जब दक्षिणी लेबनान के पहाड़ी टीलों पर सुबह का सूरज प्रकट हुआ तो गाड़ियों का एक क़ाफ़िला आगे की तरफ़ बढ़ने लगा और उनके हार्न से वतन वापसी के नग़में की गूंज सुनाई देने लगी। लेबनान के लोग, जो ज़ायोनिस्ट रेजीम की आक्रामकता की वजह से एक मुद्दत से बेघर हो गए थे, बुधवार की सबुह स्थानीय वक़्त के मुताबिक़ 4 बजे युद्ध विराम शुरू होने के फ़ौरन बाद अपने अपने गांवों की ओर तेज़ी से वापस लौटने लगे। खिड़कियां खुलने लगीं और हाथों में हिज़्बुल्लाह के पीले रंग के परचम लहराने लगे जो चैन और रिहाई का चिन्ह है।
सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले एक प्रभावशाली वीडियो में दक्षिणी लेबनान में एक शख़्स को एक टावर पर चढ़ते देखा जा सकता है जो वहां लहराए गए ज़ायोनी सरकार के परचम को नीचे उतार रहा है। दक्षिणी लेबनान लौटने वाले लोगों की एक ही संयुक्त आवाज़ थीः "यह हमारा घर है।"जश्न के जोश व जज़्बे के दौरान एक धर्मगुरू ने, जिन्होंने हिज़्बुल्लाह का परचम उठा रखा था और जिनकी आँखों से संकल्प और जोश झलक रहा था, कहाः "यह परचम कभी भी हमारे हाथ से नहीं गिरेगा, यह परचम कभी भी ज़मीन पर नहीं गिरा है और भविष्य में भी कभी नहीं करेगा। शहीदों के ख़ून की बरकत से, घायलों और अपने शरीर के अंगों की भेंट चढ़ाने वालों की मेहरबानी से, क़ैदी बनाए गए लोगों की मेहरबानी से और सभी लोगों की मेहरबानी से यह परचम हमेशा लहराता रहेगा।"
लेकिन सरहद के ठीक उस पार, उत्तरी मक़बूज़ा फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में, हालात में कोई फ़र्क़ नहीं दिखाई दे रहा है। ज़ायोनी सेटलर्ज़ की कालोनियां, अपने रहने वालों का इंतेज़ार कर रही हैं। संघर्ष विराम के बावजूद, ज़ायोनी सेटलर्ज़ सरहद के क़रीब अपने घर लौटने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। उत्तरी शहर शलूमी के मेयर गाबी नोमान इस स्पष्ट विरोधाभास की ओर इशारा करते हुए कहते हैं: "हमारे शहर वाले फ़िलहाल, सरहदी इलाक़े से दूर ही रहेंगे।" ख़ौफ़ और असंतोष अब भी ख़त्म नहीं हुआ है, वह ख़ौफ़ जो हिज़्बुल्लाह ने उनके दिलों पर बिठा दिया है। ज़ायोनी मीडिया ने अपने घरों को लौटते हुए लेबनानी अवाम की तस्वीरों के बारे में बड़े ही निराशा भरे और अविश्नसनीय अंदाज़ में चर्चा की है। एक मीडिया संस्थान ने लबेनानी अवाम के अपने घरों और गावों को लौटने के मज़ंर देखने के बाद, ज़ायोनियों के ग़ुस्से की ओर इशारा करते हुए कहा कि लेबनानी अपने अपने घरों को ऐसी स्थिति में लौट रहे हैं कि उत्तरी इलाक़ों के लोगों के लिए अब भी वापस लौटना मुमकिन नहीं है।
सोशल मीडिया पर ज़ायोनी यूज़र्स एक चिंताजनक सवाल पूछ रहे हैं: "अगर हमने उन्हें भारी चोट पहुंचायी है तो वे किस तरह वापस लौट रहे हैं जबकि हम नहीं लौट पा रहे हैं?"
