आयतुल्लाह ख़ामेनेई की तक़रीर

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।

आप सब का बहुत स्वागत है प्यारे भाइयो और बहनो! यह बैठक दूसरी सभी सरकारों की तरह, सरकार के ज़िम्मेदारों और ओहदेदारों को मेरी तरफ़ से शुक्रिया अदा करने के लिए होती है। यक़ीनी तौर पर हमारे प्यारे राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की कमी महसूस हो रही है लेकिन बहरहाल हमारे अक़ीदे के मुताब़िक, मोमिनों की पाकीज़ा रूहें, ख़ास तौर पर शहीदों की रूहें देखती हैं, मौजूद रहती हैं, सब देखती हैं, सुनती हैं, यानी अस्ल में वह भी हमारे इस शुक्रिया से और हमारी बातों से आगाह हैं।

यह बैठक शुक्रिया अदा करने के लिए है और मेरी दुआ है अल्लाह से कि वह आप सब की मेहनत को क़ुबूल करे, जो कुछ किया है वह एक तरफ़ और जो कुछ करने की नीयत रखते थी वह दूसरी तरफ़, दोनों की अहमियत है। यानी आप की नीयत यह थी कि सरकार जारी रहती तो बहुत से काम करते, बहुत सी योजनाओं को लागू करते, अल्लाह आप को इसका भी सवाब देगा। अल्लाह आप सब को तौफ़ीक़ दे और आप सब की मदद करे कि आप इस तरह की कोशिश व मेहनत जारी रख सकें। यक़ीनी तौर पर यह स्वाभाविक है कि सरकार का ढांचा बदल जाएगा, शक नहीं इसमें, लेकिन देश के सेवकों को सिर्फ़ इन्ही ख़ास पदों पर ख़ास नामों के साथ ही सेवा नहीं करना चाहिए बल्कि हर हाल में, हर जगह, उन्हें देश के लिए काम करने पर तैयार रहना चाहिए। आप देश की सेवा करें, मुल्क के लिए काम करें और आप यह सब कर सकते हैं इन्शाअल्लाह।

मरहूम जनाब रईसी की सरकार, काम करने वाली सरकार थी, उम्मीद पैदा करने वाली सरकार थी, देश व विदेश में सक्रिय सरकार थी। हालांकि इस तरह की बातें वह ख़ुद या उनकी सरकार के सदस्य नहीं करते थे, लेकिन व्यवहारिक रूप से यही नज़र आता था और यही समझ में आता था, वह सच में उम्मीद रखते थे, सच में भविष्य से उन्हें अच्छी उम्मीदें थीं, और इस तरह की उम्मीद रखने का उन्हें हक़ भी था, वह यह चाहते थे कि ख़ुद इस तरह के सभी मक़सदों को आप सब की मदद से पूरा करें। मैं मरहूम सैयद इब्राहीम रईसी की एक ख़ूबी जो मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है आप को बताता हूं। वैसे मुख़बिर साहब ने सच में बहुत अच्छी तरह से सब कुछ बयान किया है, उनके व्यक्तित्व के बहुत से अहम पहलुओं को उजागर कर दिया, मैं भी कुछ पहलुओं का ज़िक्र कर रहा हूं।

मेरे ख़्याल में जनाब रईसी की सब से अहम ख़ूबी उनका अवामी होना था। हम सब के लिए, सरकारों और सरकारों के प्रमुखों के लिए, मंत्रिमंडल के सदस्यों के लिए यह एक आदर्श होना चाहिए। वह जनता पर भरोसा करते थे, जनता का सम्मान करते थे, जनता के बीच जाते थे, लोगों के बीच जाकर ख़ुद सच्चाई को महसूस करते थे, उनकी बातें सुनते थे और उनकी ज़रूरतों को मद्देनज़र रख कर कार्यक्रम बनाते थे, वो इस तरह के थे। उनकी योजनाओं और कामों का आधार जनता की समस्याओं का निवारण था। अब यह हो सकता है कि उनमें से कुछ योजनाएं कामयाब हुई हों, कुछ नहीं लेकिन उनके कामों का आधार यही था, जैसा कि बैठकों में बात चीत के दौरान हम ने देखा है।

