आपके पासबाने हरम शहीदों की क़ुरबानी जो इस दौर में मुल्क से बाहर जाकर शहीद हुए, दर हक़ीक़त उन लोगों की क़ुरबानियों जैसी है जिन्होंने अपनी जानें देकर इमाम हुसैन की क़ब्र की हिफ़ाज़त की। जाकर क़ुरबानियां देने का यही अमल था कि जो अरबईन के दो करोड़ पैदल ज़ायरीन के नतीजे तक पहुंचा। अगर उस वक़्त इन लोगों ने क़ुरबानियां न दी होतीं तो आज इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का इश्क़ इस अंदाज़ से सारी दुनिया पर न छा जाता। आप देखते हैं कि अरबईन मार्च में अलग अलग मुल्कों से फ़ार्स तुर्क, उर्दू ज़बान बोलने वाले, यूरोपीय मुल्कों यहां तक कि अमरीका से लोग इसमें शिरकत करते हैं। यह कारनामा किसने अंजाम दिया। इसका पहला संगे बुनियाद और बुनियादी काम उन्हीं लोगों के हाथों अंजाम पाया जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए अपनी जान की भी क़ुरबानी दी।
इमाम ख़ामेनेई
12/10/2018
अरबईन का अज़ीम प्रोग्राम एक ग़ैर मामूली वाक़या है। हम अपने दिलो दिमाग़ में इमाम हुसैन की याद ताज़ा करते हैं। ख़ुलूस व अक़ीदत से भरा दुरूद व सलाम उस अज़ीम हस्ती और शहीदों की पाकीज़ा ख़ाक को हदिया करते हैं और अर्ज़ करते हैं,
ऐ बादे सबा ऐ दूर पड़े लोगों के पैग़ाम पहुंचाने वाली! हमारे आंसुओं को उन हस्तियों की पाकीज़ा ख़ाक तक पहुंचा दे।
इमाम ख़ामेनेई
4 अकतूबर 2018
कितने ख़ुशनसीब हैं वे लोग जो अरबईन मार्च में शामिल हैं और ज़ियारते अरबईन का शरफ़ हासिल करेंगे और अरबईन के दिन इमाम हुसैन को मुख़ातिब करके अज़ीम मज़मून रखने वाली यह ज़ियारत पढ़ेगे। हम यहां शौक़ व हसरत से इन क़दमों को देख रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
6 नवम्बर 2017 |
जो लोग यह सफ़र तय कर रहे हैं और यह आशेक़ाना और मोमेनाना अमल अंजाम दे रहे हैं वे वाक़ई नेक अमल अंजाम दे रहे हैं। यह यक़ीनन शआयरुल्लाह में शामिल है। हम जैसे लोग जो इस अमल से महरूम हैं, मुनासिब है कि यह जुमला दोहराएं, "काश हम आपके साथ होते तो हम भी अज़ीम कामयाबी हासिल करते।"
इमाम ख़ामेनेई
30 दिसम्बर 2015
हर साल चेहलुम का यह मार्च जो बुनियादी तौर पर नजफ़ व कर्बला के बीच अंजाम पाता है ग्लोबल हैसियत हासिल कर चुका है। दुनिया के इंसानों की निगाहें इस मार्च पर लगी रहती हैं। इस अज़ीम अवामी अमल की बरकत से हुसैनी मुहब्बत व मारेफ़त पूरी दुनिया में फैल रही है।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सारी इंसानियत के लिए हैं। हम शियों को फ़ख़्र है कि हम इमाम हुसैन के मानने वाले हैं। लेकिन इमाम हुसैन सिर्फ़ हमारे नहीं हैं, अलग अलग इस्लामी मसलक, शिया सुन्नी सब इमाम हुसैन के परचम तले जमा हैं। चेहलुम के इस अज़ीम मार्च में वे लोग भी शामिल होते हैं जो मुसलमान नहीं हैं। यह सिलसिला इंशाअल्लाह जारी रहेगा। यह एक अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
ईरानी क़ौम अपने पूरे वजूद से आप अज़ीज़ इराक़ी भाइयों की शुक्रगुज़ार है, ख़ास तौर पर मौकिब के ज़िम्मेदारों की। हम तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करते हैं। हमें मुतनब्बी का यह शेर याद आता हैः अगर किसी भले इंसान का इकराम व एहतेराम किया तो उसके मालिक बन जाओगे।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
