इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने 24 अगस्त 2025 को हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस की सभा से ख़िताब करते हुए आठवें इमाम की ज़िंदगी में घटने वाले कुछ वाक़यों का ज़िक्र किया और साथ ही अहम राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बात की। (1)
स्पीच इस प्रकार हैः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के पालनहार के लिए है और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल, हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी पाक व पाकीज़ा, चुनी हुई, हिदायत-याफ़्ता और हिदायत देने वाली मासूम व सम्मानीय नस्ल पर ख़ास कर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
पूरी सृष्टि ख़ास तौर पर ईरानियों के वलीए नेमत और मेहरबान इमाम, हज़रत अली बिन मूसा अर्रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर सांत्वना पेश करता हू। यह सभा भी आप की ही कृपा है कि यह अवसर मिला कि यह श्रद्धापूर्ण सभा आयोजित हो और आप लोगों से मुलाक़ात हो। कुछ जुमले हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में और कुछ बातें मौजूदा मुद्दों के बारे में पेश करुंगा।
हज़रत अली बिन मूसा अर्रिज़ा अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी में निरंतरता के साथ बड़े वाक़ए हुए और उन्हीं में से एक आपका मदीने से तूस, मर्व और ख़ुरासान आना है। आपकी ज़िंदगी में दूसरे अनेक वाक़ए भी हुए। आपके ख़ुरासान के सफ़र के नतीजों में, अहलेबैत के मत के लिए उसके फ़ायदे भी शामिल हैं। यानी अगरचे आपको उस सफ़र के लिए मबजूर किया गया था और आप अपनी मर्ज़ी से ख़ुरासान नहीं आए थे, लेकिन अल्लाह ने आपके उस सफ़र में बर्कत अता फ़रमायी और आपके उस सफ़र के दौरान और शहादत के बाद जो बड़े वाक़ए हुए उन से अहलेबैत के मत का असाधारण प्रचार हुआ। अहलेबैत का मत तनहाई का शिकार था, मज़लूम था, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद, इस्लामी जगत में जहाँ भी शिया थे, उन्हें अनगिनत मुश्किलों का सामना था, वे शारिरिक मुश्किलों, आर्थिक परेशानियों और मानसिक परेशानियों का शिकार थे। ये मुश्किलें और मसले इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दौर में धीरे धीरे कम हुए, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के दौर में और कम हुए, उसके बाद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने में इस तनहाई की हालत में कमी आयी लेकिन इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के दौर में इस्लामी जगत में अहलेबैत के मत का प्रचार व प्रसार हुआ।
आपके उस सफ़र से शियों का मनोबल बढ़ा और उस हौसले ने शिया मत की रक्षा की। उस वाक़ए को आज क़रीब 1200 वर्ष हो रहे हैं और इस दौरान अहलेबैत के मत का पालन करने वालों की तादाद में दिन ब दिन इज़ाफ़ा हुआ है। उनमें शिया भी हैं और अहलेबैत की शिक्षाओं में विश्वास रखने वाले ग़ैर शिया भी हैं। ऐसे लोग ज़्यादा है जो शिया नहीं हैं लेकिन अहलेबैत की शिक्षाएं और उनके वैचारिक उसूलों पर विश्वास रखते हैं। यह हज़रत इमाम रज़ा के मदीने से ख़ुरासान आगमन का नतीजा था। आपकी मौजूदगी में जो वाक़ए हुए, जो वार्ताएं और डिबेट हुए, आपने मामून और अवाम के साथ जो रवैया रखा, उस समय के अधिकारियों के साथ जो आपका बर्ताव था, उसका प्रभाव यह था कि निगाहों में शियों की महानता बढ़ी और अहलेबैत के मत का स्थान ऊंचा हुआ।
