ज़ायोनी शासन के विपरीत इस्लामिक रेज़िस्टेंस फ़्रंट की ताक़त में लगातार इज़ाफ़ा रौशन मुस्तक़बिल की ख़ुशख़बरी दे रहा है। सामरिक और रक्षा ताक़त में इज़ाफ़ा, उपयोगी हथियार बनाने में आत्मनिर्भरता, मुजाहिदीन में आत्म विश्वास, नौजवानों में दिन ब दिन बढ़ती जागरूकता, पूरे फिलिस्तीन और उस से बाहर प्रतिरोध का फैलता दायरा, मस्जिदुल अक़्सा की रक्षा में मुसलमानों का हालिया आंदोलन, अटल सच्चाई है।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
रमज़ान की अलविदाई दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) कहते हैं कि तूने इस दरवाज़े को खोला है हमारे लिए ताकि हम उससे गुज़र कर तेरी रहमत की तरफ़ बढ़ें और तेरी रहमतों और बख़्शिश से फ़ायदा उठाएं। यह दरवाज़ा तौबा का दरवाज़ा है। ख़ुदा की मग़फेरत की तरफ़ एक खिड़की है। अगर ख़ुदा अपने बंदों के लिए तौबा का दरवाज़ा नहीं खोलता तो हम गुनहगारों की हालत बहुत ख़राब होती।
पूरी दुनिया के मुस्लिम भाईयों और बहनों को सलाम! इस्लामी दुनिया के सभी नौजवानों को सलाम! सलाम हो, फ़िलिस्तीन के बहादुर और ग़ैरतमंद नौजवानों पर! सलाम हो #फ़िलिस्तीन के अवाम पर!
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
ज़ायोनी दुश्मन हर साल पिछले साल की तुलना में ज़्यादा कमज़ोर हुआ है। उसकी फ़ौज जो ख़ुद को नाक़ाबिले शिकस्त बताती थी, आज लेबनान में 33 दिन और ग़ज़्ज़ा में 22 दिन और 8 दिन की जंगों में शिकस्त खाकर एक ऐसी फ़ौज बन कर रह गई है जो कभी कामयाबी का मुंह नहीं देख सकती।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
परवरदिगार! रमज़ान की रातें गुज़र गयीं, रमज़ान के दिन बीत गये और हमें यह भी नहीं मालूम कि इन गुज़र जाने वाली रातों और बीत जाने वाले दिनों में हम अपने वजूद को तेरी रहमतों से सजा पाए या नहीं। "अगर अब तक तक हम तुझे खुश करने में कामयाब नहीं हुए तो हमारी गुज़ारिश है कि अब हम से राज़ी हो जा।"
फ़िलिस्तीनी चाहे ग़ज़्ज़ा में हों, क़ुद्स में हों, वेस्ट बैंक के इलाक़े में हों, चाहे 1948 में ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े में लिए गए इलाक़ों में हों, चाहे कैम्पों में हों, सब एक सामाजिक इकाई हैं। उन्हें एक दूसरे से जुड़े रहने की स्ट्रैटेजी अपनानी चाहिए। हर इलाक़े को दूसरे इलाक़े की हिफ़ाज़त करनी चाहिए और उन पर दबाव की हालत में उन सभी संसाधनों को इस्तेमाल करना चाहिए जो उनके पास हैं।
दुआ, ख़ुदा के सामने बंदगी की निशानी है और इसका मक़सद, इन्सान में इबादत के जज़्बे को मज़बूत करना है। ख़ुदा के सामने उसका बंदा होने का एहसास और उसकी इबादत का जज़्बा, वही चीज़ है जिसके लिए तमाम नबियों ने कोशिश की है। उनकी कोशिश रही है कि इन्सानों के अंदर इस जज़्बे को ज़िन्दा किया जाए, इन्सान की सभी ख़ूबियों और उसके सभी अच्छे कामों की जड़, अल्लाह के सामने बंदगी का एहसास है।
