इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीचः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी, हिदायत याफ़्ता और दूसरों की हिदायत करने वाली नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।

प्यारे भाइयो और बहनो! स्कूल और यूनिवर्सिटियों के मेरे अज़ीज़ बच्चो! आपका स्वागत है।

मैं अपनी स्पीच शुरू करने से पहले उन बातों की ओर इशारा करुंगा जो इन प्यारे बच्चों ने साम्राज्यवाद से मुक़ाबले के संबंध में सुझाव के तौर पर पेश कीं।

मैं यह अर्ज़ कर दूं सभी जान लें! हमारे प्यारे नौजवान बच्चे भी जान लें कि साम्राज्यवाद के मुक़ाबले में ईरानी क़ौम की तैयारी के संबंध में जो भी ज़रूरी और उचित है, चाहे सैन्य पहलू से हो, हथियारों के लेहाज़ से और चाहे राजनैतिक क़दम हो, जो भी ज़रूरी होगा, हम वह ज़रूर अंजाम देंगे और इस वक़्त अल्लाह की कृपा से अधिकारी इस काम में लगे हुए हैं। मुतमइन रहिए कि आज हमारे अवाम और अधिकारी वैश्विक सिस्टम को चलाने वाले अपराधियों और विश्व साम्राज्यवाद के मुक़ाबले की राह में आगे बढ़ रहे हैं। निश्चित तौर पर कोताही हरगिज़ नहीं करेंगे। इस बात का यक़ीन रखिए। 

बात सिर्फ़ बदला लेने की नहीं है बल्कि एक तार्किक हरकत की बात है। धर्म, अख़लाक़, शरीअत और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ मुक़ाबले की बात है। मुतमइन रहिए कि ईरानी अवाम और अधिकारी इस सिलसिले में किसी भी क़िस्म की सुस्ती और कोताही नहीं करेंगे।

नौजवानों के साथ मीटिंग स्वाभाविक तौर पर रौनक़ से भरी होती है। नौजवानों के मन कम दूषित और ज़्यादा पाक होते हैं। अफ़सोस होगा अगर मैं आप प्यारे नौजवानों को इस सभा में कोई आध्यात्मिक नसीहत न करूं। मैं अल्लाह की याद और उसके शुक्र की ताकीद करता हूं। हम जिस रास्ते पर हैं वह छोटा नहीं है, आसान रास्ता नहीं है। यह वह रास्ता है जिसको तय करने की ज़िम्मेदारी आप नौजवानों पर है। कल की दुनिया आपकी है, कल मुल्क आपको संभालना है, कल का वैश्विक सिस्टम आपका है, आपका काम बहुत ज़िम्मेदारी भरा है। इस राह में हिम्मत चाहिए, मारेफ़त की ज़रूरत है, कोशिश की ज़रूरत है, लेकिन सबसे ज़्यादा आध्यात्मिक सहारे की ज़रूरत है। इस सहारे को आज मैं दो लफ़्ज़ों 'ज़िक्र' (अल्लाह की याद) और 'शुक्र' (अल्लाह को पहचानना और याद रखना) में बयान करुंगा।

ज़िक्र यानी अल्लाह की याद, अल्लाह की याद की ओर से ग़ाफ़िल न हों। दुआ, वंदना और क़ुरआन की तिलावत से दूर न हों। मैं हमेशा क़ुरआन से लगाव की नसीहत करता हूं। क़ुरआन की मारेफ़त हासिल करें, इससे आपको इस अज़ीम मार्ग पर चलने में मदद मिलेगी।

शुक्र यानी अल्लाह की नेमतों को पहचानें और उन्हें भूले नहीं। आपको अल्लाह से अज़ीम नेमतें मिली हैं। एक ऐसे सिस्टम की नेमत जिसने ज़ुल्म, साम्राज्यवाद, ज़ोर ज़बर्दस्ती और अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर अपराधी गिरोहों के ख़िलाफ़ संघर्ष का बीड़ा उठाया है। यह सबसे अज़ीम नेमत है। इसके अलावा दूसरी नेमतें भी हैं।

