आयतुल्लाह ख़ामेनेई की तक़रीर का हिंदी अनुवादः

 

बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

 

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व नबी हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा और उनकी सबसे नेक, सबसे पाक, चुनी हुयी, हिदायत याफ़्ता, हिदायत करने वाली, मासूम और सम्मानित नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

आप का स्वागत है, प्रेसिडेंट साहब और मोहतरम लोग, भाइयो, बहनो। आप की रिपोर्टें सुन कर अच्छा लगा। अगर कुछ दूसरे अधिकारी भी रिपोर्ट देते तो मुझे कोई एतेराज़ नहीं था। लेकिन अब जब कि आप लोगों ने फ़रमाया तो मैं कुछ बातें कहता चलूं।

सरकार का हफ़्ता दर अस्ल, सरकार के कार्यकाल के एक दौर से दूसरे दौर को जोड़ने वाली कड़ी है, यानी आप लोग इस हफ़्ते के दौरान पिछले साल पर एक नज़र डालते हैं, और फिर आगे आने वाले एक साल के बारे में भी ग़ौर करते हैं, इसके साथ ही आप तुलना कर सकते हैं, तजुर्बा हासिल कर सकते हैं, सबक़ सीख सकते हैं। यह हफ़्ता दो महान शहीदों के नामों से सजा हुआ है, शहीद रजाई और शहीद बाहुनर। यहां पर एक बात ग़ौर करने वाली यह है कि हमारे दिमाग़ में इन दोनों शहीदों की कौन सी वह छवि है जिसकी तरफ़ हम चाहते हैं कि हमारे मंत्री, हमारे ओहदेदार बढ़ें, यह छवि और चिन्ह क्या है? इन लोगों के काम तो हमारे सामने नहीं हैं, मौक़ा ही नहीं मिला, शहीद रजाई लगभग एक महीना प्रेसिडेंट रहे, शहीद बाहुनर भी इतने ही दिनों के लिए प्राइम मिनिस्टर रहे, शहीद रजाई भी कुछ महीनों तक प्राइम मिनिस्टर रहे, वह भी उस कठिन समय में जो उस दौर में था। इस बुनियाद पर, इन दो बड़ी हस्तियों के काम की कोई बात नहीं है और उनके कामों का कोई नाम व निशान मौजूद नहीं है। तो फिर मामला क्या है? यह दो लोग मशहूर क्यों हुए? बात उनकी नीयत की है, उनके रुख़ की है। इन दोनों महान शहीदों का रुख़, इन्क़ेलाबी और इलाही, रुख़ था। जो लोग इन दोनों हस्तियों को क़रीब से जानते थे वह हमारी बातों की पुष्टि करेंगे कि यह दोनों अल्लाह से वह चीज़ मांगते थे जिसकी सभी शहीद और मुजाहिद अल्लाह की राह में ख़्वाहिश रखते हैं, उनकी यह ख़्वाहिश थी, यानी उनकी ज़िंदगी, उनके अंजाम के मुताबिक़ थी यानी वह अल्लाह की मर्ज़ी चाहते थे, जैसा कि हमारे सभी शहीदों, अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले और सच्चे दिल से जेहादी कामों में लगे रहने वाले सब लोगों का अस्ल मक़सद अल्लाह को ख़ुश करना है। अल्लाह की रज़ा और लोगों की सेवा, यह भी अल्लाह को ख़ुश करने वाली चीज़ है, यानी अल्लाह ने हम से चाहा है कि हम आम लोगों के लिए काम करें।

