इसी सामर्रा शहर में इन दोनों हस्तियों इमाम अली नक़ी और इमाम हसन असकरी अलैहिमुस्सलाम ने संपर्क और सूचना का ऐसा विशाल नेटवर्क बनाया कि वह इस्लामी दुनिया के कोने कोने तक फैल गया।
इमाम ख़ामेनेई
10 मई 2003
कुछ शिया सोचते थे कि इमाम असकरी अलैहिस्सलाम अपने बाप दादा के मिशन से पीछे हट जाएंगे गए हैं। इमाम असकरी अलैहिस्सलाम एक ख़त में उनसे फ़रमाते हैं: “हमारी नीयत और हमारा इरादा मज़बूत है। हमारा दिल तुम्हारी अच्छी नीयत और अच्छी सोच की ओर से मुतमइन है” देखिए यह बात शियों को कितनी ताक़त देने वाली है...ये इमाम और उनकी पैरवी करने वालों के बीच नेटवर्क का वही मज़बूत संपर्क है।
इमाम ख़ामेनेई
किताबः हमरज़्माने हुसैन, दसवां चैप्टर, पेज-346
यह तीन इमाम यानी इमाम मुहम्मद तक़ी अलजवाद, इमाम अली नक़ी अलहादी और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम मदीना से इराक़ लाए गए, तीनों इराक़े में ही रहे और इराक़ में ही उन्हें शहीद और दफ़्न कर दिया गया। तीनों को जवानी में क़त्ल किया गया। इसकी वजह यह थी कि इन तीनों इमामों के ज़माने में शियों का नेटवर्क अपनी ताक़त के उरूज पर पहुंच गया था।
इमाम ख़ामेनेई
किताब, हमरज़्माने हुसैन अलैहिस्सलाम पेज, 349