मुख़्तलिफ़ दुआओं में यह जुमला आया है कि "मुझे तेरी याद की ओर से उन चीज़ों के संबंध में जो तूने मुझे दी हैं, भूल का शिकार न होने दे और तूने जो मुझ पर एहसान किया है, उसकी ओर से ग़ाफ़िल न होने दे।" (2) अल्लाह के एहसान की ओर से ग़ाफ़िल न हों और अल्लाह की नेमतों और मेहरबानियों के संबंध में ग़ाफ़िल न हों।

आप में यही जागरुकता, आपकी यही तैयारी, आपका यही जज़्बा और आपका यही अपनी क्षमता के बारे में एहसास कि आप यह समझते हैं कि आप आगे बढ़ सकते हैं, दुनिया की खोखली भौतिक ताक़तों से टक्कर ले सकते हैं, अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है। अल्लाह की नेमत को हाथ न जाने दें। अल्लाह की नेमतों को पहचानें और उसे उसकी सही जगह पर इस्तेमाल करें, यह होगा शुक्र।

याद रहे कि अल्लाह की मदद से, अल्लाह का साथ देने से, अल्लाह की हिदायत से और अल्लाह के निष्ठावान और नेक बंदों की मदद से हम यह रास्ता तय कर सकते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ललाहो अलैहि वआलेही वसल्लम) आपके अहलेबैते (अलैहेमुस्सलाम) और इस राह के शहीदों जैसे शहीद नसरुल्लाह, शहीद सुलैमानी, शहीद सिनवार और दूसरे शहीदों की आत्मा से मदद तलब करें और इस रास्ते पर आगे बढ़ें। यह आज मेरा पहला जुमला और पहली बात है।

यह मौक़ा बहुत अहम है। इन मौक़ों को बाक़ी रखने के लिए वैचारिक और व्यवहारिक कोशिशों की ज़रूरत है।

यह जो इस्लामी गणराज्य ईरान में एक दिन को साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष का राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया है, यह इसलिए है कि ईरानी अवाम ऐतिहासिक अनुभवों को कभी न भूलें। वरना साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष सिर्फ़ एक दिन का काम नहीं है बल्कि लगातार जारी रहने वाला काम है। आप साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद, ज़ुल्म व आक्रामकता की निशानियों के ख़िलाफ़ संघर्ष और ज़ालिम वैश्विक सिस्टम के ख़िलाफ़ संघर्ष को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लें। संघर्ष के लिए कोई दिन मख़सूस नहीं है, लेकिन हमने इस नाम से एक दिन इसलिए निर्धारित किया है कि ईरानी क़ौम के इतिहास की ओर से ग़फ़लत न बरती जाए।

कुछ लोग, दुनिया को लूटने वाले अमरीका और क्षेत्र में उसके तत्वों के ख़िलाफ़ ईरानी अवाम के इस जागरुक व वीरता भरे आंदोलन के बारे में संदेह पैदा करना और फिर उसे नकारना चाहते हैं! अमरीकी जासूसी के अड्डे का मसला ऐसा है कि न तो इस पर सवालिया निशान लग सकता है और न ही इस संबंध में संदेह पैदा किए जा सकते हैं। लेकिन कुछ तत्व आम लोगों ख़ास कर नौजवान पीढ़ी के दरमियान यह बात फैला रहे हैं कि "किसी मुल्क के दूतावास पर क़ब्ज़ा क्यों किया? यह अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के ख़िलाफ़ क़दम था।"  इस तरह की बातें फैलाते हैं। जो सच्चाई वह जान बूझकर छिपाते हैं, यह है कि अमरीकी दूतावास, इस्लामी इंक़ेलाब के आग़ाज़ में, उस पर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स का कंट्रोल होने से पहले तक, दूतावास के रूप सिर्फ़ एक दूतावास और इंटेलिजेंस का सेंटर नहीं था, यह बात मानते हैं कि दुनिया के सभी दूतावास, जहाँ वे होते हैं, वहाँ की सार्वजनिक और ख़ुफ़िया जानकारी जमा करके अपने सेंटरों को भेजते हैं, लेकिन बात सिर्फ़ यह नहीं थी, बल्कि बात यह थी कि अमरीकी दूतावास इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ भड़काने वाले, इसे ख़त्म करने यहाँ तक कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की मुबारक ज़िंदगी के लिए ख़तरा पैदा करने के सेंटर में बदल चुका था।