यह वही चीज़ है जिसकी मांग इस्लाम करता है, यानी जनता के साथ होना। मालिके अश्तर के नाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जो मशहूर ख़त है उसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि तुम्हारे लिए सब से अच्छा और पसंदीदा काम यह कुछ चीज़ें होनी चाहिएं, दो तीन चीज़ों का ज़िक्र करते हैं जिनमें यह कि “सब से बड़ा काम जनता की ख़ुशी है” तुम्हारी नज़र में सब से पसंदीदा काम वह काम होना चाहिए जिससे जनता को ख़ुशी मिले, इसकी कोशिश करो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बयान में जो “रईयत” यानी जनता का ज़िक्र है तो उससे मतलब आम लोग, आम जनता जिनके मुक़ाबले में मख़सूस लोग होते हैं, और हज़रत अली अलैहिस्सलाम इन शासक के चहेते लोगों हुए और ख़ास सुविधाएं हासिल करने वाले लोगों को “ख़ास्सा” यानी ख़ास लोग का नाम देते हैं। वे कहते हैं कि सब से अच्छा और पसंदीदा काम वह है जो जनता चाहती हो, जिससे वह ख़ुश हो, जिससे वह प्रसन्न हों, जिससे उसे ख़ुशी मिले।

उसके बाद दो तीन बातें कहते हैं कि “बेशक दीन का भरोसा, मुसलमानों की एकता और दुशमनों के सामने ताक़त व तैयारी, जनता से होती है”।(2) दुश्मन के सामने तुम्हारे जो काम आएगा, जो एकता पैदा कर सकता है, समाज को एक कर सकता है वह यही आम जनता है, यह लोग हैं जो अगर एक साथ हो जाएं, तो देश में एकता हो जाएगी। वर्ना ख़ास लोगों में से हर एक का अपना एक मक़सद होता है और वह उसी मक़सद के तहत काम करते हैं, अपने लिए काम करते हैं। “अपनी इच्छा के अनुसार” जब मर्ज़ी के ख़िलाफ होता है तो एक दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं, एक दूसरे के ख़िलाफ़ काम करते हैं, इसमें तो शक नहीं, यानी एकता का कोई सवाल ही नहीं। लेकिन जनता यही करती है, जनता, आम लोग, वह एकता पैदा कर सकते हैं, और दुश्मन के सामने खड़े होने की तैयारी कर सकते हैं, हर मैदान में, जनता ही काम आती है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस ख़त में आगे चल कर बहुत ही दिलचस्प बातें कही हैं जिसके कुछ हिस्सों का मैंने ओहदेदारों के साथ नहजुल बलाग़ा की बैठकों में जो कभी होती थीं, ज़िक्र किया है। हज़रत अली कहते हैं कि इस चहेते लोगों की उम्मीद सब से ज़्यादा होती है, संयम सब से कम होता है, उनकी तरफ़ से मदद, सब से कम होती है है, अपेक्षा की बात आती है तो इन्हें सब से ज़्यादा अपेक्षा होती है, जब कुछ करना होता है तो मैदान में सब से पीछे होते हैं, जब जंग होती है तो वो कहीं नज़र नहीं आते, आम जनता के विपरीत जिसकी मिसालें हम ने मुक़द्दस डिफ़ेंस के दौरान देखीं, मुक़द्दस रौज़ों की हिफ़ाज़त के दौरान देखीं। देखिए! यह एक स्पष्ट राह है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने दिखायी है। जनाब रईसी इसी राह पर चलते थे, यह उनका मक़सद था, यह बहुत अहम बात है, यह बहुत अच्छी बात है, यह सच में आदर्श है, हम सब को यह सीखना चाहिए। यह उनकी एक ख़ास ख़ूबी थी।

दूसरी चीज़ यह थी कि वो मुल्क के अंदर की क्षमताओं में सच में यक़ीन रखते थे। देखें हम अधिकारियों के साथ बैठकों और बात चीत में मुल्क के अंदर मौजूद संसाधनों और क्षमताओं पर बहुत बात करते हैं, कोई भी विरोध नहीं करता, लेकिन देख कर समझ में आता है कि कौन पूरे दिल से इन क्षमताओं में यक़ीन रखता है और कौन नहीं। उन्हें सच में यक़ीन था, यानी वो यह मानते थे कि हम देश की बहुत सी समस्याओं को या अक्सर समस्याओं को या एक तरह से मुल्क की सभी समस्याओं को, देश के भीतर मौजूद क्षमताओं की मदद से दूर कर सकते हैं और इसी लिए वो यह सब करना चाहता थे। यह उनकी अस्ली राह थी जिस पर वह चल रहे थे।

