इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीचः

बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व नबी अबिल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे ज़्यादा पाक व चुनी हुयी नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

प्रिय भाइयो व बहनो, आपका स्वागत है, ख़ास तौर पर शहीदों के मोहतरम रिश्तेदारों और इसी तरह हज के अज़ीम फ़रीज़े और हाजियों की सेवा करने वाले कार्यकर्ताओं व ज़िम्मेदारों का स्वागत करता हूं। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के मौक़े पर आप सभी मोहतरम ख़वातीन व हज़रात को ताज़ियत पेश करता हूं।

हज के मसले में सभी के लिए, हज के संबंध में भी और हज के लिए जाने वालों की सेवा के संबंध में भी एक बुनियादी उसूल, हज की अहमियत को समझना है। यह समझना कि इस्लामी सिस्टम और उन इबादतों में जो इंसान अंजाम देता है, हज क्या अहमियत रखता है, अहम है। हज की अहमियत को समझना चाहिए। कभी इंसान किसी सफ़र पर जाता है, मुमकिन है यह सफ़र ज़ियारत का हो, पर्यटन का हो, व्यापार का हो, मुमकिन है कि कभी मसला सफ़र से बढ़कर हो, वैश्विक मसला हो, अंतर्राष्ट्रीय मसला हो, इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़ सभ्यता का मसला हो, हज को इस निगाह से देखना चाहिए।

क़ुरआन में हज के बारे में अनेक आयतें मौजूद हैं, उनमें से हर एक में ख़ास प्वाइंट मौजूद हैं लेकिन दो आयतें जिनमें हज के फ़ायदे बयान किए गए हैं, मैंने नोट की हैं, जिन्हें बयान करुंगा। एक सूरए मायदा की आयत है जिसमें अल्लाह फ़रमाता हैः अल्लाह ने काबा को जो हुरमत वाला घर है, लोगों की बक़ा व कामयाबी का सबब और मरकज़ बनाया है (2) अल्लाह ने काबा को जो समाज के वजूद और मज़बूती की बुनियाद क़रार दिया है, यह बहुत अहम है। "क़ियामन लिन्नास" यानी अगर हज का वजूद न हो और हज अंजाम न पाए तो इस्लामी जगत और इस्लामी समाज का ताना बाना बिखर जाएगा। इसी वजह से वरिष्ठ धर्मगुरु कहते हैं कि कुछ मौक़ों पर हज ‘वाजिबे किफ़ाई’ हो जाता है। यानी अगर आप ने कभी देखा कि -अल्लाह वह दिन कभी न लाए- कोई हज पर जाने वाला नहीं है, दुनिया में कहीं से भी कोई हज के लिए नहीं गया तो आप पर वाजिब है कि हज के लिए जाएं, चाहे इससे पहले आप दस बार हज कर चुके हों। इस घर, इस असली व बुनियादी मरकज़ को कभी भी ख़ाली नहीं रहना चाहिए। "क़ियामन लिन्नास" यह इबारत बहुत अहम है।

दूसरी आयत सूरए हज की है: और लोगों में हज का एलान कर दो कि लोग (आपकी आवाज़ पर लब्बैक कहते हुए) आपके पास आएंगे। पैदल और हर लाग़र सवारी पर कि वह सवारियां दूर दराज़ से आई होंगी। ताकि वे अपने फ़ायदों के लिए हाज़िर हों। (3) क़ौम, इस्लामी जगत, अवाम, दुनिया के दूर दराज़ के इलाक़े से हज के लिए आएं, ताकि अपनी आंखों से अपने फ़ायदों को देखें। ताकि देखें, मुशाहेदा करें, देखें, फ़ायदों के मरकज़ में ख़ुद मौजूद हों। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि इन फ़ायदों से मुराद आख़ेरत के फ़ायदे हैं? यानी सवाब वग़ैरह? आपने फ़रमाया दोनों। आख़ेरत के फ़ायदे भी हैं और दुनिया के फ़ायदे भी हैं। हज में इस्लामी जगत के लिए ऐसे फ़ायदे हैं जो हज और इस अंतर्राष्ट्रीय मिलन के अलावा किसी दूसरे ज़रिए से हासिल नहीं हो सकते।  उन्हें सिर्फ़ इस अंतर्राष्ट्रीय मुलाक़ात की जगह के ज़रिए ही हासिल करना मुमकिन है। दुनिया के फ़ायदों में से एक, यहां पैदा हने वाली सहमति व समन्वय की वजह से इस्लामी सभ्यता का विकास है।