शुरू में हमारी नौजवान पीढ़ी का ध्यान इस बिन्दु की ओर नहीं था, वे दूसरी वजह से इस दूतावास में दाख़िल हुए थे, लेकिन जब वे उसके भीतर दाख़िल हुए तो उन्हें दस्तावेज़ मिले जिसे उन्होंने पढ़ा।

यह जो मैं ताकीद करता हूं कि नौजवान किताबें पढ़ें, काग़ज़ात और दस्तावेज़ पढ़े और फ़ैक्टस के बारे में उन्हें जानकारी हो, यह इसीलिए है।

अमरीकी दूतावास इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों में, इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों से ही इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ साज़िश का केन्द्र बन गया था। अलबत्ता शुरू में वे चकरा गए, समझ नहीं पाए कि हुआ क्या है, लेकिन जैसे ही बौखलाहट से बाहर निकले सैन्य बग़ावत की साज़िश और योजनाबंदी शुरू कर दी। मुख़्तलिफ़ क़ौमों और तत्वों को वर्ग़लाना शुरू कर दिया। फूट डालना शुरू कर दिया। इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ हरकत के लिए पहलवी दौर की (इंटेलिजेंस एजेंसी) सावाक के बचे खुचे तत्वों को जमा करना शुरू कर दिया। अमरीकी दूतावास, दूतावास नहीं था, बल्कि इंक़ेलाब विरोधी हरकतों का केन्द्र था, ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ साज़िश का केन्द्र था, ईरानी अवाम के अज़ीम इंक़ेलाब के नाकाम बनाने की साज़िश का केन्द्र था। इसलिए यह घटना बहुत नुमायां और ऐतिहासिक घटना है। कभी न भुलाया जाने वाला वाक़ेया है। हमारे इतिहास में एक अहम मोड़ है।

फ़र्ज़ कीजिए कि जिन लोगों ने एक दिन यह काम किया था, वही अब संदेह का शिकार हो गए हों, लेकिन सच्चाई यह है कि यह काम बहुत बड़ा काम, ज़रूरी काम था। इसी वजह से इमाम (ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह) ने अपनी उस दूरदृष्टि की बिना पर इस क़दम का सपोर्ट किया था, यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स के इस क़दम की ताईद की थी। यह काम ज़रूरी था।

अमरीकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ईरानी अवाम के संघर्ष की क्या वजह है? यह एक सवाल है। इसका रौशन, स्पष्ट और ठोस जवाब यह है कि यह संघर्ष हमारी क़ौम और मुल्क पर अमरीकी सरकार के लज्जाजनक व ज़ुल्म से भरे वर्चस्व के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया है। मुख़ालेफ़त इस वजह से है।

तथ्यों में फेरबदल करने वाले इतिहासकार यह ज़ाहिर करने की कोशिश करते हैं कि ईरान और अमरीका के दरमियान 1979 के नवम्बर के आग़ाज़ से मतभेद शुरू हुआ! यह झूठ है। अमरीकी इंक़ेलाब के आग़ाज़ से ही बल्कि इंक़ेलाब से पहले से ही ईरानी अवाम के ख़िलाफ़ थे और ईरानी अवाम के ख़िलाफ़ उन्होंने हर कोशिश की। कम से कम 19 अगस्त 1953 से (ईरानी अवाम से अमरीका की दुश्मनी जारी है) अलबत्ता 19 अगस्त 1953 से पहले भी अमरीकियों की मौजूदगी और उनकी कोशिशों की दास्तान बहुत लंबी है लेकिन 19 अगस्त सन 1953 सबकी आँखों के सामने है। ईरान में राष्ट्रीय और अवाम की सेवा करने वाली सरकार सत्ता में थी, अमरीकी आए इस भरोसे का दुरुपयोग कर जो सरकार को उन पर था, ग़द्दारी की और उस सरकार का तख़्ता पलट दिया और ज़ालिम शाही सरकार को सत्ता में ले आए। ईरानी क़ौम ने बरसों तक अमरीकी दुश्मनी का सामना किया। 19 अगस्त के वाक़ए को ईरानी क़ौम ने महसूस किया। आप नौजवान लोग किताबों में सन 1953 के वाक़ए, राष्ट्रीय आंदोलन और अमरीकी हस्तक्षेप का अध्ययन करें। जो रिसर्च स्कालर हैं वह रिसर्च करें और लिखें। यह हमारी क़ौम के इतिहास के अहम मोड़ हैं। हमारे इतिहास के अहम मोड़ हैं।

