विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के मसले के संबंध में अहम बिंदुओं पर प्रकाश डाला। 27 रमज़ान 1443 हिजरी क़मरी बराबर 29 अप्रैल 2022 को आयतुल्लाह ख़ामेनेई की यह तक़रीर टीवी चैनलों से लाइव प्रसारित की गई।
तक़रीर का अनुवादः
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें उस अल्लाह के लिए हैं जो कायनात का परवरदिगार है। दुरूद व सलाम हो मख़लूक़ात के आक़ा और दुनिया की सबसे महान हस्ती मुहम्मद मुस्तफ़ा पर जो आख़िरी रसूल हैं और उनके पाकीज़ा परिजनों, चुने हुए साथियों और क़यामत तक सही रूप में उनकी पैरवी करने वालों पर।
पूरी दुनिया के मुस्लिम भाईयों और बहनों को सलाम! इस्लामी दुनिया के सभी नौजवानों को सलाम! सलाम हो, फ़िलिस्तीन के बहादुर और ग़ैरतमंद नौजवानों पर! सलाम हो फ़िलिस्तीन के अवाम पर!
एक बार फिर क़ुद्स दिवस आ गया। बैतुल मुक़द्दस, सभी मुसलमानों को बुला रहा है। सच्चाई तो यह है कि जब तक बैतुल मुक़द्दस पर ज़ालिम ज़ायोनियों का क़ब्ज़ा है, साल के हर दिन को क़ुद्स दिवस समझना चाहिए। बैतुल मुक़द्दस, फ़िलिस्तीन का दिल है और (मेडिटेरेनियन) सागर से लेकर (जार्डन) नदी तक पूरा फ़िलिस्तीन बैतुल मुक़द्दस का ही सिलसिला है। फ़िलिस्तीन की जनता ने हर दिन पहले से ज़्यादा स्पष्ट रूप से यह साबित किया है कि वह बेमिसाल बहादुरी के साथ, ज़ालेमाना क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ खड़ी है और खड़ी रहेगी। फ़िलिस्तीनी नौजवान, अपनी क़ुरबानियों के ज़रिए, फ़िलिस्तीन की ढाल बन गये और यह एक अलग तरह के भविष्य का शुभ संकेत है।
इस साल का क़ुद्स दिवस हम ऐसी हालत में मना रहे हैं कि जब सारी चीज़ें, फ़िलिस्तीन के आज और कल के बारे में नये हालात की ख़बर दे रही हैं। आज “ना क़ाबिले शिकस्त इरादा” फ़िलिस्तीन और वेस्ट एशिया के हर इलाक़े में, ज़ायोनियों की “अजेय फ़ौज” की जगह ले चुका है। आज वह मुजरिम फ़ौज, हमले की जगह, बचाव की पोज़ीशन लेने पर मजबूर हो गयी है। आज सियासी मैदान में ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी हुकूमत का सब से बड़ा हिमायती, यानि अमरीका, ख़ुद ही बार-बार हार का मुंह देख रहा हैः अफ़गानिस्तान की जंग में हार, इस्लामी जुम्हूरिया ईरान पर अधिकतम दबाव डालने में नाकामी, एशिया की ताक़तों के सामने हार, दुनिया की इकोनॉमी पर कंट्रोल की कोशिश में नाकामी, अपने मुल्क के अंदरूनी हालात को संभालने में नाकामी और अमरीका के हुकूमती सिस्टम में गहरी खाईं, यह सब अमरीका की शिकस्तें हैं।
ज़ायोनी हुकूमत सियासी और फ़ौजी दोनों मैदानों में, एक दूसरे से जुड़ी मुश्किलों के जाल में फंसी हाथ पैर मार रही है। हुकूमत संभालने वाला पिछला जल्लाद और ज़ालिम, सैफ़ुलक़ुद्स आप्रेशन के बाद कूड़ेदान में जा चुका है और उसकी जगह पर आने वाले ओहदेदार भी हर वक़्त किसी नए आप्रेशन की तलवार के डर में जी रहे हैं।
जेनीन में होने वाली कार्यवाहियों ने ज़ायोनी हुकूमत को पागल कर दिया है। हालांकि 20 बरस पहले, नहारिया में कुछ ज़ायोनियों के क़त्ल के जवाब में इस ग़ैर क़ानूनी हुकूमत ने जेनीन कैंप में 200 लोगों को मार डाला था ताकि हमेशा के लिए जेनीन का मसला हल हो जाए।