कुछ चीज़ें बहुत साफ़ व स्पष्ट होती हैं लेकिन इंसान की आँख से छिपी रहती हैं, उनमें से एक यही मसला है। ‘शारेअ मुक़द्दस’ अर्थात शरीअत बनाने वाले परवरदिगार ने इस्लामी जगत के हर शख़्स को संबोधित किया है: और लोगों में हज का एलान कर दोलोगों” शब्द में बहुत से प्वाइंट मौजूद हैं, जिसकी बहस में इस वक़्त नहीं पड़ना चाहता। क़ुरआने मजीद की कुछ आयतों में “लोगों” की बात की गयी है, मोमेनीन की बात नहीं है, उनमें से एक यही आयत हैः और लोगों में हज का एलान कर दो यह सभी लोगों और पूरी इंसानियत के लिए है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने पूरी मानवता को आवाज़ दी। रिवायत में है कि जब अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर वहि नाज़िल की कि लोगों को दावत दो, तो आप अबू क़ुबैस नामी पहाड़ पर गए और कहाः ‘हे लोगो’ (4) यानी बात सिर्फ़ उनकी नहीं है जो मेरे ऊपर आस्था रखते और मुझे मानते हैं, पूरी मानवता को हज की दावत दी।

पूरे इतिहास में, हर ज़माने में, जब तक यह दुनिया क़ायम है, हज़रत इब्राहीम की यह दावत मौजूद है। कुछ ख़ास दिनों में, निर्धारत व तयशुदा वक़्त पर जिसे सूरए बक़रह में ‘निर्धारित दिन’ (5) और सूरए हज में ‘मालूम दिन’ (6) कहा गया है- एक ख़ास जगह पर सभी इंसानों को अल्लाह ने बुलाया है। ज़ाहिर है कि यह दावत वही क़ुबूल करते हैं जो इस दावत पर ईमान रखते हैं, वे आते हैं और अमल करते हैं, इसलिए मोमिन बंदे हैं, इसका संबंध मुसलमानों से है। दूसरे जो इसको नहीं मानते, इस दावत का जवाब नहीं देते वो महरूम रह जाते हैं। यह बात कि दुनिया के दूर दराज़ इलाक़ों से सभी लोग एक निर्धारित दिन, निर्धारित तारीख़ में एक निर्धारित जगह पर इकट्ठा हों, यह सिर्फ़ संयोग नहीं है, यह एक तयशुदा मामला है। ज़ाहिर है कि उन्हें किसी काम के लिए दावत दी जाती है। आप ग़ौर करें कि अगर कोई कॉल दी जाए कि लोगों का फ़ुला गिरोह, या फ़ुला शहर के लोग, या पूरे मुल्क के लोग, फ़ुलां रोज़, फ़ुलां जगह और फ़ुला प्वाइंट पर इकट्ठा हों, तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि उस सभा का एक ख़ास मक़सद व लक्ष्य है। इसका मतलब यह नहीं है कि वहाँ आएं और चले जाएं, नहीं (इसका मतलब यह नहीं है) आइये ताकि एक काम हो, आइये ताकि एक मक़सद पूरा हो, हज यह है। इसकी दावत एक मक़सद के लिए दी गयी है। वह मक़सद क्या है? इस्लामी जगत का उत्थान है, यह मक़सद इस्लामी जगत के लोगों के दिल को एक दूसरे के क़रीब लाना है, यह मक़सद इस्लामी जगत के बीच एकता पैदा करना है, किस के मुक़ाबले में? कुफ़्र के मुक़ाबले में, ज़ुल्म के मुक़ाबले में, साम्राज्यवाद के मुक़ाबले में, इंसानी और ग़ैर इंसानी बुतों के मुक़ाबले में, उन सभी चीज़ों के मुक़ाबले में जिन्हें ख़त्म करने के लिए इस्लाम आया है। जमा हों ताकि उनका मुक़ाबला करें। मिसाल के तौर पर आज इस्राईल का मुद्दा है, ज़ायोनी सरकार का मुद्दा सामने है। पूरा इस्लामी जगत इकट्ठा हो और ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ इस सभा से एक पैग़ाम निकले। आज दुनिया का मसला साम्राज्यवादी ताक़तों की दख़्लअंदाज़ी है, सब इकट्ठा हों ताकि अपने मौजूद होने का एलान करें, अपनी ताक़त का एलान करें, साम्राज्यवादी ताक़तों के मुक़ाबले में सीना तान कर खड़े हों, अस्ल बात यह है। ये दुनिया के फ़ायदे हैं, अलबत्ता दुनयावी फ़ायदों को अगर हम गिनवाना चाहें तो उसके लिखने और बयान करने के लिए दसियों पेज की ज़रूरत पड़ेगी, मैंने दो जुमलों में पेश कर दिया।

