इस्लामी सिस्टम में ओहदे पर नियुक्ति और मामलों की ज़िम्मेदारी संभालने का मसला सिर्फ़ पब्लिक से रूबरू होना नहीं है, अगर अल्लाह के साथ जुड़ाव न हो तो अवाम के लिए काम करना और उनके लिए कोई सेवा करना यानी वही अस्ल ज़िम्मेदारी जो संभाली है, उसमें रुकावट पैदा होगी। इस नियुक्ति और फ़रीज़े में अल्लाह से जुड़ाव, कवच का काम करता है। इसलिए अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने जनाब मालिके अशतर के नाम अपने ख़त में फ़रमाया हैः अपने वक़्त में जो मुख़्तलिफ़ काम के लिए आप निर्धारित करें, बेहतरीन वक़्त को अपने और अपने अल्लाह के बीच एकांत में संपर्क के लिए निर्धारित करें यानी अपने अल्लाह के साथ संपर्क, तौबा, इस्तेग़फ़ार और उसके सामने गिड़गिड़ाने के वक़्त, थकन और सुस्ती की हालत न हो। उसके बाद फ़रमाते हैं: अगरचे जिस वक़्त तुम इस्लामी हुकूमत में किसी ओहदे पर हो, तुम्हारे सारे कामों का संबंध अल्लाह से है - शर्त यह है कि नीयत में ख़ुलूस हो और कोई काम अवाम को तकलीफ़ देने वाला अंजाम न दो - लेकिन इसके साथ ही अपनी इन सभी कोशिशों के बीच जो सबकी सब इबादत हैं, एक वक़्त अपने और अपने अल्लाह के बीच एकांत में संपर्क के लिए निर्धारित करो। इस्लामी सिस्टम में और अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के मत में ओहदेदार (क़ौम के सेवक) को इस तरह का होना चाहिए।

इमाम ख़ामेनेई

15/12/2000