आज की इस पेचीदा और प्रचारिक शोर-शराबे से भरी #दुनिया में चेहलुम का प्रोग्राम एक बेनज़ीर #मीडिया और दूर दूर तक पहुंचने वाली आवाज़ है। दुनिया में इसकी कोई नज़ीर नहीं है। यह कि दसियों लाख लोग चल पड़ते हैं। अलग अलग मुल्कों से, अलग अलग मसलकों यहां तक कि दूसरे धर्मों से तअल्लुक़ रखने वाले लोग भी। यह हुसैनी इत्तेहाद है। यह बात बिल्कुल दुरुस्त हैः ‘हमें एक धागे में पिरो देने वाले #हुसैन हैं। ’
इमाम ख़ामेनेई
13 अकतूबर 2019
वर्चस्ववादी ताक़तों की तरफ़ से ईरान के मिशन का विरोध स्वाभाविक हैसाम्राज्यवादी और वर्चस्ववादी ताक़तों की तरफ़ से इस्लामी जुमहूरिया ईरान के मिशन का विरोध स्वाभाविक और लाज़ेमी है क्योंकि हमने इंसाफ़ और रूहानियत का परचम बुलंद किया है।
इमाम ख़ामेनेई
3 सितम्बर 2022
यह जो कुछ लोग कहते हैं कि फ़ुलां मुल्क से ज़रूर तअल्लुक़ात क़ायम करें ताकि हमारी मुश्किलें हल हो जाएं, यह मुल्क के लिए बहुत नुक़सानदेह है। मुल्क के अहम मामलों को दूसरों पर निर्भर करना और दूसरों के इंतेज़ार में बैठे रहना बुरी चीज़ है। नई हुकूमत की एक कामयाबी यह रही कि उसने समाज को इस हालत से बाहर निकाला कि हमेशा हम इस इंतेज़ार में बैठे रहें कि मुल्क से बाहर दूसरे लोग हमारे बारे में क्या फ़ैसला करते हैं। इस हुकूमत ने मुल्क की अंदरूनी सलाहियतों पर तवज्जो दी और उन पर काम कर रही है।
इमाम ख़ामेनेई
30 अगस्त 2022
राष्ट्रपति रईसी की एक कामयाबी इस्लाम व इंक़ेलाब के नारों यानी इंसाफ़, रईसाना कल्चर से परहेज़, कमज़ोर तबक़ों की मदद और साम्राज्यवाद की मुख़ालेफ़त का बिल्कुल नुमायां हो जाना है।
इमाम ख़ामेनेई
30 अगस्त 2022
तमाम वाक़ेआत में इंक़ेलाब के अस्ली हीरो अवाम हैं। यह हक़ीक़त सबक़ और इबरत देने वाली है जो ओहदेदारों को यह याद दिलाती है कि इस क़ौम की किस अंदाज़ से ख़िदमत करें।
इमाम ख़ामेनेई
30 अगस्त 2022
शहीद के ख़ून को ज़िंदा रखने की मशक़्क़त ख़ुद शहादत पेश करने से कम नहीं है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का 30 तक चलने वाला जेहाद और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का कई साल का संघर्ष इसकी मिसाल है। इस ख़ून को ज़िंदा रखने के लिए मशक़्क़तें उठाईं।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई 1997
जिस तरह साउथ लेबनान 22 साल बाद वापस मिला उसी तरह #फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा हिस्से भी वापस मिलेंगे और पूरा मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन फ़िलिस्तीनी क़ौम के पास लौटेगा।
इमाम ख़ामेनेई
3 जून 2000
तहरीके जेहादे इस्लामी ने अपने शुजाआना रेज़िस्टेंस से ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा करने वाली हुकूमत के मंसूबों पर पानी फेर दिया और साबित कर दिया कि रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के नेटवर्क का हर हिस्सा अकेले भी दुश्मन की नाक ज़मीन पर रगड़ देने की सलाहियत रखता है।
इमाम ख़ामेनेई
11 अगस्त 2022
क़ाबिज़ (अतिग्रहणकारी) दुश्मन का पतन हो रहा है और फ़िलिस्तीन की रेज़िस्टेंस की ताक़त बढ़ रही है ‘और बेशक अल्लाह की क़ूवत व ताक़त के बिना कोई क़ूवत व ताक़त नहीं।’ हम बदस्तूर आपके साथ हैं। आप पर सलाम हो और अह्द व पैमान अपनी जगह क़ायम हैं।
इमाम ख़ामेनेई
11 अगस्त 2022
शीया समुदाय के पैकर में आशूर की तपिश नुमायां है। हम देख रहे हैं कि हर जगह शीयों में नज़र आने वाली यह गर्मी उन शोलों से निकली है जिनकी लपटें उस मुक़द्दस रूह और मूल्यवान मिट्टी से उठ रही हैं। यह लोगों की रूहों में समा जाती हैं और इंसानों को दहकती गोलियों में तब्दील करके उनसे दुश्मन के दिल को निशाना बनाती हैं।
