इंतेज़ार का तक़ाज़ा यह है कि इंसान ख़ुद को उसी हालत में ढाले और वही अख़लाक़ व अंदाज़ अख़्तियार करे जो उस ज़माने के लिए मुनासिब है जिसका उसे इंतेज़ार है। हमें चाहिए कि न्याय को सपोर्ट करें, ख़ुद को हक़ के सामने समर्पित रहने के लिए तैयार करें। इंतेज़ार इस तरह की हालत पैदा कर देता है।
इमाम ख़ामेनेई
09/07/2011