अध्यात्म व पाकीज़गी के मर्तबों को हासिल करने में औरत और मर्द में कोई अंतर नहीं है। अल्लाह मानव इतिहास में हज़रत ज़हरा जैसी महिला को पैदा करता है जो (इमाम के) एक क़ौल के मुताबिक़, "हम मख़लूक़ पर अल्लाह की हुज्जत हैं और हमारी दादी फ़ातेमा हम पर हुज्जत हैं।" फ़ातेमा ज़हरा अल्लाह की हुज्जत हैं, इमामों की इमाम हैं; क्या इससे बढ़कर कोई शख़्सियत हो सकती है?
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 2013
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा स्वर्ग की औरतों की सरदार हैं। बहादुरी का सबक़, त्याग का सबक़, दुनिया में ज़ोहद का सबक़, मारेफ़त हासिल करने का सबक़, दिलों तक मारेफ़त पहुंचाने का सबक़, इंसान के बौद्धिक लेहाज़ से परिपक्व टीचर के मक़ाम पर पहुंचना, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के सबक़ हैं।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2018
इंसान की पैदाइश और इंसानियत के लंबे इतिहास में एक हक़ीक़त पायी जाती है और वह यह है कि सत्य और असत्य के बीच संघर्ष, एक दिन सत्य के पक्ष में और असत्य के ख़िलाफ़ ख़त्म होगा और उस दिन के बाद से इंसान की वास्तवकि दुनिया और इंसान की पसंदीदा ज़िंदगी शुरू होगी जिसमें संघर्ष, जंग के मानी में नहीं है बल्कि भलाइयों में एक दूसरे से आगे निकलने के मानी में है।
इमाम ख़ामेनेई
17/08/2008
इमाम महदी अलैहिस्सलाम हमारी इलतेजा और अल्लाह की बारगाह में उन्हें सिफ़ारिश का वसीला क़रार दिए जाने की गुज़ारिश को सुनते हैं और हमारी इलतेजा को क़ुबूल भी करते हैं। हम अपने सुनने वाले से जो हमसे दूर है, अपने दिल का हाल बयान करते हैं तो इसमें कोई हरज नहीं है। अल्लाह सलाम करने वालों और पैग़ाम देने वालों का पैग़ाम और सलाम इमाम महदी तक पहुंचाता है। यह वसीला क़रार देना और यह आध्यात्मिक लगाव अच्छा और ज़रूरी काम है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
इतिहास में बहुत से दावेदार पैदा हुए हैं। ये दावेदार किसी एक निशानी को अपने ऊपर या किसी और पर मैच कर लेते थे। यह पूरी तरह ग़लत है। कुछ बातें जो इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ाहिर होने की निशानी के तौर पर बयान की जाती हैं, निश्चित नहीं हैं। यह ऐसी बातें हैं जिनका भरोसेमंद रवायतों में ज़िक्र नहीं मिलता। कमज़ोर रवायतों में ज़िक्र ज़रूर मिलता है इसलिए उनको माना नहीं जा सकता।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
इंतेज़ार के मसले में बहुत बारीकी के साथ साइंटिफ़िक तरीक़े से काम करने की ज़रूरत है। इस सिलसिले में प्रचलित जाहेलाना बातों से सख़्ती से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि इन बातों से इमाम महदी होने का झूठा दावा करने वालों के लिए रास्ता समतल होता है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
मनहूस और दुष्ट ज़ायोनी सरकार के सिलसिले में दुनिया में एक बड़ी कोताही हो रही है। सरकारें, क़ौमें ख़ास तौर पर सरकारें, यूएन वग़ैरह जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन हक़ीक़त में ज़ायोनी शासन से मुक़ाबला करने के सिलसिले में कोताही कर रहे हैं। यह कृत्य जो ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा में किया और कर रहा है, जो कुछ उसने लेबनान में किया और कर रहा है, सबसे बर्बर युद्ध अपराध हैं।
