उन्हेंने इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए मुल्क, इस्लामी जगत और दुनिया की सतह पर लाए गए तीन बड़े बदलाव की व्याख्या करते हुए कहा कि उनका ईमान और उम्मीद, यह बड़ा ऐतिहासिक बदलाव लाने वाला सॉफ़्ट पावर था और जो भी ईरान, राष्ट्रीय हित, आर्थिक हालात में सुधार, मुल्क की तरक़्क़ी और राष्ट्रीय ताक़त का इच्छुक है, उसे अवाम और समाज में ईमान और उम्मीद के जज्बे को मज़बूत बनाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने धार्मिक ज्ञान, तक़वा, दृढ़ता, मज़बूत इरादे, अल्लाह के लिए आंदोलन, क्रांतिकारी नीति और मानवीय सिस्टम में बदलाव जैसे इमाम ख़ुमैनी की शख़्सियत के हैरतअंगेज़ पहलुओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईरान की तारीख़ में किसी भी बड़ी हस्ती में ये सारे पहलु एक साथ दिखाई नहीं देते और इसी लिए हमारे बेमिसाल इमाम ख़ुमैनी अमर रहेंगे।

उन्होंने इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए ईरान, इस्लामी जगत और दुनिया में लाए गए बेमिसाल बदलाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब को वजूद देकर और अवाम के हाथों कामयाब बनाकर, सल्तनती ढांचे को प्रजातंत्र में, एक पिट्ठू और हक़ीर व ज़लील हुकूमत को स्वाधीन, राष्ट्रीत ताक़त पर आधारित सिस्टम में और एक धर्म विरोधी सरकार को इस्लामी सिस्टम में, तानाशाही को आज़ादी में और पहचान न रखने वाली क़ौम को, क़ौमी पहचान रखने वाले राष्ट्र में बदल दिया और ग़ैरों की नज़रे करम का इंतेज़ार करने वाली क़ौम को सब कुछ करने की सलाहियत रखने की चमत्कारिक ताक़त से लैस कर दिया जो वर्तमान और भविष्य की सभी मुश्किलों को हल करने वाली है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस्लामी जगत की सतह पर इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए होने वाले बदलाव के पहलुओं की व्याख्या करते हुए, इस्लामी जागरुकता के आग़ाज़, इस्लामी जगत में हरकत और तत्परता सहित फ़िलिस्तीन के मसले को इस्लामी दुनिया के सबसे अहम मुद्दे में बदलने की ओर इशारा किया और कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने फ़िलिस्तीनी क़ौम के दुखी व उदास जिस्म में नई जान डाल दी और अब विश्व क़ुद्स दिवस, सिर्फ़ ईरान में ही नहीं बल्कि ग़ैर मुस्लिम मुल्कों की राजधानियों में भी फ़िलिस्तीन के मज़लूमों के प्रति समर्थन के प्लेटफ़ार्म में बदल चुका है।

उन्होंने भौतिकवाद के मुक़ाबले में कर्महीनता से बाहर निकालने और अध्यात्म की ओर क़ौमों का ध्यान को मोड़ने को इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए विश्व स्तर पर लायी जाने वाली तब्दीलियों का मुख्य बिन्दु बताया और कहा कि इस महान शख़्सियत ने दुनिया में अध्यात्म के रंग को फिर से निखारा और आध्यात्मिक मामलों व विषयों पर साम्राज्यवादियों के राजनैतिक व प्रचारिक केन्द्रों के तीव्र हमले तथा भौतिकवाद के प्रचार के लिए उनकी घिनावनी कोशिशों को इस बदलाव पर उनका रिएक्शन बताया।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने काग़ज़ के पेज और टेप रिकॉर्ड की कैसेटों को, अपनी बातें और संदेश  अवाम तक पहुंचाने वाला इमाम ख़ुमैनी का एकमात्र हार्ड पावर बताया और कहा कि जिस चीज़ ने उन्हें, इन चमत्कारिक सरगर्मियों के लिए सक्षम बनाया था, वे दो अहम सॉफ़्ट पावर्ज़ थे ईमान और उम्मीद।