अमरीकियों ने ईरान में सैन्य बग़ावत करवाई, 30 के दशक में सावाक (शाही सरकार की बहुत ही निर्दयी गुप्तचर एजेंसी) क़ायम की, जो आज़ादी चाहने वालों और आज़ादी के संघर्षकर्ताओं को पीड़ित करने का केन्द्र थी। शाह की ख़ुफ़िया एजेंसी सावाक के पेशावर अपराधी एजेंटों के उस केन्द्र में जिन लोगों की पीड़ाएं दी गयीं वे या तो मर गए या विकलांग हो गए। यह ईरानी अवाम ने क़रीब से देखा है। सावाक को किसने क़ायम किया था? सावाक को अमरीका ने बनाया था। उसके एजेंटों को पीड़ा देने और यातना की ट्रेनिंग भी अमरीकियों ने दी थी। दसियों हज़ार अमरीकी सलाहकार मुफ़्तख़ोरी के लिए ईरान लाए। वे ईरानी फ़ौज, इंटेलिजेंस और सरकार के मामलों में हस्तक्षेप भी करते थे और जासूसी भी करते थे। वे ईरानी सभ्यता और कल्चर को बदलने की कोशिश के साथ ही ईरान पर अमरीकी प्रभुत्व को दिन ब दिन बढ़ाने के मिशन पर भी काम कर रहे थे।

दुष्ट पहलवी सरकार अमरीकी सरकार की मदद से क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के क़दम मज़बूत करने वाले तत्वों में शामिल थी।

जिन दिनों यह पूरा क्षेत्र, इलाक़े की ज़्यादातर सरकारें ज़ायोनी शासन से संबंध ख़त्म कर चुकी थीं, ईरान की शाही सरकार ज़ायोनी शासन को तेल दे रही थी, सहूलतें मुहैया कर रही थी, उसका सपोर्ट कर ही थी। यह ग़द्दारी भुलाई नहीं जा सकती।

अफ़सोस कि आज भी कुछ सरकारें यह काम कर रही हैं। आज भी ज़ायोनी सरकार इलाक़े में बर्बरतापूर्ण अपराध कर रही है और कुछ सरकारें उसका विरोध करने के बजाए, उसके मुक़ाबले पर डट जाने के बजाए, क़ौमों का सपोर्ट करने के बजाए, फ़िलिस्तीन और लेबनान के अवाम का सपोर्ट करने के बजाए, ज़ालिम, ख़ूंख़ार और घटिया दुश्मन की मदद कर रही हैं। आर्थिक मदद कर रही हैं, यहाँ तक कि कुछ सैन्य मदद भी कर रही हैं! मदद करने वाले इसी इलाक़े के हैं। अमरीका अपनी जगह पर (उसकी मदद कर रहा है) मसला अंतर्राष्ट्रीय ज़ुल्म का मुक़ाबला करने का है। अवाम के लिए इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़ ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्ष फ़र्ज़ है। साम्राज्यवाद से मुक़ाबला फ़र्ज़ है। साम्राज्यवाद यानी व्यापक आर्थिक सैन्य और सांस्कृतिक प्रभुत्व और क़ौमों का अपमान। उन्होंने ईरानी अवाम का अपमान किया जिस पर ईरानी क़ौम ने साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष शुरू किया और भविष्य में भी निश्चित तौर पर उसका यह संघर्ष जारी रहेगा।

