आयतुल्लाह ख़ामेनेई कहा कि अप्रिय डबल डिजिट के इंफ़्लेशन को जितनी जल्दी मुमकिन हो कम किया जाए और ‎इंसाफ़, वर्गों के फ़ासले में कमी, मंडी में स्थिरता, विदेशी मुद्रा की क़ीमत में स्थिरता और पैदावार में प्रगति जैसे ‎विषयों पर सातवें विकास कार्यक्रम सहित हुकूमत के सभी फ़ैसलों और कामों में अहम मानकों के तौर पर तवज्जो ‎रखी जाए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लामी गणराज्य ईरान के दूसरे राष्ट्रपति शहीद मुहम्मद अली रजाई और पूर्व प्रधानमंत्री ‎शहीद जवाद बाहुनर की शहादत की बरसी और हुकूमत सप्ताह के मौक़े पर होने वाली इस सालाना मुलाक़ात में ‎अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने और अवाम की ख़िदमत को इन दो शहीदों की बड़ी अहम ख़ूबी बताया और कहा ‎कि शहीद रजाई और शहीद बाहुनर अपने इलाही और इंक़ेलाब नज़रिए के तहत अवाम की ख़िदमत को भी अल्लाह ‎की ख़ुशनूदी का ज़रिया समझते थे और यह बुनियादी लक्ष्य उनके सभी कामों में सबसे ऊपर रहता था, लेहाज़ा सभी ‎इस्लामी हुकूमतों के मिशन का कीवर्ड अल्लाह की ख़ुशनूदी और अवाम की सेवा होना चाहिए।

उन्होंने मैनेजमेंट के मैदान में भी सरकार के कामों की तारीफ़ की और कहा कि हमें अवाम के साथ अकड़कर बात ‎करने का हक़ नहीं है क्योंकि हम कुछ हैं ही नहीं और जो कुछ भी है वह अवाम का ही है और अगर हमें कोई ‎ओहदा दिया गया है तो पहली बात यह कि वह ख़ुद अवाम ने दिया है और दूसरी बात यह कि वह अवाम की ‎ख़िदमत के लिए दिया गया है। ‎

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने सादगी, इंक़ेलाबी स्टैंड, जेहादी जज़्बे और मैनेजमेंट की विभिन्न सतहों पर जवानों को ‎मौक़ा देने की सरकार की रणनीति की भी तारीफ़ की।

उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्तों की पालीसी सहित विदेश नीति के क्षेत्र में सरकार की कामयाबियों की भी तारीफ़ की ‎और कहा कि किसी भी पड़ोसी देश से हमारा कोई विवाद नहीं होना चाहिए और अगर कोई विवाद है भी तो उसे ‎सहयोग में बदल देना चाहिए, इस सिलसिले में जो क़दम उठाए गए हैं, उन्हें जारी रखने की ज़रूरत है। ‎

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कुछ गिनी चुनी सरकारों को छोड़कर ईरान से संबंध की इच्छा रखने वाली सारी सरकारों से ‎सहयोग को मौजूदा सरकार की अच्छी रणनीति बताया और कहा कि दो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता अहम ‎कामयाबी थी जिससे पता चलता है कि मुल्क इस तरह की पोज़ीशन में है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के संस्थापक, ‎ईरान से रिश्ते के इच्छुक हैं बल्कि कभी कभी वो इस पर ज़ोर देते हैं और अपने आंकलन के मुताबिक़ और ईरान ‎के तथ्यों को मद्देनज़र रखते हुए हमारे देश से संबंध को ज़रूरी समझते हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कल्चर के मैदान में सरकार के अच्छे कामों की मात्रा और क्वालिटी दोनों को बढ़ाने पर ज़ोर ‎दिया और कहा कि देश के तथ्यों और सरकार की गतिविधियों के बारे में अवाम के तसव्वुर में काफ़ी फ़सला है, ‎अच्छे विशेषज्ञों की मदद लेकर इस फ़ासले को कम करना चाहिए। ‎

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन में अर्थ व्यवस्था और कल्चर को देश की अहम प्राथमिकताओं में क़रार ‎दिया और जारी हिजरी शम्सी वर्ष के नारे के बारे में कहा कि इंफ़्लेशन पर कंट्रोल भी प्रोडक्शन में प्रगति से संभव ‎है इसलिए पैदावार में प्रगति सबसे अहम काम है और इस पर सबसे ज़्यादा तवज्जो देने की ज़रूरत है।

