हमदान प्रांत के 8 हज़ार शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए दूसरे नेशनल सेमीनार के प्रबंधकों ने 27 सितम्बर 2023 को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर अपनी तक़रीर में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हमदान प्रांत के अवाम के ख़ूबियों, इस्लामी क्रांति और आठ साल तक चले पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान इसी तरह अलग अलग अहम मौक़ों पर हमदान के लोगों के योगदान को रेखांकित किया। यह स्पीच 8 अक्तूबर 2023 को सेमीनार हाल में दिखाई गई। (1)
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए जो पूरी कायनात का मालिक है। दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व नबी अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।
आपका बहुत बहुत स्वागत है। मैं दिल की गहराई से ख़ुश हूं कि एक बार फिर हमदान प्रांत के प्यारे अवाम में कुछ लोगों से, जिनमें अख़लाक़ के मुख़्तलिफ़ पहलुओं को देखा जा सकता है, इस इमामबाड़े में मुलाक़ात हो रही है। ख़ास तौर पर मैं यहाँ मौजूद शहीदों के घरवालों का स्वागत करता हूं। मैं हमदान के मोहतरम इमामे जुमा और आईआरजीसी के आदरणीय कमांडर के बयानों और उनकी दी गयी रिपोर्ट के लिए शुक्रगुज़ार हूं। इसी तरह यहाँ पर जो बेहतरीन तिलावत की गयी और आप सबने मिलकर जो ख़ूबसूरत तराना पढ़ा, उसके लिए भी शुक्रगुज़ार हूं।
हमदान के सिलसिले में एक बात संक्षेप में कहना चाहूंगा वो यह कि इंक़ेलाब और पाकीज़ा डिफ़ेन्स की महाघटना में हमदान ने अपने कारनामों की सूची में इज़ाफ़ा किया। इंसानों की तरह समूहों, शहरों और प्रांतों का इम्तेहान संवेदनशीन मौक़ों पर होता हैः बदली हुई स्थिति में इंसान की सलाहियतों का पता चलता है।(2) हमदान प्रांत, चाहे वह हमदान शहर हो या इस प्रांत के दूसरे शहर हों, इतिहास में चमकता रहा है, इंक़ेलाब और पाकीज़ा डिफ़ेन्स के मामले में इसकी उस चमक में इज़ाफ़ा हुआ। जब हम इतिहास पर नज़र डालते हैं तो देखते हैं कि हमदान, हमारे मुल्क की सभ्यता का पहला केन्द्र रहा है और मुल्क की सभ्यता के सभी विविधतापूर्ण हिस्सों से ऐतिहासिक नज़र से आगे है। मैंने अबसे कुछ साल पहले हमदान के बारे में ये बातें ज़्यादा विस्तार से अर्ज़ की थीं। (3) जिन्हें अब में दोहराना नहीं चाहता लेकिन जब हम इतिहास के धारे पर नज़र डालते हैं तो देखते हैं कि हमदान, इल्म का केन्द्र, धर्म का केन्द्र, जेहाद का केन्द्र, कला का केन्द्र और एक मुल्क की सभ्यता के सभी मूल्यों का केन्द्र समझा जाता है, मतलब यह कि जब हम इतिहास पर नज़र डालते हैं तो हमदान में इन ख़ूबियों को पाते हैं। ये सब प्वाइंट्स हैं, ख़ुसूसियतें हैं। इसके बाद इंक़ेलाब का ज़माना आता है, यह एक नए इम्तेहान का मौक़ा