हर चीज़ को जो कुछ भी किसी शख़्स के दिमाग़ में आए, उसे साइबर स्पेस पर नहीं डालना चाहिए, आप देखिए कि उसका असर क्या है, देखिए लोगों पर, लोगों की सोच पर, लोगों के जज़्बात पर उसका क्या असर होता है।
कुछ लोग अपनी ख़बर से, अपनी टिप्पणी से, घटनाओं के संबंध में अपनी समीक्षा से लोगों में शक पैदा कर देते हैं, डर पैदा कर देते हैं, यह चीज़ अल्लाह की नज़र में अस्वीकार्य है; इस संदर्भ में क़ुरआन का स्टैंड बहुत ठोस है, क़ुरआन इस बारे में साफ़ तौर पर कहता हैः "अगर मुनाफ़ेक़ीन और वे लोग जिनके दिलों में बीमारी है और मदीना में अफ़वाहें फैलाने वाली (अपनी हरकतों से) बाज़ न आए..." (सूरए अहज़ाब, आयत-60) "मुर्जेफ़ून" यही लोग हैं। मुर्जेफ़ून यानी वे लोग जो लोगों के दिलों में बेचैनी पैदा करते हैं, डर पैदा करते हैं। अगर इन लोगों ने यह हरकतें बंद न कीं तो अल्लाह पैग़म्बर से फ़रमाता हैः "तो हम आपको उनके ख़िलाफ़ हरकत में ले आएंगे..."(सूरए अहज़ाब, आयत-60) तो हम आपको हुक्म देंगे कि आप जाकर उन्हें सज़ा दें।
कुछ लोग समीक्षाओं में, मसले को अजीब तरह से देखते हुए यह सोचते हैं कि अगर हम चाहते हैं कि मुल्क, सुरक्षित रहे तो हमें बड़ी ताक़तों को नाराज़ करने वाले उपकरणों के क़रीब नहीं जाना चाहिए; मिसाल के तौर पर "क्या ज़रूरी है कि हमारे पास फ़ुलां रेंज का मीज़ाइल हो कि वे लोग संवेदनशील हो जाएं!" वे सोचते हैं कि इस तरह इस शक्ल में वे मुल्क को सुरक्षित बना सकते हैं, मतलब यह है कि अस्ल में वे यूं सोचते हैं कि अगर आप चाहते हैं कि अमन में रहें तो कमज़ोर रहिए, अपने लिए ताक़त के साधन मुहैया न कीजिए, कुछ लोग इस तरह से सोचते हैं; यह ग़लत है।
इंतेज़ार की हक़ीक़त में एक और ख़ुसूसियत शामिल कर दी गयी है और वह ख़ुसूसियत यह है कि इंसान मौजूदा स्थिति को काफ़ी न समझे बल्कि दिन ब दिन उसमें इज़ाफ़ा, उन हक़ीक़तों और आत्मिक ख़ूबियों को अपने भीतर और समाज के स्तर पर लागू करने की कोशिश करे। यह इंतेज़ार की ज़रूरी शर्त है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
आप क़ुरआन मजीद पढ़िए, सुरक्षा के विषय को अल्लाह इतना ऊपर ले आता है कि इसे मुसलमानों को बहुत बड़ी नेमत के तौर पर याद दिलाता हैः "तो उनको चाहिए कि इस घर (ख़ानए काबा) के परवरदिगार की इबादत करें। जिसने उनको भूख में खाने को दिया और ख़ौफ़ में अमन अता किया।" (सूरए क़ुरैश, आयत-3 और 4) यानी उस अल्लाह की इबादत करो जिसने तुम्हे ये बड़ी नेमतें दी हैं, उसने तुम्हें सुरक्षा दी है, तुम्हारे लिए अमन से भरी सुरक्षित ज़िंदगी गुज़ारने का अवसर मुहैया किया है।
इंतेज़ार का तक़ाज़ा यह है कि इंसान ख़ुद को उसी हालत में ढाले और वही अख़लाक़ व अंदाज़ अख़्तियार करे जो उस ज़माने के लिए मुनासिब है जिसका उसे इंतेज़ार है। हमें चाहिए कि न्याय को सपोर्ट करें, ख़ुद को हक़ के सामने समर्पित रहने के लिए तैयार करें। इंतेज़ार इस तरह की हालत पैदा कर देता है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
शैख़ अहमद यासीन, फ़त्ही शक़ाक़ी, रन्तीसी और इस्माईल हनीया जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों की शहादत के बाद इस मोर्चे की प्रगति में कोई रुकावट नहीं आयी तो सिनवार की शहादत से भी इंशाअल्लाह तनिक भी रुकावट नहीं आएगी।