उन्होंने इमाम ख़ुमैनी के रास्ते यानी अल्लाह के दुश्मनों से मुक़ाबले में अल्लाह पर ईमान को, अल्लाह के वादों पर यक़ीन और भरोसे के अर्थ में बताया और क़ुरआन मजीद की कई आयतों का हवाला देते हुए कहा कि अल्लाह ने वादा किया है कि जो भी उसकी मदद करेगा, उसे उसकी मदद हासिल होगी, उसने वादा किया है कि वह मोमिनों के क़दम में दृढ़ता लाएगा और उनके क़दमों को मज़बूती से जमाए रखेगा, मोमिनों की रक्षा करेगा, सत्य और हर उस चीज़ को बाक़ी रखेगा जो अवाम के हक़ में है और असत्य को झाग की तरह पतन व अंत की राह दिखाएगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इमाम ख़ुमैनी के ईमान के दूसरे पहलू यानी अवाम पर भरोसे के बारे में कहा कि वह क़ुरआन की आयतों की गहरी समझ की वजह से अवाम के वोट जैसे उनके प्रेरक तत्वों और अमल पर दिल से भरोसा रखते थे और कुछ चिंताओं के जवाब में कहा करते थे कि मैं अवाम को आपसे बेहतर और आपसे ज़्यादा जानता हूं।

उन्होंने प्रजातंत्र पर इमाम ख़ुमैनी के गहरे भरोसे की एक और मिसाल पेश करते हुए कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने अपनी उम्र के आख़िरी ज़माने में कहा था कि उन्होंने मुल्क के पहले राष्ट्रपति को वोट नहीं दिया था लेकिन चूंकि वह अवाम पर भरोसा करते थे इसलिए उन्होंने उस राष्ट्रपति को मिलने वाले जनादेश की पुष्टि कर दी थी।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इमाम ख़ुमैनी की बदलाव लाने वाली कई दशकों पर फैली सरगर्मियों के दूसरे सॉफ़्ट पावर की यानी उम्मीद की व्याख्या करते हुए कहा कि उम्मीद, इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन का अमर तत्व और इंजन थी, जैसा कि वह सन 1940 के दशक में अल्लाह के लिए आंदोलन की बात करते थे, 60 के दशक में आंदोलन के लिए मैदान में आ गए और 80 के दशक में फ़ौजी, सेक्युरिटी और राजनैतिक तूफ़ानों की ज़द में आने के बावजूद, ज़रा भी नहीं घबराए।

उन्होंने इमाम ख़ुमैनी की राह चलने और उनके लक्ष्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी बातों व साधनों को, चालीस साल पहले के तरीक़ों से अलग बताया, लेकिन इसी के साथ यह भी कहा कि मोर्चाबंदी में कोई बदलाव नहीं आया है और आज भी, कल की तरह साम्राज्यावदी मोर्चा, ज़ायोनियों का मोर्चा और धौंस धमकी देने वाली ताक़तों का मोर्चा, ईरानी क़ौम के मुक़ाबले में है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि आज और कल की मोर्चाबंदी में फ़र्क़ यह है कि आज ईरानी क़ौम ज़्यादा मज़बूत हो गयी है जबकि दुश्मन ज़्यादा कमज़ोर हो गए हैं।

