इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने, 7 नवम्बर 2024 को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का चयन करने वाली सभा के सदस्यों से मुलाक़ात में, हिज़्बुल्लाह के महासचिव के चेहलुम के दिनों का हवाला देते हुए कहाः "...मरहूम जनाब नसरुल्लाह और इन दिनों दूसरे शहीदों ने हक़ व इंसाफ़ की बात यह है कि इस्लाम को इज़्ज़त दी, रेज़िस्टेंस मोर्चे को इज़्ज़त दी और अपनी ताक़त को दुगुना किया। हमारे अज़ीज़ सैयद शहीदों के आला रुतबे की ओर परवाज़ कर गए और वे ख़ुद उस जगह पहुंच गए जिसकी उन्हें आरज़ू थी, लेकिन एक अमर यादगार यहाँ छोड़ गए और वह 'हिज़्बुल्लाह' है। 'हिज़्बुल्लाह' सैयद की बहादुरी, समझदारी, सब्र और अल्लाह पर उनके हैरत अंगेज़ भरोसे की बरकत से बहुत विकसित हुआ और वास्तव में एक ऐसे नेटवर्क में तबदील हो गया कि दुश्मन जो अनेक प्रकार के भौतिक, प्रचारिक और प्रोपैगंडा जैसे हथियारों से लैस है, उस पर विजयी न हो सका और इंशाअल्लाह आगे भी नहीं हो पाएगा। जनाब सैयद हसन नसरुल्लाह ने 'हिज़्बुल्लाह' को ऐसे वजूद में, ऐसी हक़ीक़त में बदल दिया...अब वे लोग जो ख़ुद लेबनान और दूसरी जगहों पर अपने इस गुमान में कि हिज़्बुल्लाह कमज़ोर हो गया है, 'हिज़्बुल्लाह' को ताना दे रहे हैं, वे दर हक़ीक़त ग़लती कर रहे हैं, ये लोग वहम का शिकार हैं। 'हिज़्बुल्लाह' ताक़तवर है और उसका संघर्ष जारी है। जी हाँ जनाब सैयद हसन नसरुल्लाह या जनाब सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन और इन जैसी अहम व नुमायां हस्तियां उनके बीच नहीं हैं लेकिन यह संगठन अपने बहादुरों, अपनी आध्यात्मिक ताक़त, अपने मनोबल के साथ बेहम्दिल्लाह सरगर्म है और दुश्मन इस संगठन पर विजयी नहीं सका और इंशाअल्लाह भविष्य में भी नहीं हो पाएगा।..."

हम इस लेख में इस महान यादगार के मुख़्तलिफ़ आयामों की समीक्षा कर रहे हैं।

हिज़्बुल्लाह की शिकस्त एक भ्रम

हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के एक के बाद एक प्रहार, फ़ुआद शुक्र की हत्या से शुरू हुए, फिर पेजर्ज़ और वायरलेस सेट्स में धमाकों का वाक़ेआ पेश आया जिसमें लेबनान में दसियों आम लोग और रेज़िस्टेंस संगठन के सदस्य शहीद हुए जबकि हज़ारों घायल हुए। इसके बाद एक दुखद शाम को बैरूत पर ज़ायोनी शासन ने अमरीका के दिए हुए दसियों भारी बमों से हमला किया जिसमें हिज़्बुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी सैयद हसन नसरुल्लाह और उनके कई साथी शहीद हुए। इसके कुछ ही दिन बाद सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन की शहादत की ख़बर आई। इन वाक़यों के बाद क्षेत्र में और क्षेत्र के बाहर ऐसी आवाज़ें उठने लगीं जिनमें हिज़्बुल्लाह के अंत की बाद कही जा रही थी। बैरूत में अमरीकी राजदूत ने लेबनान की शख़्सियतों को इकट्ठा किया और कहा कि लेबनान को अगले चरण के लिए तैयार होना चाहिए जो हिज़्बुल्लाह के बाद का चरण है। अलबत्ता इस तरह के बयानों और स्टैंड पर बहुत ज़्यादा हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि पिछले 2 महीने में हिज़्बुल्लाह ने जिन चीज़ों का सामना किया है वह एक रेज़िस्टेंस गिरोह तो क्या एक पूरी सरकार को जड़ से उखाड़ देने के लिए काफ़ी था।

