मंगलवार को तेहरान में हुयी इस मुलाक़ात में, आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि जहाँ एक ओर इस घटना से दिल दुखी हुए तो दूसरी ओर यह, ईरान की तारीख़ में अमर रहने वाली घटना बन गयी। उन्होंने इस घिनौनी हरकत में लिप्त हाथों यानी दाइश को वजूद देने वाले अमरीकियों को बेनक़ाब किए जाने पर बल दिया और कहा कि कल्चर और कला के क्षेत्र में काम करने वाले हल्क़ों को चाहिए कि इस अज़ीम वाक़ए को आशूरा सहित ऐतिहासिक अहमियत के दूसरे वाक़यों की तरह अहमियत दें और आने वाली नस्लों तक पहुंचाएं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायरों के क़त्ल को दूसरी आतंकवादी घटनाओं से अलग और दुश्मन की दुगुनी फ़ज़ीहत का सबब बताया और कहा कि आतंकी घटना अंजाम देने वाले दाइश के अलावा इस गिरोह के हिमायती और इसे वजूद देने वाले अमरीका और अन्य भी इस जुर्म में शरीक हैं और वे इतने बड़े झूठे, संगदिल और पाखंडी हैं कि बड़े ज़ोर शोर से मानवाधिकार की बात करते हैं लेकिन अमल में ख़तरनाक आतंवादी गुटों को वजूद देते हैं।

उन्होंने कल्चर और आर्ट के क्षेत्र में काम करने वाले हल्क़ों को इस वाक़ये सहित बाक़ी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में आर्ट प्रोडक्ट्स बनाने पर ताकीद की और कहा कि हम इस्लामी इंक़ेलाब के ज़माने की घटनाओं और इतिहास तथा दुश्मन के जुर्म से संबंधित मामलों में, मीडिया व प्रचार के लेहाज़ से पीछे हैं और हमारी जवान नस्ल को आतंकी गुट एमकेओ के अपराधों सहित विगत की घटनाओं की ज़्यादा जानकारी नहीं है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बल दिया कि इन सच्चाइयों को बयान करना कला और मीडिया के क्षेत्र में सरगर्म लोगों की ज़िम्मेदारी है।