तो फिर यह अहम है, यानी हमारी सरकारों का कोड-वर्ड यह होना चाहिएः अल्लाह की रज़ा हासिल करना और लोगों के लिए काम करना, पूरा मक़सद इन्ही दो बातों में समेट देना चाहिए। अगर अल्लाह की मर्ज़ी इन्सान का मक़सद बन गयी, तो यह हमारे सभी कामों पर, हमारे हर क़दम पर, और हमारे काम के तरीक़े पर असर डालेगी। जब आप अपने घर में काम के बारे में सोचते हैं जो आप के ज़िम्मे होता है, या अगर मिनिस्ट्री में काम ज़्यादा होता है, तो मजबूर होकर घर पर काम ले जाना पड़ता है और घर में काम करना पड़ता है तो किसी को इस बात का पता नहीं चलता, कोई आप को शाबाशी नहीं देता इस काम के लिए, किसी को ख़बर भी नहीं होती, लेकिन आप यह काम करते हैं, क्यों? अल्लाह की मर्ज़ी के लिए, यह सही काम है, इसका हमारे काम पर असर पड़ता है, हमारी तरफ़ से तैनातियों पर असर पड़ता है। अल्लाह की रज़ा के बारे में सहीफ़ए सज्जादिया में एक जुमला है, वहां अल्लाह से कहा जाता हैः “दोस्तों और दुश्मनों के पास जो कुछ है उन सब पर तेरी ख़ुशनूदी को तरजीह देने लगूं”। मैं तेरी रज़ा को तमाम दूसरे जज़बात पर तरजीह दूं,  “ताकि मेरे दुश्मन को मेरी तरफ़ से ज़ुल्म न होने का यक़ीन हो जाए और मेरे दोस्त को मेरी तरफ़ से ग़लत तरफ़दारी की आस न रहे जाए”। (2) यह बहुत अहम है। अगर अल्लाह की ख़ुशनूदी मेरा मक़सद बन गयी, तो मेरे दुश्मन को इत्मीनान रहेगा कि मैं उस पर ज़ुल्म नहीं करुंगा, दुश्मन है, लेकिन उसे यक़ीन है कि मैं उस पर ज़ुल्म नहीं करुंगा, मेरे दोस्त, मेरे साथी को भी यक़ीन है कि मैं उसके लिए किसी तरह की तरफ़दारी नहीं करुंगा। हम तैनातियों में स्वाभाविक रूप से इसी तरह हैं, अगर हम अल्लाह की रज़ा को मद्दे नज़र रखें, तो हम इस बात का ध्यान रखेंगे कि योग्य शख़्स को ओहदे पर रखें, उसको नहीं जो हमारा साथी हो, हमारा दोस्त हो, दोस्ती की वजह से जबकि उसमें योग्यता ही न हो। अल्लाह की रज़ा की ख़ूबियां यह हैं। शहीद रजाई और शहीद बाहुनर सच में इस तरह की हस्ती थे, यानी सच में उनका मक़सद अल्लाह की ख़ुशनूदी और रज़ा था। हम तो बरसों से क़रीब से उन्हें पहचानते थे, उनके साथियों को भी हम ने देखा था। सरकार सप्ताह इन लोगों के नाम से सजा हुआ है। यह एजेन्डा है और वह क्या कहते हैं कि वह परचम है जिस पर इस सरकार का नाम लिखा है, इस बात को मद्दे नज़र रखना चाहिए।

आज जिन मुद्दों पर मैं आप लोगों से बात करने वाला हूं उन्हें मैंने दो हिस्सों में बांटा हैः एक हिस्से में इस सरकार के बारे में मैं अपनी थोड़ी बहुत राय पेश करुंगा और दूसरे हिस्से में कुछ बातों की तरफ़ दोस्तों का ध्यान ले जाऊंगा ताकि वह उन बातों का ख़्याल रखें।

अब जहां तक इस सरकार के बारे में मेरी राय की बात है तो ज़ाहिर सी बात है कि इन 30–32 बरसों में मैंने हर सरकार का साथ दिया है, इस दौरान आने वाली अलग अलग तरह की, अलग अलग रुझान रखने वाली और अलग अलग तरह की ताक़त रखने वाली सभी सरकारों का मैंने समर्थन किया है, मैंने उनका साथ दिया है इसकी वजह भी साफ़ हैः मुल्क के हालात और हमने अपने जो मक़सद तय किये हैं इस इस्लामी जुम्हूरिया में, उन सब का यह तक़ाज़ा है कि सब लोग सरकार का, जो मैदान में है, साथ दें। रहबरे इन्क़ेलाब उसकी मदद करे, जनता मदद करे, पढ़े लिखे लोग मदद करें, बुद्धिजीवी मदद करें, उसूल तो यही है। हर सरकार को इस तरह की चौतरफ़ा मदद का हक़ है और हमने सभी सरकारों की मदद की है लेकिन इस सरकार की हम मदद के अलावा इन दो बरसों के मद्देनज़र उसकी तारीफ़ भी करना चाहते हैं यानी इन दो बरसों के दौरान और अब तक इस सरकार के कामों को जो हमने देखा है, उसकी वजह से यह ज़रूरी है कि हम इस सरकार की तारीफ़ करें और उसका शुक्रिया अदा करें। कुछ मैदानों में सरकार ने बड़े अच्छे काम किये हैं और यह अहम मैदान भी हैं, जिनका मैं संक्षेप में ज़िक्र करता हूं। मैं जो यह सब कह रहा हूं उसकी वजह यह है कि सरकार की ज़बान उसने जो काम किये हैं उन्हें बयान करने की पूरी ताक़त नहीं रखती, जो अच्छे काम हुए हैं, उनके बारे में जैसा जनता को पता होना चाहिए वैसी उन कामों के बारे में उन्हें मालूमात नहीं है क्योंकि जितना हक़ था उस तरह से उन्हें बयान नहीं किया गया है। मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं ताकि शायद इस सरकार ने जो काम किये हैं उसके बारे में आम लोगों और जिनके दिल में दुर्भावना नहीं है उनके लिए वह ज़्यादा खुल कर सामने आ जाएं। अब मैं कुछ हिस्सों का ज़िक्र करता हूं।

