इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार 7 जुलाई 2024 की सुबह कार्यवाहक राष्ट्रपति मुख़बिर और तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात में, जो तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से आख़िरी मुलाक़ात थी, तेरहवीं सरकार को "काम, उम्मीद और ऐश्कन" की सरकार बताया और कहा कि शहीद रईसी हक़ीक़त में हक़ और भविष्य के बारे में आशावान थे और निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस इरादा रखते थे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शहीद रईसी की ख़ुसूसियतों को बयान करते हुए उनके अवाम से जुड़े होने को उनकी बहुत अहम ख़ुसूसियत और सभी अधिकारियों के लिए इसे आदर्श बताया और कहा कि अज़ीज़ रईसी अवाम के बीच पहुंच कर हक़ीक़त और ज़रूरतों को क़रीब से महसूस करते थे और उन्होंने अवाम की मुश्किल को दूर करने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने को अपने प्रोग्रामों और योजनाओं का केन्द्र बिंदु क़रार दिया था।
उन्होंने अवाम से जुड़े होने की ख़ुसूसियत को अधिकारियों और ज़िम्मेदारों से इस्लाम का मुतालेबा बताया और जनाब मालिके अश्तर के नाम अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के ख़त का हवाला देते हुए कहा कि अमीरुल मोमेनीन मालिके अश्तर से बल देकर कहते हैं कि तुम्हारी नज़र में सबसे पसंदीदा काम वह होना चाहिए जो अवाम की मर्ज़ी और ख़ुशी हासिल करे। शहीद रईसी अमीरुल मोमेनीन की इस शैली को अपनाए हुए थे और इसे भी सभी के लिए आदर्श होना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुल्क की सलाहियतों पर गहरे विश्वास को शहीद रईसी की एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी दिल की गहराइयों से मुल्क के मसलों के हल के लिए मुल्क की सलाहियतों व क्षमताओं को इस्तेमाल करने पर यक़ीन रखते थे।
उन्होंने धार्मिक व क्रांतिकारी नज़रिए के खुलकर एलान, द्विअर्थी बातों और दूसरों की ख़ुशामद से परहेज़ को शहीद राष्ट्रपति की एक और ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी जो बात साफ़ तौर पर कहते थे, व्यवहारिक तौर पर उसकी पाबंदी भी करते थे, मिसाल के तौर पर राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनके पहले इंटरव्यू में उनसे सवाल किया गया कि क्या आप फ़ुलां मुल्क से संबंध क़ायम करेंगे तो उन्होंने जवाब दिया थाः "नहीं" और वह आख़िर तक उसी दो टूक व स्पष्ट स्टैंड पर डटे रहे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने काम से न थकने को शहीद रईसी की एक और ख़ुसूसियत बताते हुए कहा कि मैं बिना रुकावट के काम जारी रखने के लिए उनसे बारंबार कहता था कि वो थोड़ा आराम कर लें तो वो कहते थे कि मुझे काम से थकन नहीं होती और वो सचमुच थकते नहीं थे।
उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति रईसी में एक और नुमायां ख़ुसूसियत थी और वह यह कि वो विदेश नीति में दो ख़ुसूसियतों की एक साथ पाबंदी करते थे, एक सहयोग और दूसरे आत्मसम्मान की रक्षा। वह सहयोग करने वाले थे लेकिन आत्म सम्मान की रक्षा के साथ, वो न तो इतनी सख़्त बहस करते थे कि संपर्क टूट जाए और न ही फ़ुज़ूल में अपने आप को कमतर ज़ाहिर करते और रिआयत देते थे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस सिलसिले में याद दिलाया कि इज़्ज़त व आत्मसम्मान के साथ दूसरे मुल्कों ख़ास तौर पर पड़ोसी मुल्कों के साथ हमारे शहीद राष्ट्रपति का सहयोग इस बात का सबब बना की उनकी शहादत के बाद दुनिया के कई बड़े राष्ट्राध्यक्षों ने अपने सांत्वना संदेशों में उन्हें एक मामूली राजनेता नहीं बल्कि एक नुमायां हस्ती के तौर पर याद किया।
उन्होंने शहीद रईसी में अध्यात्म, अल्लाह की याद, उससे दुआ और अहलेबैत को अल्लाह से दुआ में ज़रिया क़रार देने को उनकी एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि ये ख़ुसूसियतें एक आइडियल की व्याख़्या और इतिहास में उसे दर्ज करने के लिए बयान हुयीं ताकि यह पता चल सके कि एक राष्ट्रपति अनेक वैचारिक, व्यवहारिक व हार्दिक महानताओं का स्वामी हो सकता है और अपने सरकारी व व्यक्तिगत कामों के दौरान भी उनकी पाबंदी कर सकता है।
उन्होंने अपने ख़ेताब के आख़िर में एक बार फिर एक अच्छे और बिना कड़वाहट के चुनाव के आयोजन के लिए अवाम, अधिकारियों, गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय मीडिया, पुलिस फ़ोर्स और क़ानून लागू करने वाले विभागों की कोशिशों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि दुनिया के कुछ मुल्कों में इलेक्शन मारपीट और एक दूसरे का गरेबान पकड़े बिना नहीं होता जबकि हमारे मुल्क में चुनाव बेहतरीन तरीक़े से आयोजित हुआ।