एक दूसरी ख़ूबी जो उनमें थी वह इन्क़ेलाबी और दीनी रुख़ को बिना किसी लाग लपेट के बयान करते थे। दो अर्थों वाली बात करना और इनका-उनका ख़याल रख कर बात करना कि मिसाल के तौर पर अगर हम अपना इन्क़ेलाबी रुख़ बयान कर देंगे तो अमुक इन्सान, वह धड़ा, वह हस्ती हो सकता है नाराज़ हो जाए! नहीं! वो यह सब नहीं सोचते थे, यानी अपने इन्क़ेलाबी रुख़ का, उन चीज़ों का जिसमें उन्हें यक़ीन होता थ , खुल कर इज़हार करते थे। उन्होंने जो सब से पहला इन्टरव्यू दिया था, उसमें उनसे एक मुल्क से संबंध के बारे में पूछा गया कि आप उस देश से रिश्ते क़ायम करेंगे, तो उन्होंने कहा कि नहीं! खुल कर, यानी किसी भी तरह से इधर उधर की बात किये बिना, इशारे वग़ैरा में नहीं कहा, सीधे कहा जी नहीं, वह खुल कर बात करते थे। हर मामले में, जैसा कि हमने देखा वह इसी तरह के थे।

उनकी एक और ख़ूबी कि जिसके बारे में सब को मालूम है और सब जानते हैं और देखा है, अथक काम है। मैं हमेशा उनसे कहा करता था कि ज़रा आराम कर लिया करें। मैं मिसाल देता था उन लोगों की जिन्होंने आराम नहीं किया तो उन्हें समस्या हो गयी। मैं उनसे कहा करता था कि आप अपने काम में दिलचस्पी की वजह से ही कुछ आराम कर लिया करें, वर्ना एक दिन जो गिरेंगे तो फिर कुछ काम भी नहीं कर पाएंगे, मैं बार बार यह कहता था। वह हमेशा कहते थे कि मैं काम से नहीं थकता, सच में जैसे वह थकते नहीं थे, इन्सान को हैरत होती थी। आधी रात को विदेश यात्रा से आए और अगली सुबह मिसाल के तौर पर करज या किसी और इलाक़े में जनता से भेंट भी करते या फिर अलग अलग मुद्दों पर विचार के लिए बैठक का आयोजन करते। यह सब बहुत अहम बातें हैं।

एक और अहम ख़ूबी, तानों से निराश न होना था। यह हम में से बहुत से लोगों की कमज़ोरी है कि जैसे ही कोई हमारी आलोचना में ज़बान खोलता है, वैसे ही या तो हमारा दिल टूट जाता है या फिर हमारा मूड ख़राब हो जाता है या फिर हमें बहुत बुरा लगता है कि क्यों मिसाल के तौर पर एक व्यक्ति ने शुक्रिया अदा नहीं किया, इस तरह से हम काम रोक देते हैं, अक्सर यह होता है, हमें हमेशा यह पसंद होता है कि हमारी तारीफ़ की जाए। लेकिन वो इस तरह के इन्सान नहीं थे, जितना लोग ताने दे लें वह कभी निराश नहीं होते थे। यानी यह जो हम कह रहे हैं कि निराश नहीं होते थे तो इसका मतलब यह है कि कुछ ज़ाहिर नहीं करते थे, तकलीफ़ तो उन्हें भी होती थी, कभी मुझ से शिकायत भी करते थे, लेकिन निराश नहीं होते थे और काम व प्रयास के मामले में सुस्त नहीं पड़ते थे। यह भी उनकी एक अहम ख़ूबी थी।

