इस्लामी इंक़लाब के नेता ने दो दिन पहले, सोमवार 12 मई 2025 को शहीद सहायताकर्मियों पर राष्ट्रीय सेमीनार के आयोजकों से मुलाक़ात की थी। इस मौक़े पर उनकी स्पीच आज 14 मई की शाम को सेमीनार में प्रसारित की गई।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने इस ख़िताब में सहायताकर्मियों को इंसानी गुणों और मानवता प्रेम के आदर्श बताया और ईरानी क़ौम के बलिदान और इंसानियत के जज़्बे को ज़िंदा रखने पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस नेक जज़्बे के मुक़ाबले में ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सरकार के अपराध और पाश्विक कार्यवाहियां और पश्चिम की तरफ़ से उसकी हिमायत है और इस दरिंदगी और बातिल मोर्चे के सामने डट जाना सबका फ़र्ज़ है।
उन्होंने इराक़ की ओर से ईरान पर थोपो गए 8 वर्षीय युद्ध के परिप्रेक्ष्य में कहा कि सहायताकर्मी गोलियों की बारिश में भी अपनी जान की नहीं, बल्कि दूसरों की जान बचाने की फ़िक्र में रहते थे और उनमें बलिदान का ऐसा विचित्र जज़्बा था कि कभी-कभी वे दुश्मन के ज़ख़्मी क़ैदियों की भी मदद करते थे और यह काम इंसानियत को भुला चुकी दुनिया के बिल्कुल विपरीत है।
रहबरे इंक़ेलाब ने कहा कि बलिदान और मदद का यह जज़्बा ज़ायोनी अपराधियों के ठीक विपरीत है जो एंबुलेंसों पर हमले करते हैं, अस्पतालों पर बमबारी करते हैं और निहत्थे मरीज़ों व बच्चों का जनसंहार करते हैं। उन्होंने कहा कि आज दुनिया की बागडोर इन इंसान दिखाई देने वालो जानवरों के हाथ में है और इस्लामी गणराज्य ऐसी पाश्विकता और बर्बरता के मुक़ाबले में डटे रहने को अपना फ़र्ज़ समझता है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि असैनिकों पर ढाए जाने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ऐतराज़ हर किसी की ज़िम्मेदारी है, कहा कि यही ज़िम्मेदारी का एहसास है जो दिलों में उम्मीद का दिया जलाए रखता है और यही चीज़ इस्लामी गणराज्य से पश्चिम वालों जैसों की दुश्मनी की वजह हैं और अगर हम उनकी पाश्विक कार्यवाहियों पर ऐतराज़ करना छोड़ दें, तो वे हमसे दुश्मनी नहीं करेंगे।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि पश्चिम के ज़ालिमों की मुख्य समस्या इस्लामी गणराज्य की ओर से उनकी ग़लत सभ्यता को नकारना है। उन्होंने कहा कि बातिल आख़िरकार ख़त्म होगा ही लेकिन इस के लिए कोशिश, प्रतिरोध, और निष्क्रियता, आलस्य और बातिल के कामों पर मुस्कुराने और उसकी तारीफ़ करने से बचना ज़रूरी है क्योंकि यही बातें बातिल के और आगे बढ़ने की वजह बनती हैं।