है। बहुत से लोगों और जगहों का उज्जवल अतीत है, लेकिन जब वह संवेदनशील व ख़तरनाक मोड़ पर पहुंचते हैं तो नाकाम हो जाते हैं। जब हम उस संवेदनशील मोड़ पर पहुंचे -इंक़ेलाब के ज़माने में- तो मुल्क के बहुत से शहरों और केन्द्रों ने सचमुच बहुत अच्छा काम किया, हमदान भी ऐसा ही था। अभी बताया गया कि मरहूम आग़ा आख़ुन्द मुल्ला अली मासूमी के जनाज़े के जुलूस में, इंक़ेलाब के अंदर सही मानी में नया इंक़ेलाब आ गया यानी लोगों ने एक बड़े व आदरणीय धर्मगुरू के जनाज़े के जुलूस में मैदान अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद जब हम इंक़ेलाब की मुख़्तलिफ़ घटनाओं को देखते हैं तो हमदान बहुत नुमायां है, नूजे एयरबेस का वाक़या बहुत नुमायां है, इंक़ेलाब के आग़ाज़ में मुख़ालिफ़ और अलगाववादी तत्वों से मुक़ाबले में हमदान के नौजवानों का आगे आगे रहना, नुमायां है। जो लोग मुल्क के पश्चिमी इलाक़ों में अलगाववादियों से मुक़ाबले के लिए आगे बढ़े, उनमें हमदान और किरमानशाह के लोग थे जो मैदान में उतरे थे। मैंने नूजे एयरबेस का नाम लिया, इससे मेरा मक़सद जंग का ज़माना था लेकिन इससे पहले भी इस एयरबेस का, उस बहुत ही ख़तरनाक बग़ावत का पर्दाफ़ाश करने में, जिसे इस एयरबेस से शुरू करने की साज़िश तैयार की गयी थी, (4) किरदार था और उस बड़ी साज़िश को नाकाम बनाने में सबसे अहम किरदार इस एयरबेस ने अदा किया था। फिर पाकीज़ा डिफ़ेन्स शुरू हुआ। पाकीज़ा डिफ़ेन्स में एक बार फिर हमदान आगे आगे रहा, वाक़ई बहुत नुमायां रहा। गौरवपूर्ण अंसारुल हुसैन डिविजन, हमदान के मशहूर व लोकप्रिय शहीद, जिन्हें मैंने बारबार श्रद्धांजलि दी है और उनके नामों का ज़िक्र किया है, शहीद मुफ़त्तेह, शहीद क़ुद्दूसी और नहावंद के शहीद हैदरी (5) जैसे शहीद धर्मगुरू, इस स्तर के बड़े शहीद धर्मगुरू। ये सब बड़ी नुमायां चीज़ें हैं, ये सब बड़े अहम काम हैं।
सचमुच इस कॉन्फ़्रेंस की ज़रूरत महसूस हो रही थी। अलबत्ता कुछ साल पहले भी आपने हमदान के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए एक कॉन्फ़्रेंस (6) आयोजित की थी। मैंने नोट किया है कि पिछली कॉन्फ़्रेंस और इस कॉन्फ़्रेंस के बीच की मुद्दत में हमदान शहर और हमदान प्रांत के कई नुमायां लोग, उन चमकते सितारों की कहकशां में शामिल हो गए जैसे शहीद जनरल हुसैन हमदानी, शहीद अली ख़ुश लफ़्ज़, शहीद मीरज़ा मोहम्मद सुलगी, इस प्रांत से जाने वाले पाकीज़ा डिफ़ेन्स के शहीदों, पिछले साल सेक्युरिटी क़ायम रखने के लिए शहीद होने वाले लोग, शहीद अली नज़री (7), यानी इस प्रांत में शहादत का दरवाज़ा अब भी खुला हुआ है। शख़्सियतें एक के बाद एक अपने आपको ज़ाहिर व नुमायां कर रही हैं। उनके नाम को ज़िन्दा रखा ही जाना चाहिए। अलबत्ता शहीदों के नाम का तक़ाज़ा ही अमर व हमेशा