एक और अहम ख़ूबी जो उनमें थी यह है कि विदेश नीति में दो ख़ूबियों के एक साथ मालिक थेः एक सहयोग और दूसरे सम्मान। वह सहयोग करने वाले इन्सान थे। यहां वह किसी युरोपीय देश के राष्ट्रपति से एक घंटा या मिसाल के तौर पर डेढ़ घंटे बात करते थे टेलीफ़ोन पर! सच में आप सोचें मिसाल के तौर पर डेढ़ घंटे वह फ़ोन पर बात करते थे, सहयोग करने वाले थे लेकिन सम्मान के साथ, न इतने कट्टर व कठोर कि संपर्क ख़त्म हो जाए न अकारण किसी को विशिष्टता देना और किसी के सामने झुकना या इस तरह का कोई काम करना, नहीं! सम्मान के साथ सहयोग करते थे। यही वजह है कि उनकी शहादत के बाद, मैंने देखा कि दुनिया के कुछ बड़े प्रमुख कि जो आज की दुनिया में काफ़ी मशहूर हैं और बड़े नेताओं में माने जाते हैं उन्होंने मेरे पास उनके बारे में जो पैग़ाम दिया उसमें उन्हें एक बड़े नेता के तौर पर याद किया। यह बहुत अहम है, यानी एक आम राजनेता नहीं, बल्कि उन्हे एक बड़ा राजनेता कहा और उनका नाम लिया। संपर्क में वह यक़ीन रखते थे। हमने बरसों से अफ़्रीक़ा को अलग कर दिया था, अफ़्रीक़ा के बारे में इतनी सारी सिफ़ारिशों के बावजूद। लेकिन उन्होंने अफ़्रीक़ा से संबंध बनाए, आना जाना शुरु किया, सहयोग किया। विभिन्न देशों के साथ संबंध, उन सभी देशों के साथ संबंध स्थापित किया जिनके साथ संबंध मुमकिन था, उनका यही मानना था कि इस तरह के सभी देशों से संबंध बनाना चाहिए। इस सिलसिले में वह प्राथमिकताओं का ख़याल रखते थे मिसाल के तौर पर उनकी एक प्राथमिकता पड़ोस थी, वह पड़ोसी होने को बहुत महत्व देते थे।

एक और विशेषता कि जिसका ज़िक्र सही तौर पर मुख़बिर साहब ने भी किया, बड़ी बड़ी योजनाओं पर ख़ास ध्यान देना था। वह बड़ी योजनाओं पर ध्यान देते थे, मिसाल के तौर पर आप देख लें यही समुद्र से कई इलाक़ों तक पानी पहुंचाने की जो परियोजना है या फिर यही पानी का मामला, दूर दराज़ के इलाक़ों में पानी पहुंचाने का जो मामला था, ऐसे शहर थे जो बहुत समय से पानी का इंतेज़ार कर रहे थे उन्होंने इन शहरों में पीने और खेती बाड़ी के पानी का मुद्दा सुलझा दिया। इस तरह की बहुत सी योजनाएं थीं उनकी। यह भी हमारे प्यारे राष्ट्रपति की एक ख़ूबी थी।

एक और चीज़ उनका व्यवहार था, सच में वह विनम्र थे, बहुत ज़्यादा संयमी थे। सब्र करने वाले इन्सान थे, संयमी आदमी थे, ख़याल रखने वाले थे, उन सब का ख़याल रखते थे जिनसे उनकी राय नहीं मिलती थी, चाहे वैचारिक अंतर हो या फिर ऐसा वैचारिक मतभेद जो व्यवहारिक मतभेद में बदल जाए। जी आप को पता ही है कि देश चलाने में इस तरह की स्थिति पैदा हो जाती है, वह मेरे पास आकर भी कहते थे, बयान करते थे, कई चीज़ें बताते थे, परेशान भी होते थे लेकिन इसके साथ ही वह उन लोगों के साथ सही ढंग से पेश आते थे। एक मामले में उनका एक जगह से मतभेद था, मैंने कहा कि आप कुछ प्रतिक्रिया न दिखाएं, यह उनके लिए बहुत कठिन काम था, लेकिन उन्होंने प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की, यानी सच में ख़याल रखा जब कि अगर मिसाल के तौर पर उनके पास संयम न होता और सहनशीलता न होती तो हमारे देश में एक बड़ा झगड़ा खड़ा हो जाता। वह इस तरह के इन्सान थे।

एक और ख़ूबी उनकी यह है कि वह ज़िक्रे ख़ुदा, दुआ वग़ैरा में यक़ीन रखने वाले इन्सान थे कि जिसका इन्होंने (4) भी ज़िक्र किया है। अब जिन दुआओं की इन्होंने बात की है उसके बारे में मुझे नहीं मालूम मगर यह पता है कि वह दुआ पढ़ने वाले थे, अल्लाह का ज़िक्र करने वाले थे, अहलेबैत को वसीला बनाने वाले थे, इबादतों में रोते थे, दिल नूरानी था और दिल ग़ैब की दुनिया से जुड़ा था, और यही चीज़ें इन्सान को नजात दिलाती हैं और उसे आगे बढ़ाती हैं।

अल्लाह इन्शाअल्लाह उनके दर्जे बुलंद करे। मैंने यह सब इस लिए कहा ताकि यह दर्ज कर लिया जाए एक आदर्श के रूप में, ताकि सब को यह पता चल जाए कि एक देश चलाने वाला इन्सान इस तरह की ख़ूबियों का ही मालिक हो सकता है, व्यवहार में, विचार में और दिल में इस तरह की अच्छाइयां पैदा कर सकता है एक साथ और उन्हें बाक़ी रख सकता है, वह कर सकता है यह काम, यह हो सकता है।

