उन्होंने इस मुलाक़ात में शिक्षक दिवस की मुबारकबाद पेश करते हुए कहा कि स्टूडेंट्स, बच्चों और जवानों को इस्लामी इंक़ेलाब की नीतियों और रवैये के तर्क से आगाह होना चाहिए और उन्हें मालूम होना चाहिए कि क़ौम के "अमरीका मुर्दाबाद" और "इस्राईल मुर्दाबाद" के नारों के पीछे कौन सा तर्क छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर दसियों लाख बच्चे और जवान, दोस्त और दुश्मन के मोर्चे से आगाह हो जाएं और दुश्मनों के हमलों के मुक़ाबले में 'वैक्सिनेटेड' हो जाएं तो दुश्मनों का मीडिया और राजनीति के मैदान में किया गया पूंजीनिवेश फ़ेल हो जाएगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा के मसले की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनियों और उनके अमरीकी व यूरोपीय समर्थकों की भरपूर कोशिशों के बावजूद ग़ज़ा का मसला दुनिया का सबसे बड़ा मुद्दा है और अमरीकी युनिवर्सिटियों में ज़ायोनी हुकूमत के जुर्म के ख़िलाफ़ धरना और उसके दायरे के यूरोपीय यूनिवर्सिटियों तक पहुंच जाने से साफ़ हो जाता है कि विश्व जनमत अब भी ग़ज़ा के मसले में गंभीर है। 

उन्होंने क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत पर विश्व जनमत का दबाव दिन ब दिन बढ़ते जाने को ज़रूरी बताया और कहा कि ज़ायोनी पागल कुत्ते का निर्दयी व बर्बरतापूर्ण रवैया, इस्लामी गणराज्य और ईरानी क़ौम की नीति के सही होने पर मुहर लगाता है और 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों के नरसंहार ने, जिनमें आधे से ज़्यादा औरतें और बच्चे हैं, ज़ायोनी हुकूमत की दुष्टता और घटिया अस्लियत और ईरान की स्थायी नीति के सही होने को पूरी दुनिया के सामने नुमायां कर दिया। 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस्राईल के अपराध के ख़िलाफ़ स्टूटेंड्स के "शांतिपूर्ण धरने" के संबंध में अमरीका और उसके संस्थानों के रवैये को, अमरीकी सरकार से बदगुमानी के सिलसिले में इस्लामी गणराज्य ईरान के नज़रिए को सही साबित करने वाली एक और दलील बताया।

उन्होंने कहा कि इस बात ने दिखा दिया कि अमरीका ग़ज़ा के अवाम के नरसंहार के नाक़ाबिले माफ़ी गुनाह में ज़ायोनियों का हाथ बटा रहा है और अमरीकियों की ओर से ज़ाहिरी तौर पर हमदर्दी पर आधारित कुछ बातें भी झूठ हैं, इसलिए इस्लामी गणराज्य की यह नीति कि अमरीकी सरकार पर न तो भरोसा किया जा सकता है और न ही उसके संबंध में सार्थक सोच रखी जा सकती है, साबित हो गयी। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आगे कहा कि फ़िलिस्तीन के मसले का हल, ईरान की ओर से दिया गया यह  सुझाव है कि फ़िलिस्तीन को मुसलमान, ईसाई और यहूदियों सहित उसके अस्ली मालिकों को लौटाया जाना है।

उन्होंने इस सिलसिले में कहा कि जब तक फ़िलिस्तीन उसके अस्ली मालिकों को वापस नहीं मिलेगा तब तक वेस्ट एशिया का मसला हल नहीं होगा और अगर अभी और बीस-तीस साल तक वो लोग ये कोशिश करें कि ज़ायोनी हुकूमत को उसके पैरों पर खड़ा रखें कि इंशाअल्लाह वो ऐसा नहीं कर पाएंगे, तब भी ये मसला हल नहीं होगा।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि फ़िलिस्तीन, उसके लोगों को वापस मिलना चाहिए और फ़िलिस्तीनी हुकूमत व सिस्टम क़ायम होने के बाद वो लोग ख़ुद फ़ैसला करें कि उन्हें ज़ायोनियों के साथ क्या करना है। 

उन्होंने इसी तरह ज़ायोनी हुकूमत और क्षेत्र के मुल्कों के बीच संबंध क़ायम होने के लिए की जाने वाली कुछ कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुछ लोग सोचते हैं कि इससे मसला हल हो जाएगा जबकि अगर ये मान भी लिया जाए कि आस-पास के अरब मुल्कों के साथ ज़ायोनी हुकूमत के संबंध सामान्य हो गए तो न सिर्फ़ ये कि मुश्किल ख़त्म नहीं होगी बल्कि उन हुकूमतों के लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी जिन्होंने क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत के जुर्मों के संबंध में आँखें मूंद कर उससे दोस्ती का हाथ मिलाया है और क़ौमें उन हुकूमतों के पीछे पड़ जाएंगी।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने ख़िताब के एक दूसरे हिस्से में सरगर्म टीचरों को बच्चों और जवानों की शख़्सियत का निर्माता बताया और कहा कि टीचर की हर बात, काम, नज़रिया यहाँ तक कि इशारा भी नई नस्ल की शख़्सियत के निर्माण में प्रभावी होता है।