इस सिलसिले में एक मूल बात इस संघर्ष में ईरानी क़ौम की तौफ़ीक़ और प्रगति है। कुछ यह संदेह पैदा करने की कोशिश करते हैं कि "क्या अमरीकी सरकार और अमरीका जैसे ताक़तवर, आधुनिक और विकसित सिस्टम का मुक़ाबला मुमकिन है? क्या उसके ख़िलाफ़ संघर्ष किया जा सकता है? " हाँ, ईरानी क़ौम ने संघर्ष किया और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि निश्चित तौर पर आज तक ईरानी क़ौम कामयाब भी रही है। आज ईरानी क़ौम, अमरीका के मुक़ाबले में, इस बड़े दुश्मन के मुक़ाबले में, इस धाकड़ ताक़त के मुक़ाबले में, जो सिर्फ़ एक घुड़की से क़ौमों को डराकर पीछे ढकेल सकती है, डट गयी और उसको कमज़ोर कर दिया। आज स्थिति यह आ गयी है कि ख़ुद अमरीका के भीतर स्टूडेंट्स यूनियन पश्चिमी सभ्यता, पश्चिमी कल्चर और अमरीकी सरगर्मियों के ख़िलाफ़ बयान जारी कर रही हैं। यह हुआ है।

अमरीकी यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स की यूनियनों ने जो बयान जारी किए हैं, उनमें वे कहती हैं कि "ये हम हैं, हम पश्चिम वाले ख़ुद, पश्चिमी सभ्यता और पश्चिमी कल्चर के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं और दुनिया की मज़लूम क़ौमों और मुल्कों के सपोर्ट में मैदान में उतरे हैं।"

यह बात उन्होंने उस बयान में कही है जो अभी कुछ महीने पहले जारी हुआ है।

इस आंदोलन में दिन ब दिन तेज़ी आएगी। निश्चित तौर पर रेज़िस्टेंस मोर्चा, ईरानी अवाम और दुनिया की मज़लूम क़ौमें आगे बढ़ेंगी।

अलबत्ता आज इलाक़े में जो बड़ी त्रासदियां हो रही हैं, लेबनान और ग़ज़ा में जो हो रहा है वह बहुत बड़ी त्रासदी है। एक साल में 50000 लोगों की शहादत जिनमें ज़्यादा तादाद औरतों और बच्चों की है, मामूली बात है?!

अमरीकी मानवाधिकार की रक्षा के दावों के साथ बड़ी बेशर्मी के साथ इन अपराधों का सपोर्ट कर रहे हैं। सिर्फ़ सपोर्ट ही नहीं कर रहे हैं बल्कि इन अपराधों में शरीक हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीकी कोशिश कर रहे हैं। अमरीकी बड़ी बेशर्मी से कहते हैं कि "हम ज़ायोनी सरकार का सपोर्ट करेंगे, उसका साथ देंगे।" यह बात वे खुल्लम खुल्ला कहते हैं।

यह एक अक़्लमंदी, बुद्धि और तर्क से भरा संघर्ष है। संकीर्ण मानसिकता वाले लोग, मैं उन्हें ग़द्दार नहीं कह रहा हूं, जान बूझकर करने वाले और ग़द्दारी का इल्ज़ाम नहीं लगा रहा हूं, लेकिन कम से कम वे संकीर्ण मानसिकता वाले तो हैं, साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ईरानी क़ौम के संघर्ष को अतार्किक ज़ाहिर करने की कोशिश न करें। यह आंदोलन अतार्किक नहीं बल्कि तार्किक, बुद्धिमत्तापूर्ण और मानवीय सहित अंतर्राष्ट्रीय नियम व उसूल के मुताबिक़ है। यही वजह है कि आज दुनिया की क़ौमें, ईरानी क़ौम को सम्मान की नज़र से देखती हैं। दुश्मनों के मीडिया तंत्र (प्रोपैगंडा करने वाले केन्द्र) इसका विपरीत ज़ाहिर करने की कोशिश करते हैं लेकिन सच्चाई यही है।

जब आप आप्रेशन 'सच्चा वादा' अंजाम देते हैं तो जो मुल्क आपसे दूर हैं, उनकी सड़कों पर भी अवाम निकलकर ख़ुशियां मनाते हैं। यह क्या है? इसका मतलब यह है कि ईरानी अवाम का आंदोलन इस्लामी, क़ुरआनी, मानवीय और अंतर्राष्ट्रीय तर्क के मुताबिक़ है। यह आंदोलन जारी रहना चाहिए। अलबत्ता इसको सही रोडमैप के साथ जारी रखने की ज़रूरत है।

