शहीद सुलैमानी डिफ़ेन्स के मैदान को गहराई से समझने वाले जांबाज़ कमांडर थे लेकिन इसके साथ ही धार्मिक नियमों के पूरी तरह पाबंद थे।
इमाम ख़ामेनेई
8 जनवरी 2020
अल्लाह के महान पैग़म्बर हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस पर मैं दुनिया के सभी मोमिनों, सभी ईसाइयों व मुसलमानों को मुबारकबाद पेश करता हूं। निश्चित रूप से मुसलमानों की नज़र में हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की जो क़द्र व क़ीमत है, वह ईसाइयों की नज़र में उनकी क़द्र व क़ीमत से कम नहीं है। इस महान पैग़म्बर ने लोगों के बीच अपनी मौजूदगी का पूरा समय, संघर्ष के साथ गुज़ारा ताकि ज़ुल्म, सितम और भ्रष्टाचार और उन लोगों के मुक़ाबले में खड़े हो जाएं जिन्होंने धन और ताक़त के बल पर राष्ट्रों को ज़ंजीर में जकड़ रखा था और उन्हें घसीट कर लोक-परलोक के नरक में ले जा रहे थे। इस महान पैग़म्बर ने अपने बचपन से ही - अल्लाह ने उन्हें बचपन में ही नबी बना दिया था - जो तकलीफ़ें सहीं, वे सब इसी राह में थे। उम्मीद है कि हज़रत ईसा मसीह के मानने वाले और वे सारे लोग जो इस महान हस्ती को, उनकी शख़्सियत के अनुरूप महानता, रूहानियत व उच्च दर्जे के लायक़ समझते हैं, इस राह में उनका अनुसरण करेंगे।
इमाम ख़ामेनेई
27 दिसम्बर 2000
हज़रत ज़ैनब के कारनामे की तुलना इतिहास की अन्य बड़ी घटनाओं से नहीं हो सकती। उसकी तुलना ख़ुदा आशूर की घटना से करना चाहिए। वाक़ई यह दोनों एक दूसरे के बराबर हैं।
इमाम ख़ामेनेई
20 नवम्बर 2013
संघर्ष और बड़े समाजी फ़ैसलों के मैदान में मौजूद रहने के पहलू से फ़ातेमा ज़हरा, सबसे ऊंचे स्थान पर हैं। यानी पैग़म्बर की वफ़ात के बाद, ख़िलाफ़त के मामले में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अपने पूरे वुजूद के साथ, अपने बयान के साथ, अपने ज्ञान के साथ, अपनी कोशिशों के साथ, अपने पूरे अस्तित्व के साथ मैदान में आ गईं।
इमाम ख़ामेनेई
8 दिसम्बर 1993
फ़ातेमा ज़हरा जन्नत की औरतों की सरदार हैं। बहादुरी का सबक़, त्याग का पाठ, दुनिया से दिल न लगाने का पाठ, अल्लाह की पहचान की शिक्षा, दूसरों के मन में अल्लाह की पहचान को उतर देने का पाठ, इंसान को मुफ़क्किर बना देने का पाठ, ये सब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के सिखाए हुए पाठ हैं।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2018
हक़ीक़त में फ़ातेमा ज़हरा नूर की सुबह हैं जिनके नूरानी हलक़े से इमामत व विलायत और नुबूव्वत का सूरज जगमगाता है। वे एक ऊंचा आसमान हैं जिसकी गोद में विलायत के दमकते हुए सितारे पलते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
22 अक्तूबर 1997
रूहानी और इलाही दर्जों तक पहुंचने में औरत और मर्द में कोई फ़र्क़ नहीं है। अल्लाह, इतिहास में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी महिला की रचना करता है जो इस हदीस के मुताबिक़ कि “हम अल्लाह की रचनाओं पर उसकी हुज्जत हैं और फ़ातेमा हम पर अल्लाह की हुज्जत हैं” अल्लाह की हुज्जत हैं, वे अल्लाह की हुज्जत की भी हुज्जत हैं, इमामों की माँ हैं, क्या इससे बढ़ कर भी कोई शख़्सियत हो सकती है?
