वरिष्ठ नेता के संबोधन के कुछ अहम अंश इस प्रकार हैं।

आपका स्वागत है मेरे प्यारे भाइयो! जनता की सेवा के मुख्य केंद्रों तक पहुंचने पर आपको मुबारकबाद देता हूं। अल्लाह ने आप पर कृपा की और आपको यह तौफ़ीक़ दी कि देश, राष्ट्र और इस्लामी गणराज्य की सेवा के मुख्य केंद्रों तक आपको पहुंच हासिल हुई। इस तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) की क़द्र कीजिए। मजलिसे शूराए इस्लामी (संसद) का भी शुक्रिया अदा करता हूं जिसने तुरंत ही और समय रहते अपना काम पूरा किया। इंशा अल्लाह यह आपके लिए और देश के लिए मुबारक शुरुआत होगी।

मैंने विभिन्न समय के अधिकारियों को हमेशा एक सिफ़ारिश की है, वह सिफ़ारिश आपको करूंगा। वक़्त बहुत तेज़ी से गुज़र जाता है। ये चार साल भी बहुत तेज़ी से गुज़र जाएंगे। हर पल और हर अवसर से भरपूर लाभ उठाइये। जो समय जनता के लिए और इस्लाम के लिए उसे व्यर्थ न होने दीजिए। सभी संभावनाओं, हर अवसर और समय का भरपूर इस्तेमाल कीजिए।

विदेश नीति के बारे में भी कुछ बातें बयान करना चाहता हूं। अलबत्ता विदेश नीति के बारे में कहने के लिए बहुत सी बातें हैं जो इंशा अल्लाह अपने उचित समय पर और उचित स्थान पर बयान की जाएंगी। सारांश यह कि विदेश नीति बहुत अहम है। इसका देश के मामलों में बड़ा गहरा प्रभाव है। कूटनैतिक मैदान में हमारी गतिविधियां तेज़ होनी चाहिए, उन्हें दुगना कर देना चाहिए। आर्थिक कूटनीति बड़ी अहम चीज़ है। आज देखने में आता है कि बहुत से देश हैं जहां विदेश मंत्री मौजूद है लेकिन ख़ुद राष्ट्रपति आर्थिक मामले में अन्य देशों के साथ या किसी विशेष देश के साथ वार्ता करता है और ख़ुद उस मामले को देखता है। यानी आर्थिक विभाग में विभिन्न देशों से संबंधों की बड़ी अहमियत है। कूटनीति के आर्थिक पहलू को मज़बूत करना चाहिए।

अन्य देशों से व्यापार की बड़ी अहमियत है, ख़ास तौर पर पड़ोसी देशों से। हमारे चौदह पंद्रह पड़ोसी देश हैं जिनकी कुल आबादी, बहुत बड़ी आबादी है जिसने बहुत बड़ी मंडी तैयार कर दी है लेकिन यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। अन्य देशों से भी हमारे संबंधों की यही अहमियत है। दुनिया में कुल दो सौ से ज़्यादा देश हैं। बस कुछ देश हैं, एक-दो देश ही हैं जिनसे हम संबंध नहीं रखना चाहते, कुछ से संबंध रखना संभव ही नहीं है लेकिन इसके अलावा अन्य देशों में से अधिकतर से हमारे अच्छे संबंध हैं, बस मेहनत की ज़रूरत है।

कूटनीति को परमाणु मामले से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए, यानी ऐसा न हो कि देश की कूटनीति, परमाणु मामले पर निर्भर हो। बिलकुल नहीं, परमाणु मामला एक अलग, मामला है जिसे उचित और देश को शोभा देने वाले अंदाज़ में हल करना चाहिए। कूटनीति का दायरा इससे कहीं ज़्यादा व्यापक है। परमाणु मामले में अमरीकियों ने ढिठाई की हद कर दी। वास्तव में उन्होंने बेशर्मी की सारी हदें कर दीं। सारी दुनिया की आंखों के सामने वे परमाणु समझौते से निकल गए और अब इस अंदाज़ में बात करते हैं मानो ईरान इस समझौते से निकला है। उनकी मांगों का यह अंदाज़ है कि मानो हमने वादों को रौंदा है। अमरीकियों की इस हरकत के जवाब में ईरान की तरफ़ से काफ़ी समय तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। काफ़ी समय बीत जाने के बाद एलान करके, बड़े ध्यान से कुछ कमिटमेंट्स पर अमल को छोड़ दिया गया, वह भी सारे नहीं, कुछ ही कमिटमेंट्स। उन लोगों ने अपने कमिटमेंट्स पर अमल ही नहीं किया।