बाक़ी रहना है यानी अल्लाह की राह में क़ुरबानी और बलिदान की ख़ुसूसियत ही यह है कि वह दुनिया में बाक़ी रहती है। “तो जो झाग है वो तो राएगाँ चला जाता है और जो चीज़ (पानी और धातु) लोगों को फ़ायदा पहुंचाती है वो ज़मीन में बाक़ी रह जाती है।” (8) शहादत की ख़ुसूसियत, अल्लाह की राह में बलिदान की ख़ुसूसियत यह है कि वह स्वाभाविक तौर पर बाक़ी रहती है, यह बात अपनी जगह लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर मुख़ालिफ़ तत्व मैदान में आ जाएं तो वो अपना असर नहीं छोड़ते, क्यों नहीं, बहुत से दूसरे मूल्यवान संस्कारों की तरह जिनकी मुख़ालिफ़ चीज़ें मैदान में आ गयीं और मुल्कों के समर्थकों ने उस तरह डिफ़ेन्स नहीं किया जिस तरह डिफ़ेन्स करना चाहिए था तो असत्य हावी हो गया, ऐसा ही तो है। आप इतिहास पर नज़र डालिए, पैग़म्बर, औलिया और दूसरी नुमायां हस्तियां थीं जिन पर असत्य हावी हो गया इसलिए कि सत्य वालों ने वो काम नहीं किया जो उनके ज़िम्मे थे। इसके मानी यह हैं कि शहीद स्वाभाविक तौर पर अमर हैं और उनके वजूद में अमर रहने का तत्व पाया जाता है। लेकिन हमारी भी कुछ ज़िम्मेदारी है, हमें शहीदों के नाम को ज़िन्दा रखना चाहिए, हमें शहादत के अर्थ और शहीदों के पैग़ाम से ज़िन्दगी को सवांरने के लिए फ़ायदा उठाना चाहिए। हमें सामाजिक ज़िन्दगी को व्यवस्थित करने की ज़रूरत है, ख़ुद अपने समाज में भी और विश्व समुदाय में भी, शहीदों और उनकी यादगारों से ये काम किया जा सकता है।
यहाँ पर मैं इशारा करना चाहूंगा संघर्षशील व मेहनती ख़ातून मर्ज़िया दब्बाग़ साहिबा की ओर। औरत का विषय दुनिया के सबसे अहम विषयों में से एक है। औरत के मसले में, हम डिफ़ेन्सिव पोज़ीशन में नहीं हैं, मैंने बार बार कहा है (9) कि पश्चिमी जगत के मुक़ाबले में हम डिफ़ेन्सिव पोज़ीशन में नहीं, बल्कि आक्रामक पोज़ीशन में हैं, जवाब तो पश्चिम वालों को देना है, वो हैं जिन्होंने अपनी वासनाओं को पूरा करने के लिए औरत के सम्मान और औरत की इज़्ज़त को तारतार व पामाल किया है, इस सिलसिले में हमने कोई मुश्किल पैदा नहीं की है लेकिन दुश्मन की इस लामबंदी के मुक़ाबले में हमें अपने वजूद को साबित करना होगा, सच्चाई को सामने लाना होगा। यह महिला उन लोगों में से एक हैं जो इस्लामी समाज में औरत के वास्तविक रुझान को चित्रित कर सकती हैं, सिर्फ़ इस्लामी गणराज्य में नहीं बल्कि इस्लाम की नज़र में, इस्लाम की आइडियालोजी में, इस्लाम की संस्कृति में। इंक़ेलाब से पहले इस ख़ातून की जद्दोजेहद, मार खाना, पीड़ा बर्दाश्त करना, जेल जाना और जेल में अपनी सेल में साथ रहने वालों को प्रभावित करना एक ओर, फिर जंग के इलाक़ों में जाना और एक गोरिल्ला सिपाही की तरह काम करना, फिर पेरिस में इमाम ख़ुमैनी की सेवा में पहुंचना और फिर इंक़ेलाब