इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने इस मुलाक़ात में पैग़म्बरे इस्लाम की पैदाइश की मुबारकबाद दी और इस शुभ जन्म दिन को पूरी इंसानियत की ज़िन्दगी में नए दौर का आग़ाज़ बताया। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के दर्जे को वजूद की नज़र से पूरी सृष्टि में बेमिसाल बताया। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पैग़म्बरे इस्लाम के दिल पर क़ुरआन उतरने की ओर इशारा करते हुए कहाः “अल्लाह ने अपनी छिपी हुयी किताब को पैग़म्बरे इस्लाम के पाक दिल में उतारा, उनकी पाक ज़बान पर उसे जारी किया, इंसानियत की कामयाबी का पूरा प्रोग्राम उनके हवाले किया और उन्हें हुक्म दिया कि वह इस प्रोग्राम पर ख़ुद भी अमल करें और अपने मानने वालों से भी अमल करने के लिए कहें।”

 

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने यह सवाल उठाते हुए कि मुसलमानों और मोमिनों की पैग़म्बरे इस्लाम के संबंध में क्या ज़िम्मेदारिया हैं? दो बिन्दुओं का ज़िक्र किया। “एक इस्लाम की व्यापकता (सर्वसमावेश) या सबको अपने दायरे में शामिल करने के हक़ को अदा करना और दूसरे मुसलमानों के बीच एकता का मामला है।”

 

उन्होंने इस बिन्दु की तरफ़ इशारा करते हुए कि भौतिकवादी और राजनैतिक ताक़तें इस्लाम को इंसान के निजी कर्म और आस्था तक सीमित करना चाहती हैं और इसे ही थ्योरी के तौर पर पेश करना चाहती हैं, इन ताक़तों की इस्लाम के ख़िलाफ़ सरगर्मियों को इस तरह  बयान किया: “सामाजिक संबंध और ज़िन्दगी के अहम पहलुओं से इस्लाम को दूर रखा जाए। इस सोच की नज़र से जो भीतर से राजनैतिक और ज़ाहिर में वैचारिक है, समाज को चलाने और सभ्यता बनाने में इस्लाम का कोई रोल रहीं है, ज़िम्मेदारी नहीं है, उसके पास कोई साधन नहीं है।”

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई इस आग्रह का कारण दुनिया की बड़ी राजनैतिक ताक़तों की इस्लाम विरोधी गतिविधियों को बताया और कहा कि इस्लाम की मूल शिक्षा में इस विचार को साफ़ तौर पर रद् किया गया है। उन्होंने इस्लाम की व्यापकता के हक़ को अदा करने की व्याख्या में कहाः “हमें कोशिश करना चाहिए कि अपने बारे में ज़िन्दगी के किस पहलू को उसने अहमियत दी है, उसके बारे में क्या नज़रिया है, उसे इस्लाम की नज़र से बयान करना चाहिए।...इस्लाम जो बात पेश करना चाहता है वह यह है कि उसका दायरा इंसान की ज़िन्दगी की सभी पहलु को अपने भीतर समेटे हुए है। मन की गहराइयों से सामाजिक जीवन तक, राजनैतिक मामलों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मामलों तक, यहां तक कि पूरी मानवता से जुड़े मामलों तक उसका संबंध है।”

 

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने इस बिन्दु को बयान करते हुए कि इस्लाम के पास इंसान के सामाजिक जीवन के सभी अहम पहलुओं का हल है कहाः “जो क़ुरआन को मानता है, उसकी बातों और हुक्म को जानता है वह यह बात समझता है कि क़ुरआन जिस इस्लाम को पहचनवाना चाहता है, वह यह है।”

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इमाम के मतलब को इस्लामी समाज के लीडर के तौर पर बयान करते हुए, मुसलमानों पर ज़ोर दिया कि वह इस्लामी शासन व्यवस्था के मामले की समीक्षा करें और उसे बयान करें।

 

उन्होंने दूसरे बिन्दु यानी एकता के मामले में इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की कोशिशों का ज़िक्र करते हुए, उन्हें इस्लामी एकता के मैदान की अहम शख़्सियतों में बताया और उनकी सराहना की। इस्लामी क्रांति के सप्रीम लीडर ने आगे कहाः “मुसलमानों के बीच एकता क़ुरआन की तरफ़ से तय शुदा फ़रीज़ा है...हम इसे क्यों सिर्फ़ नैतिक नज़र से देखते हैं? यह हुक्म है, आदेश है।”

