इस्लामी गणराज्य ईरान, दुनिया में आतंकवाद के सबसे बड़े पीड़ितों में से एक है। इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से लेकर अब तक 17000 से ज़्यादा ईरानियों को आतंकवाद का निशाना बनाया जा चुका है जिनमें आम लोग भीं हैं जिन्हें मुनाफ़िक़ीन (एम के ओ) के आंतकवादियों ने सिर्फ़ धार्मिक रूप अपनाने की बुनियाद पर सड़कों पर गोलियों से भून दिया और जनरल क़ासिम सुलैमानी जैसे कमांडर भी जिन्हें अमरीकी राष्ट्रपति के सीधे हुक्म पर शहीद किया गया। ईरान के ख़िलाफ़ आतंकवाद मुख़्तलिफ़ रूप में सामने आया हैः चरमपंथी आतंकवाद, जो धार्मिक शिक्षा की ग़लत समझ का नतीजा था और "फ़ुर्क़ान" जैसे गिरोहों में ज़ाहिर हुआ और फ़ील्ड मार्शल मोहम्मद वली क़रनी और आयतुल्लाह मुर्तज़ा मुतह्हरी जैसी महान हस्तियों की शहादत का सबब बना। इसी तरह सरकारी आतंकवाद जो अमरीका और इस्राईल की सरकारों की ओर से अंजाम पाया कि जिसमें सिर्फ़ इसी 12 दिवसीय जंग में 1000 से ज़्यादी ईरानी शहीद हुए हैं।
11 सितंबर 2001 की घटना के बाद अमरीका ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ 2 दशक से ज़्यादा समय की जंग में कैसे कैसे घिनौने अपराध किए और बुश, ओबामा, ट्रम्प और बाइडेन जैसे लोगों ने अमरीकी अवाम के हितों पर अपने व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देकर लाखों बेक़ुसूर लोगों को आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग के बेबुनियाद बहाने से क़ुरबान कर दिया। इस बारे में एक लेख पेश है।
सेक्युरिटी इंस्टीट्यूशन्स और जुडीशियरी से लेकर वैचारिक और तबलीग़ी काम करने वाले लोग और अज़ीज़ अवाम तक सब उस धड़े के ख़िलाफ़ मुत्तहिद हो जाएं जो इंसानों की जानों, सलामती और मुक़द्दस जगहों को अहमियत नहीं देता और उनका अपमान करता है।
इमाम ख़ामेनेई
27 अक्तूबर 2022