आख़रेत में मिलने वाले फ़ायदों की बात की जाए तो आख़ेरत के फ़ायदे दरअस्ल दुनिया के फ़ायदों से जुड़े हुए हैं, हज का दिल पर असर पड़ता है, अल्लाह से लगाव पैदा होना, अल्लाह से संबंध की मज़बूती, अमला में ख़ुलूस पैदा होना, अल्लाह की याद से दूर करने वाली और उससे टकराने वाली हर चीज़ से दिल का पाक होना, ये हैं, ये चीज़ें होनी चाहिएं। ये अमल जो हज में हैं। ये एहराम, ये तवाफ़, ये नमाज़, ये सई और ये अरफ़ात, ये मशअर और मिना के अमल वग़ैरह इनमें हरेक, एक अलग अध्याय है, आध्यात्मिक दुनिया और ग़ैब की दुनिया का रास्ता रौशन करने वाली एक खिड़की है और आपके दिल को उस खिड़की से फ़ायदा पहुंचता है। इस तरह हज के लिए जाना चाहिए। इस तरह हज करना चाहिए।

हज के सिलसिले में एक अहम प्वाइंट, मुसलमानों की वतन से ऊपर उठकर देखने वाली नज़र है, इस ओर से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए। इस्लाम ने सभी मुसलमानों से कहा है कि उनकी नज़र सरज़मीन से आगे और भौतिकता से ऊपर होनी चाहिए। स्वाभाविक तौर पर इंसान लंबी मुद्दत और कम मुद्दत के मुद्दों और दैनिक जीवन के मामलों से रूबरू होता है, इसमें कोई शक नहीं है और इससे बचा भी नहीं जा सकता, लेकिन इसी में सीमित नहीं होना चाहिए। आपको व्यक्तिगत ज़िन्दगी, पारिवारिक ज़िन्दगी, अपने बच्चों, अपने भविष्य, अपने रोज़गार, अपने मुल्क के भविष्य और अपने मुल्क के विकास व तरक़्क़ी की फ़िक्र के साथ ही दुनिया के बारे में भी सोचना चाहिए। यह इस्लाम की शिक्षा है। एक रिवायत मैंने नोट की है जो इत्तेफ़ाक़ से इसी हज के बारे में है। यह रिवायत भी इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से है, अलबत्ता रिवायत लंबी है, यह रिवायत “वसाएल” में “हज के वाजिब होने” संबंधी चैप्टर में है।

ध्यान दीजिए, प्वाइंट यह है कि ये बातें इमाम अलैहिस्सलाम हज के वाजिब होने के बारे में बयान फ़रमाते हैं। इस रिवायत में जो चीज़ बयान की गयी हैं उनमें से एक यह है कि आप फ़रमाते हैं कि अगर हर क़ौम सिर्फ़ अपने बारे में, अपने मुल्क के मुद्दों के बारे में और अपने शहर के मुद्दों के बारे में सोचे, सिर्फ़ उन्हीं पर केन्द्रित रहे और उन्हीं को अहमियत दे, तो "सब हलाक हो जाएंगे" ख़त्म हो जाएंगे। अगर तुम यह न जानो कि दुनिया में क्या हो रहा है, तो कमज़ोर हो जाओगे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के अल्फ़ाज़ हैं "सब हलाक हो जाएंगे और बस्तियां उजड़ जाएंगी" यही तुम्हारा मुल्क, तुम्हारा पसंदीदा इलाक़ा तबाह हो जाएगा, ख़राब हो जाएगा। "और मुनाफ़ा और फ़ायदा ख़त्म हो जाएगा" -"जलब" शब्द का मतलब आमदनी- तुम्हारी राष्ट्रीय आय भी कम हो जाएगी। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि दुनिया में क्या हो रहा है। "और ख़बरें अंधेरे में रह जाएंगी" (7) दुनिया से बेख़बर रह जाओगे। दुनिया पर नज़र डालो और देखो कि दुनिया में क्या हो रहा है।