इमाम ख़ामेनेई
17 मार्च 1974
इमाम हुसैन को हमेशा हक़ और सत्य के परचम के तौर पर बाक़ी रहना चाहिए। सच्चाई का परचम कभी बातिल की सफ़ में शामिल नहीं हो सकता और बातिल का रंग क़ुबूल नहीं कर सकता। यही वजह थी कि इमाम हुसैन ने फ़रमाया थाः ‘मोहाल है कि हम ज़िल्लत बर्दाश्त कर लें।’ गर्व उस इंसान, मिल्लत और समूह का हक़ है जो अपनी बात पर क़ायम रहे और जिस परचम को बुलंद किया है उसे तूफ़ानों में मिटने और गिरने न दे। इमाम हुसैन ने इस परचम को मज़बूती से थामे रखा और अपने अज़ीज़ों की शहादत और अहले हरम का क़ैदी बनना भी गवारा किया।
इमाम ख़ामेनेई
29 मार्च 2002
अगर वे 72 लोग भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ न होते तब भी इमाम हुसैन की तहरीक रुकने वाली नहीं थी। यह एक सबक़ है। इमाम हुसैन से हमें यह सबक़ लेना चाहिए कि अल्लाह की राह में जेहाद को सख़्तियों और तनहाई के सबब छोड़ना नहीं चाहिए।
इस फ़रीज़े और वाजिब को तनहा पड़ जाने, तादाद कम होने और वतन से दूर होने, साथियों के न होने और दुश्मन सामने मौजूद होने के सबब छोड़ना नहीं चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
13 अगस्त 1988
पश्चिमी ताक़तें एक माफ़िया हैं। इन ताक़तों की हक़ीक़त एक माफ़िया की हक़ीक़त है। इस की बागडोर ज़ायोनी व्यापारियों और उनके फ़रमां बरदार नेताओं के हाथ में है। उन का ‘शोकेस’ अमरीका है और वे हर जगह फैले हुए हैं।
इमाम ख़ामेनेई
27 जुलाई 2022
आज अमरीका और पश्चिम अतीत की तुलना में बहुत कमज़ोर पड़ चुके हैं। सीरिया, इराक़, लेबनान और फ़िलिस्तीन सहित हमारे इलाक़े के भीतर उनकी पालीसियों का असर फीका पड़ चुका है।
इमाम ख़ामेनेई
19 जुलाई 2022
पहलवी हुकूमत ने अमरीका की ग़ुलामी में उस ज़माने में संसद से क़ानून पास करवा दिया कि अमरीकी सलाहकारों को ईरान में अदालती और सेक्युरिटी इम्युनिटी हासिल रहेगी। इसका नाम कैपीचुलेशन है। ख़ुद अमरीकियों की नज़र में बक़ौल उनके तीसरी दुनिया के मुल्कों के साथ उनका रिश्ता राजा और प्रजा का रिश्ता है। इन मुल्कों में वो ख़ुद को हर चीज़ का मालिक समझते हैं। तेल, गैस, मुनाफ़ा, पैसा सब कुछ हड़प लेते हैं और क़ौमों की बुरी तरह तौहीन करते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
3 नवम्बर 2010
कायनात में और आलमे इंसानियत में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़बान से निकले ये जुमले आज तक गूंज रहे हैं: ऐ दुनिया के जलवो! ऐ दुनिया की कशिश! ऐ वो ख़्वाहिशो! जो बड़े मज़बूत इंसानों को भी अपने जाल में फंसा लेती हैं, जाओ जाकर अली के अलावा किसी और को धोखा देने की कोशिश करो। अली इन चीज़ों से कहीं ज़्यादा बुलंद और मज़बूत है।
इमाम ख़ामेनेई
30 जनवरी 1991
अगर हम समझ सकें तो इस दिन (अरफ़ा के दिन) दोपहर बाद का वक़्त, जन्नती वक़्त है। इतनी अज़मतों की मालिक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी शख़्सियत, अपना आधा दिन यूंही इस दुआ में नहीं बिता सकती है। इस दुआ के अर्थों पर ध्यान देने की ज़रूर कोशिश कीजिए, ध्यान दीजिए कि दुआ में क्या कहा जा रहा है। न यह कि बैठ कर सोचते रहिए-इनमें ग़ौर फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है-जब आप बात कर रहे हैं तो यह मन में रहे कि आप किसी से बात कर रहे हैं और उस बात के अर्थ को समझिए कि वह क्या है। अरफ़ा के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की दुआ, इमाम हुसैन की दुआए अरफ़ा की व्याख्या की तरह है। मानो इस बेटे नें अपने पिता के शब्दों के नीचे एक हाशिया, एक व्याख्या दुआ की ज़बान में लिखी है। दोनों का अलग अलग ही मज़ा है।
