आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने पाकीज़ा डिफ़ेंस सप्ताह और शहीदों की याद में मनाए जाने वाले विशेष दिवस "मेहमानिए लालेहा" के मौक़े पर शहादत को संघर्ष का इनाम बताया और बल दिया कि क़ौमें इन संघर्षों से विकास करती हैं और इन शहादतों से ज़िंदगी पाती और अपनी जलवा बिखेरती हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का पैग़ाम, पूरे मुल्क में शहीदों की क़ब्रो पर फूल चढ़ाए जाने के प्रोग्राम में जो "मेहमानिए लालेहा" के नाम से मनाया जाता है, शहीद और बलिदानियों के मामलों की संस्था में उनके प्रतिनिधि जनाब हुज्जतुल इस्लाम मूसवी मुक़द्दम ने तेहारन के बहिश्ते ज़हरा क़ब्रिस्तान में पढ़कर सुनाया, जो इस प्रकार हैः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
इस साल के पाकीज़ा डिफ़ेंस सप्ताह की शान, इस्लामी रेज़िस्टेंस के मार्ग पर कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों और मुख़्तलिफ़ जगहों पर बहादुर जवानों की शहादत से, बहुत बढ़ गयी है।
शहादत, संघर्ष का इनाम है, चाहे 8 वर्षीय डिफ़ेंस हो चाहे 12 दिन की बहादुरी भरी लड़ाई हो, चाहे लेबनान, ग़ज़ा पट्टी और फ़िलिस्तीन हो, क़ौमें इन शहादतों से विकसित होती हैं और इन शहादतों से उन्हें ज़िंदगी मिलती है और वे अपना जलवा बिखेरती हैं। अहम बात यह है कि हक़ की जीत और बातिल के पतन के बारे में अल्लाह के वादे पर यक़ीन रखें और अल्लाह के दीन की मदद के प्रति अपने फ़रीज़े के पाबंद रहें।
सैयद अली ख़ामेनेई
24 सितम्बर 2025