इकोनॉमी के मैदान में सरकार ने अच्छे काम किये हैं जिसका ब्योरा प्रेसिडेंट साहब ने भी दिया है और उनके सहयोगी ने भी किसी हद तक बयान किया है लेकिन मैं जो बात कहना चाहता हूं वह यह है कि मुल्क की इकोनॉमी के ध्यान योग्य इंडीकेटर, तरक़्क़ी दिखा रहे हैं, अच्छे बदलाव दिखा रहे हैं। यक़ीनी तौर पर जब मुल्क की इकोनॉमी की बात होती है तो उसका असर आम लोगों की ज़िंदगी पर पड़ने के लिए समय चाहिए होता है मतलब यह कि वक़्त लगता है। बहुत सी सरकारें, कल को आज पर क़ुर्बान कर देती हैं, इस सरकार ने यह काम नहीं किया, बड़े और बुनियादी काम किये कि जिसका असर हो सकता है आज पूरी तरह से नज़र न आए लेकिन एक दिन ज़रूर सामने आएगा। मैं कुछ मिसालें देता हूं लेकिन मुझे जो रिपोर्ट दी गयी है वह बहुत ज़्यादा है, शायद लगगभ 50 अच्छे बदलाव इकोनॉमी में हुए हैं जिनका ज़िक्र उस रिपोर्ट में किया गया है। मैं उनमें से कुछ का ज़िक्र करता हूं।

इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ी है, ख़ास तौर पर इंडस्ट्री के मैदान में, यह अहम है। इन्वेस्टमेंट भी बढ़ा है यह हमारी इकोनॉमी का बहुत अहम मुद्दा है और पिछले कई दौर में यह हमारी बुनियादी मुश्किल रही है, हमारे सामने इन्वेस्टमेंट की प्राब्लम थी जिसकी ग्रोथ माइनस में थी जैसा कि कहा जाता है इसे “माइनस ग्रोथ” कहा जाता है जबकि वह ग्रोथ नहीं है, वह तो घटना और कम होना है। इसी तरह लिक्विडिटी में ग्रोथ का सिलसिला भी रुका है जैसा कि कुछ लोगों ने भी उसका ज़िक्र किया है। बेरोज़गारी कम हुई है, गिनी इन्डेक्स के फ़ीसद में कमी आयी है, एक्स्पोर्ट ग़ैर मामूली तौर पर बढ़ा है और टैक्स सिस्टम को मज़बूत किया गया है जिसकी वजह से सरकार टैक्स की आमदनी से करंट बजट का बड़ा हिस्सा पूरा करने में कामयाब रही है। इसी तरह पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स की पैदावार भी ग़ैर मामूली तौर पर बढ़ी है और यह पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स का मामला हमारे मुल्क के लिए बहुत अहम मुद्दा है। तेल और गैस के मैदान में भी बहुत अच्छे काम किये गये हैं जिसकी एक मिसाल साउथ पार्स गैस फ़ील्ड का 11वां फ़ेज़ है जिसका उद्घाटन अभी कुछ दिनों पहले प्रेसिडेंट साहब ने किया है।(3) बंद पड़े या आधे अधूरे तौर पर चलने वाले कारख़ानों को दोबारा खोलना बहुत अहम है उनकी जो तादाद बतायी गयी है वह बहुत बड़ी है, कई हज़ार इस तरह के कारख़ाने हैं, कई हज़ार बंद पड़े कारख़ानों को खोल दिया गया। इसी तरह सिचांई के मैदान में और ड्रेनेज के नेटवर्क के सिलसिले में भी अहम काम हुए हैं जिनका ज़िक्र अधिकारियों की रिपोर्टों में किया गया है।   