सर्वे रिपोर्टों से पता चलता है कि सन 1948 और सन 1967 में जिन इलाक़ों पर ज़ायोनी हुकूमत ने गैर क़ानूनी क़ब्ज़ा किया था वहां के लगभग 70 फ़ीसद फ़िलिस्तीनी और इसी तरह बाहर के कैंपों में रहने वाले फ़िलिस्तीनी अवाम लीडरों को ज़ायोनी हुकूमत पर हमले के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। यह बहुत अहम बात है क्योंकि इसका मतलब यह है कि फ़िलिस्तीनी, ग़ैर क़ानूनी हुकूमत का मुक़ाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और इससे फ़िलिस्तीनियों के जेहादी गुटों को यह आज़ादी मिलती है कि जब वह चाहें, कार्यवाही शुरु कर दें।
सन 1948 में ग़ैर क़ानूनी तौर पर क़ब्ज़ा किये गये इलाक़ों के उत्तरी और दक्षिणी दोनों हिस्सों में फ़िलिस्तीन के जेहादी आंदोलनों की तरफ़ से की जाने वाली कार्यवाहियों और उसके साथ ही जार्डन और ईस्ट बैतुल मुक़द्दस में रैलियों, फ़िलिस्तीनी नौजवानों की तरफ़ से मस्जिदुल अक़्सा की बहादुरी के साथ हिफ़ाज़त और ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़ौजी मश्क़ों से यह साबित हो गया कि पूरा फ़िलिस्तीन, ज़ायोनी हुकूमत से संघर्ष का मैदान बन चुका है। अब फ़िलिस्तीन के लोग जेहाद जारी रखने पर एकमत रखते हैं।
यह सब और हालिया बरसों में जो कुछ फ़िलिस्तीन में हुआ है, वह दर अस्ल, ज़ायोनी दुश्मन के साथ समझौते की हर साज़िश को नाकाम बना देता है। क्योंकि फ़िलिस्तीन के बारे में कोई भी मंसूबा उसके अस्ली मालिकों यानि फ़िलिस्तीनियों की ग़ैर मौजूदगी में या उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ, कामयाब नहीं हो पाएगा। जिसका मतलब यह है कि ओस्लो जैसा समझौता, अरबों का टू स्टेट प्रपोज़ल या फिर सेंचुरी डील या ज़ायोनियों से किए जाने वाले संबंध बहाली के अपमानजनक समझौते, जैसे पहले के सारे समझौते और काम, बेकार हो चुके हैं।
ज़ायोनी हुकूमत की अब सांसें टूट रही हैं लेकिन ज़ुल्म जारी रखे हुए है और मज़लूमों पर अपने हथियारों के साथ टूट पड़ी है। औरतें, बच्चे, बूढ़े, जवान और निहत्थों को क़त्ल कर रही है, जेल में डाल रही है, टार्चर कर रही है, उनके घरों को तबाह कर रही है, फ़िलिस्तीनियों के खेतों और संपत्तियों को तबाह कर रही है। युक्रेन के मामले में आसमान सर पे उठा लेने वाले युरोप और अमरीका में ह्यूमन राइट्स की हिफ़ाज़त के झूठे दावेदारों ने, फ़िलिस्तीन में इतने ज़ुल्म व सितम पर अपने होंठ सी लिए हैं और न सिर्फ़ यह कि मज़लूमों का साथ नहीं दे रहे हैं बल्कि ख़ूंख़ार भेड़िये की मदद भी कर रहे हैं।
यह बहुत बड़ा सबक़ है। इस्लामी दुनिया के प्रमुख मुद्दों और उनमें सबसे महत्वपूर्ण फ़िलिस्तीन के मसले में, इन नस्लपरस्त और दुश्मन ताक़तों पर हरगिज़ भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ़ इस्लाम व क़ुरआन के उसूलों की बुनियाद पर किये जाने वाले संघर्ष से इस्लामी दुनिया के मसलों को हल किया जा सकता है जिनमें सब से बड़ा मामला फ़िलिस्तीन का है।
