इंटरव्यूः अली रज़ा सुलतान शाही
सवालः आपकी नज़र में जंग के शुरूआती 100 दिनों में ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी की सबसे बड़ी वजह क्या है?
जवाबः ज़ायोनी फ़ौज ने पिछले 100 दिनों में ग़ज़ा के अवाम पर भारी दबाव डाला। उसने न सिर्फ़ रेज़िस्टेंस फ़ोर्स के लिए बल्कि ग़ज़ा के अवाम के लिए भी पानी और बिजली की सप्लाई बंद कर दी है। इसके अलावा उसने ग़ज़ा के लोगों के लिए मूल ज़रूरत की चीज़ों को पूरा करने वाले सभी ढांचों पर जिनमें बिजली घर और ईंधन के इन्फ़्रास्ट्रक्चर हैं, यहाँ तक कि अस्पतालों पर भी हमले किए हैं और इस तरह हमास पर भारी दबाव डालने की कोशिश की है।
अब सवाल यह है कि ये रेज़िस्टेंस क्यों शुरू हुआ? मैं कुछ बिन्दुओं की ओर इशारा करना चाहता हूं। जैसे यह कि इस्लामी गणराज्य ईरान के नेतृत्व ने राजनैतिक लेहाज़ से भी, कूटनैतिक लेहाज़ से भी और मीडिया की सतह पर भी पहले दिन से लेकर अब तक प्रतिरोध के मोर्चे की कार्यवाही का सपोर्ट किया है और अब भी कर रहा है। ज़ायोनी फ़ौज ने अपनी क्षमता का एक हिस्सा, उस दबाव को कंट्रोल करने पर लगाया है जो उस पर प्रतिरोध के मोर्चे की ओर से पड़ रहा है।
प्रतिरोध के मोर्चे ने जो कार्यवाहियां की हैं, उनके बारे में हम तफ़सील से बात कर सकते हैं लेकिन मैं सिर्फ़ उसकी ताज़ा कार्यवाही के बारे में बात करुंगा जिसने जंग में ज़ायोनी फ़ौज के सभी अंदाज़ों को पूरी तरह बदल दिया और वो यमन के अंसारुल्लाह गिरोह की कार्यवाही है जिसने पहले चरण में मीज़ाईल और ड्रोन से ईलात और ज़ायोनी शासन के दक्षिणी क्षेत्रों पर हमला किया और फिर ज़ायोनी शासन के समुद्री जहाज़ों और उन सभी जहाज़ों को जो बाबुल मंदब के रास्ते ज़ायोनी शासन की ओर जाना चाहते हैं, अपने हमलों का निशाना बनाया और इस तरह इस इलाक़े को ज़ायोनी शासन के लिए पूरी तरह असुरक्षित बना दिया। इस चीज़ से ज़ायोनी शासन की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह नुक़सान पहुंचा है और उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यमन की इस कार्यवाही का किस तरह मुक़ाबला करे। यही वजह है कि उसने जंग के मैदान को लेबनान, सीरिया और ईरान तक बढ़ाने की कोशिश की है। वो अपनी कार्यवाहियों से इस बात की कोशिश कर रहा है कि इस जंग पर रेज़िस्टेंस के मोर्चे और उसके असर को ख़त्म कर दे लेकिन वो अब तक इसमें कामयाब नहीं हो सका है।
हमास की कामायबी की एक दूसरी वजह यह है कि अवाम पर जो भारी दबाव में है, उनका घर तबाह हो गया है, इस वक़्त भीषण नाकाबंदी में हैं, उन्हें ठंड के मौसम में अनेक बीमारियों का सामना है, उनके घऱवालों में बहुत से लोग शहीद या घायल हुए हैं, इन सबके बावजूद अवाम की ओर से, जद्दोजेहद जारी रहने की किसी भी तरह की मुख़ालेफ़त नहीं हो रही है या कम से कम इस वक़्त तो बिलकुल भी नहीं की जा रही है, ये चीज़ हमास के लिए सार्थक नतीजा रखती है और ये उसकी कामयाबी की एक बहुत अहम दलील भी है।