दोनों ओर की स्थिति में यह अंतर, संघर्ष विराम के हालिया समझौते के बारे में अहम सवाल खड़े करता है। एक अहम सवाल यह है कि ज़ायोनी सरकार ने फ़ौजी बढ़त के दावे के वाबजूद क्यों ऐसी शर्तों को माना जिनसे महसूस होता है कि वह उत्तरी इलाक़ों में आबाद ज़ायोनियों को भंवर में छोड़ रही है? वाशिंग्टन इंस्टीट्यूट के सीनियर समीक्षक और अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व सदस्य डेनिस रास का मानना है कि लेबनान में संघर्ष विराम, लेबनान में फंस जाने के ज़ायोनी सरकार के ख़ौफ़ का नतीजा है। इसका मतलब यह है कि लंबी मुद्दत तक टकराव का नतीजा बंद गली के रूप में सामने आता जिसमें फ़तह भी हासिल नहीं होती, जान व माल का नुक़सान भी ज़्यादा होता और उससे निकलने की कोई स्पष्ट स्ट्रैटिजी भी नहीं होती।
इस बात को समझने के लिए ज़मीनी स्तर पर होने वाली तबदीलियों की समीक्षा करनी चाहिए। ज़ोयनी प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने संघर्ष विराम के समझौते को स्वीकार करते वक़्त यह दावा किया था कि हिज़्बुल्लाह को दसियों साल पीछे ढकेल दिया गया है और अब यह आंदोलन पहले जैसा नहीं रह गया है जबकि ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही है। हिज़्बुल्लाह की मिसाइल क्षमता ने यह दिखा दिया है कि वह जब भी इरादा करे, मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के इलाक़ों के भीतर किसी भी जगह को बड़ी बारीकी से निशाना बना सकती है और इस चीज़ ने ज़ायोनी सरकार के सारे कैलकुलेशनों को फ़ेल कर दिया है।
ज़ायोनी सरकार के सैन्य अफ़सरों ने बहुत ही स्पष्ट अंदाज़ में समीक्षा की है। रिपोर्टों के मुताबिक़, ज़ायोनी सरकार के सैन्य इंटेलिजेंस विभाग के पूर्व प्रमुख तमीर हीमन ने कहा है कि हालिया लड़ाई में सेना अपने सभी लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रही है। उन्होंने हिज़्बुल्लाह के रेज़िस्टेंस और कठिन से कठिन हालात के मुताबिक़ ढलने की हिज़्बुल्लाह के जियालों की सलाहियत को मानते हुए कहा कि इस्राईली फ़ौज के ख़िलाफ़ बहादुरी से भरी जंग के ज़रिए हिज़्बुल्लाह के जियालों ने दिखा दिया कि सिर्फ़ जंग के मैदान में ही ताक़त और सलाहियत का पता चलता है। इस्राईल के नियंत्रण वाले
फ़िलिस्तीन के इलाक़ों पर आर्थिक लेहाज़ से पड़ने वाले प्रभाव भी बहुत ज़्यादा हैं। हैफ़ा में, जो लेबनान की सरहद से काफ़ी दूर है, अक्तूबर 2024 में काम करने वालों की दर 90 फ़ीसदी कम हो गयी। एक ज़ायोनी दुकानदार ने कहा कि लोग सड़कों पर नहीं निकलते और हैफ़ा की स्थिति चिंताजनक है। सेटलर्ज़ के मन में मौजूद भय तेल अविव तक पहुंच गया है और इसकी वजह झड़प वाले इलाक़ों का बढ़ता दायरा है।
हालिया महीनों में ज़ायोनी सरकार के नियंत्रण वाले फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में किसी भी जगह को निशाना बनाने की हिज़्बुल्लाह की सलाहियत ने ज़ायोनी सरकार की चिंता को बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया है। इस बार 1 लाख के बजाए जो उत्तरी इलाक़ों से बेघर हुए, दसियों लाख लोगों के बेघर होने की संभावना जतायी जा रही थी। जंग जारी रहने से यह ख़तरा बढ़ गया था कि पूरे इस्राईल में किसी भी जगह वास्तव में सुरक्षा का एहसास न रहे और बड़े