इमाम ख़ामेनेई
26 मई 1993
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने शीयों का बहुत बड़ा और मज़बूत पोशीदा नेटवर्क तैयार करने के लिए हर मुमकिन शरई ज़रिए का इस्तेमाल किया। 16 सितम्बर 1988यही चीज़ कि आप कुछ लोगों को अपने वकील और नायब के तौर पर नियुक्त कर देते थे जो आपकी तबलीग़ और तालीमात की तरवीज का मिशन अंजाम दें। यह इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के पोशीदा नेटवर्क का हिस्सा था जिसका आग़ाज़ इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम से पहले ही हो चुका था मगर आपके दौर में इस काम में नई शिद्दत और रफ़तार पैदा हुई क्योंकि यह बड़े जोखिम का काम था।
इमाम ख़ामेनेई
31 जुलाई 1987
अमरीकी हुकूमत पहले दिन से इस इंक़ेलाब के साथ तल्ख़ी और बदसुलूकी से पेश आई। फ़ार्स खाड़ी में अमरीकी अफ़सर ने जलपोत से फ़ायर किए गए मिसाइल से हमारे यात्री विमान को मार गिराया। तक़रीबन 300 यात्री मारे गए। इस घटना पर उस अफ़सर को सज़ा देने के बजाए अमरीकी राष्ट्रपति ने इनाम से नवाज़ा! हमारी क़ौम इन चीज़ों को कभी भूल सकती है?
इमाम ख़ामेनेई
21 मार्च 2009
यूरोप और अमरीका में ह्यूमन राइट्स के झूठे दावेदार जिन्होंने यूक्रेन के मसले में आसमान सर पर उठा लिया, फ़िलिस्तीन में होने वाले संगीन अपराधों पर ख़ामोश हैं। मज़लूम का बचाव नहीं करते बल्कि ख़ूंख़ार भेड़िए का साथ दे रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
29 अप्रैल 2022
बेहतरीन ख़ानदान वाले, ख़ूबरू, ताक़तवर और दिलनशीं व्यक्तित्व के हज़ारों नौजवान हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पांव की धूल के बराबर भी नहीं हैं। हज़ारों आला ख़ानदान की ख़ूबसूरत लड़कियां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के क़दमों की धूल के बराबर भी नहीं हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी थीं जो इस्लामी दुनिया के सरदार और हाकिम थे। हज़रत अली भी इस्लाम के सबसे बड़े सिपहसालार थे। अब ज़रा देखिए कि उनकी शादी किस अंदाज़ से हुई? मेहर क्या था? दहेज क्या था? हर काम अल्लाह का नाम लेकर और उसके ज़िक्र के साथ। यह हमारे लिए आदर्श है।
इमाम ख़ामेनेई
6 मई 1996
यह अरब व ग़ैर अरब हुकूमतें जिन्होंने ज़ायोनियों से हाथ मिलाया, उन्हें गले लगाया, उनके साथ मीटिंगें कीं, कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगी। नुक़सान के अलावा उन्हें कुछ मिलने वाला नहीं है। पहली चीज़ तो यह कि ख़ुद उनके अवाम ख़िलाफ़ हैं। इसके अलावा ज़ायोनी सरकार उनका ख़ून चूस रही है, उनका शोषण कर रही है। यह समझ नहीं रही हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
शहीद चमरान एक महान इल्मी हस्ती थे। वह महान आर्टिस्ट भी थे। उन्होंने ख़ुद मुझ से कहा कि मैं फ़ोटोग्राफ़र हूं। इसके बाद वो मैदाने जंग में आ गए, फ़ौजी वर्दी पहनी और फ़ौजी जवान बन गए। लेकिन इस मैदान में उतरने से पहले वो एक बड़े स्कालर थे। इस मैदान (जेहाद) ने उनको आसमानों पर पहुंचा दिया।