जैसा कि मैंने कहा इस तरह के लगभग 50 कामों की हमें रिपोर्ट दी गयी है, यह सब बहुत अहम काम हैं, लेकिन उनके बारे में लोगों को मालूमात नहीं है। एक तो इस लिए कि सरकार में लोगों तक बात पहुंचाने का जो सिस्टम है वह अफ़सोस है कि कमज़ोर है यानी लोगों तक जानकारी पहुचांने के लिए कोई बुनियादी काम नहीं होता। अब अगर कोई टीवी पर आकर जनता से यह कहे कि यह काम हुआ है तो इसे सूचना पहुंचाना नहीं कहते, सूचना पहुंचाना एक आर्ट है, इसके लिए आर्ट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि लोगों तक जानकारी पहुंचे। एक तो यह वजह है, दूसरी वजह यह है कि लोगों की आमदनी वग़ैरा के बारे में जो प्राब्लम्स हैं, मंहगाई है, ख़ासतौर पर खाने पीने की चीज़ों की महंगाई ज़्यादा है। या इसी तरह आवास के मैदान में बहुत महंगाई है, यह लोगों की रोज़ की प्राब्लम्स हैं, जनता इन सब चीज़ों को देखती है और स्वाभाविक रूप से इकोनॉमी के मैदान में होने वाले बड़े कामों को देख नहीं पाती। यानी यह सब प्राब्लम्स बुनयादी कामों पर पर्दा डाल देती हैं, इसके लिए फ़ौरन कोई रास्ता निकाले जाने की ज़रूरत है। जी तो यह वो काम हैं जो इकोनॉमी के मैदान में किये गये हैं।

मैनेजमेंट के मैदान में भी इस सरकार ने बहुत अच्छे काम किये हैं जो मेरे लिए मेरी नज़र में इकोनॉमी के मैदान में और इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए किये गये कामों से कम अहम नहीं हैं। इस तरह का एक काम आम लोगों से मिलना जुलना और जनता की समस्याओं से ख़ुद रूबरू होना है। यह कि आप लोगों के बीच जाएं, उनकी बातें सुनें, उनकी बातों का जवाब दें, वह अपनी समस्याएं बताएं, यह बहुत अच्छा काम है, यह बहुत ही फ़ायदेमंद काम है। कई पहलुओं से फ़ायदेमंद है, एक तो यह कि आप को सीधे तौर पर मालूमात हासिल होती है। और भी फ़ायदे हैं। जनता से क़रीबी संपर्क और झुक कर मिलना, यह बहुत अहम है। हमें कोई हक़ नहीं है कि हम जनता से ख़ुद को ऊपर समझें, बड़ा बन कर उनसे बात करें, हम कुछ नहीं हैं, जो भी है सब जनता का है, अब कोई हमारा काम, कोई ज़िम्मेदारी, कोई ओहदा है तो सब से पहली बात तो यह कि वह हमें जनता ने ही दिया है। दूसरी बात यह कि हमें वह काम और ओहदा इस लिए मिला है कि हम जनता की ख़िदमत कर सकें। सरकार में और सरकारी ओहदेदारों में सादगी ख़ास तौर पर ख़ुद प्रेसिडेंट साहब की सादगी मेरे लिए ध्यान योग्य और अहम चीज़ है। सरकार की तरफ़ से इन्क़ेलाबी रुख़, जेहादी जज़्बा जो दिखाया जाता है, बहुत मैदानों में जैसा कि रिपोर्टों में भी बताया गया, नौजवानों को तरह तरह की ज़िम्मेदारयां सौंपी जाती हैं जो बहुत ही अहम है, ज़रूरी काम है और ख़ुदा का शुक्र है कि यह सब काम इस सरकार में हो रहे हैं। इस बुनियाद पर, मैनेजमेंट के मैदान में भी अच्छे, तारीफ़ के लायक़ और दिल ख़ुश करने वाले काम हो रहे हैं।