पैमाने पर उलटे पलायन का ख़ौफ़ बढ़ता जा रहा है। पिछले अप्रैल में सीरिया की राजधानी सीरिया में ईरानी दूतावास के काउंसलेट वाले भाग पर ज़ायोनी सरकार के हमले के बाद, इस्लामी गणराज्य ईरान ने अपनी सरज़मीन से सैकड़ों ड्रोनों और मिसाइलों से इस्राईल के हाथों क़ब्ज़ा किए गए फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर हमला किया था। मोसाद से जुड़े पत्रकार रोनेन बर्गमैन ने अपनी एक रिपोर्ट में ईरान के कामयाब हमले के बाद एक जानकार ज़ायोनी सूत्र के हवाले से ज़ायोनी शासन की अस्तव्यस्त स्थिति के बारे में लिखाः "अधिकारियों के बीच जो बातें हो रही हैं अगर वे मीडिया में आ जाएं तो 40 लाख लोग इस्राईल से निकलने के लिए बिन गोरियन एयरपोर्ट पर टूट पड़ेंगे।"
ये तथ्य, ज़ायोनी प्रधान मंत्री की ओर से फ़तह के एलान से पूरी तरह विरोधाभास रखते हैं। उन्होंने संघर्ष विराम का समझौता पेश करते हुए पिछले एक साल में ज़ायोनी सरकार के बेमिसाल कारनामों और कामयाबियों की तारीफ़ की थी। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 25 नवम्बर को स्वयंसेवियों से मुलाक़ात में ज़ायोनी सरकार की शिकस्त की व्याख्या करते हुए कहाः "लोगों के घरों पर बमबारी फ़तह नहीं है, मूर्ख ये न सोचें कि चूंकि वे लोगों के घरों पर बमबारी कर रहे हैं, चूंकि अस्पतालों पर बमबारी कर रहे हैं, चूंकि लोगों की सभाओं पर बमबारी कर रहे हैं तो वे विजयी हो गए, नहीं! दुनिया में कोई भी इसे फ़तह नहीं मानता, यह फ़तह नहीं है। दुश्मन ग़ज़ा में विजयी नहीं हुआ, दुश्मन लेबनान में विजयी नहीं हुआ, दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में विजयी नहीं होगा।"
शलूमी शहर के मेयर नोमान ने ज़ायोनियों के दिलों पर छाए हुए ख़ौफ़ का इज़हार करते हुए कहा कि जो कुछ हमें दिखाया गया, वह इस बात का गवाह है कि जंग का अगला चरण सामने है, चाहे एक महीने में, दो महीने में या दस साल में। ज़ायोनी मीडिया की ओर से कराए जाने वाले एक सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि लेबनान की सरहद के क़रीब ज़ायोनी बस्तियों में रहने वाले 70 फ़ीसदी सेटलर्ज़ अपने घरों को लौटना नहीं चाहते। असुरक्षा के इस एहसास की जड़ें पहचान और लगाव से ज़्यादा गहरे मसलों से जुड़ी हुयी हैं। सरहद के एक ओर लेबनानी घराने अपनी पुश्तैनी ज़मीनों की ओर लौट रहे हैं तो दूसरी ओर ऐसे सेटलर्ज़ हैं जिनका इस सरज़मीन से कोई रिश्ता नहीं है और इन इलाक़ों को उन्होंने ताक़त के बल पर फ़िलिस्तीनियों से छीना और उन पर क़ब्ज़ा किया गया है।
जब शलूमी शहर के मेयर नोमान कहते हैं कि फ़िलहाल घर वापसी का कोई प्रोग्राम नहीं है तो 'घर' शब्द अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग अहमियत रखता है। लेबनानियों के लिए यह एक हक़ है जो पिछली नसलों की विरासत है लेकिन सेटलर्ज़ के लिए एक ऐसा मकान है जिसमें अब उनके रहने की संभावना नहीं रह गयी है क्योंकि उन्होंने फ़िलिस्तीनियों से उनका घर छीन लिया है। यह वही अर्थ है जिसके बारे में फ़िलिस्तीन के मशहूर विचारक व विद्वान एडवर्ड सईद कहते हैं: "हम ऐसे लोग हैं जिन्हें उनकी सरज़मीन से बाहर निकाल दिया गया। हम इस सरज़मीन के मूल निवासी थे जिन्हें एक यहूदी सरकार क़ायम करने के लिए बाहर निकाल दिया गया।"