क़ुद्स शरीफ़ के मुद्दे पर मुसलमानों में सहयोग और समन्वय से ज़ायोनी दुश्मन और उसके समर्थक अमरीका और यूरोप घबराए हुए हैं। सेंचुरी डील की नाकामी और उसके बाद क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के साथ कुछ कमज़ोर अरब सरकारों के रिश्ते, इस दहशत से फ़रार की नाकाम कोशिश है।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
दुनिया नए वर्ल्ड आर्डर की दहलीज़ पर खड़ी है। दो ध्रुवीय और एक ध्रुवीय व्यवस्था के मुक़ाबले में नया वर्ल्ड आर्डर। #यूक्रेन की जंग का गहराई से जायज़ा लेना चाहिए। यह जंग केवल एक देश पर हमला नहीं, इस कार्यवाही की जड़ें गहरी हैं और पेचीदा और कठिन भविष्य का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
26 अप्रैल 2022
नए संभावित वर्ल्ड आर्डर के वक़्त इस्लामी मुल्क ईरान और सभी देशों को चाहिए कि इस नए वर्ल्ड आर्डर में इस अंदाज़ से अपना वैचारिक और व्यवहारिक रोल अदा करें कि अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा की हिफ़ाज़त कर सकें। इस सिलसिले में सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी छात्रों की है।
इमाम ख़ामेनेई
26 अप्रैल 2022
इस साल #क़ुद्स_दिवस पिछले बर्सों से अलग है। पिछले रमज़ान और इस साल रमज़ान के महीने में फ़िलिस्तीनियों ने बड़ी क़ुरबानियां दीं और दे रहे हैं। ज़ायोनी हुकूमत भी जुर्म की हदें पार कर रही है और अमरीका व यूरोप उसकी मदद कर रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
26 अप्रैल 2022
इस्लामी जुम्हूरिया ईरान में हमारे लिए फ़िलिस्तीन का मामला, एक स्ट्रैटजिक मामला नहीं बल्कि यह हमारे ईमान, दिल और अक़ीदे का मामला है। क़ुद्स डे पर और हर साल रमज़ान के आख़िरी जुमे को जिसे इमाम ख़ुमैनी ने क़ुद्स दिवस कहा है, मुल्क के सभी शहरों में लोग सड़कों पर उतरते हैं। गर्मी हो, सर्दी हो कोई फ़र्क़ नहीं, लोग सड़कों पर आकर अपना लगाव ज़ाहिर करते हैं।
दिल सिर्फ़ नमाज़, दुआओं और अल्लाह की याद से पाक होता है। अगर कोई यह समझता है कि इन चीज़ों के बिना ही वह अपने दिल को पाकीज़ा बना सकता है तो वह बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में है। आधी रातों को रोने से, ग़ौर के साथ क़ुरआन पढ़ने से , सहीफ़ए सज्जादिया की दुआएं पढ़ने से इन्सान का दिल पाकीज़ा बनता है। यह नहीं होता कि हम कहें कि जनाब जाइए अपना दिल साफ़ करके आइए फिर जो जी में आए कीजिए।
दरअस्ल शबे क़द्र से, रोज़ेदार मोमिन अपने नये साल की शुरुआत करता है। शबे क़द्र में एक साल के लिए उसकी क़िस्मत, अल्लाह की तरफ से फ़रिश्ते लिखते हैं। इन्सान एक नये साल, नये मरहले और दरअस्ल नयी ज़िंदगी और नये जन्म का एहसास करता है। एक नये रास्ते पर चलता है और तक़वे से इस राह पर चलने में मदद लेता है।