दूसरा प्रभाव जिस पर मैं बल देना चाहता हूं, यह है कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने आशूरा की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के मक़सद को लोगों तक पहुंचाया। यानी अवाम के बीच ख़ुद आशूरा की घटना इस बात का कारण बनी कि इतिहास में शियों को ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्ष का ध्वजवाहक माना गया।
कर्बला का वाक़ेया ऐसा था जिसने लोगों के दिलों में जगह बना ली और जिस हस्ती ने उसको एक आंदोलन का रूप दिया वह हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम थे। यह इब्ने शबीब, रय्यान बिन शबीब की मशहूर रवायत कि हज़रत ने फ़रमाया, "अगर किसी चीज़ पर आंसू बहाना चाहो तो हुसैन (अलैहिस्सलाम) पर रोओ।" (2) यह रवायत का शुरू का भाग है। यह रवायत बहुत लंबी है। बहुत अहम है। "किसी चीज़ पर भी आंसू बहाना चाहो तो हुसैन पर रोओ...।" यह रवायत कर्बला की घटना की अहमियत को बताती है। उसके बाद इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए जाने वालों, आपकी अज़ादारी करने वालों और आप पर रोने वालों के लिए, अज़ीम वादे कि क़यामत में हमारे साथ महशूर होंगे, हमारे साथ रहेंगे वग़ैरह वग़ैरह, ये बातें भी इस रवायत में मौजूद हैं।
जब कर्बला का वाक़ेया हुआ और हुसैन बिन अली (अलैहेमस्सलाम) की शहादत बयान हुयी तो स्वाभाविक तौर पर यह सवाल उठता है कि आपको क्यों शहीद किया गया? यह सवाल इस्लाम की बहुत सी सामाजिक शिक्षाओं की कुंजी है। क्यों शहीद हुए? क्या हुआ कि पैग़म्बरे इस्लाम के निधन के क़रीब 50 साल बाद इतनी बड़ी मुसीबत आयी, हुआ क्या था? यह बुनियादी सवाल है। मानव इतिहास की घटनाएं और मुसलमानों के फ़रीज़े इस सवाल से ज़ाहिर हो सकते हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। आप नाइंसाफ़ी को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस्लामी समाज पर मुनाफ़िक़ और भ्रष्ट लोगों का वर्चस्व क़ुबूल नहीं था। आप यह नहीं क़ुबूल कर सकते थे। यह बहुत अहम बातें हैं। जब कर्बला का वाक़ेया बयान होगा तो स्वाभाविक तौर पर ये बातें भी बयान होंगी।
यह कुछ जुमले हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में थे कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बयान की बर्कत से कर्बला का वाक़ेआ और आशूरा बयान हुए, यह बहुत अहम है।
मुल्क के मौजूदा मुद्दों के संबंध में यह कहना है कि लड़ाई हुयी, ईरानी क़ौम पर गंभीर मुसीबतें थोपी गयीं, जंग थोपी गयी, क़ौम ने पूरी ताक़त से दृढ़ता दिखाई और अपनी दृढ़ता से दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन घटनाओं ने दुनिया के लोगों की निगाह में ईरान की महानता बढ़ा दी, एक नया सम्मान दिया, यह ख़ुद इस वाक़ए के संबंध में है।
एक सवाल यह पैदा होता है कि ईरान से अमरीका की दुश्मनी किस वजह से है? दिखने में यह बहुत आसान है लेकिन हक़ीक़त में बहुत जटिल है। इस सवाल का जवाब बहुत अहम है, जवाब जटिल भी है। यह दुश्मनी आज की नही है। 