तीसरी बात हमास को दुनिया भर से मिलने वाला समर्थन है। रिहाइशी इलाक़ों पर ज़ायोनी फ़ौज की बमबारी की वजह से जिसे किसी भी हालत में सही ठहराया नहीं जा सकता, रेज़िस्टेंस के मोर्चे की पोज़ीशन बेहतर है और विश्व जनमत ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ है और यह चीज़ इस शासन को और ज़्यादा जुर्म करने से किसी न किसी हद तक रोकती है। यह चीज़ इन्डायरेक्ट तौर पर अमरीका सहित पश्चिमी सरकारों पर दबाव भी डालती है और स्वाभाविक सी बात है कि वो इस्राईल पर दबाव डाल रहे हैं कि वो जंग को रोक दे या उसका दायरा और न बढ़ाए या फिर पूरी तरह से युद्ध विराम को मान ले।
हमास की कामयाबी की एक और वजह यह है कि उसे जंग के इलाक़े की खुली ज़मीन पर पूरा कमांड हासिल है। उसने सन 2005 से, जबसे उसने इस इलाक़े का पूरी तरह कंट्रोल अपने हाथ में लिया है, ख़ुद को इस तरह के दिनों के लिए तैयार कर लिया था। दूसरी बात यह है कि वो इस इलाक़े और वहाँ के माहौल की पूरी तरह समझ रखता है और यह स्ट्रैटिजिक लेहाज़ से श्रेष्ठता है जिससे हमास को इस जंग में कामयाबी मिली है। स्वाभाविक सी बात है कि हमास ने उन सभी कार्यवाहियों का, जो ज़ायोनी फ़ौज संभवतः कर सकती थी, अंदाज़ा लगा लिया था और ज़रूरी तैयारी कर ली थी। एक दूसरी बात यह है कि उसने शुरू से ही इस जंग को असमान जंग बताया है, यानी हमास का अंदाज़ पूरी तरह से छापामार जंग का है और ज़ायोनी फ़ौज, उसके द्वारा किए गए बड़े हमलों के मद्देनज़र, हवाई हमलों से बढ़त हासिल नहीं कर सकती।
हमास की कामयाबी की एक और वजह यह है कि उसने इस असमान जंग में अपनी ज़रूरत के हथियारों का भी अंदाज़ा लगा लिया था और उन्हें स्थानीय सतह पर तैयार कर लिया था। अगरचे, रेज़िस्टेंस के बड़े नेटवर्क ने सैन्य संसाधनों की नज़र से ग़ज़ा की प्रतिरोध फ़ोर्स की कुछ मदद की है, लेकिन ऐसा लगता है कि ग़जा की प्रतिरोध फ़ोर्स के पास इस वक़्त जो हथियार व सैन्य संसाधन हैं, उन्हें वहीं बना गया है और वो इस्राईल के हथियारों के लेहाज़ से तैयार किए गए हैं। मिसाल के तौर पर मिर्कावा टैंक उड़ाने के लिए यासीन 105 को तैयार किया गया, जिससे ज़ायोनी फ़ौज को बहुत ज़्यादा जानी व माली नुक़सान पहुंचा है। मीज़ाइलों को भी स्थानीय ज़रूरत के लेहाज़ से बनाया गया है, उनकी तैयारी में भी, उनके इस्तेमाल के तरीक़े में भी और उनकी रेंज में भी बहुत बेहतरी आयी है। इस जंग को 100 दिन गुज़र जाने के बाद भी ग़ज़ा के प्रतिरोध के मीज़ाईल, तेल अबीब तक फ़ायर किए जाने के लिए तैयार हैं और ये सैन्य क्षेत्र में एक तरह की बरतरी है।
एक दूसरा अहम तत्व, सुरंगों का मामला है। कहा जाता है कि हमास ने ग़ज़ा पट्टी में 500 किलोमीटर की सुरंगे बनायी हैं। सुरंगों से हमास को इस असमान जंग में अपने हथियारों, फ़ौजी साज़ो सामान, अपने लड़ाकों, अपने कमान सेंटरों यहाँ तक कि जंग में क़ैद किए गए लोगों की रक्षा में बहुत मदद मिली है और यह हमास के लिए एक बहुत कामयाब तजुर्बा रहा है जबकि ज़ायोनी फ़ौज बेतहाशा क़ीमत अदा करके भी हमास की इस बढ़त को ख़त्म नहीं कर सकी है।