 

सुप्रीम लीडर ने कहा कि मुसलमानों के बीच एकता सैद्धांतिक मामला है न कि टैक्टिक और इस बात की पुष्टि में उन्होंने कहाः “मुसलमानों के बीच सहयोग ज़रूरी है, अगर मुसलमान एकजुट हों, एक दूसरे के साथ सहयोग करें, सभी ताक़तवर होंगे। यहां तक कि जो लोग ग़ैर मुसलमानों के साथ इंटरऐक्शन करना चाहते हैं, इसमें रुकावट नहीं है, वह भरे हाथों से इंटरऐक्शन कर सकते हैं जब आपस में एक दूसरे के साथ सहयोग हो।”

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस्लामी गणतंत्र ईरान की तरफ़ से एकता पर ताकीद किए जाने की वजह, मुसलमानों के बीच आपस में एक दूसरे से दूरी और दुश्मन की उनके बीच मतभेद को हवा दोने की पूरी प्लानिंग के साथ साज़िश को बताया। उन्होंने इस बात का ज़िक्र करते हुए कि अमरीका के राजनैतिक साहित्य में शिया-सुन्नी शब्द का चलन हो गया है, कहा, “इसी वजह से हम ताकीद करते हैं और आपको नज़र भी आता होगा कि अमरीका के एजेंट इस्लामी दुनिया में जहाँ चाहें फ़ित्ना पैदा कर सकते हैं।”

 

उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के शियों के ख़िलाफ़ अपराधों की तरफ़ इशारा करते हुए कहाः “इसकी ताज़ा मिसाल पिछले दो जुमों में अफ़ग़ानिस्तान में दुखदायी व रुलाने वाली घटनाएं हैं जिसमें मस्जिद, लोगों और मुसलमानों को नमाज़ की हालत में धमाके के उड़ा दिया। यह कौन धमाका कर रहा है? दाइश। दाइश कौन है? दाइश वह गुट है कि जिसके बारे में अमरीकियों, डेमोक्रेट्स के गुट ने साफ़ तौर पर कहा है कि हमने इसे वजूद दिया, यह अलग बात है कि अब नहीं कहते, इंकार करते हैं।”

 

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने अफ़ग़ानिस्तान के शियों पर हमले के मामले का हल पेश करते हुए कहा कि पूरे इस्लामी जगत में एकता का प्रोग्राम बनाना चाहिए। उन्होंने कहा, “इसी अफ़ग़ानिस्तान के मामले में मैंने कहा। यह जो मैंने कहा कि प्रोग्राम बनाना चाहिए, इस तरह की घटनाओं को रोकने का एक रास्ता यह है कि अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा सम्मानीय अधिकारी ख़ुद भी इन मस्जिदों में जाएं, नमाज़ पढ़ें या सुन्नी भाइयों में इन केन्द्रों में हाज़िर होने के लिए शौक़ पैदा करें।”

 

उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए इस्लामी गणराज्य का एक उद्देश्य नई इस्लामी सभ्यता को वजूद में लाना बताया। उन्होंने कहा कि यह काम शिया-सुन्नी एकता के बग़ैर नहीं हो सकता। इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने मुसलमानों के बीच एकता के लिए सबसे ज़्यादा प्रभावी मुद्दा फ़िलिस्तीन को बताते हुए कहा, “अगर फ़िलिस्तान के मुद्दे पर एकता से मुसलमानों में एकता आ जाए, तो फ़िलिस्तीन का मामला बहुत ही अच्छे ढंग से हल हो जाएगा। हम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को उसका हक़ दिलाने के लिए फ़िलिस्तीन के मामले में जितनी ज़्यादा गंभीरता दिखाएंगे, मुसलमानों के बीच एकता उतनी ही आसानी से हासिल हो जाएगी।”

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस्राईल से संबंध सामान्य करने की कुछ सरकारों की ग़लतियों पर अफ़सोस जताते हुए कहा, “अफ़सोस की बात है कि कुछ सरकारों ने ग़लती की, बहुत बड़ी ग़लती की, पाप किया, ज़ालिम व क़ब्ज़ा करने वाले शासन से संबंध सामान्य किया, जो इस्लाम विरोधी और इस्लामी एकता के ख़िलाफ़ क़दम है, इस रास्ते से लौट जाना चाहिए, यह बहुत बड़ी ग़लती है इसकी भरपाई होनी चाहिए।”