“फ़िलिस्तीन” नामी किताब फ़िलिस्तीन के मुद्दे के बारे में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की व्याख्या, समीक्षात्मक बयानों और उनकी ओर से पेश किए गए हल का संकलन है। फ़िलिस्तीन के मसले के बारे में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की सोच की अहमियत और निर्णायक हैसियत सहित मौजूदा दौर के ख़ास हालात के मद्देनज़र इस किताब के अरबी, अंग्रेज़ी, रूसी, तुर्की इस्तांबुली और दूसरी ज़बानों में अनुवाद छपे हैं। 

इस किताब के रिलीज़ होने के प्रोग्राम में ईरानी और विदेशी मेहमानों ने अपने अपने विचार पेश किए।

“फ़िलिस्तीन” किताब के अनावरण के प्रोग्राम में पहली स्पीच इस्लामी क्रांति के नेता का चयन करने वाली विशेषज्ञ असेंबली के सदस्य व किताब को संकलित करने वाले हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सईद सुलह मीर्ज़ाई ने दी। उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब इंस्टीट्यूट के अंतर्राष्ट्रीय विभाग का शुक्रिया व्यक्त किया जिसने “फ़िलिस्तीन” नामी किताब के मुख़्तलिफ़ ज़बानों में अनुवाद छपवाए। 

उन्होंने आगे कहा कि फ़िलिस्तीन का विषय हक़ीक़त में इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन के आग़ाज़ से ही ध्यान का केन्द्र रहा और इमाम ख़ुमैनी ने अपने आंदोलन के आग़ाज़ से ही ज़ालिम शाही हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष के साथ ही इस्राईल के ख़िलाफ़ भी संघर्ष किया और इस क़ाबिज़ सरकार के अंत और बैतुल मुक़द्दस सहित फ़िलिस्तीन की आज़ादी के लिए कोशिश करते रहे। 

उन्होंने कहा कि इमाम ख़ामेनेई ने भी इस्लामी इंक़ेलाब के आग़ाज़ से अब तक ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष और फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधी संगठनों की मज़बूती को अपने एजेंडे में रखा और उनकी स्ट्रैटिजी फ़िलिस्तीनी संगठनों को मज़बूत करना था ताकि वो अपनी रक्षा के लिए हथियार बना सकें, बड़े सैनिक ऑप्रेशन कर सकें और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। 

हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन सईद सुलह मीर्ज़ाई ने कहा कि “फ़िलिस्तीन” नामी किताब में फ़िलिस्तीन के मसले के बारे में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के विचारों को इकट्ठा किया गया है और उन्होंने इस मसले के हल के लिए जो अहम स्ट्रैटिजी पेश की है, उसका परिचय कराया गया है। यही वजह है कि यह किताब ज़ायोनी सरकार के अभिषप्त प्रधान मंत्री की तिलमिलाहट का कारण बनी और उसने इस किताब को संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल के अंत के लिए आयतुल्लाह ख़ामेनेई के रोडमैप के तौर पर अपने हाथों में उठाया। 

उन्होंने आगे कहा कि कीर्द और उर्दू ज़बान इलाक़ों में फ़िलिस्तीन के मसले की अहमियत के मद्देनज़र इस किताब का इन दोनों ज़बानों में अनुवाद किया गया और उम्मीद है कि सारी दुनिया के मुसलमान और आज़ाद सोच रखने वाले लोग इस किताब में वर्णित बातों से परिचित होंगे और फ़िलिस्तीन के संबंध में अपने फ़रीज़े पर अमल करेंगे और इंशाअल्लाह बहुत जल्द सब एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर क़ुद्स शरीफ़ में शुक्र की नमाज़ अदा करेंगे। 

लेबनान के मआरिफ़ संस्थान की फ़ार्सी अनुवाद इकाई के निदेशक शैख़ अली ज़ाहिर ने अपनी संक्षिप्त सी स्पीच में कहा कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के बयान, अधिकारियों, ख़ास और आम लोगों के लिए मार्गदर्शन और आँख खोलने का काम करते हैं और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के विचारों का दुनिया की मुख़्तलिफ़ ज़बानों में अनुवाद किया जाना चाहिए। 

इस प्रोग्राम में फ़िलिस्तीन के मशहूर साहित्यकार व शायर मुनीर शफ़ीक़ ने कहा कि आयतुल्लाह ख़ामेनेई की सभी स्पीच को पूरे ध्यान से सुनता हूं। उनका कहना था कि एक वरिष्ठ धर्मगुरू की हैसियत से इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का रोल बहुत अहम व प्रभावी है। 

प्रोग्राम के अंत में “फ़िलिस्तीन” किताब के उर्दू और कुर्दी अनुवादों का अनावरण किया गया।