इमाम ख़ामेनेई2
7 नवम्बर 2018
ईरान और वेनेज़ोएला के किसी भी देश के साथ इतने क़रीबी रिश्ते नहीं हैं और इस्लामी गणराज्य ईरान ने साबित कर दिया कि दोस्तों को ख़तरे में देखे तो रिस्क लेता है और दोस्तों का हाथ थामता है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
अमरीका से कड़े मुक़ाबले और #वेनेज़ोएला के ख़िलाफ़ बहुआयामी हाइब्रिड जंग में वेनेज़ोएला की सरकार और क़ौम की फ़तह और जनाब मादोरो और वेनेज़ोएला के अवाम का प्रतिरोध क़ीमती है। प्रतिरोध से क़ौम और नेताओं का क़द बढ़ता है। आज वेनेज़ोएला के बारे में अमरीका की निगाह अतीत से अलग है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
अमरीका के सख़्त दबाव और बहुआयामी जंग के मुक़ाबले के ईरान और वेनेज़ोएला के कामयाब अनुभव से साबित हुआ कि उनसे निपटने का रास्ता प्रतिरोध और दृढ़ता ही है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
दुनिया की बहुत सी मुसीबतें और मुश्किलें रईसाना ज़िंदगी और दिखावे के कारण हैं। दुनिया की दौलत का बड़ा हिस्सा हर जगह इन चीज़ों पर ख़र्च हो रहा है। #हज आपको सादा जीवन गुज़ारना सिखाता है।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
आज दुनिया में इंसान की मुश्किलों की जड़ क्या है? यही कि उसे मिल जुल कर रहने का तरीक़ा नहीं आता। वे एक दूसरे पर ज़्यादती करते हैं। #हज मिल जुल कर जीना सिखाता है। हज में ऐसे लोग जो एक दूसरे से कोई पहचान नहीं रखते और जिनके कल्चर अलग हैं, एक साथ रहते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
दो साल के फ़ासले से अल्लाह ने हज का दरवाज़ा दोबारा खोला, यह बड़ी ख़ुशख़बरी थी। यह अल्लाह की दावत है जिसने हाजियों के लिए रास्ता खोला। किसी शख़्स की मेहरबानी नहीं, यह आप मोहतरम हाजियों के शौक़ की अल्लाह की बारगाह में क़ुबूलियत का नतीजा है। इंशाअल्लाह आप बेहतरीन हज बजा लाएं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
इमाम ख़ुमैनी, इंक़ेलाबों के इतिहास के सबसे महान इंक़ेलाब के नेता थे। सबसे महान क्यों? क्योंकि सबसे मशहूर इंक़ेलाबों में फ़्रांस का इंक़ेलाब और सोवियत यूनियन का इंक़ेलाब था और दोनों ही बहुत जल्द अपने रास्ते से भटक गए, उनमें अवाम का कोई किरदार बाक़ी नहीं रहा, उनका इक़ेलाब ख़त्म हो गया।
इमाम ख़ामेनेई
4 जून 2022
हमने और हमारे देश ने कभी भी किसी देश पर हमला नहीं करना चाहा और अब भी नहीं चाहते हैं लेकिन जब हम पर हमला कर दिया गया तो उसके बाद डिफ़ेंस एक ज़रूरी क़दम है जो सभी पर धार्मिक लेहाज़ से भी वाजिब है और अक़्ली लेहाज़ से भी। मैंने भी और सभी अधिकारियों ने भी अब तक बार बार इलाक़े की इन सरकारों से कहा है कि हम आपसे जंग करना नहीं चाहते। हम ऐसे नहीं हैं कि जब हमें ताक़त मिल जाए तो किसी दूसरे देश में ग़ुंडागर्दी से हस्तक्षेप करें। ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम इलाक़े के सबसे ताक़तवर देशों में से एक हैं और इस्लाम की बरकत से, हमारे इस देश और हमारे इस राष्ट्र के पास ऐसी ताक़त है कि बड़ी ताक़तें भी उस पर हमला नहीं कर सकतीं। लेकिन इसी के साथ हम चाहते हैं कि इन सभी इस्लामी देशों के साथ और ख़ास तौर पर उन देशों के साथ जो इलाक़े में हैं, भाई बन कर रहें। हम चाहते हैं कि वो सब एक दूसरे का हाथ थामें।
इमाम ख़ुमैनी
25/7/1982