45 बरस से अमरीकी सरकारें, अनेक प्रकार के लोग और अमरीकी पार्टियां, जो सत्ता में आती रहीं, उन्होंने इस्लामी गणराज्य ईरान और ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ यही दुश्मनी, यही पाबंदी और यही धमकी जारी रखी। इसकी वजह क्या है? अतीत में इसकी वजह छिपाती रहीं हैं, अनेक नामों से, आतंकवाद के नाम पर, मानवाधिकार के नाम पर, महिलाओं से संबंधित मुद्दे के नाम पर, प्रजातंत्र के नाम पर, मुख़्तलिफ़ नामों से इसे छिपाती रहीं और अगर कहती भी थीं तो सम्मानजनक रूप में कहती थीं कि हम ईरान का व्यवहार बदलना चाहते हैं, अतीत में इस तरह की बातें किया करती थीं। यह जनाब जिनके हाथ में इस वक़्त अमरीका की सत्ता है, (3) उन्होंने पोल खोल दी, अस्ल बात को ज़ाहिर कर दिया; उन्होंने कह दिया कि ईरान से, ईरानी क़ौम से हमारी लड़ाई इसलिए है कि ईरान अमरीका के अधीन रहे! हम ईरानियों को यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिए; यह अहम मसला है। अलबत्ता मुमकिन है कि हमने जो बात कही है, उनकी व्याख्या इससे कुछ अलग हो, मिसाल के तौर पर यह हो कि "ईरान हमारी बात सुने" यह बात कही हो, यानी दुनिया में एक सरकार और एक ताक़त ऐसी है जो ईरान से, ऐसे इतिहास, ऐसे सम्मान और ऐसा राष्ट्र रखने वाले ईरान से यह चाहती है कि यह मुल्क अपने इस इतिहास, इस महान क़ौम और अपने तमाम कारनामों के साथ, उसका अनुपालन करे! दुश्मनी की वजह यह है; दुश्मनी इसलिए है। जो लोग यह कहते है कि "जनाब अमरीका के ख़िलाफ़ नारे न लगाइये वे ग़ुस्सा होते हैं, आपसे दुश्मनी करते हैं" यह लोग सिर्फ़ ज़ाहिरी बातों को देखते हैं।
जो लोग यह कहते हैं कि "अमरीका से सीधे बातचीत करके मसले हल क्यों नहीं करते?" मेरी नज़र में ये लोग सिर्फ़ ज़ाहिर को देखते हैं। अस्ल बात यह नहीं है। यह मसला हल होने वाला नहीं है। वे चाहते हैं कि ईरान अमरीका का अनुपालन करे। ईरानी अवाम को इस अपमान से शिकवा है और जो लोग ईरान से यह ग़लत अपेक्षा रखते हैं, उनके मुक़ाबले में डटे हुए हैं। पूरी ताक़त से उनका मुक़ाबला कर रहे हैं। हालिया जंग भी इसीलिए थी। ज़ायोनी सरकार को आगे बढ़ाया, वरग़लाया, उसका सपोर्ट किया और ईरान पर हमले के लिए उसकी मदद की कि उनके ख़याल में, ईरान का काम ख़त्म कर दे। इस्लामी गणराज्य का काम ख़त्म कर दे! वे यह नहीं समझ रहे थे कि ईरान उनकी हरकत पर ऐसा तमांचा रसीद करेगा कि उन्हें पछताने पर मजबूर कर देगा। उन्होंने यह नहीं सोचा था। वे समझ रहे थे कि इस हमले से ईरान का काम तमाम हो जाएगा। देखिए 13 जून को ईरान पर हमला हुआ, एक दिन बाद यानी 14 जून को कुछ लोग एक योरोपीय राजधानी में बैठकर इस्लामी गणराज्य के सिस्टम के विकल्प की बात कर रहे थे! मैंने सुना कि दो तीन दिन पहले टेलीविज़न पर भी यह बात कही है, लेकिन मुझे उसी वक़्त इसकी जानकारी दी गयी थी। यानी उन्हें इतना यक़ीन था कि यह इस्लामी गणराज्य सिस्टम को बुनियाद से ख़त्म कर देगा; उन्हें यक़ीन था कि वे अवाम को इस्लामी गणराज्य के ख़िलाफ़ ले आएंगे। इतने संतुष्ट थे कि हमले के दूसरे ही दिन, बैठकर यह बहस करने लगे कि ईरान में इस्लामी गणराज्य सिस्टम की जगह कौन सी और कैसी सरकार को सत्ता में लाया जाए! शासक भी तय कर दिया! ईरान के लिए राजा का भी निर्धारण हो गया कि वह ईरान का बादशाह होगा! वे ईरान के बारे में यह सोच रहे थे। उनका ख़याल यह था कि इस हमले से ईरान के सिस्टम और अवाम के बीच दूरी पैदा हो जाएगी। सिस्टम कमज़ोर हो जाएगा और वे अपना घटिया लक्ष्य हासिल कर लेंगे। लेकिन ईरानी क़ौम ने, मैंने यह बात बारंबार कही है और फिर कहता हूं कि ईरानी अवाम ने आर्म्ड फ़ोर्सेज़, सरकार और सिस्टम के कांधे से कांधा मिलाए दृढ़ता का सुबूत दिया और दुश्मन के मुंह पर ज़ोरदार तमांचा रसीद किया।