यह जो हम दुश्मन को पहचानने के विषय का बार बार ज़िक्र करते हैं, यह जो हम कहते हैं कि दुश्मन को पहचानिए, दुश्मन की शैली को पहचानिए, दुश्मन के काम को पहचानिए, दुश्मन की तरक़्क़ी की सतह को जानिए, दुश्मन की कमज़ोरी को जानिए, दुश्मन की ताक़त को जानिए, तो यह संबोधन सिर्फ़ अधिकारियों से नहीं है बल्कि आम लोग से भी है। जिस मुल्क के नौजवान, बड़ी उम्र के लोग, पढ़े लिखे लोग, पढ़ने वाले, रोज़गार चलाने वाले, सभी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान रखते हैं, वह मुल्क कभी धोखा नहीं खा सकता। बहुत से वैश्विक मामलों में हमें इस वजह से धोखा हुआ कि वैश्विक मुद्दों की ओर हमारा ध्यान नहीं था। हमारा प्रतिद्वंद्वी किस नीयत से मैदान में उतरा है, किस नीयत से हम ये बातें कर रहे हैं, वह फ़ुलां मसले पर आग्रह कर रहा है तो उसकी मुश्किल क्या है, हम कितने ज़रूरतमंद हैं, वह कितना ज़रूरतमंद है। इन बातों को हमें जानना चाहिए। अगर यह हमें मालूम हो तो हमें धोखा नहीं होगा। जहाँ हमें इन बातों का इल्म रहा और अपनी मालूमात के मुताबिक़ हमने अमल किया, हम आगे बढ़े। हमने उस वक़्त वैश्विक, अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीच सतह पर अच्छी कामयाबी हासिल की। जिस बात से अमरीकियों को बहुत ज़्यादा आक्रोश है वह हमारी तरक़्क़ी है। यह तरक़्क़ी इसलिए हासिल हुयी कि जो उन कामों के ज़िम्मेदार थे वे होशियार थे, समझते थे कि दुनिया में क्या हो रहा है। हज वह बुनियादी प्वाइंट है कि जहाँ आप इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

हज में यूरोप से आते हैं, अफ़्रीक़ा से आते हैं, पूरे एशिया से आते हैं, फ़ुलां राजनैतिक रुझान रखने वाले मुल्कों से आते हैं, दूसरे राजनैतिक रुझान रखने वाले मुल्कों से आते हैं, हर तरह के लोग आते हैं। वहाँ आपके पास दुनिया भर के मुद्दों की जानकारी का मौक़ा है। किसी झूठे अख़बार और झूठी न्यूज़ एजेंसी के ज़रिए जो पूरी दुनिया में झूठ फैलाती है, झूठी अफ़वाहें फैलाती है और फ़ैक्ट्स को उलटा बयान करती है, ख़बर हासिल करने और गुमराह होने से आप बच जाते हैं, आप नज़दीक से उन बातों को समझते हैं, हज यह है। हज को इस नज़र से देखना चाहिए।