उन्होने दुश्मनों की साज़िशों का मुख़्य लक्ष्य, अवाम के ईमान को कमज़ोर करना और दिलों में उम्मीद की किरण को बुझा देना बताया और कहा कि स्वाधीनता, राष्ट्रीय संप्रभुता व हितों की रक्षा, ईमान और उम्मीद पर निर्भर है और पिछले कुछ दशकों में साम्राज्यवाद की द्वेषपूर्ण व हठधर्म एजेंसियों और इसी तरह उनके सेक्युरिटी, सियासी और वित्तीय संगठनों ने लोगों के ईमान और उम्मीद को कमज़ोर करने की हर मुमकिन कोशिश की और कुछ मामलों में वे सफल भी रहे लेकिन अल्लाह की मदद से ज़्यादातर मामलों में उन्हें ईरानी क़ौम के हाथों मुंह की खानी पाड़ी और हार हुयी।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि दुश्मन की आज तक की साज़िशों की आख़िरी कड़ी, पिछले पतझड़ के मौसम में हुए बलवे थे। उन्होंने इन बलवों को वजूद में लाने वाले तत्वों की व्याख्या में कहा कि इन बलवों की पूरी प्लानिंग पश्चिमी थिंक टैंक्स ने की और उन्हें पश्चिमी सेक्युरिटी एजेंसियों की ओर से पैसों, हथियारों और प्रचार से,  साथ ही ग़द्दार व वतनफ़रोश पिट्ठुओं सहित ईरान से दुश्मनी रखने वालों तत्वों के हाथों अंजाम दिया गया। अलबत्ता थोड़े बहुत दुश्मन, ज़्यादातर ग़ाफ़िल, जज़्बाती, सूझबूझ न रखने वाले और कुछ असामाजिक तत्वों ने मुल्क के भीतर इन बलवों में पियादे का रोल अदा किया।

उन्होंने इन बलवों के दौरान विदेशी मीडिया में देसी बम बनाने की खुलेआम ट्रेनिंग, अलगाववादी नारों और सशस्त्र कार्यवाहियों को शह देने, कुछ दिखावे के ईरानी और दरअस्ल ग़ैरों के पिट्ठुओं के साथ पश्चिमी सरकारों के कुछ सीनियर लीडरों के तस्वीरें खिंचवाने और पियादों के हाथों युनिवर्सिटी स्टूडेंट्स धार्मिक स्टूडेंट्स, पुलिक कर्मियों और स्वयंसेवियों की हत्या जैसी पश्चिम की दुश्मनी से भरी कुछ कार्यवाहियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे सोच रहे थे कि इस्लामी गणराज्य का काम तमाम हो गया और वह ईरानी क़ौम को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन बेवक़ूफ़ों ने फिर ग़लती की और इस बार भी वे ईरानी क़ौम को नहीं समझ पाए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरान के दुश्मनों की कॉल के सिलसिले में अवाम की होशियारी और उनके बहकावे में न आने तथा स्वयंसेवी स्टूडेंट्स सहित दूसरे विभागों के स्वयंसेवियों की फ़र्ज़-शेनासी सहित सड़कों पर और यूनिवर्सिटियों में नौजवानों के ज़िम्मेदाराना किरदार को दुश्मन की नाकामी का सबब बताया और कहा कि दुश्मन की साज़िश नाकाम हो गयी लेकिन सभी को यह चेतावनी दे गयी कि दुश्मन की चाल की ओर से ग़ाफ़िल नहीं रहना चाहिए।

उन्होंने अवाम को चुनावों की ओर से बद्गुमान करने को दुश्मन का मायूसी फैलाने वाला एक और हथकंडा बताया और कहा कि मैं चुनावों के बारे में बाद में बात करुंगा लेकिन इस साल के चुनाव बहुत अहम हैं और अभी से दुश्मन ने इसके बारे में बद्गुमानी फैलाने के लिए अपने तोपख़ाने को सरगर्म कर दिया है जबकि अभी चुनाव में 9 महीने का वक़्त है।

इस प्रोग्राम के आग़ाज़ में इमाम ख़ुमैनी के मज़ार के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम सैयद हसन ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब को दुनिया का सबसे ज़्यादा अवामी इंक़ेलाब बताते हुए, इस्लामी सिस्टम को, इमाम ख़ुमैनी की सबसे बड़ी विरासत क़रार दिया। उन्होंने चुनावों के ज़रिए अवाम पर भरोसे, डायनामिक ज्यूरिसप्रूडेंस के ज़रिए राजनैतिक लक्ष्य में कामयाबी और राजनैतिक स्वाधीनता के ढांचे में राष्ट्रीय सम्मान की प्राप्ति को, सिस्टम की सबसे अहम ख़ुसूसियतों में बताया।