अमरीका के साथ यूरोपीय देशों का भी यही हाल रहा। वे भी वादा तोड़ने और अनैतिकता में अमरीका से कम नहीं हैं। वे भी अमरीका की तरह ही हैं। जब ज़बान चलाने का मौक़ा हो और मांगें करने का समय आ जाए तो वे हमेशा, साहूकार की तरह पेश आते हैं। मानो एक समय तक वार्ता का मज़ाक़ हमने उड़ाया और अपने वचन को तोड़ा और उसे पूरा नहीं किया। यह काम तो उन्होंने किया है। अमरीका की मौजूदा और पिछली सरकार में कोई फ़र्क़ नहीं है। यानी परमाणु मामले में जो मांग आज ये लोग कर रहे हैं, वही मांग ट्रम्प की ओर से भी की जाती थी। उस समय देश के उच्चाधिकारी कहते थे कि यह संभव ही नहीं है, बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं है और इसी तरह की दूसरी बातें, लेकिन आज ये लोग भी वही मांगें कर रहे हैं। कोई फ़र्क़ नहीं आया है। वह अलग ज़बान में वही बात कहता था, ये लोग दूसरी ज़बान में वही बात कह रहे हैं, इस पर ध्यान रखना ज़रूरी है।

वास्तव में कूटनीति के पर्दे के पीछे अमरीका एक ख़ूंख़ार भेड़िये की तरह है। ज़ाहिरी रूप में तो कूटनीति है, मुस्कान है, बातचीत है, कभी कभी सही बातें हैं, लेकिन अंदर से एक भेड़िया, ख़ूंख़ार भेड़िया है जो दुनिया में बहुत सी जगहों पर दिखाई देता है। अलबत्ता कभी यही भेड़िया, मक्कार लोमड़ी का भेस धार लेता है। इसका एक नमूना आज अफ़ग़ानिस्तान की हालत है। अफ़ग़ानिस्तान हमारा बंधु देश है। हमारी भाषा, धर्म व कल्चर एक है। सच में अफ़ग़ानिस्तान की पीड़ाओं व दुखों को देख कर बहुत तकलीफ़ होती है। लगातार जो घटनाएं हो रही हैं, गुरुवार(1) को जो घटना हुई, ये जनसंहार, ये समस्याएं, उन पर पड़ने वाली कठिनाइयां, ये सब अमरीकियों की करतूत है। बीस साल तक अफ़ग़ानिस्तान को अपने क़ब्ज़े में रखा और उन बीस बरसों में अफ़ग़ान नागरिकों पर तरह तरह के ज़ुल्म ढाए, उनकी शोक सभाओं में और शादी समारोहों पर बमबारी की। उनके नौजवानों की हत्या की, उनके असंख्य लोगों को बिना किसी ग़लती के विभिन्न जेलों में डाल दिया। अफ़ग़ानिस्तान में कई गुना बल्कि दसियों गुना ज़्यादा ड्रग्स की पैदावार शुरू कर दी। यह सब किया। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की तरक़्क़ी और विकास के लिए कुछ भी नहीं किया। यानी आज अफ़ग़ानिस्तान नागरिक विकास और प्रगति व निर्माण की नज़र से अगर उस समय से पीछे नहीं चला गया तो आगे भी नहीं गया है। यानी उन्होंने कुछ नहीं किया। आज जब वे जा रहे हैं तो इस शर्मनाक तरीक़े से जा रहे हैं। काबुल हवाई अड्डे की स्थिति, जनता की यह भारी भीड़, ये कठिनाइयां। जिन अफ़ग़ान नागरिकों को वे ले जा रहे हैं, जिन अफ़ग़ान नागरिकों ने इन बरसों में उनसे सहयोग किया और जो अफ़ग़ानिस्तान से जाना चाहते हैं, रिपोर्टें हैं कि अफ़ग़ानिस्तान से उन्हें जिस जगह ले जाया जा रहा है, वहां की हालत तो और भी ख़राब है। जहां अफ़ग़ान नागरिकों को ले जा कर रखा जा रहा है, वहां असंख्य समस्याएं हैं। यह अमरीका की हालत है।

बहरहाल अफ़ग़ानिस्तान के मामले में हम अफ़ग़ान राष्ट्र के समर्थक हैं। सरकारें तो आती हैं, जाती हैं। इन बरसों में अफ़ग़ानिस्तान में कई तरह की सरकारें सत्ता में आईं। सरकारें आती-जाती हैं, जो हमेशा बाक़ी रहने वाला है, वह अफ़ग़ान राष्ट्र है। हम अफ़ग़ान राष्ट्र के साथ हैं। सरकारों से हमारे संबंध कैसे होंगे, यह उनके रवैये पर निर्भर है।

(1) काबुल हवाई अड्डे के इलाक़े में होने वाले आत्घाती हमले की तरफ़ इशारा जो अमरीकी सैनिकों की निगरानी में था। इस हमले में 160 से ज़्यादा लोग मारे गए और बड़ी संख्या में घायल हुए।