मंत्रियों का भी शुक्रगुज़ार हूं, आपने सहयोग किया, कोशिश की, इन कई बरसों में आप ने मदद राष्ट्रपति की। अगर उनके दोस्तों का सहयोग न रहा होता, तो निश्चित रूप से वो यह सब काम नहीं कर पाते। कोई इन्सान अकेले इस तरह के काम नहीं कर सकता, इसके लिए लोगों की ज़रूरत होती है और वह लोग आप हैं, और ख़ुदा का शुक्र है कि आप लोगों ने मदद की। ख़ास तौर पर जनाब मुख़बिर का मुझे ख़ास शुक्रिया अदा करना चाहिए, इस लिए भी कि इन्होंने इन तीन बरसों में जनाब रईसी के साथ सहयोग किया, मुझे तो मुख़बिर साहब पर पड़ने वाली मुसीबतों का ज़िक्र करने के लिए एक बैठक करनी चाहिए, जो कुछ इन्होंने सहा है, जिन समस्याओं का इन्होंने सामना किया है, सच में इन्होंने बहुत कठिनाई का सामना किया है, लेकिन बहरहाल मरहूम जनाब रईसी के साथ सहयोग किया, सरकार के साथ सहयोग किया, और इसी के साथ इन 45 दिनों के लिए भी इनका शुक्रिया अदा करता हूं कि जब इन्होंने प्रभारी राष्ट्रपति का पद संभाला, सच बात यह है कि इस दौरान भी इन्होंने बहुत अच्छी तरह से काम किया, बहुत अच्छी कोशिश की, कामों को आगे बढ़ाया, बहुत कुछ किया। यह जो कहा गया था कि आख़िरी दिन तक सारे काम हो चुके होंगे तो इन्होंने सच में इस बात को गंभीरता से लिया। आप सब दोस्त भी इसी तरह हैं, आप सब भी ख़ुदा के शुक्र से व्यस्त हैं, अब भी यही है कि आख़िरी लम्हे तक काम जारी रखें। यह ख़ूबियां, सरकारों के लिए, राष्ट्राध्यक्षों के लिए, मंत्रियों के लिए सब के लिए आदर्श हैं, इन्शाअल्लाह इन आदर्शों से लाभ उठाया जाएगा, हम सब लाभ उठाएंगे, मैं भी लाभ उठाउंगा।

आख़िर में मैं एक बार फिर जनता का चुनाव (5)की वजह से शुक्रिया अदा करता हूं। देश के अधिकारियों, गृहमंत्रालय, रेडियो टीवी संस्था, पुलिस और सुरक्षा बल का शुक्रिया अदा करता हूं कि उनकी वजह से चुनाव अच्छी तरह से आयोजित हो सका। सब ने काम किया, सब ने कोशिश की, और ख़ुदा का शुक्र है कि यह पूरा चुनाव बिना किसी अप्रिय घटना के संपन्न हो गया। यह बहुत अहम है। दुनिया के अधिकांश देशों में, मैं अब सब जगह नहीं कह रहा हूं, हमें हर जगह के बारे में पता नहीं है, जिस तरह का राजनीतिक व वैचारिक मतभेद है, चुनाव आम तौर पर लड़ाई झगड़े, मार पीट बल्कि कभी कभी हत्या की घटनाओं के साथ आयोजित होता है, यहां ख़ुदा का शुक्र है कि पूरी सुरक्षा व शांति के साथ यह काम हुआ। यह आप की कला थी जो आप ने इलेक्शन को इस बेहतरीन तरीक़े से आयोजित कराया।

हमारी परंपरा है कि हम इस आख़िरी मुलाक़ात में हर एक को एक क़ुरआने मजीद तोहफ़े में देते हैं, यह मैं मुख़बिर साहब को देता हूं। अल्लाह आप सब की हिफ़ाज़त करे, अल्लाह आप सब को कामयाब करे और मदद करे।

 

वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

  1. इस मुलाक़ात के शुरु में अंतरिम राष्ट्रपति मुहम्मद मुख़बिर ने तक़रीर की
  2. नहजुलबलाग़ा, ख़त नंबर 53
  3. महत्वकांक्षाएं, इच्छाएं
  4. मुहम्मद मुख़बिर
  5. ईरान में 14वें राष्ट्रपति चुनाव का आयोजन 28 जून और 5 जूलाई 2024 को हुआ