हालिया बरसों में पश्चिमी एशिया में रेज़िस्टेंस के फ़्रंट का गठन इस इलाक़े की बड़ी बरकतों वाली तबदीली है। इसी मोर्चे ने लेबनान के एक इलाक़े को ज़ायोनियों से साफ़ कर दिया, इराक़ को अमरीका के जबड़ों से निकाल लिया, इराक़ को दाइश से बचा लिया और अमरीकी साज़िशों के मुक़ाबले में सीरिया के जियालों की मदद की। रेज़िस्टेंस का फ़्रंट, इंटरनैश्नल टेररिज़्म के ख़िलाफ लड़ता है, यमन के लोगों की उस जंग में मदद करता है जो उन पर थोप दी गयी है, फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी लुटेरों से लोहा लेता है और ख़ुदा की मदद से उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर देता है और अपनी भरपूर कोशिशों से बैतुल मुक़द्दस और फ़िलिस्तीन के मसले को पूरी दुनिया में हर दिन पहले से ज़्यादा स्पष्ट रूप में पेश कर रहा है।
आप वेस्ट बैंक और 1948 में क़ब्ज़ा किये गये इलाक़ों के रहने वाले फ़िलिस्तीनियो! आप जेनीन के कैंपों में लड़ने वाले मुजाहिदो! और आप फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीन से बाहर के कैंपों में रहने वालो! आप सब रेज़िस्टेंस फ्रंट और ज़ायोनियों से मुक़ाबले के मोर्चे के अहम और अग्रिणी भाग हैं। यह जान लीजिए कि “अल्लाह ईमान लाने वालों की हिफ़ाज़त करता है।“ और “अगर तुम सब्र करोगे तो वह सब्र करने वालों के लिए बहुत अच्छा है।“ और “अगर तुम लोग सब्र करो, और अल्लाह से डरो तो यह बहुत बड़ी बात है” और “आप लोगों पर आप के सब्र की वजह से सलाम हो, तो आख़ेरत बहुत अच्छा ठिकाना है।“
इस्लामी जुम्हूरिया ईरान रेज़िस्टेंस फ़्रंट का हिमायती और मददगार है। फ़िलिस्तीन के जेहाद का समर्थक और तरफ़दार है। हमने यह हमेशा कहा है और उस पर अमल भी किया है और अपने इस रुख़ पर हम डटे हुए हैं। हम ज़ायोनी हुकूमत से रिश्ते क़ायम करने की ग़द्दारी की आलोचना करते हैं। इस ज़ालिम हुकूमत से तअल्लुक़ात क़ायम करने की सोच को ग़लत समझते हैं। यह जो कुछ अरब मुल्कों ने अमरीका से कहा है कि वह फ़िलिस्तीन का मासला हल करने में जल्दी करे, तो अगर उनका मतलब यह है कि अमरीका, इलाक़े से बाहर निकलने से पहले, ज़ायोनी हुकूमत की मज़बूती की राह में आने वाली हर रुकावट को दूर कर दे तो पहली बात तो यह कि यह ग़द्दारी और अरब दुनिया के लिए शर्मनाक कलंक है और दूसरी बात यह कि उन्होंने बेवक़ूफ़ी की है क्योंकि एक अंधा दूसरे अंधे को रास्ता नहीं दिखा सकता।
आख़िर में मैं शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों को सलाम करता हूं, सब्र करने वाले उनके परिवारों को सलाम करता हूं और उन फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को सलाम करता हूं जो मज़बूत इरादे के साथ डटे हुए हैं। फ़िलिस्तीनी ग्रुपों का गर्मजोशी से स्वागत करता हूं जिनके कंधों पर इस ज़िम्मेदारी का बड़ा हिस्सा है और इस्लामी दुनिया ख़ास तौर पर नौजवानों को इज़्ज़त व वेक़ार के इस मैदान में उतरने की दावत देता हूं।
सैयद अली ख़ामेनई