शबे क़द्र दरअस्ल दुआ, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने और उसे याद करने का वक़्त है। इसके साथ ही यह रात इस बात का मौक़ा भी है कि हम हज़रत अली (अ.स.) के अज़ीम मक़ाम के बारे में कुछ जान लें और सबक़ सीखें। रमज़ान के महीने की जो भी फ़ज़ीलत बयान की जाए और इस महीने में अल्लाह के बन्दों के जो भी फ़रीज़े बताए जाएं, उन सब के लिए सब से अच्छे आइडियल, हज़रत अली (अ.स.) हैं।
शबे क़द्र वह रात है जिसे अल्लाह ने “सलाम” कहा है। सलाम का मतलब ख़ुदा की तरफ़ से इन्सानों को सलाम भी है और इसका एक मतलब, सलामती, सुल्ह, सुकून, लोगों में भाईचारा, दिलों और लोगों के बीच दोस्ती भी है। रूहानी लिहाज़ से, यह ऐसी रात है। शबे क़द्र की क़द्र करें और मुल्क की, अपनी, मुसलमानों और इस्लामी मुल्कों की परेशानियां दूर होने के लिए दुआ करें।
इन रातों में जैसा कि कल की रात थी, या आने वाले कल और 23 तारीख़ की रात होगी इन सब रातों में इस्लामी दुनिया के हर कोने में, जहां भी दीन पर अक़ीद है, लोगों के गिड़गिड़ाने की आवाज़ें सुनायी दे रही हैं, रोने की आवाज़ें, मदद मांगने की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं लोग अपने लिए, दूसरों के लिए दुआएं कर रहे हैं। आप लोग यह दुआ भी करें कि या अल्लाह! उन सभी मोमिनों की दुआएं क़ुबूल कर जो इन रातों में दुआएं कर रहे हैं। यह भी एक दुआ होना चाहिए।
शबे क़द्र में सब से अच्छा अमल, दुआ है। रातों को जागने का मक़सद भी दुआ और अल्लाह को याद करना है। दुआ, यानी अल्लाह से बात करना, अल्लाह को ख़ुद से क़रीब समझना और दिल की बातें उससे करना। दुआ या कोई मांग होती है, या अल्लाह की हम्द व प्रशंसा होती है या फिर अल्लाह से लगाव का इज़हार। यही दुआ है।
ख़ुदा से क़रीब होने के लिए अस्ली काम, गुनाहों से दूर होना है। मुस्तहेब नमाज़ें और दुआएं वग़ैरा तो दूसरे नंबर पर हैं। अस्ली चीज़ यह है कि इन्सान ख़ुद को गुनाहों और ग़लत कामों से रोक ले। इसके लिए तक़वे की ज़रूरत होती है। गुनाह की वजह से हमारा दिल, दुआ और अल्लाह की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाता। गुनाह हमें, ख़ुद को सुधारने और संवारने नहीं देता। इसलिए हमें गुनाहों से दूर रहने की कोशिश करना चाहिए।
आज 1948 में अवैध क़ब्ज़े में लिए गए इलाक़ों, उसी अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के केन्द्र में फ़िलिस्तीनी नौजवान जाग चुके हैं और संघर्ष कर रहे हैं। यक़ीनन यह संघर्ष जारी रहेगा और अल्लाह के वादे के मुताबिक़ फ़तह फ़िलिस्तीनी क़ौम का मुक़द्दर बनेगी।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
रमज़ान के मुबारक महीने में अपने दिलों को जितना हो सके, अल्लाह की याद से, नूरानी कर लें ताकि शबे क़द्र की पाकीज़ा रातों में जाने के लिए तैयार रहें कि जो “एक हज़ार महीनों से बेहतर हैं और जिसमें फ़रिश्ते और रूह नाज़िल होते हैं” यह वह रात है जिस में फ़रिश्ते ज़मीन को आसमान से मिला देते हैं, दिलों पर नूर की बारिश करते हैं और ज़िंदगी में ख़ुदा की रहमत व बरकत की रौशनी बिखेर देते हैं।