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 2013
हज़रत ज़ैनब इस्लामी इतिहास नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के इतिहास की अज़ीम हस्ती हैं। जिस अंदाज़ से आपने अमल किया पुरुषों और महिलाओं में शायद ही कोई होगा जो इस मज़बूती से कठिन मैदान में क़दम रखे।
इमाम ख़ामेनेई
1 जनवरी 2020
हज़रत ज़ैनब की महानता का राज़ क्या है? यह नहीं कह सकते कि आप हज़रत अली की बेटी या इमाम हुसैन की बहन हैं इसलिए आपकी यह महानता है। सारे इमामों की बेटियां, माएं और बहनें थीं लेकिन हज़रत ज़ैनब जैसा कौन है? हज़रत ज़ैनब की महानता उनके फ़ैसले और महान इस्लामी व इंसानी अमल की वजह से है जिसे धार्मिक फ़र्ज़ के आधार पर आपने अपनाया।
इमाम ख़ामेनेई
13 नवम्बर 1991
आशूरा के मैदान में घटने वाली सैन्य घटना ज़ाहिरी तौर पर हक़ के सिपाहियों की हार पर ख़त्म हुई लेकिन जो चीज़ इस बात का कारण बनी कि यह ज़ाहिरी सैन्य पराजय, एक निश्चित व अमर विजय में बदल जाए वह हज़रत ज़ैनब का तरीक़ा था, हज़रत ज़ैनब ने दिखा दिया कि ज़नाना पाकीज़गी व हया को मुजाहेदाना इज़्ज़त और एक बड़े जेहाद में बदला जा सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
21 अप्रैल 2010
अगर औरत का आइडियल हज़रत ज़ैनब और हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा हों, तो उसका काम है सही समझ, परिस्थितियों को समझने में होशियारी और बेहतरीन कामों का चयन, चाहे उसके लिए क़ुर्बानी देनी हो और हर चीज़ बलिदान करना पड़े।
इमाम ख़ामेनेई
13 नवम्बर 1991
अगर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा न होतीं तो कर्बला भी न होती। अगर हज़रत ज़ैनब की बहादुरी न होती तो कर्बला की घटना इस तरह फैल नहीं सकती थी और इस तरह तारीख़ में अमर न हो पाती।
इमाम ख़ामेनेई
16 फ़रवरी 2011
फ़िलिस्तीन तो यक़ीनन आज़ाद होगा और फ़िलिस्तीनियों को वापस मिलेगा। वहां फ़िलिस्तीनी हुकूमत बनेगी। इसमें कोई शक नहीं। लेकिन अमरीका और पश्चिम की बदनामी का दाग़ मिटने वाला नहीं है।
इमाम ख़ामेनेई
27 फ़रवरी 2010
प्यारे नौजवानो! ग़ैर मामूली दिमाग़ अल्लाह की नेमत है। अल्लाह की नेमत का शुक्र अदा करना चाहिए। सूरए नह्ल में है कि अल्लाह की नेमत का शुक्र अदा करो अगर तुम उसी की इबादत करते हो।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई 17 नवम्बर 2021
अफ़्रीक़ा में महान सभत्यताएं थीं जो अपनी क्षमताओं के बारे में ग़फ़लत बरतने की वजह से उस साफ़्ट वार की भेंट चढ़ गईं जो विस्तारवादी ताक़तों ने उन पर थोपीं। नेहरू ने अपनी किताब में भारत के बारे में इसी चीज़ का उल्लेख किया है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
वैज्ञानिक प्रगति की हमारी रफ़तार ऐसी होनी चाहिए कि तक़रीबन पचास साल में ईरान दुनिया में ज्ञान-विज्ञान का सेंटर बन जाए और लोगों को आधुनिक ज्ञान के लिए फ़ारसी सीखने की ज़रूरत पड़े। दुनिया में किसी ज़माने में यही स्थिति थी जो दोबारा भी बन सकती है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
भविष्य में दुनिया के मैनेजमेंट में आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेन्स का बहुत अहम रोल होगा। इस विषय पर तवज्जो और गहरा चिंतन किया जाना चाहिए। हमें इतनी मेहनत करनी चाहिए कि इस मैदान में हमारा देश दुनिया में फ़्रंटलाइन के दस देशों में अपनी जगह बनाए।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
विस्तारवादी ताक़तों की साफ़्ट जंग का एक पहलू यह होता है कि वह राष्ट्रों को उनकी क्षमता से ग़ाफ़िल रखें। या उनकी ऐसी दुर्गत कर दें कि वे ख़ुद ही अपनी क्षमताओं को नकारने लगें। जब किसी राष्ट्र पर अपनी क्षमताओं के बारे में ग़फ़लत छा जाती है तो उसको लूटना आसान हो जाता है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