के वास्तविक मैदान में आना, बड़े पैमाने पर काम करना और हर मैदान में उनकी भरपूर और सरगर्म मौजूदगी। मैं इंक़ेलाब के आग़ाज़ में जब हमदान आया था तो मोहतरमा दब्बाग़ हमदान में आईआरजीसी की कमांडर थीं, जिन जगहों पर मैं गया, वहाँ वो आतीं और ज़रूरी बातें बतातीं और हम वहाँ मुआयना करते, मतलब यह कि एक औरत, एक मर्दों वाले इलाक़े में आईआरजीसी की कमांडर बन सकती है! हमदान में मर्द कम नहीं थे, लेकिन इस महिला की अहमियत इस तरह की है। हमदान में आईआरजीसी की कमान से लेकर गोर्बाचोफ़ (10) के लिए पैग़ाम ले जाने तक (देखते जाइये)। सम्मानीय दब्बाग़ उस तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल थीं जो तेहरान से इमाम ख़ुमैनी का पैग़ाम (11) मॉस्को में गोरबाचोफ़ के लिए लेकर गया था। सरगर्मियों के इस बड़े दायरे को देख रहे हैं? इन हालिया बरसों में फ़िलिस्तीन के लिए, लेबनान के लिए और जद्दो जेहद वग़ैरह के लिए काम कर रही थीं, ज़्यादा उम्र हो गयी थी लेकिन काम कर रही थीं। ये इस्लामी महिला है।
मैंने हमेशा शहीदों के लिए कला के काम पर ताकीद की है। (12) स्वर्गीय ज़ाहिरी तौर पर स्वाभाविक मौत से इस दुनिया से गईं लेकिन वो शहीदों की तरह हैं। सिर्फ़ यही एक बात कई सरगर्म कला के कामों का विषय व विषयवस्तु बन सकती है, यानी “इस्लामी सिस्टम में औरत की छवि” महिला विरोधी होने का इल्ज़ाम दुश्मन, इस्लामी इंक़ेलाब और इस्लामी गणराज्य पर हमेशा लगाते रहे हैं, इस्लामी इंक़ेलाब के आग़ाज़ से और इंक़ेलाब के पहले और बाद में वो इतनी ज़्यादा नुमायां महिलाओं के सामने आने के बावजूद, ये इल्ज़ाम लगाता रहा है, इस इल्ज़ाम के मुक़ाबले में नुमायां इंक़ेलाबी महिलाएं और उनकी नुमायां इंक़ेलाबी सरगर्मियों के आधार पर कला के काम का एक नमूना, स्वर्गीय दब्बाग़ साहिबा हैं। ये जो इमाम ख़ुमैनी के हवाले से कहा जाता है कि शहीद, इंक़ेलाब का ज़ख़ीरा हैं, इसका मतलब यह है, मतलब यह कि शहीद की ज़िन्दगी से, शहीदों के पैग़ाम से, इंक़ेलाब की ज़िन्दगी के लिए, इंक़ेलाब की तरक़्क़ी के लिए, इंक़ेलाब, इस्लामी सिस्टम और इस्लामी मुल्क की तरक़्क़ी के लिए हमेशा एक ज़ख़ीरे के तौर पर फ़ायदा उठाया जा सकता है।
बिल्कुल यही बात क़ौम और इस्लाम के मामले में भी है। इंक़ेलाब के आग़ाज़ से एक गुट की कोशिश थी कि क़ौम और ईरान के नाम और ईरान से श्रद्धा के रुझान को इस्लामी और इंक़ेलाबी रुझान के मुक़ाबले में ले आएं और राष्ट्रीयता के मसले को इस्लाम के मसले से अलग कर दें। जंग, पाकीज़ा डिफ़ेन्स और हमारे प्यारे शहीदों ने साफ़ तौर पर व्यवहारिक रूप में उस असत्य पर आधारित उकसावे को नाकाम बना दिया। जंग का बड़ा इम्तेहान सामने आया, मुल्क की सरहदों पर हमला हुआ, ईरान पर हमला किया गया और वह भी सिर्फ़ एक सरकार और एक पड़ोसी