उन्होंने विदेशी व्यापार के ज़रिए उत्पादन को सपोर्ट करने को भी बहुत अहम क़रार दिया और कहा कि विदेशी ‎व्यापार का एक भाग तो अंदरूनी ज़रूरतों से संबंधित होता है लेकिन दूसरे हिस्से में इस तरह काम करना चाहिए ‎कि मुल्कों के साथ होने वाले सौदे और समझौते से देश के अंदर तैयार होने वाले उत्पादों के निर्यात और विदेशी ‎निवेश मुल्क में आने का रास्ता साफ़ हो।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मुल्क की ज़रूरत की चीज़ों का सही समय पर अनुमान ‎लगा लेना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अगर किसी चीज़ के सिलसिले में मुल्क की ज़रूरत को सही समय पर ‎समझ न जाए तो संकट की स्थिति पैदा होने के क़रीब उसे मजबूरी में इम्पोर्ट करना पड़े तो ज़ाहिर है कि हम ‎मुश्किल में फंस जाएंगे। ‎

उन्होंने पाबंदियों का अस्ली मक़सद अवाम की ज़िंदगी को मुश्किल में डालना बताया और कहा कि पाबंदियां ख़त्म ‎करने के लिए कुछ काम और बातचीत जारी है जो अपनी जगह ठीक है लेकिन इसी के साथ पाबंदियों को बेअसर ‎बनाने की कोशिशें भी जारी रहें जिसे परखने का सबसे अहम पैमाना इंफ़्लेशन में कमी है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह अलग अलग देशों से संबंधों के अवसरों की शिनाख़्त और सही समय पर ‎उससे फ़ायदा उठाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कुछ देशों के साथ लंबी मुद्दत के सहयोग के दस्तावेज़ों का ज़िक्र करते ‎हुए इन समझौतों को नतीजा बख़्श बनाने पर ज़ोर दिया और कहा कि समझौतों को काग़ज़ों के भीतर सीमित नहीं ‎रहने देना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिम के चंद मुल्कों से गहरे रिश्तों को ही दुनिया से रिश्ते का नाम देने के कुछ ‎नेताओं के तसव्वुर का हवाला देते हुए कहा कि यह ग़लत, रूढ़िवादी और सौ साल पुराना नज़रिया है जब कुछ ‎यूरोपीय देश पूरी दुनिया के मालिक थे मगर आज इस पुरानी और रूढ़िवादी सोच को अलग रख देना चाहिए और ‎यह समझना चाहिए कि दुनिया से रिश्तों का मतलब अफ़्रीक़ा, दक्षिणी अमेरिका  और एशिया से ताल्लुक़ात हैं जो ‎बहुत बड़े पैमाने पर ह्यूमन और नेयुरल रिसोर्सेज़ के मालिक हैं और इसी के साथ अंतर्राष्ट्रीय रिश्तों का आधार हित ‎और राष्ट्रीय मर्यादा है, संबंधों में न तो दूसरों पर वर्चस्व जमाया जाए और न ही दूसरों के वर्चस्व को क़ुबूल किया ‎जाए।

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन के आख़िरी हिस्से में ओहदेदारों को अफ़वाहों पर तवज्जो न देने की ‎नसीहत की और कहा कि मुमकिन है कि कुछ लोग इंटरनेट और सोशल मीडिया पर बहुत ज़्यादा हंगामा मचाकर ‎सरकार के किसी काम को रोकने या उस पर कोई काम थोपने की कोशिश में हों लेकिन अगर आपका फ़ैसला या ‎क़दम ठोस और सघन अध्ययन पर आधारित है तो आपको हंगामों और प्रेशर ग्रुप्स पर तवज्जो नहीं देनी चाहिए ‎बल्कि अल्लाह पर भरोसा करते हुए मज़बूती से क़दम उठाना चाहिए। उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की कि अल्लाह की ‎तौफ़ीक़ से हुकूमत के टर्म के बाक़ी बचे समय में उसकी उपलब्धियां कई गुना ज़्यादा हो जाएंगी। ‎

इस मुलाक़ात के शुरू में राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने अपनी सरकार बनने के तत्काल बाद कोरोना की महामारी, ‎बजट घाटा और बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों की क़िल्लत जैसी कई चुनौतियां के बारे में एक रिपोर्ट पेश की और इन ‎रुकावटों को पार करने के सिलसिले में सरकार की कोशिशों का ज़िक्र किया और कहा कि दुनिया में ईरान को अलग ‎थलग करने और मुल्क के भीतर मायूसी फैलाने की दुश्मन की साज़िश को ख़ुद जनता की मदद और सहयोग से ‎नाकाम बना दिया गया।