क़ुम, हज़रत फ़ातेमा मासूमा अलैहस्सलाम का पवित्र मज़ार और हरम है, वह महान हस्ती जिनके पवित्र मज़ार के क़रीब से पहली बार यह उफनता हुआ सोता उबला और इसकी बरकतें पूरी दुनिया ख़ास कर इस्लामी जगत तक पहुंचीं। इमाम ख़ामेनेई, 5 अक्तूबर 2000
आयतुल्लाह ख़ामेनेईः “हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम उसी सामर्रा शहर में जो दरअस्ल एक छावनी के समान था, अपने व्यापक प्रचारिक व ज्ञान संबंधी नेटवर्क के ज़रिए पूरी इस्लामी दुनिया से संपर्क स्थापित करने में कामयाब हुए। सिर्फ़ यह नहीं था कि आप नमाज़, रोज़ा या तहारत और नजासत के मसलों का जवाब देते थे। वह एक इमाम की हैसियत से उस अंदाज़ में जो इस्लाम के मद्देनज़र है अपना पक्ष रखते थे और आम जन से मुख़ातिब होते थे।”
इमाम ख़ामेनेई
10 मई 2003
शहीदों को श्रद्धाजलि देने के कार्यक्रम को मामूली काम नहीं समझना चाहिए। वाक़ई यह बड़ा नेक काम है। यह एक फ़र्ज़ है जो अभी अदा नहीं हुआ है। अभी तो शुरुआत है। यह काम जारी रहेंगे और उन्हें जारी रहना ही चाहिए।
शहीद चुने हुए लोग हैं, शहीद वे हैं जिन्हें महान परवरदिगार चुनता है। शहीदों ने सही रास्ते को चुना और अल्लाह ने भी उन्हें मक़सद तक पहुंचने के लिए चुना। शहीदों की क़ीमत को भौतिक हिसाब से आंका नहीं जा सकता।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
शहीद दुनिया के सबसे बड़े व्यापार में कामयाब हैं। हे ईमान वालो, क्या तुम्हे ऐसा व्यापार दिखाएं जो तुम्हे दर्दनाक अज़ाब से बचाए? अल्लाह और उसके पैग़म्बर पर ईमान लाओ और अपनी जान-माल से अल्लाह की राह में जेहाद करो, अगर जानते हो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है। (सूरए सफ़ आयत 10 व 11)
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
मुसलमानों की एकता निश्चित क़ुरआनी कर्तव्य है। मुसलमानों की एकता टैक्टिकल चीज़ नहीं कि कोई सोचे कि ख़ास हालात के कारण हम एकजुट हो जाएं। नहीं! यह सैद्धांतिक विषय है। मुसलमानों का आपसी सहयोग ज़रूरी है। मुसलमान एकजुट रहेंगे तो एक दूसरे की मदद करेंगे और सब ताक़तवर बनेंगे।
इमाम ख़ामेनई
24 अक्तूबर 2021
इस्लाम, समावेशी दीन है। इसकी समग्रता का हक़ अदा करना चाहिए। भौतिकवादी राजनैतिक ताक़तों की ज़िद है कि इस्लाम, व्यक्तिगत अमल और दिल की आस्था तक सीमित रहे। क़ुरआन, सैकड़ों आयतों में इसका खंडन करता है। इस्लाम की गतिविधियों का दायरा सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक विषयों तक फैला हुआ है।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
कुछ इस्लामी सरकारों ने अतिग्रहणकारी ज़ालिम ज़ायोनी शासन से संबंध क़ायम करके बड़ा पाप किया है। उन्हें वापस लौटना और ग़लती की भरपाई करना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
पैग़म्बरे इस्लाम का उठना बैठना ग़ुलामों के साथ रहता था। उनके साथ खाना खाते थे। बहुत मामूली कपड़े पहनते थे। जो खाना मौजूद होता वही खाते, किसी भी खाने को नापसंद नहीं करते थे। पूरे मानव इतिहास में यह विशेषताएं बेजोड़ हैं।
इमाम ख़ामेनई
Sept 27, 1991
अल्लाह ने पैग़म्बरे इस्लाम को ‘रहमतुल लिलआलमीन’ का लक़ब दिया। इंसानों के किसी एक गिरोह के लिए नहीं, किसी एक समूह के लिए नहीं बल्कि सारी कायनात के लिए रहमत हैं। वह सब के लिए रहमत हैं। पैग़म्बर जो पैग़ाम अल्लाह की तरफ़ से लेकर आए उसे आपने सारी इंसानियत को प्रदान किया।
इमाम ख़ामेनई
Dec 17, 2016
