आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में रौज़े की रक्षा करने वालों को हैरतअंगेज़ हक़ीक़त और इस्लामी गणराज्य सिस्टम के अंतर्राष्ट्रीय नज़रिये का एक प्रतीक बताया और कहा कि रौज़ों की रक्षा करने वालों की शक्ल में मुख़्तलिफ़ क़ौमों के जवानों की मौजूदगी ने दिखा दिया कि इस्लामी इंक़ेलाब, चार दशक गुज़र जाने के बाद भी इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों के जोश व जज़्बे को दोबारा पैदा करने की ताक़त रखता है।
उन्होंने रौज़ों की रक्षा करने वाले सभी लोगों और प्रतिरोध के मोर्चे के शहीदों ख़ास तौर पर शहीद क़ासिम सुलैमानी को श्रद्धांजलि पेश करते हुए, पाकीज़ा स्थलों की रक्षा को इन जगहों में दफ़्न हस्तियों और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के विचार व मक़सद की रक्षा का एक सांकेतिक पहलू बताया और कहा कि न्याय, आज़ादी, ज़ालिम ताक़तों से जंग, बलिदान और सत्य की राह में क़ुरबानी जैसे अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के मत के आला मक़सद के लिए हमेशा ही जागृत चेतना के लोग आगे आते हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा के अवाम की रक्षा में अमरीकी यूनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स की ओर से किए जा रहे प्रयास को, दुनिया में पाकीज़ा ज़मीर इंसानों की मौजूदगी का एक नमूना बताया और कहा कि अहम बात यह है कि रौज़ों की रक्षा का यह पैग़ाम जो हक़ीक़त में इंसानी उमंगों की रक्षा है, दुनिया में पाकीज़ा ज़मीर इंसानों तक पहुंचाया जाए।
उन्होंने ने रौज़ों की रक्षा को इस्लामी इंक़ेलाब के वैश्विक नज़रिए का एक और पहलू बताया और कहा कि हर वो क़दम, आंदोलन और क्रांति जो अपने वैश्विक व क्षेत्रीय मसलों से ग़ाफ़िल हो जाए, निश्चित तौर पर नुक़सान उठाएगी जैसा कि संविधान क्रांति और तेल के राष्ट्रीयकरण के विषय में ईरानी क़ौम ने आंतरिक मसलों में उलझे होने और विदेशी हस्तक्षेप की ओर से ग़फ़लत की वजह से नुक़सान उठाया और यह क्रांति कामयाब न हो सकी।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह इस्लामी आंदोलन के आग़ाज़ के दिनों से ही और इसी तरह इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के तत्काल बाद के दिनों से ही विदेशी हस्तक्षेप, वैश्विक व क्षेत्रीय सोच और आंतरिक मसलों में उलझने की ओर से होशियार थे और अपनी स्पीच में इस सिलसिले में ज़रूरी निर्देश जारी करते थे।
उन्होंने उन मुल्कों में रौज़ों की रक्षा करने वालों की मौजूदगी को, जिनके लिए दुश्मन ने बड़ी ख़तरनाक साज़िश तैयार कर रखी थी, इस्लामी इंक़ेलाब के वैश्विक नज़रिए का प्रतीक बताया और कहा कि दुश्मन अपनी साज़िश के तहत क्षेत्र पर क़ब्ज़ा करने और इसी के साथ ईरान पर आर्थिक व राजनैतिक सहित आस्था व धर्म की नज़र से दबाव डालकर इस्लामी सिस्टम को ख़त्म करने का इरादा रखता था लेकिन इस्लामी गणराज्य के नेतृत्व में कुछ ईमान वाले जवानों ने साम्राज्यवाद की इस महंगी साज़िश को नाकाम कर दिया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि इस परिदृष्य के तहत कहना चाहिए कि रौज़ों की रक्षा करने वालों ने ईरान और क्षेत्र को बचा लिया।
उन्होंने दाइश और इस जैसे दूसरे गिरोहों की हिंसक, निर्दयी और अमानवीय प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हुए, जो अमरीका और पश्चिम की ओर से हथियारों और प्रचारिक मदद की वजह से वजूद में आए थे, कहा कि इन गिरोहों का लक्ष्य क्षेत्र ख़ास तौर पर ईरान में अशांति पैदा करना था लेकिन रौज़ों की रक्षा करने वालों ने इस बड़े ख़तरे को भी नाकाम बना दिया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कामयाबी के वक़्त इस्लामी इंक़ेलाब में पाए जाने वाले जोश व जज़्बे को दोबारा पैदा करने की उसकी सलाहियत को, रौज़ों की रक्षा करने वालों के प्रयास का एक और पहलू बताया और कहा की रौज़ों की रक्षा के लिए इन नौजवानों का मैदान में आना, जिन्होंने इमाम ख़ुमैनी और पाकीज़ा डिफ़ेंस के दिनों को नहीं देखा था, चार दशकों पहले के उन्हीं धार्मिक व क्रांतिकारी जोश व जज़्बे को दोबारा वजूद में लाने की इस्लामी इंक़ेलाब की हैरतअंगेज़ ताक़त को दिखाता है।
उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब और उसके विचार व मक़सद के कमजोर हो जाने पर आधारित पश्चिमी विचार रखने वाले कुछ लोगों की अपेक्षाओं और समीक्षाओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि रौज़ों की रक्षा करने वालों की पाकीज़गी, बहादुरी, बलिदान, पाक नीयत और धार्मिक उसूलों पर उनका गहरा ईमान एक हैरतअंगेज़ और बेमिसाल हक़ीक़त ने जिसने पश्चिम की ओर रुझान रखने वालों की समीक्षाओं के ग़लत होने को साबित कर दिया और यह चीज़ अल्लाह और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की कृपा के बिना मुमकिन नहीं थी।