ख़बरें आयी हैं कि बहुत से स्टूडेंट्स और प्रोफ़ेसरों को फ़िलिस्तीन का सपोर्ट करने के जुर्म में यूनिवर्सिटियों से निकाल दिया गया है। इनमें से एक वाक़ेया कुछ ही दिन पहले का है जिसमें कोलंबिया यूनिवर्सिटी के 3 प्रोफ़ेसरों को, ज़ायोनी विरोधी एसएमएस भेजने के बहाने नौकरी से निकाल दिया गया।(5) यह यूनिवर्सिटी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) का लंबा अतीत रखती है और 7 अक्तूबर के बाद इस यूनिवर्सिटी में “JVP”  या "Jewish Voice for Peace" जैसे गिरोहों तक की सरगर्मियों पर पाबंदी लगा दी गयी। (6)

इसके अलावा पश्चिम में आर्ट और स्पोर्ट्स की दुनिया की सेलिब्रिटीज़ भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ लिबरल डेमोक्रेसी की खुली जंग की चोट से सुरक्षित नहीं रह सकीं। मशहूर फ़िल्म (Scream) में मुख्य किरदार अदा करने वाली मिलीसा बरेरा को सिर्फ़ इस वजह से इस फ़िल्मी प्रोजेक्ट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया कि उन्होंने सोशल मीडिया पर ग़ज़ा के सपोर्ट में कुछ बातें पोस्ट की थीं। (7) या हॉलैंड के फ़ुटबाल खिलाड़ी अनवर ग़ाज़ी को ग़ज़ा में ज़ायोनियों के अपराधों पर एतेराज़ करने की वजह से जर्मनी के माइन्ज़ क्लब की टीम से बाहर निकाल दिया गया। (8)

दिलचस्प बात यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दावेदार लिबरल डेमोक्रेसी, पश्चिम के उन गिने चुने राजनेताओं को भी बर्दाश्त नहीं करती जो ग़ज़ा में ज़ायोनी फ़ौज के भयानक अपराध के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं। मिसाल के तौर पर अभी कुछ महीने पहले ही अमरीकी कांग्रेस की फ़िलिस्तीनी मूल की सदस्य रशीदा तुलैब के ज़ायोनी विरोधी बयान की, कांग्रेस के 234 सदस्यों के वोटों से निंदा की गयी और बहुत सदस्यों ने तो कांग्रेस की उनकी सदस्यता ख़त्म करने का भी मुतालेबा किया। (9)

हालिया कुछ महीनों में टेक्नॉलोजी की कुछ बड़ी कंपनियों की हरकतों से भी यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गयी कि पश्चिम में प्राइवेट सेक्टर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के मामले में सरकारों से कुछ ज़्यादा अलग नहीं है। गूगल कंपनी से लेकर, जिसने फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में होने वाले प्रदर्शन और ज़ायोनी कंपनियों से सहयोग के ख़िलाफ़ धरने में शामिल होने की वजह से अपने 20 मुलाज़िमों को नौकरी से निकाल दिया, (10) मेटा कंपनी तक जिसने अभी कुछ ही दिन पहले अपने प्लेटफ़ार्म्ज़ पर "ज़ायोनी" लफ़्ज़ के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है।(11)

ऐसा लगता है कि इस बार पश्चिम वालों ने ज़ाहिरी बातों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है और बहुत से शहरों में अवाम की ओर से चफ़िया (Keffiyeh) जैसे प्रतिरोध के प्रतीक के इस्तेमाल को भी जुर्म क़रार दे दिया है। ज़्यादा हैरत की बात यह है कि जर्मन संसद ने कुछ दिन पहले ग़ज़ा जंग में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का प्रतीक समझे जाने वाले "Upside down Red Triangle" उलटे लाल त्रिकोण के इस्तेमाल पर पाबंदी के बिल को भी मंज़ूरी दे दी है!

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कुछ दिन पहले योरोप में स्टूडेंट्स की इस्लामी यूनियन की 58वीं बैठक के नाम अपने संदेश में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अमल के संबंध में पश्चिमी लिबरल डेमोक्रेसी की अक्षमता की ओर इशारा किया था। यह अक्षमता ग़ज़ा की जंग के बाद सबके लिए पूरी तरह ज़ाहिर हो गयी है और अब पश्चिम, अतीत की तरह मुख़्तलिफ़ क़ौमों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ख़िलाफ़वर्ज़ी का इल्ज़ाम नहीं लगा सकता। अब दुनिया अच्छी तरह समझ चुकी है कि पश्चिम वालों की नज़र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कोई महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है और यह लिबरल मोक्रेसी है जो दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सबसे ज़्यादा ख़िलाफ़वर्ज़ी करती है।

लेखकः मोहम्मद महदी अब्बासी, अमरीकी मामलों के रिसर्च स्कॉलर

 

[1] https://twitter.com/lalarian/status/1717951032343376222?t=GraWFIeYS3besn5C9FFtPA&s=19

2 https://www.nbcnews.com/science/science-news/firing-science-journal-editor-gaza-post-sparks-free-speech-rift-rcna122128

3 https://thecradle.co/articles-id/2564

4 https://theappeal.org/prosecutors-charges-protesters-arrested-gaza-colleges-april/

5 https://www.aljazeera.com/news/2024/7/9/columbia-ousts-deans-over-texts-with-antisemitic

6 https://www.columbiaspectator.com/news/2023/11/10/columbia-suspends-sjp-and-jvp-following-unauthorized-thursday-walkout/

7 https://www.bbc.com/news/entertainment-arts-67494374

8 https://aje.io/56dh9m

9 https://www.theguardian.com/us-news/2023/nov/07/house-vote-censure-rashida-tlaib-palestine-criticize-israel

10 https://www.instagram.com/p/C6HFrT3P_Zw/?igsh=MTdicnIzY2E3bnd2ag%3D%3D

11 https://edition.cnn.com/2024/07/09/tech/meta-posts-zionists-hate-speech/index.html