“ग़ज़ा के संबंध में भविष्यवाणियां पूरी तरह सही साबित हो रही हैं। शुरू से ही हालात पर नज़र रखने वालों ने यहां भी और दूसरी जगहों पर भी यह भविष्यवाणी की थी कि इस मसले में फ़िलिस्तीन का रेज़िस्टेंस फ़्रंट फ़ातेह होगा। इस जंग में हार, दुष्ट व मनहूस ज़ायोनी फ़ौज की होगी। ज़ायोनी फ़ौज क़रीब 100 दिन से जारी अपराध के बाद भी अपना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है। उसने कहा कि हमास को ख़त्म कर देंगे, न कर सकी। उसने कहा कि ग़ज़ा के लोगों का कहीं और पलायन करा देंगे, वो न कर सकी। उसने कहा कि रेज़िस्टेंस फ़्रंट के हमले रुकवा देंगे, वो यह भी न कर सकी।”
यह 9 जनवरी को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीच का एक हिस्सा है जिसमें उन्होंने ग़जा पट्टी में अपने लक्ष्य को हासिल करने में ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी की ओर इशारा किया। अब जबकि ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी फ़ौज के हमले को 100 दिन से ज़्यादा हो गए हैं, अपने इन लक्ष्यों को हासिल करने में तेल अबीब की नाकामी पहले से कहीं ज़्यादा उजागर हो गयी है, जिन्हें हासिल करने का उसने प्रण किया था।
हमास का अंत, वो सपना जो पूरा न हो सका
"हमास (आंदोलन) बाक़ी नहीं रहेगा क्योंकि हम उसका अंत कर देंगे"(1) ज़ायोनी प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने 8 दिसंबर सन 2023 को यह बात कही थी और उसी महीने की 31 तारीख़ को अपने एक बयान में यह दावा भी किया था कि "(ग़ज़ा के ख़िलाफ़) जंग में हमारा लक्ष्य, हमास का पूरी तरह सफ़ाया है।"(2) अलअक़सा फ़्लड ऑप्रेशन के बाद ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी फ़ौज के हमले शुरू होने के वक़्त से अब तक, क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन ने बारंबार इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के अंत को अपना मूल लक्ष्य बताया है लेकिन ज़ायोनी फ़ौज को होने वाले जानी और माली नुक़सान में इज़ाफ़ा कुछ और ही कहानी बयान करता है। ज़ायोनी फ़ौज ने 7 अक्तूबर से 9 जनवरी तक मारे जाने वाले अपने फ़ौजियों की तादाद 519 बतायी है(3) जबकि अलक़स्साम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू उबैदा का कहना है कि ज़ायोनियों को होने वाला जानी नुक़सान, उससे कही ज़्यादा है जितना वो बता रहे हैं।(4)
मज़बूत फ़ौजी ढांचे के साथ ही ग़ज़ा की प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ का ईमान और जेहाद का जज़्बा, बड़े पैमाने की इस जंग के 100 दिन बाद भी, प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ की दृढ़ता और अजेय रहने के सबसे अहम कारणों में से एक है। स्ट्रैटिजिक मामलों के माहिर डॉक्टर मसऊद असदुल्लाही ने khamenei.ir से बात करते हुए ज़ायोनी फ़ौज की ओर से ग़ज़ा में ज़मीनी रास्ते से दाख़िल होने की ग़लत स्ट्रैटिजी अख़्तियार करने और ज़ायोनी फ़ौज के मुक़ाबले में दृढ़ता दिखाने की प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ की सही स्ट्रैटिजी को ज़ायोनियों की फ़ौजी हार की सबसे अहम वजह बताया। उन्होंने प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ के सदस्यों के ईमान और इस्लामी अक़ीदे को, 100 दिन के अपराधों के बाद, ज़ायोनी फ़ौज की हार की सबसे अहम वजह क़रार दिया। जैसा कि इस्राईली अख़बार यदीओत अहारोनोत ने भी इस सिलसिले में लिखा हैः "हमास ने साबित कर दिया है कि वो एक ख़त्म न होने वाली फ़ौज है, इसलिए उसके अंत की बात करना ख़याली दुनिया की बातों के अलावा कुछ नहीं है।"(5) इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने भी 9 जनवरी को यह बात ज़ोर देकर कही थी कि "फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ताज़ा दम और मुस्तैद है जबकि ज़ायोनी फ़ौज थकी हुयी, उसका सिर झुका हुआ और वो शर्मिंदा और उसके माथे पर मुजरिम का कलंक लगा हुआ है। यह वो स्थिति है जो इस वक़्त है।"
