फ़ैमिली को औरत संभालती है। इस्लाम की ओर से औरत को इतनी अहमियत दिए जाने की वजह भी यही है कि अगर औरत फ़ैमिली के लिए समर्पित हो, लगाव रखे, अपने बच्चों की देखभाल करे, उन्हें दूध पिलाए, अपनी आग़ोश में उनकी परवरिश करे, उनके लिए कल्चरल ख़ुराक के तौर पर-क़िस्से, अहकाम, क़ुरआनी कहानियां, सबक़ लेने वाले वाक़ए- मुहैया करे और यह सब हर मौक़े पर अपने बच्चों की जिस्मानी ग़ेज़ा की तरह दे तो उस समाज की नस्लें तरक़्क़ी करेंगी और सही रास्त पर चलेंगी। यह औरत का हुनर है और इसका पढ़ने, पढ़ाने, काम करने, तथा राजनीति में आने और इन जैसी चीज़ों से कोई टकराव भी नहीं है।

इमाम ख़ामेनेई

10-3-1997