वह रेज़िस्टेंस और जेहाद का चमकता चेहरा थे जो फ़ौलादी इरादे के साथ ज़ालिम व हमलावर दुश्मन के मुक़ाबले में डटे रहे, युक्तिपूर्ण कोशिशों और बहादुरी से उसके मुंह पर तमांचा मारा, इस क्षेत्र के इतिहास में 7 अक्तूबर जैसा वार यादगार के तौर पर छोड़ा, जिसकी भरपाई नामुमकिन है।
यहया सिनवार जैसा इंसान जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी क़ाबिज़ व ज़ालिम दुश्मन के ख़िलाफ़ संघर्ष में बितायी, उसके लिए शहादत के अलावा कोई अंजाम मुनासिब नहीं था।
इस्लाम में इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित अक़ीदा पूरी तरह मान्य अक़ीदों में है। सभी इस्लामी मतों का यह मानना है कि अंततः दुनिया में इमाम महदी के हाथों न्याय व इंसाफ़ का राज क़ायम होगा।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
अक्तूबर 2023 से ज़ायोनी सरकार ने ग़ज़ा में जातीय सफ़ाए की जंग में 16800 से ज़्यादा बच्चों को क़त्ल किया है।
कल्पना से परे यह जुर्म, भेड़िया समान, बच्चों की हत्यारी ज़ायोनी सरकार की अस्लियत है कि जिसका हल उसका विनाश और अंत है।
इमाम ख़ामेनेई
23 जुलाई 2014
अक्तूबर 2023 से ज़ायोनी सरकार ने ग़ज़ा में रोज़ाना अवसतन 45 से ज़्यादा बच्चों का क़त्ल किया है।
कल्पना से परे यह जुर्म, भेड़िया समान, बच्चों की हत्यारी ज़ायोनी सरकार की अस्लियत है कि जिसका हल उसका विनाश और अंत है।
इमाम ख़ामेनेई
23 जुलाई 2014
अगर इमाम महदी के प्रकट होने का अक़ीदा न हो तो इसका मतलब यह होगा कि पैग़म्बरों की सारी कोशिशें, यह सत्य की ओर दावत, ये पैग़म्बरों का भेजा जाना, ये सबके सब बेकार की कोशिश थी, बेफ़ायदा थी।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
लेबनान के निहत्थे लोगों के जनसंहार ने जहाँ एक बार फिर ज़ायोनी पागल कुत्ते की हैवानियत को सबके सामने स्पष्ट कर दिया है, वहीं इससे अवैध क़ब्ज़े वाली सरकार के शासकों की छोटी सोच और मूर्खतापूर्ण नीति भी साबित हो गई है।
इंसानियत ने इन गुज़री हुयी सदियों के दौरान पैग़म्बरों की शिक्षाओं के प्रभाव में जो कुछ किया है वह हक़ीक़त में उस राजमार्ग की ओर बढ़ने की कोशिश है जो इमाम महदी अलैहिस्सलाम -अल्लाह उन्हें जल्द से जल्द ज़ाहिर करे- के ज़ाहिर होने के ज़माने में इंसानियत को उच्च लक्ष्यों की ओर ले जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
09-07-2011
(लेबनान और फ़िलिस्तीन की) इस जंग में भी काफ़िर और ख़बीस (ज़ायोनी) दुश्मन सबसे ज़्यादा हथियारों से लैस है। अमेरिका उसकी पीठ पर है। अमेरिकी कहते हैं कि हमारा कोई दख़ल नहीं है, हमें ख़बर नहीं है, वे झूठ बोलते हैं। उन्हें ख़बर भी है और वे दख़ल भी दे रहे हैं।
25 सितम्बर 2024
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की नज़र में फ़िलिस्तीन के संबंध में इस्लामी जगत की ज़िम्मेदारियां
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मुल्क के आला अधिकारियों, विदेशी राजदूतों और इस्लामी एकता कान्फ़्रेंस में भाग लेने वालों से मुलाक़ात में, 21 सितम्बर 2024 को ज़ायोनी सरकार के अपराधों की ओर इशारा करते हुए इस्लामी जगत की ओर से फ़िलिस्तीनी क़ौम के प्रति मौजूदा सपोर्ट के अनेक पहलूओं का ज़िक्र किया, जिन्हें इन्फ़ोग्राफ़ में पेश किया जा रहा है।