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र लगभग 55 साल है। 55 साल की इस उम्र में लगभग 20 साल का समय उनकी इमामत का समय है। जब हज़रत की इमामत का दौर ख़त्म हुआ और आपको शहीद कर दिया गया तो अगर आप उस वक़्त के हालात देखिए तो महसूस करेंगे कि अहले बैते रूसूल से मुहब्बत का सिलसिला इस्लामी जगत में इस व्यापकता और गहराई के साथ फैल चुका था कि ज़ालिम अब्बासी सल्तनत उस पर क़ाबू पाने में नाकाम थी। यह कारनामा इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने अंजाम दिया।
इमाम ख़ामेनई
Sept 17, 2013
पैग़म्बरों को उन समाजों में भेजा गया जहां अज्ञानता का अंधेरा था। पैग़म्बरों का मक़सद था अज्ञानता की व्यवस्था को ख़त्म करके तौहीद (एकेश्वरवाद) पर आधारित बराबरी की व्यवस्था स्थापित करना, ग़रीबी और घमंड को मिटाना। वह मानवीय प्रतिष्ठा बहाल करने के लिए आए।
इमाम ख़ामेनई
Dec 31, 1976
ये आंसू, एक साथ बैठना, मुसीबत का ज़िक्र, इस मोहर्रम और आशूर का हमारी जनता के जीवन पर असर पड़ता है। शिया विरोधी कुछ समाजों की नीरसता व निर्जीवता - अफ़सोस कि कुछ हुकूमतें अपनी जनता को ग़ैर शिया नहीं बल्कि शिया विरोधी बनाती हैं - ईश्वर की कृपा से हमारे समाज में नहीं है। हमारा समाज लचक, भावना, नर्मी और स्नेह व प्यार वाला समाज है।
सुप्रीम लीडर
18 मई 1995
क़ुन्दूज़ इलाक़े की मस्जिद में धमाके में नमाज़ियों की मौत की घटना ने हमें ग़मज़दा कर दिया। पड़ोसी बंधु देश अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों से वाक़ई अपेक्षा है कि वह इस भयानक-अपराध के ख़ंख़ार दोषियों को सज़ा देंगें और आवश्यक उपायों के ज़रिए इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाएंगे।
इमाम ख़ामेनेई
9 अक्तूबर 2021
दर्जनों देशों से लोग अरबईन मार्च में हिस्सा लेते हैं और इराक़ियों के मेहमान बनते हैं। हमारी कोशिश यह होना चाहिए कि मुस्लिम भाइयों के रिश्ते इस पैदल ज़ियारत की मदद से और भी मज़बूत हों। इराक़ियों और ग़ैर इराक़ियों का रिश्ता, शिया सुन्नी का रिश्ता, अरब, फ़ार्स, तुर्क और कुर्द जातियों का रिश्ता, यह रिश्ते ख़ुश नसीबी की गैरेंटी हैं। यह रिश्ते अल्लाह की रहमत की निशानी हैं। दुश्मन की कोशिश फूट डालने की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाया और अल्लाह के करम से वह आगे भी सफल नहीं होगा। यह रिश्ता और संपर्क जिस चीज़ ने पैदा किया है वह अल्लाह पर ईमान है, पैग़म्बर और उनके ख़ानदान से मुहब्बत है, इमाम हुसैन से मुहब्बत है।
इमाम ख़ामेनई
Sept 18, 2019
अगर हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को आशूर के दौर और चेहलुम के दौर में बांटें तो हमें आशूर को इमाम हुसैन की क़ुरबानी का दिन मानना चाहिए और अरबईन या चेहलुम को इमाम हुसैन की विचारधारा के प्रचार और प्रतिरोध की शुरुआत मानना चाहिए।
इमाम ख़ामेनई
Dec 28, 1980
अरबईन के पैदल मार्च से इस्लाम को ताक़त मिलती है। यह हक़ की ताक़त है। यह इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त है जिसकी वजह से दसियों लाख ज़ायरीन कर्बला की ओर, इमाम हुसैन की ओर जो प्रतिष्ठा, क़ुरबानी और शहादत की आख़िरी मंज़िल पर हैं, चल पड़ते हैं।
इमाम ख़ामेनई
Oct 13, 2019
पवित्र प्रतिरक्षा के शहीदों और मुजाहेदीन की निष्ठापूर्ण क़ुरबानियां ईरानी जनता के लिए विजय और सफलता का उपहार लेकर आईं और उनके ख़ून से इतिहास में इस्लामी गणराज्य की सत्यता दर्ज हो गई।
यह मुजाहेदीन का बड़ा सबक़ हैः जहां निष्ठापूर्ण संघर्ष होगा विजय और सरबुलंदी मिलेगी।
इमाम ख़ामेनई
अगर आशूर क़ुरबानी के ज़रिए जेहाद का चरम बिंदु है तो यह चालीस दिन बयान के ज़रिए जेहाद का चरम बिंदु हैं।
पैग़म्बर के ख़ानदान के आंदोलन ने कर्बला की घटना को अमर कर दिया। यह बयान उस क़ुरबानी को मुकम्मल करने वाली कड़ी है।
इमाम ख़ामेनई
Sept 27, 2021