हज का एक अहम प्वाइंट यह है कि यह अमली तौर पर दिखा देता है कि दुनिया में, मुख़्तलिफ़ मुल्कों में जो अलग अलग तरह के भेदभाव पाए जाते हैं, इस्लाम उस भेदभाव को क़ुबूल नहीं करता। नस्ली भेदभाव, इलाक़ाई भेदभाव, तबकों के बीच भेदभाव, इन्हें क़ुबूल नहीं करता, यह बहुत अहम प्वाइंट है। आज वह मुल्क जो सिविलाइज़्ड होने का दावा करते हैं, मेरी नज़र में, तहज़ीब से दूर का भी उनका नाता नहीं रहा है- ये मुल्क जो ख़ुद को तहज़ीब याफ़्ता समझते हैं और बाक़ी दुनिया को बर्बर, वो काले गोरे के मुद्दे में फंसे हुए हैं, यूरोपीय और ग़ैर यूरोपीय नस्ल के मुद्दे में फंसे हुए हैं, पलायनकर्ता के मुद्दे में फंसे हुए हैं, हज़ारों पलायनकर्ता समंदर में डूब जाएं, उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगेगी, उन्हें अहमियत नहीं देते, उन्हें इंसान ही नहीं समझते हैं, उन्हें इस लायक़ नहीं समझते कि उन पर ध्यान दें। अपने पालतू जानवर को उस अजनबी इंसान से ज़्यादा अहमियत देते हैं जो उनके पड़ोस में रहता है। ये घटनाएं जिन्हें इंसान दुनिया में हर रोज़ देखता है, उनमें फंसे हुए हैं, इन मुद्दों को हल नहीं कर सके। इस्लाम ने हल कर दिया, वह भी सिर्फ़ ज़बानी नहीं, जहां तक बयान करने की बात है तो क़ुरआन फ़रमाता हैः "इन्नमल मोमेनूना इख़्वा" (8) मोमिन आपसे में भाई भाई हैं और इसी तरह दूसरी आयतें, रिवायतें और इस्लाम की महान हस्तियों के कथनों में, ये बातें भरी पड़ी हैं, जबकि अमल की बात की जाए तो भेदभाव को ख़त्म करने की इस्लाम की ज़बान दरअस्ल अमल की ज़बान है, कहाँ? हज में।  काले हैं, गोरे हैं, दुनिया के फ़ुलां क्षेत्र से आए हैं, फ़ुलां तहज़ीब के हैं, फ़ुलां तारीख़ के हैं, सब एक साथ बिना किसी भेदभाव के, एक साथ हैं, कोई भेदभाव नहीं है, एक साथ चलते हैं, एक साथ तवाफ़ करते हैं, एक साथ "सई" करते हैं, एक साथ "वुक़ूफ़" करते हैं, ये बातें बहुत अहम हैं। ये हज के राज़ हैं, इन्हें मारेफ़त के साथ अंजाम देना चाहिए।

मैं जो ये बातें अर्ज़ कर रहा हूं -बार बार इन मुद्दों को बयान कर चुका हूं- मेरी ताकीद यह है कि हज के मामलों के ज़िम्मेदार लोग इस सिलसिले में काम करें, ऐसा काम करें कि जैसे ही हज का नाम आए, काबे का नाम आए, हमारे आज के नौजवानों के मन में ये बातें आ जाएं। उनके दिमाग़ में, उस संस्कृति व सभ्यता, उस वैश्विक एकता, सरहदों के पार और अंतर्राष्ट्रीय नज़र और भेदभाव ख़त्म करने का अर्थ सामने आ जाए। इसको रिवाज देने और आम करने के लिए काम होना चाहिए, ये हज के मामलों के ज़िम्मेदारों और हज में हमारे प्रतिनिधि कार्यालय के सदस्यों, दोनों की ज़िम्मेदारी है, सबको, जिसमें भी सलाहियत है, इसको हज के सिलसिले में इस संस्कृति को रवाज देने के लिए काम करना चाहिए। ऐसा काम करें कि लोग हज को इस नीयत से अदा करें। अगर हम इस संस्कृति को लोगों के मन में बिठा सके तो फिर हमें इस बात की फ़िक्र नहीं होगी कि हमारी कोई बहन या भाई हज के मौक़े पर बाज़ारों में घूमता है ताकि लोगों को तोहफ़ा देने के लिए वहाँ से घटिया सामान ख़रीदे। इस वक़्त यह सोच है, यह परेशानी है लेकिन अगर वह संस्कृति रवाज पा जाए तो फिर यह सोच नहीं रहेगी।  