दूसरी ओर अमरीका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर उराहाम शामा भी ग़ज़ा की हालिया जंग की समीक्षा में कहते हैः "इस वक़्त ग़ज़ा में जो कुछ हो रहा है, उसे नज़रअंदाज़ करते हुए मुझे यह कहना पड़ेगा कि हक़ीक़त में इस्राईल हार गया और हमास को जीत हासिल हुयी।"(6)
इसके अलावा हमास आंदोलन और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध एक जनप्रतिरोध बल है जिसे सामाजिक पोज़ीशन और सपोर्ट हासिल है और उसके अंत की बात नहीं की जा सकती। यह वही बात है जिसकी ओर अमरीकी समीक्षक रिचर्ड सिलवर स्टाइन इशारा करते हुए कहते हैः"हमास सिर्फ़ एक फ़ौजी संगठन नहीं है बल्कि क़ौमी संघर्ष का आंदोलन है और इसी वजह से उसका अंत मुमकिन नहीं है।"(7)
ज़ायोनी फ़ौजियों की रिहाई में तेल अबीब की रुसवाई
ग़ज़ा पर फ़ौजी हमले के सबसे अहम लक्ष्यों में से एक कि जिसे हासिल करने का नेतनयाहू अब तक कई बार वादा कर चुके हैं, ज़ायोनी फ़ौजियों की रिहाई है।(8) मगर ग़ज़ा की जंग को 100 दिन से ज़्यादा गुज़र जाने के बाद भी, ज़ायोनी फ़ौज एक भी जंगी क़ैदी को, बातचीत के नतीजे में रिहा होने वाले क़ैदियों से हटकर, रिहा नहीं करा सकी है। 27 नवंबर से शुरू होने वाली 7 दिन की जंग बंदी के दौरान ही फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने क़ैदियों के तबादले की प्रक्रिया में कुछ ज़ायोनी जंगी क़ैदियों को रिहा किया था। इसका मतलब यह है कि ज़ायोनी, न सिर्फ़ अपने जंगी क़ैदियों को ताक़त के बल पर रिहा कराने में नाकाम रहे हैं बल्कि वो इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिरोध से बातचीत पर भी मजबूर हो गए जिसके लिए उनका दावा था कि वो कभी इससे बातचीत नहीं करेंगे।
ज़ायोनी न सिर्फ़ जंगी क़ैदियों की रिहाई के अपने घोषित लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहे बल्कि जंगी क़ैदियों की रिहाई के लिए की जाने वाली अपनी कोशिशों में उन्हें एक ज़बर्दस्त रुसवाई का भी सामना करना पड़ा। यह वाक़ेया 15 दिसंबर का है जब ज़ायोनी फ़ौज ने एलान किया कि कुछ जंगी क़ैदियों को रिहा कराने के लिए ऑप्रेशन के दौरान उसके फ़ौजियों ने ग़लती से उनमें से तीन क़ैदियों को क़त्ल कर दिया है।(9) इस बड़ी रुसावई पर अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में ज़बर्दस्त एतेराज़ और विरोध सामने आया था(10) और उससे ज़ायोनी प्रधान मंत्री के ख़िलाफ़ आंतरिक दबाव पहले से ज़्यादा बढ़ गया था। ज़ायोनी फ़ौज के चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़ हर्ज़ी हालिवी ने इस रुसवाई पर अपने रिएक्शन में कहाः"इस्राईली फ़ौज को इस ऑप्रेशन में हार हो गयी जो उसने जंगी क़ैदियों की रिहाई के लिए किया था।"(11) हमास की फ़ौजी विंग के प्रवक्ता अबू उबैदा ने भी कहा कि "इस्राईल क़ैदियों के तबादले की प्रक्रिया और हमास की शर्तों पर अमल किए बिना, अपने जंगी क़ैदियों को ज़िन्दा वापस नहीं ले पाएगा।" (12)
लेबनान के स्ट्रैटिजिक मामलों के माहिर अमीन हतीत ने khamenei.ir से बात करते हुए और अपने जंगी क़ैदियों की रिहाई में ज़ायोनियों की नाकामी के कारणों की समीक्षा करते हुए कहा कि "इस्राईल की किसी भी सशस्त्र कार्यवाही का नतीजा उसके जंगी क़ैदियों की रिहाई के तौर पर सामने नहीं आया क्योंकि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने ज़ायोनी फ़ौजियों की पहुंच से जंगी क़ैदियों को दूर रखने के लिए सभी ज़रूरी क़दम अच्छी तरह अंजाम दिए। अस्ल में प्रतिरोध की वजह से ज़ायोनी फ़ौज के सामने सिर्फ़ दो विकल्प रहे, या तो वो सभी जंगी क़ैदियों को मार डाले या फिर उनकी रिहाई के लिए बातचीत पर तैय्यार हो जाए।"
फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के फ़ौजी ढांचे को तबाह करने में नाकामी
ज़ायोनी फ़ौज के प्रवक्ता डेनियल हगारी ने 3 नवंबर 2023 को दावा किया कि इस्राईली फ़ौजी ग़ज़ा में आगे बढ़ते हुए, ज़मीन पर और ज़मीन के नीचे मौजूद सभी फ़ौजी ढांचे को तबाह कर देंगे।(13) इसके बावजूद ग़ज़ा से अतिग्रहित इलाक़ों की ओर रॉकेट फ़ायर होने की प्रक्रिया लगातार जारी है जिससे पता चलता है कि ज़ायोनी सेना, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के फ़ौजी ढांचों को नुक़सान पहुंचाने में भी नाकाम रही हैं।(14)