इमाम हसन (अ.स.) की विलादत का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हसन का नाम रखा और यह बहुत बड़ी बात है कि ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम उन का नाम और इस मुबारक बच्चे का नाम ' हसन' रखते हैं। यह दिन आप सब को मुबारक हो।
अमरीका और उसके घटकों की नीतियों और इच्छा के विपरीत जिनकी कोशिश थी कि फ़िलिस्तीन भुला दिया जाए और दुनिया के अवाम भूल ही जाएं कि फ़िलिस्तीन नाम का कोई इलाक़ा और फ़िलिस्तीनी मिल्लत नाम की कोई क़ौम थी, फ़िलिस्तीन का मुद्दा दिन बदिन ज़्यादा उभरता जा रहा है।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
ईद के दिन इमाम हसन (अ.स.) एक जगह से गुज़र रहे थे। आप ने देखा कि कुछ लोग, इस दिन की अहमियत से बेख़बर खड़े होकर खेल तमाशा कर रहे हैं और हंस रहे हैं। इमाम हसन (अ.स.) ने उन लोगों के पास खड़े होकर कहाः ख़ुदा ने रमज़ान को अपने बंदों के बीच मुक़ाबले का मैदान बनाया है। आज के दिन उन लोगों को इनाम मिलेगा जो रमज़ान के दौरान, ख़ुदा को ख़ुश करने में कामयाब रहे हैं ।
#सऊदी साहेबान से एक बात वाक़ई नसीहत के तौर पर कहना है। जिस जंग के बारे में आपको यक़ीन है कि इस में फ़तह नहीं मिलने वाली उसे जारी रखने की क्या वजह है? कोई रास्ता तलाश कीजिए और इस जंग से ख़ुद को निजात दिलाइए।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
इमाम हसन (अ.स.) के लिए इमाम अली (अ.स.) की वसीयत में यह कहा गया है कि ख़ुदा ने अपने और तुम्हारे बीच कोई दूरी और कोई पर्दा नहीं रखा है। जब भी तुम उससे बात करना शुरु करते हो, जैसे ही तुम अपनी ज़रूरतें उसके सामने बयान करना शुरु करते हो वैसे ही ख़ुदा तुम्हारी आवाज़ सुनने लगता है। अल्लाह से कभी भी बात की जा सकती है।
हुकूमत के ओहदेदार अपने प्रोग्रामों के सिलसिले में एटमी वार्ता के नतीजे का इंतेज़ार न करें, अपना काम जारी रखें। यह न हो कि वार्ता का नतीजा सार्थक, पचास प्रतिशत सार्थक या नकारात्मक रहे तो आपके प्रोग्रामों में रुकावट पैदा हो जाए। आप अपना काम करते रहिए।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
इन रातों में सहर में, रातों में जो दुआएं हैं, शबे क़द्र की जो दुआएं हैं या फिर शबे क़द्र की ही नहीं बल्कि हर रात के लिए जो दुआएं हैं, वह बहुत अहम हैं, दुआओं में जो अहम बातें हैं वह तो अपनी जगह, लेकिन दुआ पढ़ते वक़्त इन्सान जिस तरह से गिड़गिड़ाता और अल्लाह के सामने रोता है वह खुद काफ़ी अहम चीज़ है।
रोज़े की हालत में या फिर रोज़े की वजह से पैदा होने वाली नूरानियत की हालत में, रमज़ान की रातों में क़ुरआने मजीद की तिलावत, क़ुरआने मजीद से लगाव, ख़ुदा की बातें सुनने का अलग ही मज़ा है। इन हालात में तिलावत से इन्सान जो कुछ सीखता है वह आम हालात में उसके लिए मुमकिन नहीं है।
कूटनीति में परमाणु मुद्दे पर तवज्जो है। वार्ताकार टीम राष्ट्रपति और सुप्रीम नेश्नल सेक्युरिटी काउंसिल को ब्योरा देती है, फ़ैसला होता और अमल किया जाता है। टीम ने अब तक दूसरे पक्ष की ग़लत मांगों का मुक़ाबला किया है और यह सिलसिला जारी रहेगा।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