का हमला नहीं बल्कि सही मानी में एक अंतर्राष्ट्रीय हमला और यह बात हम बार बार कह चुके हैं। (13) जो लोग दावा करते थे कि ईरान के समर्थक हैं, वो डर के मारे अपने घरों में दुबके रहे और मुल्क की सरहदों की रक्षा के लिए एक क़दम उठाने को भी तैयार नहीं हुए, कुछ लोग तो मुल्क छोड़कर भाग गए, ये वही लोग थे जो पैन ईरानिज़्म के समर्थक होने का दावा करते थे! किन लोगों ने सरहदों की रक्षा की? मुसलमान जवानों ने, नमाज़े शब पढ़ने वालों ने, चीत साज़ियान जैसों नें, सुलगी जैसों ने, अंसारुल हुसैन ब्रिगेड के सिपाही जैसे लोगों ने, इन लोगों ने रक्षा की, इस्लाम ने ईरान की सरहदों की रक्षा की। इस्लामी होना और ईरानी होना एक दूसरे के मुख़ालिफ़ व विरोधाभासी ध्रुव नहीं हैं। दोनों की हक़ीक़त एक ही है। जो इस्लाम का समर्थक बना, जो भी इस्लाम का सिपाही बना, वह जितना मुमकिन होगा, स्वाभाविक तौर पर रक्षा करेगा मुल्क और वतन की “वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है”(14)
ये सारी बातें, कला के काम का विषय हैं। देखिए मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि शहीदों से संबंधित काम करने वाले आप लोग अपना ध्यान कला के इस पहलू की ओर कई गुना ज़्याद केन्द्रित कर लें। ये सब कला के काम के विषय हैं। कलाकार, लिखित में एक तरह से कला का प्रदर्शन करता है, ड्रामे में किसी दूसरी तरह से, वीजुअल आर्ट्स में किसी और तरह से। अल्लाह की कृपा से हमदान प्रांत इस लेहाज़ से काफ़ी मालामाल है, आपके पास अच्छे कलाकार हैं और आप बड़े क़ीमती काम अंजाम दे सकते हैं।
बहरहाल ग़ैरतमंद दीनदार लोगों को श्रद्धांजलि पेश करना जो इस्लाम की रक्षा कर रहे हैं, ईरान की रक्षा कर रहे हैं, उन अहम कामों और नेक मामलों में से है जिसका बीड़ा आप जैसे अच्छे बंदों ने उठाया है, हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह, अल्लाह आपको अवसर दे और आपकी मदद करे ताकि आप बेहतरीन ढंग से यह काम अंजाम दे सकें। मैंने सुना है कि शहीदों के सिलसिले में आप लोग अलग अलग कॉन्फ़्रेंस करेंगे जैसे शहीद स्टूडेंट्स, मदरसों के शहीद स्टूडेंट्स, शहीद इंजीनियर्ज़, ये बहुत अच्छा काम है और पूरी लगन व ध्यान से इस काम को अंजाम दीजिए। अल्लाह आपकी मदद करे और आपके काम में असर भी दे ताकि आप शहीदों के पैग़ाम को दिलों तक पहुंचा सकें। ज़ाहिरी कामों पर किसी भी हालत में मुतमइन न हों बल्कि मक़सद यह होना चाहिए कि यह पैग़ाम आपके ऑडियन्स तक पहुंचे, आज के बच्चे और नौजवानों तक पहुंचे। इंशाअल्लाह, अल्लाह आपकी मदद करे, इमाम महदी अलैहिस्सलाम -अल्लाह उन्हें जल्द ज़ाहिर करे- आपसे राज़ी हों, शहीदों की पाक आत्मा और इमाम ख़ुमैनी की पाक आत्मा इंशाअल्लाह आपसे राज़ी व ख़ुश हो।
अल्लाह का सलाम और उसकी बरकत हो आप सब पर।