उन मूर्खों के बीच जो इस्लामी गणराज्य सिस्टम का विकल्प तय करने के लिए बैठे थे, एक ईरानी भी था। लानत है उस ईरानी पर जो अपने मुल्क के ख़िलाफ़ और ज़ायोनीवाद और अमरीका के हित में काम करे! अलबत्ता यह मीटिंग उस वक़्त हुयी थी जब अभी हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने अपनी ताक़त पूरी तरह नहीं दिखायी थी। पहला और दूसरा दिन था। उसके बाद जब अल्लाह की कृपा से हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने बड़े कारनामे अंजाम दिए, जिसके लिए पूरी ईरानी क़ौम को आर्म्ड फ़ोर्सेज़ का आभारी होना चाहिए और हम शुक्रिया अदा करते हैं और इंशाअल्लाह इसके बाद ईरानी क़ौम की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की ताक़त व क्षमता में दिन ब दिन इज़ाफ़ा होगा।
यहाँ एक और बिन्दु भी पाया जाता है जो मैं अर्ज़ करुंगा। इन वाक़यों में हमारे दुश्मन जिस नतीजे पर पहुंचे, वह यह है कि ईरान को जंग और सैन्य हमले से नहीं झुका सकते। इस्लामी गणराज्य को हिंसा के साधनों से काम लेकर भी पीछे नहीं ढकेल सकते। वे 45 बरस से इस कोशिश में हैं लेकिन इस्लामी गणराज्य ईरान दिन ब दिन ताक़तवर हुआ है। तो सोचा कि उसके लिए आंतरिक मतभेद पैदा करें। फूट डालने की कोशिश करें। अलबत्ता मुल्क के अंदर उनके तत्व मौजूद हैं। ज़ायोनीवाद और अमरीका के तत्व मुल्क में कहीं कहीं मौजूद हैं। उनके ज़रिए और उन लोगों के ज़रिए जो इस बात से ग़ाफ़िल हैं कि क्या बोल रहे हैं और क्या लिख रहे हैं कोशिश की कि अवाम के बीच मतभेद और फूट डालें और धड़ेबंदी वजूद में लाएं। लेकिन अलहम्दुलिल्लाह आज मुल्क एकजुट है। अवाम एकजुट हैं। पासंद नापसंद को लेकर मतभेद है। राजनैतिक और सामाजिक मामलों के संचालन के तरीक़े को लेकर मतभेद है लेकिन सिस्टम की रक्षा में, मुल्क की रक्षा में और मुल्क के दुश्मनों के मुक़ाबले में डट जाने के मसले में, अवाम एकजुट हैं और यह एकता उनके (दुश्मनों के) नुक़सान में है, यह एकता उनकी आक्रामकता की राह में रुकावट है। वे इसको ख़त्म करना चाहते हैं। इस तरफ़ से सावधान रहें।
वक्ता, लेखक, बोलने वाले, लिखने वाले, रिसर्च स्कॉलर और जो लोग ट्वीट करते हैं, सोच समझकर काम करें। यह पाकीज़ा एकता, यह शानदार जुड़ाव और अवाम के दिल और इरादे की रक्षक यह फ़ौलादी ढाल कमज़ोर नहीं होनी चाहिए।
अलहम्दुलिल्लाह आज यह एकता है। अवाम इस एकता की रक्षा करें। अधिकारी ख़ास तौर पर कार्यपालिका, विधिपालिका और न्यायपालिका, तीनों विभाग के अधिकारियों में संपूर्ण रूप से एकता और समरस्ता पायी जाती है, इसकी रक्षा करें। अवाम, मुल्क की सेवा करने वालों का सपोर्ट करें; राष्ट्रपति का सपोर्ट करें। मुल्क के राष्ट्रपति कर्मठ हैं और अथक कोशिश कर रहे हैं, जो लोग इस तरह पूरी मेहनत से काम करने वाले हों, अथक मेहनत करने वाले हों, उनकी क़द्र को समझें। अवाम और सरकार के बीच जो एकता पायी जाती है, सिस्टम के अनेक विभागों के ज़िम्मेदारों के बीच जो एकता है, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ और अवाम और अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों के बीच जो एकता मौजूद है, उसकी रक्षा की जाए, यह मेरी ताकीद है।
साक्ष्यों से मैं यह महसूस करता हूं कि आज दुश्मन की पूरी कोशिश यह है कि इस एकता और समरस्ता को नुक़सान पहुंचे। दुश्मन की कोशिश यह है कि इस आपसी सहयोग और एकता को किसी तरह से नुक़सान पहुंचे।