फ़ॉरेन पॉलिसी में भी सरकार की गतिविधियां बहुत अच्छी हैं। आप ने यह जो पड़ोसियों से संबंध बढ़ाने की नीति अपनायी है वह बहुत अच्छी पॉलिसी है, इसे जारी रखना चाहिए। हमारा अपने किसी भी पड़ोसी मुल्क से कोई झगड़ा नहीं रहना चाहिए, हमें कोशिश करना चाहिए कि कोई विवाद ही न हो। जहां कहीं भी विवाद हो उसे सहयोग में बदल दें, यह काम हो सकता है और इस तरह के कुछ काम हुए भी हैं। आइंदा भी यह काम जारी रहना चाहिए। इसी तरह दुनिया की हर उस सरकार से ताल्लुक़ात बनाएं जो हम से जुड़ना चाहती है, बस कुछ ही सरकारें अपवाद हैं जिनके बारे में सब को मालूम है। अलग अलग महाद्वीपों से संबंध, साउथ अमरीका, अफ्रीक़ा, एशिया, ईस्ट एशिया हर एक से। विभिन्न देशों के साथ उनकी अलग अलग राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक, सांस्कृतिक ख़ूबियों के साथ उनसे हर तरह से संबंध रखने की यह जो पॉलिसी है वह बहुत अच्छा काम है। कम समय में दुनिया के दो बड़े समझौतों में (4) शामिल होना बहुत बड़ी कामयाबी रही है। ख़ुद यही काम न सिर्फ़ यह कि मुल्क के लिए फ़ायदेमंद है, बल्कि बहुत सी सच्चाइयों की निशानी भी है। दुनिया के मुल्कों को किसी की सूरत-शक्ल से प्यार नहीं होता जो कहें कि जनाब तशरीफ़ लाएं और हमारे आर्गनाइज़ेशन के मेंबर बन जाएं, कुछ चीज़ें उनके मद्दे नज़र होती हैं तब इस तरह की बात करते हैं, किसी आंकलन की वजह से किसी सरकार को मेंबर बनाते हैं, यह वजह बहुत अहम है, इससे यह साबित होता है कि हमारा मुल्क ऐसी पोज़ीशन में है, ऐसे मुक़ाम पर है कि इस इन्टरनेश्नल समझौते के संस्थापक और मेंबर यह चाहते हैं, यह पसंद करते हैं और कभी कभी आग्रह करते हैं कि हमारा मुल्क उनका मेंबर बने।

कल्चर के मैदान में भी अच्छे काम हुए हैं जिसकी क्वालिटी और क्वांटिटी में बेहतरी लाने की ज़रूरत है। और इसी तरह दूसरे बहुत से मैदानों में जिनका ब्योरा आप लोगों को ख़ुद ही मालूम है।

मेरी सिफ़ारिश यह है कि सरकार के कामों में हर वह काम जिसके बारे में जान कर जनता को ख़ुशी हो उसे जहां तक हो सके जनता तक पहुंचाएं। ज़मीनी सच्चाई और उसके बारे में जनता में जो तसव्वुर है उसके बीच दूरी बहुत ज़्यादा है, इस दूरी को कम करें, लोग सच्चाई को ज़्यादा अच्छी तरह से समझें। इसके लिए काम की ज़रूरत है यानी यह कोई सीधा सादा सा काम नहीं है, इस काम के लिए ध्यान देने की ज़रूरत है, इसके लिए एक्स्पर्ट्स की राय लेने की ज़रूरत है और यह काम एक्स्पर्ट्स के हाथों होना चाहिए।

