उन्होंने इस मौक़े पर अपने ख़िताब में हज को भौतिक व आध्यात्मिक लेहाज़ के बहुआयामी फ़रीज़ा क़रार दिया और कहा कि व्यक्तिगत, सामाजिक और क़ौमी ज़िंदगी के इरादे व संकल्प तथा फ़ैसलों के अस्ल स्रोत की हैसियत से अल्लाह की याद भीतरी व आत्मिक पहलू से हज के सभी चरण का सबसे नुमायां बिन्दु है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मुसलमानों में एकता और उनके आपसी संपर्क को सामाजिक व सामूहिक लेहाज से हज का नुमायां पहलू बताया और कहा कि एक ख़ास जगह और एक ख़ास वक़्त में सभी लोगों को इकट्ठा होने की अल्लाह की ओर से दावत का मक़सद मुसलमानों में एक दूसरे की पहचान, समान विचार और संयुक्त फ़ैसले करना है ताकि हज के मुबारक व ठोस नतीजे इस्लामी जगत और पूरी इंसानियत को हासिल हों और इस वक़्त इस्लामी दुनिया, संयुक्त फ़ैसला करने के मैदान में एक बड़े शून्य का शिकार है।

उन्होंने क़ौमी, राष्ट्रीय व धार्मिक मतभेदीं को नज़रअंदाज़ किए जाने को एकता के लिए ज़रूरी बताया और कहा कि इस्लामी मतों के मानने वालों और सभी क़ौमों के लोगों की एक अज़ीम, एक जैसी और एक रूप वाली सभा, हज के राजनैतिक व सामाजिक पहलू का नुमायां जलवा है।

उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि हज का फ़रीज़ा, हज़रत इब्राहीम के नाम और उनकी शिक्षाओं से जुड़ा हुआ है, अल्लाह के धर्म के दुश्मनों से दूरी को, हज़रत इब्राहीम की क़ीमती शिक्षाओं में से एक बताया।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात का उल्लेख किया कि इस्लामी इंक़ेलाब के आग़ाज़ से इस्लाम के दुश्मनों से दूरी, हज का एक मुसलसल तत्व रहा है लेकिन इस साल ग़ज़ा के दर्दनाक वाक़ए के मद्देनज़र, जिन्होंने पश्चिमी सभ्यता के ख़ूंख़ार चेहरे को पहले से ज़्यादा ज़ाहिर कर दिया, इस साल का हज, ख़ास तौर पर बराअत (अल्लाह के दुश्मनों से दूरी बनाने का) हज है।

उन्होंने ग़ज़ा के हालिया वाक़यों को इतिहास की अमर कसौटी बताया और कहा कि एक ओर पागल ज़ायोनी कुत्ते के बर्बरतापूर्ण हमले और दूसरी ओर ग़ज़ा के अवाम का प्रतिरोध और मज़लूमियत इतिहास में हमेशा बाक़ी रहेगी; इंसानियत को रास्ता दिखाती रहेगी और इसकी हैरतअंगेज़ व बेमिसाल गूंज ग़ैर मुस्लिम समाजों और अमरीका व कुछ दूसरे मुल्कों की यूनिवर्सिटियों में सुनाई दे रही है जो इन वाक़यों के इतिहास बनने और मानदंड होने की निशानी है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हज के मौक़े पर ग़ज़ा के अपराधों के सिलसिले में इस्लामी जगत की ज़िम्मेदारी की व्याख्या करते हुए कहा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन पैग़म्बरों में से हैं जो बहुत ही नर्म व मेहरबान दिल के मालिक हैं लेकिन यही पैग़म्बर ज़ालिम और ख़ूंख़ार दुश्मनों के मुक़ाबले में पूरी शिद्दत से और खुलकर बेज़ारी व दुश्मनी का एलान करता है।

उन्होंने क़ुरआनी आयतों की ओर इशारा करते हुए ज़ायोनी सरकार को मुसलमानों से दुश्मनी की साफ़ मिसाल और अमरीका को इस सरकार का सहापराधी क़रार दिया और कहा कि अगर अमरीका की मदद न होती तो क्या ज़ायोनी सरकार में मुसलमान मर्दों, औरतों और बच्चों के साथ इस तरह के बर्बरतापूर्ण सुलूक की ताक़त व हिम्मत होती? आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि मुसलमानों को क़त्ल और बेघर करने वाला और उसका सपोर्टर दोनों ही ज़ालिम हैं और क़ुरआन मजीद में साफ़ लफ़्ज़ों में है कि अगर कोई उनकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता है तो वह भी ज़ालिम, अत्याचारी और अल्लाह की लानत का मुस्तहक़ होगा।

उन्होंने इस्लामी जगत के मौजूदा हालात के मद्देनज़र हज के सिलसिले में हज़रत इब्राहीम के व्यवहार यानी दुश्मनों के मुक़ाबले में खुल्लम खुल्ला बेज़ारी के एलान को हमेशा से ज़्यादा ज़रूरी बताया और कहा कि इस बुनियाद पर ईरानी और ग़ैर ईरानी हाजियों को, फ़िलिस्तीनी क़ौम के प्रति सपोर्ट के सिलसिले में क़ुरआन के मक़सद को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहिए।

उन्होंने इसी के साथ कहा कि इस्लामी गणराज्य ने दूसरों का इंतेज़ार नहीं किया और आगे भी ऐसा नहीं करेगा लेकिन अगर मुसलमान क़ौमें और इस्लामी सरकारों के मज़बूत हाथ मदद के लिए आगे बढ़ें तो फ़िलिस्तीनी क़ौम की दर्दनाक स्थिति जारी नहीं रहेगी।