आप अज़ीज़ नौजवानो! अज़ीज़ छात्र और छात्राएं, पूरे मुल्क में प्रभावी रोल अदा कर सकते हैं। अपनी सोच को ठोस बनाइये और ज्ञान बढ़ाइये। बिना इल्म, बिना सोच और बिना रोडमैप के काम सही तौर पर अंजाम नहीं पा सकता। मुख़्तलिफ़ विभागों में हमें इल्म, साइंस और टेक्नालोजी में तरक़्क़ी की ज़रूरत है।

जो लोग मौजूदा संसाधनों और सुविधाओं के साथ भरपूर कोशिश कर रहे हैं, काम कर रहे हैं, वे दुश्मन के मुक़ाबले में पीछे नहीं हटेंगे और दुश्मन की किसी भी कोशिश का बिना जवाब दिए नहीं रहेंगे; आप इस ओर से मुतमइन रहें। जो लोग ईरानी क़ौम के प्रतिनिधित्व के तौर पर दुश्मन से मुक़ाबला कर रहे हैं, वे दुश्मन की किसी भी हरकत को भूलेंगे नहीं। हरगिज़ नहीं भूलेंगे। दुश्मन चाहे ज़ायोनी सरकार हो या अमरीका, वे ईरान, ईरानी क़ौम और रेज़िस्टेंस मोर्चे के ख़िलाफ़ जो भी करेंगे निश्चित तौर पर उन्हें उसका मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।

आज कोई, अमरीका के मद्देनज़र मानवाधिकार, जिसका ढिंढोरा पीटा जा रहा है, के धोखे में आने वाला नहीं है। आज लेबनान में जो हालत है, ग़ज़ा में जो हालत है, फ़िलिस्तीन में जो हालत है और क्षेत्र में क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के तत्व अमरीकी मदद से, अमरीकी हस्तक्षेप से और अमरीका की भागीदारी से जो जुर्म कर रहे हैं, उनके मद्देनज़र इन निरर्थक मानवाधिकार का कोई सपोर्ट नहीं कर सकता जिनका अमरीका दावेदार है।

आज अल्लाह की कृपा से दुनिया इस बात को जानती और समझती है कि जो लोग इन अपराधों के साथ मानवाधिकार के दावे करते हैं और सैयद हसन नसरुल्लाह, हनीया, सुलैमानी और दूसरे शहीदों जैसे अज़ीम इंसानों को आतंकावादी कहते हैं वे ख़ुद आतंकवादी हैं।

जो काम होना चाहिए वह इस राह में क़ौमों का सार्वजनिक स्तर पर आंदोलन है। हमारे नौजवान, दूसरे मुल्कों के नौजवानों से संपर्क बनाएं, हमारे स्कूल और कालेजों के स्टूडेंट्स इलाक़े के इस्लामी मुल्कों के स्कूलों के स्टूडेंट्स के साथ संपर्क बनाए और हमारी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यहाँ तक कि इलाक़े से बाहर के मुल्क़ों की यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के साथ भी संपर्क बनाएं। इन दिनों, संपर्क के साधन कम नहीं है। आप संपर्क क़ायम कर सकते हैं। उनके लिए सही बात को बयान कीजिए। दुनिया के सभी नौजवानों, दूसरे मुल्कों के नौजवानों को उनके फ़रीज़े याद दिलाएं ताकि साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ दुनिया में एक विशाल पब्लिक आंदोलन वजूद में आए। यह आंदोलन वजूद में आएगा और यह इस्लामी और मानवीय आंदोलन और रेज़िस्टेंस मोर्चा दुनिया में अपनी जगह हासिल कर लेगा और निश्चित तौर पर दुश्मन को शिकस्त होगी।

आज का दिन मेरे लिए बहुत अच्छा था। यह मुलाक़ात बड़ी मीठी है। इंशाअल्लाह अल्लाह आप सबकी रक्षा करे, आपको कामयाबी दे। मैं आप सबके लिए दुआ करता हूं। उम्मीद है कि इंशाअल्लाह अल्लाह आप सबको तौफ़ीक़ अता करेगा।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत हो।

1 इस मुलाक़ात में पहले कुछ स्कूली और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने कुछ बातें बयान कीं।

2 इक़बालुल आमाल, जिल्द-1, पेज-188