मंगलवार को ईदे ग़दीर के दिन तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में ‘विलायत व बंधुत्वʼ शीर्षक के तहत एक जश्न का आयोजन हुआ जिसमें इरान के 5 प्रांतों के लोगों को बुलाया गया था। इस जश्न से इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ख़ेताब करने वाले थे। तक़रीर का वक़्त सुबह 10 बजे था लेकिन इमामबाड़ा साढ़े 7 बजे ही जश्न में शिरकत करने वालों से भर चुका था। हम कुछ लोग इमामबाड़े की ओर बढ़े और सुरक्षा चेकिंग के चरणों से गुज़रने लगे। सुरक्षा कर्मी अपना काम पूरी मुस्तैदी से अंजाम दे रहे थे लेकिन वो मुबारकबाद देना नहीं भूल रहे थे। हमारे साथ एक मशहूर रिपोर्टर वाहेदी साहब भी थे जो लोगों को आनंदित व ख़ुश करने वाली रिपोर्टें तैयार करने के लिए मशहूर हैं। उन्होंने अपनी गर्दन में एक हरे रंग का मफ़लर डाल रखा था जो ईरान में सैयद होने की निशानी समझा जाता है।
जैसे ही हम इमामबाड़े के मुख्य दरवाज़े पर पहुंचे, बहुत सी औरतों ने यह नारा लगाना शुरू कियाः ‘वाहेदी ईदी बेदेʼ यानी वाहेदी ईदी दो।ʼ ईरान में ईदे ग़दीर ‘सैयदों की ईदʼ के नाम से भी जानी जाती है और लोग बरकत के तौर पर सादात से ईदी लेते हैं।
जब हम इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े के अंदर दाख़िल हुए तो माहौल पूरी तरह से जश्न का था। शुरू की लाइनों में से एक में कोहगिलूये व बुवैर अहमद प्रांत के कुछ लोग अपनी ख़ास पोशाक में बैठे हुए थे। उनकी क्रीम रंग की अबा और ग्रे तथा काले रंग की टोपियां, फ़ोटोग्राफ़रों और कैमरामैनों का ध्यान अपनी ओर खींच रही थीं। मैंने देखा कि वाहेदी साहब सहित कई रिपोर्टर इन लोगों की ओर गए और अपने टीवी प्रोग्रामों के लिए इनसे इंटरव्यू करने लगे।
इमामबाड़े में एक ख़ास तरह का जोश व उत्साह दिखाई दे रहा था, लोग नारे लगा थे। एक दिलचस्प बात यह थी कि दो हिस्से वाले नारे का पहला हिस्सा मर्द लोग अदा कर रहे थे और औरतें दूसरे हिस्से को दोहराकर नारे को पूरा कर रही थीं।
मर्द कह रहे थेः ‘मा अहम कूफ़े नीस्तीमʼ हम कूफ़ी नहीं हैं और औरतें जवाब में कह रही थीं: ‘अली तनहा बेमानदʼ कि अली अकेले रह जाएं।
इसी अंदाज़ से कई नारे लग रहे थे।
इमामबाड़े के एक हिस्से में जंग में घायल होकर विकलांग हो जाने वाले जांबाज़ व्हील चेयर पर एक दूसरे की ब़गल में बैठे हुए थे। यह समाज के उस तबक़े के सम्मान का प्रतीक था जिसने बलिदान दिया है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की मुलाक़ातों में इस तबक़े पर हमेशा ख़ास तौर पर ध्यान दिया जाता है।
मैंने कुछ लोगों को देखा जो अपनी ओर से और अपने जानने वालों की तरफ़ से कुछ ख़त लेकर आए थे और उन्हें इस्लामी इंक़ेलाब के दफ़्तर के अधिकारियों को दे रहे थे ताकि वो इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के हाथों तक पहुंच जाएं। मुझे इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का एक जुमला याद आ गया। उन्होंने अपनी एक स्पीच में कहा था कि लोगों के इन्हीं ख़तों में किसी ने यह सुझाव दिया था कि जब आप वृक्षारोपण दिवस पर पौधा लगाते हैं तो बेहतर होगा कि फलदार पेड़ लगाएं। उन्होंने इस सुझाव पर अमल किया था और फलदार पौधा लगाया था। यानी अहम बात यह है कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता को लिखे जाने वाले ये ख़त, जिनकी तादाद बहुत ज़्यादा होती है, पढ़े जाते हैं और उनमें लिखे हुए बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है।