फ़ौजी मैदान में ग़ज़ा के प्रतिरोध की सबसे बड़ी वजह, उसके अमले की ताक़त है। हमास के पास जितने भी लोग हैं, उन्होंने जंग में दिखा दिया है कि वो उपयोगी व माहिर भी हैं और उनमें जज़्बा भी पाया जाता है जबकि ज़ायोनी फ़ौजियों में ये दो ख़ुसूसियतें बिलकुल नहीं हैं। मुमकिन है क्लासिकल फ़ौज के लेहाज़ से उनमें कुछ क्षमता हो लेकिन वो ग़ज़ा की पोज़ीशन और ज़मीनी हालात से पूरी तरह परिचित नहीं हैं, मतलब यह कि इस मैदान में उनकी महारत रेज़िस्टेंस फ़ोर्स के जितनी नहीं है। दूसरे यह कि उनमें जज़्बा भी नहीं है। हमें ज़ायोनी फ़ौज में नाराज़गी, ख़ौफ़, जंग से फ़रार और हुक्म न मानने के मंज़र भी नज़र आते हैं।
इस दौरान एक और चीज़ जिसने हमास की मदद की है, वो यह है कि अमरीका कई कारणों से इस जंग के जारी रहने और इसका दायरा फैलने के हक़ में नहीं है। एक वजह अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के समय का क़रीब आना है और दूसरी वजह चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में अमरीका की व्यस्तता है, एक और वजह युक्रेन जंग है और चौथी एक और बड़ी वजह, जंग की वजह से अमरीका के सामने ख़र्चे हैं। इसी वजह से अमरीका किसी भी तरह जंग जारी रहने और उसके फैलने का इच्छुक नहीं है। अगरचे उसकी ओर से इस्राईल को व्यापक सपोर्ट है लेकिन इसी के साथ उसके कुछ रिज़र्वेशन भी हैं जिनकी वजह से जंग रुकवाने और पूरी तरह युद्धविराम का हमास का स्टैंड ऐसा स्टैंड है जिसे सपोर्ट मिला है और आगे और भी सपोर्ट मिल सकता है। यह स्थिति तब है जब अमरीकियों ने भी यह बात मानी है कि हमास को मिटाया नहीं जा सकता बल्कि वो एक मज़बूत पक्ष के तौर पर सामने आया है और वो इस बात की ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश कर रहे हैं कि हमास को प्रतिरोध व दृढ़ता की स्थिति से निकाल कर राजनैतिक व कूटनैतिक स्थिति में ले जाएं कि यहीं पर प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ को सावधान रहना चाहिए कि कहीं वो इस हथकंडे के झांसे में न आ जाएं।
वो चीज़ जो इन सबसे अहम है, वो क़ुद्स शरीफ़ की आज़ादी का यक़ीन है, फ़िलिस्तीन की आज़ादी का यक़ीन है, ज़ायोनी फ़ौज के पराजित होने का यक़ीन है और अल्लाह की मदद पर ईमान है जो इस बात का कारण बना है कि इन 100 दिनों में हमास को इस तरह की कामयाबी हासिल हो। अगर ये सभी सार्थक बातें न भी हों और सिर्फ़ ये ईमान और यक़ीन पाया जाता हो तो हथियार के बिना भी, फ़ौजी बढ़त के बिना भी, ग़ज़ा बल्कि पूरे फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध फ़ोर्स कामयाबी हासिल कर सकती है। हमास और प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ को अपने ईमान और अपनी दृढ़ता को मुसलसल मज़बूत करते रहना चाहिए ताकि इंशाअल्लाह उनके इस क़दम का नतीजा निकले।