गहरी समझ और एक भविष्यवाणी

अलबत्ता जो लोग हिज़्बुल्लाह के सिलसिले में गहरी और पूरी तरह से समझ रखते हैं, उनका कुछ और ही ख़याल और नज़रिया था। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के जनरल सेक्रेटरी की शहादत के संबंध में अपने सांत्वना संदेश में बल देकर कहा थाः "इस्लामी दुनिया ने एक अज़ीम हस्ती को, रेज़िस्टेंस के मोर्चे ने एक विशिष्ट ध्वजवाहक को और हिज़्बुल्लाह ने एक बेमिसाल नेता को खो दिया लेकिन उनके दसियों साल के जेहाद और सूझबूझ की बरकतें कभी ख़त्म नहीं होंगी। उन्होंने लेबनान में जो बुनियाद रखी और रेज़िस्टेंस के दूसरे सेंटरों को जो दिशा दी वह न सिर्फ़ यह कि उनके जाने से ख़त्म नहीं होगी बल्कि उनके और इस वाक़ये के दूसरे शहीदों के ख़ून की बरकत से  और मज़बूत होगी। ज़ायोनी सराकर के कमज़ोर और पतन की ओर बढ़ते ढांचे पर रेज़िस्टेंस मोर्चे के हमले, अल्लाह की मदद से और तेज़ होंगे। घटिया ज़ायोनी सरकार को इस वाक़ए में फ़तह हासिल नहीं हुई है। रेज़िस्टेंस के सरदार, एक शख़्स नहीं थे, वे एक विधारधारा, एक मत थे और यह रास्ता लगातार जारी रहेगा। (28/09/2024)"

मक़बूज़ा फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर शासन करने वाला अपराधी गैंग और उसके मुख्य समर्थक यानी दूसरे पश्चिमी मुल्क जो चीज़ नहीं जानते और समझ भी नहीं सकते, वह हिज़्बुल्लाह का स्वरूप और पहचान है। वे नहीं जानते कि उनका सामना सिर्फ़ एक छापामार और सैन्य गिरोह से नहीं है बल्कि उनके सामने अक़ीदा और आइडियालोजी रखने वाले एक वास्तविक संगठन से है जो ज़ायोनी शासन को इलाक़े और इस्लामी दुनिया की मुश्किलों और ख़तरों का सबसे बड़ा कारण समझता है और इसी नज़रिए की बुनियाद पर "शहादत या फ़तह" को एक स्ट्रैटिजी समझता है।

इमाम ख़ुमैनी, हिज़्बुल्लाह के आध्यात्मिक सरपरस्त

ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनी मुजाहिदों से मुक़ाबले के बहाने जो बेघर हो गए थे और लेबनान में रह रहे थे, सन 1982 के गर्मी के मौसम में लेबनान पर हमला किया। उस हमले के ख़िलाफ़ कोई ख़ास रेज़िस्टेंस नहीं हुआ और हमलावर ज़ायोनी फ़ौज बड़ी तेज़ी से बैरूत तक पहुंच गयी और उसने लेबनान की राजधानी पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। लेबनान की दसियों नुमायां हस्तियों को क़त्ल कर दिया गया और इस मुल्क के अवाम का वाक़ई अपमान किया गया। ऐसे हालात में लेबनान की कुछ शिया हस्तियां इस नतीजे पर पहुंचीं कि इस मुल्क के मौजूदा और सरगर्म रेज़िस्टेंस गिरोह ज़रूरी उपयोगिता नहीं रखते और एक नया संगठन बनाने की ज़रूरत है जो नई ख़ुसूसियतें रखता हो। यह संगठन अगरचे पूरी तरह लेबनानी था लेकिन अक़ीदा और राह के लेहाज़ से उसने ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब और इमाम ख़ुमैनी को आदर्श बनाया था। सैयद हसन नसरुल्लाह, हिज़्बुल्लाह और ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब और इमाम ख़ुमैनी के संबंध में कहते हैं: "हम उस वक़्त इमाम ख़ुमैनी से प्रभावित थे और अब भी हैं। हम इस सच्चाई का इंकार नहीं करते कि ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब और सन 1979 में उसकी कामयाबी ने पूरी उम्मत पर गहरा असर डाला। हम भी इस उम्मत (इस्लामी जगत) का हिस्सा थे और इस कामयाबी से हमारे अंदर भी क्रिया और प्रतिक्रिया पैदा हुयी। निश्चित तौर पर हम बड़ी शिद्दत से इमाम ख़ुमैनी के विचार, इमाम ख़ुमैनी के नज़रिए, इमाम ख़ुमैनी के जज़्बे, इमाम ख़ुमैनी के मनोबल और निश्चित तौर पर उनके पूरे क्रियाकलाप से प्रभावित थे। इमाम ख़ुमैनी हिज़्बुल्लाह के बारे में बात करते थे और स्वाभाविक तौर पर वो हिज़्बुल्लाह के व्यापक अर्थ के बारे में बात करते थे, नतीजे के तौर पर इस्लाम पर आस्था रखने वाला हर गिरोह और इस राह पर आस्था रखने वाला हर मुजाहिद, अपने आपको, 'हिज़्बुल्लाह' कह सकता था। तो हम ने भी कहा कि हम अपना नाम 'हिज़्बुल्लाह' रखते हैं और दूसरे नामों को छोड़ देते हैं कि शायद दूसरों ने उन्हें इस्तेमाल किया हो या शायद वे इस चरण के बारे में जिसमें हम उस वक़्त थे और जिसका हमें मुक़ाबला करना था, हमारे अक़ीदों को बिल्कुल सही तरीक़े से न समझा पाए।"