#एटमी_डील के विषय में अमरीकियों ने वादा ख़िलाफ़ी की और अब इसी वादा ख़िलाफ़ी में उलझ कर रह गए हैं। इत्तेफ़ाक़ से वह बंद गली में पहुंच गए हैं। जबकि इस्लामी गणराज्य इस तरह की स्थिति में नहीं उलझा।
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022
मेरे दोस्तो! क़ुरआन से ज़्यादा क़रीब हो जाइए। अल्लाह की याद और तक़वा तक अगर हम पहुंच जाएं तो फिर क़ुरआन की हिदायत भी हमारे लिए आसान हो जाएगी। क्योंकि क़ुरआन तक़वा वाले लोगों के लिए हिदायत है, अगर तक़वा होगा तो हिदायत यक़ीनी है। हिदायत, तक़वा रखने वालों के लिए है। जितना तक़वा ज़्यादा होगा हिदायत, ज़्यादा साफ़ और अच्छी होगी। हमें इस पर ध्यान से काम करना चाहिए।
हज़रत ख़दीजा दर हक़ीक़त बारह इमामों की मां हैं। आप अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की भी मां हैं। आपने कई साल अपनी गोद में अमीरुल मोमेनीन को पाला।
इमाम ख़ामेनेई
9 मई 2016
अबू हम्ज़ा सिमाली दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) कहते हैं “ मेरे और मेरे उन गुनाहों के बीच दूरी पैदा कर दे जो तेरी इताअत की राह में रुकावट हैं।“ इससे यह पता चलता है कि इन्सान जो गुनाह करता है वह इन्सानों को परवाज़ से और ऊपर उठने से रोकते हैं।
ख़ुद अपना हिसाब करना बहुत अच्छा काम है। इन्सान को अपना हिसाब लेना चाहिए, यानि एक एक करके अपने गुनाहों की तादाद कम करना चाहिए। हमें कुछ गुनाहों की आदत पड़ जाती है। किसी किसी को तो पांच-छे-दस गुनाहों की आदत पड़ जाती है, पक्का इरादा करें और इन गुनाहों को एक एक करके छोड़ दें।
मकारिमे अख़लाक़ की उस दुआ को जो सहीफ़ए सज्जादिया की बीसवीं दुआ है, बहुत ज़्यादा पढ़ें ताकि आप यह देख सकें कि इस दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) ने ख़ुदा से जो चीज़ें मांगी हैं वह क्या हैं? इमामों के बयानों से, सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं से यानि हमारी अख़लाक़ी बीमारियों को ठीक करने वाली इन दवाओं की जो हमारे वजूद के ज़ख्मों को भर सकती हैं, हमें मालूमात हासिल करना चाहिए।
इसका रास्ता यह है कि हमारे बच्चे क़ुरआन के मैदान में उतरें। बच्चे मैदान में उतर पड़े तो यह मिशन मुमकिन हो जाएगा। इसका तरीक़ा यह है कि यह काम मस्जिदों में अंजाम पाए। हर मस्जिद क़ुरआनी मरकज़ बन जाए।
इमाम ख़ामेनेई
3 अप्रैल 2022
रमज़ान के महीने का सब से अहम फल, तक़वा है। “वह हाथ जो अपनी लगाम थामे रहे” यह है तक़वा का मतलब। हम दूसरों की लगाम तो बहुत अच्छे से पकड़ लेते हैं लेकिन अगर हम अपनी लगाम भी पकड़ सकें, ख़ुद को बिगड़ने, वहशीपन और ख़ुदा की रेड लाइनों को पार करने से रोक सकें तो यह बहुत बड़ा कमाल है। तक़वा का मतलब है अल्लाह के सीधे रास्ते पर चलने के दौरान अपने ऊपर नज़र रखना।