अलक़स्साम ब्रिगेड ने ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी को ज़ाहिर करने के लिए सन 2024 के शुरूआत के मिनटों में ही 21 'एम-90' मीज़ाइल तेल अबीब के कुछ इलाक़ों पर फ़ायर किए। इस तादाद में मीज़ाइल फ़ायर किया जाना वो भी नए साल के आग़ाज़ के कुछ मिनटों के भीतर, मीजाइल हमलों के वक़्त और स्थान के निर्धारण में रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ की कमान की ताक़त का मुंह बोलता सुबूत है। हमास ने अपनी इस कार्यवाही से, मीज़ाइल हमलों के मैदान में प्रतिरोध की 80 फ़ीसदी फ़ौजी ताक़त को तबाह कर देने पर आधारित इस्राईल के दावों की पोल खोल दी।(15) इस बात में शक नहीं कि ग़ज़ा पट्टी में खोदी गई सुरंगों का जटिल नेटवर्क भी, प्रतिरोध की फ़ौजी ताक़त को नुक़सान पहुंचाने में ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी का एक अहम सबब रहा है।(16)
ग़ज़ा के लोगों को पलायन करने पर मजबूर करने में नाकामी
जैसा कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी हालिया स्पीच में कहा है कि ग़ज़ा के लोगों को अपना घरबार छोड़ कर फ़िलिस्तीन के बाहर किसी दूसरे इलाक़े की ओर पलायन पर मजबूर करने में ज़ायोनियों की नाकामी, अपने घोषित लक्ष्यों में से एक और को हासिल करने में ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी है। इससे पहले ज़ायोनियों ने औपचारिक तौर पर ग़ज़ा में रहने वालों को ग़ज़ा पट्टी से कहीं और पलायन करने के अपने फ़ैसले का एलान किया था। इस सिलसिले में नेतनयाहू के मंत्रीमंडल के आंतरिक सुरक्षा के मंत्री ईतमान बिन ग़फ़ीर ने अपने एक बयान में कहा थाः "ग़ज़ा के लोगों का पलायन हमें ग़ज़ा पट्टी में कालोनियां बनाने का मौक़ा देगा।" इसी तरह ज़ायोनी शासन के वित्त मंत्री बितसालील स्मोत्रिच ने भी ग़ज़ा के लोगों को इस पट्टी से दूसरी जगह पलायन करवाने पर बल देते हुए कहा थाः "जंग हमें इस बात का मौक़ा देगी कि ग़ज़ा के लोगों को कहीं और पलायन कराने के विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित करें।" उन्होंने यह भी कहा था कि "मेरे ख़याल में सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि ग़ज़ा के लोगों को उन मुल्कों में भेज दिया जाए जो उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं।" (17)
ये सारे बयान इस बात का पता देते हैं कि इस इलाक़े के लोगों और प्रतिरोध के ख़िलाफ़ ज़ायोनी फ़ौज की जंग के अहम लक्ष्य में से एक, ग़ज़ा के लोगों का जबरन पलायन कराना था और है, फिर भी ग़ज़ा के लोगों के सब्र और दृढ़ता ने ज़ायोनियों को इस बात की इजाज़त नहीं दी कि वो अपने इस लक्ष्य को हासिल कर सकें। (18) अपनी सरज़मीन में ग़ज़ा के अवाम की दृढ़ता इस बात का कारण बनी कि वो पानी, बिजली, खाने पीने की चीज़ों और बुनियादी ज़रूरत के संसाधन के अभाव के बावजूद, जबरन पलायन करने के दबाव के सामने घुटने न टेकें। ये सब्र व प्रतिरोध इस हद तक है कि अरब समीक्षक नेहाद अबू ग़ौश का कहना है कि "ग़ज़ा में रहने वाले फ़िलिस्तीनी, पलायन पर अपने वतन में मरने को प्राथमिकता देते हैं।"(19) इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस सब्र व दृढ़ता की सराहना करते हुए कहा हैः "एक छोटे से इलाक़े के छोटे से गिरोह ने लंबे लंबे दावे करने वाले अमरीका और उसकी गोद में बैठी हुयी ज़ायोनी सरकार को अपने सब्र व दृढ़ता की ताक़त से लाचार कर दिया है।"
स्ट्रैटिजिक मामलों में लेबनान के समीक्षक अमीन हतीत ने khamenei.ir बात करते हुए ग़ज़ा पट्टी के लोगों को जबरन पलायन करने पर मजबूर करने की साज़िश को नाकाम बनाने में ग़ज़ा के लोगों के सब्र, प्रतिरोध और दृढ़ता के किरदार के बारे में कहाः "ज़ायोनी फ़ौज ने ग़ज़ा के लोगों को उनकी सरज़मीन से बाहर निकालने को अपने मुख्य लक्ष्य के तौर पर पेश किया था लेकिन हमने देखा कि इस वक़्त भी जब ग़ज़ा के अवाम के घर तबाह हो गए, उन्होंने अपने घरों के मलबे पर बैठने को, जबरन पलायन पर प्राथमिकता दी। ग़ज़ा के लोगों ने इस तरह दुश्मन की साज़िश को नाकाम बना दिया।"