अब याददहानी की बारी है। हम ने बार बार कहा है (5) हमारे मुल्क में तरजीह, इकोनॉमी और कल्चर को हासिल है। इकोनॉमी के सिलसिले में भी इस साल हम ने जो नारा दिया है वह दो हिस्सों में हैः एक इन्फ़्लेशन कंट्रोल और दूसरा प्रोडक्शन में ग्रोथ है। महंगाई पर कंट्रोल के सिलिसले में मैंने साल की शुरुआत में अपनी तक़रीर में कहा था (6) कि महंगाई पर कंट्रोल, प्रोडक्शन में ग्रोथ के ज़रिए हासिल किया जा सकता है यानी महंगाई पर कंट्रोल के लिए सब से बड़ा जो क़दम उठाया जा सकता है वह यह है कि हम मुल्क में पैदावार बढ़ाएं, जिनता हो सके उतना बढ़ाएं। तो पैदावार बुनियादी काम हुआ। अब अगर पैदावार बुनियादी काम है और उसमें तरक़्क़ी होनी चाहिए तो हमें यह देखना होगा कि प्रोडक्शन में ग्रोथ कैसे हो सकती है। यहां पर दो बातें है, एक तो यह कि हमें मदद करना चाहिए, दूसरे यह कि इस राह की रुकावटों को हटाना चाहिए। मदद का क्या मतलब है? यानी सब से पहले तो क़ानूनी मदद, क़ानून इस तरह के हों कि पैदावार करने वाले के लिए यह काम आसान हो जाए और कम ख़र्च वाला भी हो। उसके बाद आर्थिक मदद है, यानी जिस हद तक सरकारी विभागों की ज़िम्मेदारी है, फॉरेन करेन्सी और कैपिटल का इंतेज़ाम वग़ैरा किया जाए उस हद तक जितनी उनकी ज़िम्मेदारी है। इसी तरह मुल्क के अंदर की जाने वाली पैदावार की कल्चरल मदद भी होनी चाहिए। मुल्क की पैदावार की कल्चरल मदद का मतलब यह है कि हम लोगों को यह समझाएं कि मुल्क में बनने वाली चीज़ों को इस्तेमाल करना चाहिए, यानी जो चीज़ मुल्क में बनी हो लोग उसकी ही तरफ़ जाएं, यह पैदावार की सब से अहम कल्चरल मदद है। यक़ीनी तौर पर इस तरह की मदद में, ग़लत राह पर जाने से रोकना भी ज़रूरी है, एक ज़माना वह भी था जब फ़ॉरेन करेन्सी और बजट ऐसे लोगों के हाथों में पैदावार के लिए दिया जाता था जिसे वह प्रोडक्शन में इस्तेमाल नहीं करते थे! थोड़ी बहुत रक़म की बात नहीं है, बहुत बड़ी बड़ी रक़में दी गयी थीं, लेकिन करप्शन किया गया, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह की बातें फिर से न होने पाएं। बहुत से लोग हैं जिन्हें इकोनॉमी की अच्छी मालूमात है, हाथ की सफ़ाई दिखाते हैं, यानी सच में ऐसे लोग नज़र आते हैं जो इस डिपार्टमेंट में हमारे ओहदेदार से भी ज़्यादा इकोनॉमी की जटिलताओं को समझते हैं, सारे रास्ते उन्हें पता होते हैं, बचने के रास्ते, ख़तरों को जानते हैं, वह आगे बढ़ते हैं और ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से बहुत ज़्यादा फ़ायदा कमाते हैं, जायज़ मुनाफ़ा कमाने में कोई प्राब्लम नहीं, ग़ैर क़ानूनी तौर पर मुनाफ़ा कमाना ग़लत है। इन सब चीज़ों पर ध्यान देना चाहिए, यह जो हम कहते हैं कि पैदावार के काम में मदद की जाने चाहिए, उसका समर्थन किया जाना चाहिए तो उससे आगे की बात यह है कि यह भी ध्यान रहना चाहिए कि इस मदद से ग़लत फ़ायदा न उठाया जाए।

दूसरी बात मुल्क में ट्रेड का मुद्दा है। पैदावार की मदद ट्रेडिंग के ज़रिए भी की जानी चाहिए। हमारी फ़ॉरेन ट्रेड सिर्फ़ बाज़ार की ज़रूरत पूरी करने के लिए नहीं होना चाहिए, उसका एक मक़सद बाज़ार की ज़रूरत पूरी करना है, लेकिन एक मक़सद, पैदावार को बढ़ाना भी है। व्यापार के ज़रिए पैदावार की मदद की जानी चाहिए, यानी दुनिया के साथ हमारे आर्थिक समझौते जो होते हैं, उनमें अस्ल मक़सद यह होना चाहिए कि मुल्क के उत्पाद बाहर जाएं और विदेशी निवेश मुल्क में आए। अब यह बाहर का पैसा जो अंदर आता है वह कभी इन्वेस्टमेंट के रूप में होता है और कभी कैपिटल गुड्ज़ की शक्ल में होता है जिसकी हमें ज़रूरत होती है, बहुत सी मशीनें हैं जिनकी हमें ज़रूरत है। पूरी दुनिया में यही होता है, यानी यह नहीं होता कि दुनिया के मुल्कों में उनकी ज़रूरत की हर चीज़ मुल्क के अंदर ही पैदा की जाती हो, बहुत सी चीज़ें बाहर से लायी जाती हैं। मिसाल के तौर पर हम क़ीमती सामान बाहर से मुल्क में लाएं और मुल्क में बनायी जाने वाली चीज़ें बाहर ले जाएं, अगर यह होने लगे यानी अगर आर्थिक लेन देन इस स्टेज पर पहुंच जाए तो ज़ाहिर सी बात है पैदावार बढ़ जाएगी। यानी यह पैदावार की सब से अहम मदद है, इस तरह ट्रेड, प्रोडक्शन की मदद करेगी ।