इमामबाड़े में मौजूद लोगों में, मैंने कुछ ऐसे लोगों को भी देखा जिनके ख़ास लेबास और पगड़ी से स्पष्ट था कि वो सुन्नी समुदाय के लोग है। एक रिपोर्टर उनमें से एक बुज़ुर्ग के पास पहुंचा और उसने पूछा कि आज आप क्या कहना चाहते हैं? तो उन्होंने जवाब में फ़ार्सी ज़बान में नारा दोहराया जिसका अनुवाद हैः ‘रहबर अगर इशार करें तो मैं अपनी जान फ़िदा कर दूंʼ एकता के प्रतीक इस नारे को सुनकर लोगों ने तालियां बजायीं।
अचानक ही इमामबाड़े में बच्चों का एक ग्रुप दाख़िल हुआ, कोई 15-20 बच्चे होंगे जिनकी उम्र 8-9 साल से लेकर 14-15 साल तक थी। उन्होंने अरबों, कुर्दों और बलोचों का लेबास पहन रखा था और उनके हाथों में शहीद काज़ेमी, तबरीज़ के शहीद इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम आले हाशिम, शहीद क़ासिम सुलैमानी और कुछ दूसरे मशहूर शहीदों की तस्वीरें थीं। पता चल रहा था कि उनका संबंध मुख़्तलिफ़ प्रांतों से है। बच्चों के इस ग्रुप ने अपनी मधुर आवाज़ में एक तराना पढ़ा जिससे लोग झूमने लगे।
इसी तरह की बातों में वक़्त गुज़रता रहा और 10 बजे इस्लामी इंक़ेलाब के नेता, इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में दाख़िल हुए। हमेशा की तरह इस बार भी लोग जज़्बाती हो गए। वह अपनी जगहों पर खड़े होकर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मोहब्बत और उनके आज्ञापालन पर आधारित नारे लगाने लगे। ये नारे कई मिनट तक जारी रहे।
फिर क़ुरआन मजीद की तिलावत शुरू हो गयी। क़ारी ने इस दिन से संबंथित सूरए मायदा की उन आयतों की तिलावत की जो अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की शान में नाज़िल हुयी हैं: ‘ऐ ईमान वालो! तुम्हारा हाकिम व सरपरस्त अल्लाह है, उसका रसूल है और वो साहेबाने ईमान हैं जो नमाज़ पढ़ते हैं और हालते रुकू में ज़कात अदा करते हैंʼ (सूरए माएदा, आयत-55) ‘और जो तवल्ला रखे, अल्लाह से, उसके रसूल से और साहेबाने ईमान से (वह अल्लाह का गिरोह है) और बेशक अल्लाह का गिरोह ही ग़ालिब आने वाला है।ʼ (सूरए मायदा, आयत-56)
फिर ईदे ग़दीर की मुबारकबाद के साथ इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का भाषण शुरू हुआ। उन्होंने ग़दीर के वाक़ए, अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की शख़्सियत और ईरान में चुनाव जैसे विषयों पर बात की। ग़दीर के वाक़ए की हक़ीक़त और उसके पहलुओं के बारे में उनकी बातें बहुत गहरी समीक्षा पर आधारित थीं कि ग़दीर के वाक़ए के बाद किस तरह काफ़िर और मुशरिक मायूस हो गए और क्यों अल्लाह ने इस वाक़ए के बारे में यह आयत नाज़िल की कि ‘आज काफ़िर तुम्हारे दीन की तरफ़ से मायूस हो गए लेहाज़ा तुम उनसे न डरो और मुझसे डरो।ʼ (सूरए मायदा, आयत-3)
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का ख़ेताब कुछ लंबा था जिसमें ग़दीर के वाक़ए और अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की महानता का ज़िक्र किया गया, चुनाव के बारे में कुछ अहम बातें बयान की गयीं और इसी तरह चुनाव में सही उम्मीदवार के चयन के बारे में कुछ सिफ़ारिशें की गयीं।
इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में ‘विलायत व बंधुत्वʼ जश्न अपने अंत को पहुंचा। मुझे महसूस हुआ कि यह सिर्फ़ एक जश्न नहीं था बल्कि इस जश्न के अंदर दसियों दूसरे प्रोग्राम आयोजित हुए। क़ौमी एकता का प्रोग्राम, इस्लामी एकता का प्रोग्राम, अवाम और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के बीच मोहब्बत का प्रोग्राम, राजनैतिक व धार्मिक बोध पैदा करने का प्रोग्राम और इसी तरह के दूसरे कई प्रोग्राम और पहलू जिन्हें यहाँ संक्षिप्त से लेख में बयान करने की गुंजाइश नहीं है।
अहमद अब्बास