आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एक आदेशपत्र के माध्यम से सांस्कृतिक क्रांति की उच्च परिषद के नए सदस्यों को नए चरण और चार साल के लिए नियुक्त करते हुए पिछले सदस्यों विशेष कर उन वैज्ञानिकों व बुद्धिजीवियों का शुक्रिया अदा किया है जो नए चरण में इस परिषद में नहीं रहेंगे। इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने क्रांतिकारी अनुशासन और मूल्यों के आधार पर संस्कृति का ढांचा तैयार किए जाने को, देश की संस्कृति को दुश्मनों के सांस्कृतिक हमलों और मीडिया वॉर से बचाव का एकमात्र माध्यम क़रार दिया।

सुप्रीम लीडर के आदेशपत्र का अनुवाद इस प्रकार हैः

बिस्मिल्लाह- अर्रहमान- अर्रहीम

इस्लामी क्रांति का दूसरे चालीस वर्षीय दौर में प्रवेश, जो नई हिजरी शमसी सदी (15वीं सदी) के आरंभ के साथ हुआ है, इस बात को ज़रूरी बनाता है कि सभ्यता के इन्फ़्रास्टकचर की कमियों व कमज़ोरियों को समझने और इस ढांचे के नवीनीकरण के लिए नए सिरे से जायज़ा लिया जाए। इस समूह में सबसे ऊपर संस्कृति का विषय है। संस्कृति, इंसानी समाजों के सभी बुनियादी क़दमों को दिशा देने वाला और उन्हें गति प्रदान करने या उनकी रफ़्तार को रोकने वाला तत्व है।

इस शैली के लिए मौजूदा समय में ज़रूरी है कि सांस्कृतिक मामलों के अधिकारियों, देश के विभिन्न विभागों के ज़िम्मेदारों और विशेषज्ञों के अंदर कल्चर के बारे में ज़िम्मेदारी का एहसास बढ़े और यह गहरा विश्वास पैदा हो कि समाज के सभी क्षेत्रों का संस्कृतिकरण, प्रगति व कामयाबी का सबसे अच्छा साधन है जो आदेशात्मक व बाध्यकारी माध्यमों के इस्तेमाल की ज़रूरत ख़त्म कर  देता है। 

इसी तरह यह कार्यशैली इस अहम बिंदु को भी ज़रूरी बनाती है कि सभ्यता के सभी व्यापक मैदानों का ढांचा और उसकी सजावट, क्रांतिकारी अनुशासन और मान्यताओं से सुसज्जित हो। यह दुष्ट दुश्मनों के सोचे-समझे सांस्कृतिक हमले और मीडिया वॉर से देश की सार्वजनिक संस्कृति को बचाने का एकमात्र रास्ता है।

सांस्कृतिक क्रांति की उच्च परिषद का मिशन शुरू से ही देश में ज्ञान व संस्कृति की स्थिति को बेहतर बनाना, इन दोनों मैदानों में नीतियों का निर्धारण करना, इनसे संबंधित संस्थाओं का क्रांति के लक्ष्यों व मान्यताओं की तरफ़ मार्गदर्शन करना, इन संस्थाओं की वैचारिक ज़रूरतों को पूरा करना और देश के भीतर सांस्कृतिक छावनी की भूमिका निभाना रहा है।

उच्च परिषद ने इन मैदानों में मूल्यवान सेवाएं की हैं और मैं ज़रूरी समझता हूं कि विभिन्न चरणों में अपनी भूमिका निभाने वाले सभी सदस्यों ख़ास करके उन बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों व शिक्षकों की कोशिशों का दिल से शुक्रिया अदा करूं और उनसे परामर्श लेने का सिलसिला जारी रहने का निवेदन करूं जो नए चरण में इस परिषद में मौजूद नहीं रहेंगे।

अब मैं नए चरण के लिए, जो इस पत्र के मिलने के साथ ही शुरू हो जाएगा, नीचे दर्ज “लीगल व रियल पर्सन” को सांस्कृतिक क्रांति की उच्च परिषद की चार वर्षीय सदस्यता के लिए नियुक्त करता हूं।

लीगल पर्सनः इस समय कार्य, विधि व न्याय पालिका के तीनों प्रमुख और वे संस्थाएं जो अब तक उच्च परिषद की सदस्य रही हैं।

रियल पर्सनः जनाब आराफ़ी साहब, जनाब ईमान इफ़्तेख़ारी साहब, जनाब अमीर हुसैन बांकीपुर फ़र्द साहब, जनाब हमीद पारसा निया साहब, जनाब आदिल पैग़ामी साहब, जनाब ग़ुलाम अली हद्दाद आदिल साहब, जनाब हसन रहीमपुर अज़ग़दी साहब, जनाब अली अकबर रशाद साहब, जनाब हुसैन साअती साहब, जनाब इब्राहीम सूज़नची साहब, जनाब सईद रज़ा आमेली साहब, जनाब मंसूर कबकानियान साहब, जनाब अली लारीजानी साहब, जनाब महमूद मुहम्मदी इराक़ी साहब, जनाब मुहम्मद रज़ा मुख़बिर देज़फ़ुली साहब, जनाब मुर्तज़ा मीर बाक़ेरी साहब, जनाब सादिक़ वाएज़ ज़ादे साहब, जनाब अहमद वाएज़ी साहब।

अहम बिंदु, इस पत्र से संलग्न हैं जो सम्मानीय सदस्यों की नज़रों से गुज़रेंगे। सभी के लिए अल्लाह से तौफ़ीक़ की दुआ करता हूं।

सैयद अली ख़ामेनेई

14 नवम्बर 2021