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने का अक़ीदा जिस चीज़ की ख़ुशख़बरी देता है वह वही चीज़ है जिसके लिए सभी पैग़म्बर व ईश्वरीय दूतों को नियुक्त किया गया। यह मुख्य लक्ष्य है। इंसान का अल्लाह की ओर से दी गयी सभी सलाहियतों को इस्तेमाल करते हुए इंसाफ़ की बुनियाद पर तौहीद के अक़ीदे वाले समाज का गठन करना है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011
फ़िलिस्तीन के स्कूल और कालेज के स्टूडेंट्स, टीचरों, स्कूल स्टाफ़ और यूनिवर्सिटी के शिक्षकों पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बारे में फ़िलिस्तीन के शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्टः
फ़िलिस्तीन के स्कूल और कालेज के स्टूडेंट्स, टीचरों, स्कूल स्टाफ़ और यूनिवर्सिटी के शिक्षकों पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बारे में फ़िलिस्तीन के शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्टः
फ़िलिस्तीन के स्कूल और कालेज के स्टूडेंट्स, टीचरों, स्कूल स्टाफ़ और यूनिवर्सिटी के शिक्षकों पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बारे में फ़िलिस्तीन के शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्टः
इस्लाम ने फ़ैमिली का ढांचा भीतर से कुछ ऐसा बनाया है कि आपसी मतभेद अपने आप हल हो जाएं। उसने मर्द को हुक्म दिया है कि वह बीवी का ख़याल रखे और बीवी को हुक्म दिया है कि वह शौहर का ख़याल रखे। अगर आपसी सम्मान व लेहाज़ पर सभी पहलुओं से अमल हो तो कोई भी फ़ैमिली बिखर नहीं सकती और न ही तबाह होगी।
इमाम ख़ामेनेई
11/06/2013
इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के बारे में अक़ीदा, धार्मिक आस्थाओं और शिक्षाओं के कुछ सबसे अहम आधारों में से एक है, जैसे कि पैग़म्बरी का अक़ीदा। इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में अक़ीदे की अहमियत इस तरह की है। क्यों? इस लिए कि ये अक़ीदा जिस चीज़ की ख़ुशख़बरी देता है वो वही चीज़ है जिसके लिए सभी नबियों और पैग़म्बरों को भेजा गया।
इमाम ख़ामेनेई
9/7/2011
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम उसी सामर्रा शहर में, जो अस्ल में एक फ़ौजी छावनी की तरह था, पूरे इस्लामी जगत के साथ व्यापक संपर्क वाला संचार व प्रचार का एक ज़बरदस्त नेटवर्क स्थापित करने में कामयाब हुए।
इमाम ख़ामेनेई
10 मई 2003
आज इंसान का मन यह जानने, समझने और यक़ीन करने के लिए तैयार है कि एक अज़ीम इंसान आएगा और इंसानियत को ज़ुल्म व सितम से मुक्ति दिलाएगा। यह वही चीज़ है जिसका वादा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि वआलेही वसल्लम के ज़रिए क़ुरआन मजीद में किया गया है। "और वह उन पर से संगीन बोझ उतारता और बंदिशें खोलता है।" (सूरए आराफ़, आयत-157)
इमाम ख़ामेनेई
24/11/1999
अमरीकियों ने मानवाधिकार की रक्षा का झंडा उठा रखा है और वे कहते हैं कि हम मानवाधिकार के पाबंद हैं और वह भी सिर्फ़ अपने मुल्क में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में! यह तो सिर्फ़ एक दावा है, वे व्यवहार में क्या कर रहे हैं? व्यवहारिक तौर पर वे मानवाधिकार को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचा रहे हैं और मुख़्तलिफ़ मुल्कों में मानवाधिकार का सबसे ज़्यादा अनादर कर रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
16 फ़रवरी, 2013