इस मौक़े पर अपने ख़ेताब में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 1 मार्च 2024 को होने वाले संसदीय चुनाव और विशेषज्ञ असेंबली के चुनाव की अहमियत पर बल देते हुए साम्राज्यवादी मोर्चे को ईरान में चुनावों का मुख़ालिफ़ बताया। उन्होंने कहा कि चुनाव, सिस्टम के प्रजातांत्रिक होने का प्रतीक है और इसीलिए साम्राज्यवादी ताक़तें और अमरीका, जो प्रजातंत्र के भी ख़िलाफ़ हैं और इस्लाम के भी ख़िलाफ़ हैं, चुनावों में अवाम की भरपूर भागीदारी के मुख़ालिफ़ हैं। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरानी अवाम से अतीत के एक चुनाव में भाग न लेने की अमरीका के एक पूर्व राष्ट्रपति की अपील की ओर इशारा करते हुए कहा कि उस अमरीकी राष्ट्रपति ने अनजाने में ईरान की मदद की क्योंकि लोगों ने उसकी ज़िद में और उसकी मुख़ालेफ़त में हमेशा से ज़्यादा और भरपूर तरीक़े से वोटिंग की और इसी वजह से अब अमरीकी इस तरह की बात नहीं करते बल्कि दूसरे मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से लोगों को चुनावों से दूर रखने और चुनावों के संबंध में उन्हें मायूस करने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पिछली दहाइयों के दौरान चुनावों में कभी भी वैसी गड़बड़ी नज़र नहीं आयी जिस तरह की गड़बड़ी का दुश्मन दावा करते हैं और उनकी ये बात बेबुनियाद है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि कुछ मौक़ों पर कुछ दावे किए गए और जाँच के बाद कुछ ख़िलाफ़वर्ज़ियां साबित हुयीं लेकिन कभी भी वो ख़िलाफ़वर्ज़ियां ऐसी नहीं थी कि चुनाव का टोटल रिज़ल्ट बदल जाए और मुल्क में चुनाव हमेशा सही और पारदर्शी तरीक़े से आयोजित हुए हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने, घटनाओं और साज़िशों के तूफ़ान के दरमियान अपनी अब तक की 45 साल की उम्र में इस्लामी इंक़ेलाब की तरक़्क़ी और उसके मज़बूत होने की प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि क़ौम और सिस्टम के अर्थ में इंक़ेलाब कठिन रास्तों से गुज़रकर ज़्यादा मज़बूत, ज़्यादा ताक़तवर, ज़्यादा प्रभावी बन चुका है और आज हमें मूल ज़िम्मेदारियों को सही वक़्त पर समझ कर उन पर अमल करना चाहिए।

उन्होंने ख़ुद पर और दुश्मन पर नज़र रखने को हर किसी की दो बुनियादी ज़िम्मेदारी बताया और कहा कि हमें अपना और दुश्मन दोनों का सही अंदाज़ा होना चाहिए और इस फ़रीज़े की ओर से लापरवाही एक बहुत बड़ी मुसीबत है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी पहचान का लक्ष्य, मज़बूत बिन्दुओं की रक्षा और उन्हें मज़बूत बनाना और कमज़ोर बिन्दुओं को दूर करना बताया और इंक़ेलाब तथा क़ौम के मज़बूत बिन्दुओं की व्याख्या करते हुए कहा कि पूरी तरह भ्रष्ट, बेईमान, अधिकारों का हनन करने वाले, ज़ालिम, तानाशाही और सल्तनती सिस्टम को जड़ से उखाड़ फेंकना, इंक़ेलाब का सबसे बड़ा कारनामा है।

उन्होंने कहा कि वो ऐसा सिस्टम था जो अवाम के किसी भी तरह के अधिकार का क़ायल नहीं था और बहुत से मामलों में तो वो व्यवहारिक तौर पर अमरीकियों और ब्रिटिश दूतावास के हुक्म पर काम करता था। उन्होंने कहा कि इस वक़्त अवाम, उस वक़्त के पतन के शिकार सिस्टम के बिलकुल बरख़िलाफ़ मुल्क और सिस्टम के मालिक हैं और डायरेक्ट और इनडायरेक्ट चुनावों के ज़रिए मुल्क चलाने के लिए मुल्क के अहम अधिकारियों को निर्धारित करते हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि इंक़ेलाब के विचार और मूल्य को बढ़ावा देना ख़ास तौर पर इलाक़े में उन्हें फैलाना, पश्चिमी सभ्यता के फैलाव को रोकने की राह में मिलने वाली किसी हद तक कामयाबी, अपने आप अवामी गिरोहों का गठन, मुल्क के सभी इलाक़ों में सहूलतों और सेवाओं का फैलाव और मुख़्तलिफ़ मैदानों में वैज्ञानिकों और विद्वानों का प्रशिक्षण ऐसी कामायबियां हैं जो इंक़ेलाब ने अपने अब तक के सफ़र में हासिल की हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने राष्ट्रीय एकता बनाए रखने को अवाम का फ़रीज़ा बताते हुए कहा कि सभी को इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि इन ज़िम्मेदारियों और फ़रीज़ों को अदा करना दुश्मन के मुक़ाबले में एक जेहादी काम है क्योंकि वो नहीं चाहते कि ये ज़िम्मेदारियां अदा हों और इसी वजह से वो इस्लामी गणराज्य में अंजाम पाने वाले हर काम के मुख़ालिफ़ हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दूसरे अहम फ़रीज़े यानी दुश्मन पर नज़र रखने की व्याख्या करते हुए कहा कि हमें दुश्मन और उसके हथकंडों और उसकी चालबाज़ियों की ओर से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए और उसे कमज़ोर व अक्षम न समझने के साथ ही उसकी धमकियों, दबाव और ललकार के प्रभाव में भी नहीं आना चाहिए।

उन्होंने ईरान का बुरा चाहने वालों की साज़िशों और मनोवैज्ञानिक दबाव की वजह, इस्लामी इंक़ेलाब के मज़बूत बिन्दु और तरक़्क़ियों को बताया और कहा कि दुश्मनों के मुक़ाबले में कभी भी पीछे नहीं हटना  चाहिए क्योंकि उनकी नीति सामने वाले पक्ष को रुसवा करना और पीछे हटाना है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के दूसरे हिस्से में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी की सालगिरह 11 फ़रवरी को ज़बर्दस्त जुलूस निकालने पर पूरे मुल्क के अवाम का दिल की गहराई से शुक्रिया अदा किया और कहा कि क़ौम ने सभी छोटे बड़े शहरों और ग्रामीण इलाक़ों में अपने क्रांतिकारी जोश और हौसले का प्रदर्शन करके उन लोगों को हैरत में डाल दिया जो ईरानी अवाम के मन में उदासी फैलाने और 11 फ़रवरी को भुला देने के इच्छुक थे।

उन्होंने अपनी स्पीच में इसी तरह आज़रबाईजान के अवाम को अतीत, वर्तमान दौर और हालिया दशकों में ग़ैरत, इश्क़, जोश और ईमान का प्रतीक बताया। उन्होंने तबरेज़ के अवाम के 18 फ़रवरी 1978 के आंदोलन की ओर इशारा करते हुए उसे इतिहास लिखने वाला वाक़ेया बताया और कहा कि उस वाक़ए ने सिर्फ़ यह नहीं कि क़ुम के अवाम के 9 जनवरी 1978 के आंदोलन को बेकार जाने नहीं दिया बल्कि पूरे मुल्क में आंदोलन का जज़्बा और इंक़ेलाबी जोश फैलाकर इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी की राह समतल कर दी।