हमारे महान नेता इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने जो ताकीद की है, मैंने भी वह ताकीद की है कि मस्जिदुल हराम में- अहले सुन्नत की नमाज़ों में- शरीक हों, यह इसीलिए है वरना, वहाँ मस्जिदुल हराम में दसियों लाख लोग इकट्ठा होते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं, आप अपने होटल में पचास लोगों के साथ नमाज़ पढ़ते हैं। यह नहीं होना चाहिए। सभाओं में शिरकत करें, बोलें, बात करें, संपर्क क़ायम करें। जी हाँ इन बातों की मुख़ालेफ़त है, जानता हूं, रोक है, लेकिन जो रोकता है, वह भी एक इंसान है और आप भी एक इंसान हैं, आप बोल सकते हैं, ये फ़ायदे हासिल करें। आध्यात्मिक फ़ायदे ये दुआएं और मुनाजात हैं। जहाँ तक हो सके दुआएं करें। जहाँ तक हो सके (अल्लाह के सामने) रोएं गिड़गिड़ाएं, मस्जिदुल हराम और मदीना में, वे अमल जो अल्लाह को पसंद हैं, उन आमाल को बार बार अंजाम दें, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाएं, अल्लाह हमें अपनी मोहब्बत अता कर और उसकी मोहब्बत अता कर जो तुझसे मोहब्बत करता है और हर उस कर्म की मोहब्बत अता कर जो मुझको तेरे क़रीब कर दे। (9) जो कर्म हमें अल्लाह के निकट करते हैं, जैसे यही रोना गिड़गिड़ाना, यही ध्यान और दुआएं जो बयान की गयी हैं। या वे दुआएं जो वहाँ से मख़सूस नहीं हैं (जैसे) दुआए कुमैल, एक साथ मिल कर दुआए कुमैल पढ़ना बहुत अच्छा है, हमारे ज़िम्मेदार लोग इस बारे में उस मुल्क के ज़िम्मेदारों से बात करें, उनके साथ इस काम के संबंध में सहमति हासिल करें ताकि यह काम हो सके, यह इस मामले का सार्थक भाग, यानी अल्लाह की निकटता का पहलू है, दूसरी ओर मुशरिकों से बेज़ारी के एलान का पहलू भी है। ये अहम अमल जो अब तक जारी है इसको आगे भी जारी रहना चाहिए।

इस्लामी गणराज्य ईरान का क़ाबिले फ़ख़्र एक कारनामा यह है कि उसने गुंजाइशें पहचनवाईं, मैं यह नहीं कहता कि पूरी तरह पहचनवाया। पूरी तरह नहीं पहचनवाया। लेकिन लोगों को इन गुंजाइशों से आगाह किया। इंक़ेलाब से पहले ये बातें नहीं होती थीं, न लोगों का ध्यान इन बातों की ओर था और न ही हम लोग जिनके सरों पर अमामा था, लोगों में इन बातों को बयान करते थे, हमारा भी ध्यान इन बातों की ओर नहीं था। यह हमें इंक़ेलाब ने दिया है। ये बातें हमें इंक़ेलाबी आंदोलन ने दी हैं, हज की ये बड़ी गुंजाइशें और मौक़े हमें दिखाए। हमें चाहिए कि लोगों को ये गुंजाइशें और मौक़े दिखाएं और फिर उन पर अमल करने की कोशिश करें।

अल्लाह आपको कामयाबी अता करे इंशा अल्लाह। आपका हज क़ुबूल हो, इंशाअल्लाह पूरी दुनिया से हज के लिए आने वालों का हज ख़ुदा क़ुबूल फ़रमाए, उन्हें तौफ़ीक़ अता करे, इज़्ज़त व सम्मान अता फ़रमाए और हज़रत इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की पाकीज़ा रूह और शहीदों की रूह को हमसे ख़ुश व राज़ी कर दे।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

1 इस सभा में पहले (हज व ज़ियारत के मामलों में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के प्रतिनिधि) हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन सैयद अब्दुल फ़त्ताह नव्वाब ने रिपोर्ट पेश की।

2 सूरए मायदा, आयत-97

3 सूरए हज, आयत-27, 28, और लोगों में हज का एलान कर दो कि लोग (आपकी आवाज़ पर लब्बैक कहते हुए) आपके पास आएंगे। पैदल और हर लाग़र सवारी पर कि वह सवारियां दूर दराज़ से आई होंगी। ताकि वे अपने फ़ायदों के लिए हाज़िर हों।

4 काफ़ी, जिल्द 4, पेज-203

5 सूरए बक़रह, आयत-203 का हिस्सा

6 सूरए हज, आयत 28 का हिस्सा

7  वसाएलुश-शिया, जिल्द-11, पेज-14

8  सूरए हुजोरात, आयत-10, बेशक अहले इस्लाम व ईमान आपस में भाई भाई हैं...

9 बेहारुल अनवार, जिल्द-91, पेज 149 (थोड़े फ़र्क़ के साथ)