अवाम इस बात पर ध्यान दें। अलबत्ता मुमकिन है कि मुख़्तलिफ़ मसलों में लोगों के नज़रिए अलग हों, इसमें कोई हरज नहीं है, लेकिन विचारक इस बात पर ध्यान दें कि ईरानी क़ौम के वजूद का पूरक बनने वाले नए विचार को पेश करने में और चरित्र हनन और अपमान में अंतर है। इस्लामी गणराज्य ईरान के मौलिक उसूलों का अनादर न करें। इन्हीं बुनियादी उसूलों ने इस क़ौम को यह विकास और तरक़्क़ी दी है। मुल्क को इस तरह ऊपर लाए हैं, क़ौम को यह ताक़त व क्षमता इन्हीं बुनियादी उसूलों से मिली है। अगर इन बुनियादी उसूलों को संपूर्ण, मज़बूत और उसमें सुधार करना चाहें तो कोई हरज नहीं है लेकिन नुक़सान न पहुंचाएं। नुक़सान पहुंचाना ही वह चीज़ जो दुश्मन चाहता है। सिस्टम के तीनों विभागों संसद, सरकार और न्यायपालिका और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ सहित दूसरे विभागों के बीच एकता व समरस्ता जारी रहनी चाहिए।
आज हमारा दुश्मन, वह दुश्मन जो हमारे मुक़ाबले में है यानी ज़ायोनी सरकार, दुनिया की सबसे ज़्यादा घृणित सरकार है। दुनिया की क़ौमें भी ज़ायोनीवाद से घृणा करती हैं। सरकारें भी ज़ायोनी सरकार की भर्त्सना करती हैं। यानी आप देखें कि पश्चिमी सरकारों के राष्ट्राध्यक्ष जो हमेशा ज़ायोनी सरकार के सपोर्टर रहे हैं, आज वे भी उसकी भर्त्सना कर रहे हैं। अलबत्ता उनकी यह निंदा, ज़बानी है; यह काफ़ी नहीं है। ज़बानी निंदा करने का कोई फ़ायदा नहीं है।
जो जुर्म आज ज़ायोनी अधिकारी कर रहे हैं, मेरे ख़याल में इतिहास में इनकी कोई मिसाल नहीं मिलती। बच्चों को भूख और प्यास से मार रहे हैं, बच्चों को भूख और प्यास से क़त्ल कर रहे हैं। जो बच्चे खाना लेने के लिए आते हैं, उन लोगों पर गोलियों की बौछार करते हैं। दुनिया और इतिहास में, जहाँ तक मुझे पता है, इन अपराधों की कोई मिसाल नहीं मिलती। इन अपराधों ने क़ौमों को उससे घृणित कर दिया है। उसके मुक़ाबले में डट जाने की ज़रूरत है। दृढ़ता दिखाने की ज़रूरत है और यह दृढ़ता ज़बानी नहीं है कि सरकारें ज़बान से कहें कि हम विरोधी हैं। निंदा करते हैं। वैसे तो फ़्रांस की सरकार और ब्रिटेन की सरकार और दूसरी सरकारों ने भी निंदा की है। इसका कोई फ़ायदा नहीं है। ज़ायोनी सरकार की मदद का रास्ता बंद होना चाहिए। उन तक मदद पहुंचने का रास्ता बंद करने की ज़रूरत है। जो काम आज यमन के बहादुर अवाम कर रहे हैं, वह सही काम है। ज़ायोनी सरकार के अधिकारी जो जुर्म कर रहे हैं, उससे निपटने का इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है कि उन तक मदद पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए जाएं।
हम हर उस काम के लिए पूरी तरह तैयार हैं जो इस्लामी गणराज्य ईरान के लिए मुमकिन है, जिस काम की भी संभावना है, हम उसके लिए तैयार हैं और हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह अल्लाह ईरानी क़ौम के क़दम में और दुनिया के सत्य पर चलने वालों के क़दम में बर्कत अता फ़रमाए और कैंसर के गंदे फोड़े को जड़ से ख़त्म कर दे। इंशाअल्लाह अल्लाह मुसलमान क़ौमों को जागरुक बनाए और आपस में एकजुट करे।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बर्कत हो।
1-इससे पहले दो मर्सिया पढ़ने वालों ने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मर्सिया पढ़ा और आप पर पड़ने वाली मुसीबतें बयान कीं
2-अमालिए सदूक़, मजलिस-27, पेज-130
3-डोनल्ड ट्रम्प (अमरीकी राष्ट्रपति)