इस रास्ते पर चलना पागलपन ह?!

वे उस वक़्त की ख़ास स्थिति और अपने वजूद में आने के वक़्त से ही हिज़्बुल्लाह के सामने आने वाली कड़ी चुनौतियों के बारे में भी कहते हैं: "आग़ाज़ के साल बहुत सख़्त और थका देने वाले थे, चूंकि इरादा था, ईमान था, संकल्प था और राह के सही होने पर यक़ीन और इत्मेनान था, इसलिए हम इन असहनीय कठिनाइयों से पार पाने में कामयाब रहे। मैं राह के सही होने की बात क्यों कर रहा हूं? इसकी वजह यह है कि बिल्कुल आग़ाज़ के दिनों से ही कुछ लोग कहते थे कि इस राह पर चलना, पागल पन है! तुम लोग इसराइल से लड़ना चाहते हो? तुम तो सिर्फ़ कुछ जवान हो, तुम्हारे पास कुछ ख़ास संसाधन भी नहीं हैं। लेकिन हमें अपनी राह के सही होने पर पूरा यक़ीन था, ईमान था और हम उसी ईमान के साथ आगे बढ़ते गए।"

हिज़्बुल्लाह ने दिखा दिया कि अगरचे दुश्मन काग़ज़ पर और सिर्फ़ भौतिक हिसाब से पूरी तरह बढ़त रखता है लेकिन ऐसे दुश्मन को भी शिकस्त दी जा सकती है इस शर्त के साथ कि वे मुजाहिद जो उसके मुक़ाबले में खड़े हैं सिर्फ़ भौतिक संसाधन पर भरोसा न करें और ईमान व अक़ीदे के तत्व को भी जंग के मैदान में ले आएं। यह टैक्टिक और जंग की नई रणनीति, जो सिर्फ़ जंग से ही मख़सूस नहीं थी और 'रेज़िस्टेंस' के नाम से एक व्यापक व गहरे अर्थ रखती थी, शिकस्त नहीं खा सकती, चाहे दुश्मन कितना ही ताक़तवर और बर्बर क्यों न हो। शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह ने हिज़्बुल्लाह का नेतृत्व करने के अपने लंबे दौर में रेज़िस्टेंस को एक आकर्षक अर्थ दे दिया, एक ऐसा अर्थ जो सिर्फ़ शिया समाज तक सीमित नहीं था और लेबनान के ग़ैर शिया यहाँ तक कि इस मुल्क की सरहद से बाहर रहने वाले आज़ादी के समर्थक लोग भी इसकी ओर खिंचे चले आ रहे थे।

फ़ीनिक्स

हालिया कुछ हफ़्तों के दौरान जंग की स्थिति ने दिखा दिया कि जिस तरह से इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल देकर कहा था, न सिर्फ़ यह कि हिज़्बुल्लाह कमज़ोर पोज़ीशन में नहीं है बल्कि उसके पास दुश्मन को चौंकाने वाली नई चीज़ें भी हैं, इतनी चौकाने वाली कि ज़ायोनी सरकार के प्रधान मंत्री का बेडरूम भी उसके कुछ ज़्यादा सुरक्षित नहीं रह गया है। हिज़्बुल्लाह अपने अज़ीज़ सरदार और दूसरे कमांडरों को खोने के गहरे सदमे से बाहर निकल चुका है और एक नए अज्ञात ढांचे के साथ इसराइल की जाली हुकूमत के लिए निरंतर ख़तरा बना हुआ है। यह वह बिन्दु है जो ज़ायोनी मीडिया की नज़रों से भी छिपा नहीं रह गया है और हाल ही में उनमें से एक ने यह स्वीकार करते हुए कहाः "हमसे कहा गया था कि हिज़्बुल्लाह को शिकस्त हो गयी है और वह तबाह हो जुका है लेकिन हिज़्बुल्लाह ने गोलानी ब्रिगेड के अड्डे पर हमला करके यह साबित किया है वह अब भी तबाह करने वाली हो सकती है।"