एक और बात यह है कि हम मुल्क की ज़रूरतों को सही समय पर समझें। कभी कभी यह भी होता है कि हम मुल्क की ज़रूरत को सही टाइम पर नहीं समझ पाते, जब हम संकट के क़रीब पहुंच जाते हैं, तो हड़बड़ा कर इम्पोर्ट की तरफ़ भागते हैं और यहां-वहां से कुछ भी इम्पोर्ट कर लेते हैं जिसकी वजह से परेशानी बढ़ जाती है। मुल्क में पैदावार करने वाले हमारे मुल्क की ज़रूरत की अक्सर चीज़ें बना सकते हैं जैसा कि आप ने (7) ज़िक्र किया है कि हम इस साल 10 मिलयन टन से ज़्यादा गेहूं मुल्क अंदर से ख़रीदने में कामयाब हुए हैं, हमारे मुल्क की गेहूं की खपत भी लगभग इतनी ही है, बिल्कुल सटीक नहीं कहा जा सकता लेकिन हमारे मुल्क में गेंहूं की ज़रूरत इसी के आस पास है, यानी हमें गेंहू इम्पोर्ट करने की ज़रूरत नहीं है और यह अपने पैरों पर खड़ा होना है, तो ज़ाहिर है यह बहुत अच्छी बात है। सब कुछ इसी तरह है, अगर एग्रीकल्चर में, इन्डस्ट्री में, माइन्स में, और तरह तरह की सर्विसेज़ में मदद की जाए, साथ दिया जाए तो सब कुछ इसी तरह होगा, सब का इंतेज़ाम मुल्क के अंदर से ही हो सकता है, लेकिन उसके लिए शर्त यह है कि ज़रूरत को सही टाइम पर महसूस कर लिया जाए और उन्हें पहचाना जाए।

एक और अहम बात है और वह यह कि सातवीं विकास योजना में, सरकार पर बहुत ज़्यादा ज़िम्मेदारियां डाल दी गयी हैं कि जिसके लिए इन्शाअल्लाह प्रोग्राम बनाया जाए ताकि वह सारी ज़िम्मेदारियां पूरी की जा सकें, लेकिन इस प्रोग्राम में आप कुछ अहम बातों पर ध्यान रखें और इकोनॉमी के मैदान में जो भी करें जो भी फ़ैसला करें उस दौरान इन बातों पर ध्यान रखें। अब मिसाल के तौर पर सामाजिक न्याय और समाज के विभिन्न वर्गों में दूरी को कम करने का जो मुद्दा है, वह बहुत अहम है। इकोनॉमी के मैदान में आप जो भी फ़ैसला करें, यह ज़रूर ग़ौर कर लें कि सामाजिक वर्गों में अंतर पर उसका क्या असर पड़ेगा, अच्छा असर पड़ेगा या बुरा यह सब हिसाब किताब कर लें। या मिसाल के तौर पर मार्केट में स्टैब्लिटी, इंफ़्लेशन में कमी, फ़ॉरेन करेन्सी की क़ीमत में स्टेब्लिटी, प्रोडक्शन में ग्रोथ, यह सब अहम बातें हैं। यह सारे मुद्दे नापे जाने वाले हैं यानी उन्हें नापा तौला जा सकता है। ऐसी चीज़ें नहीं हैं जिनका हिसाब किताब नहीं किया जा सकता। अपने हर फ़ैसले में यह देखें कि इकोनॉमी के मैदान में आप जो क़दम उठा रहे हैं उन का इन पहलुओं पर क्या असर होगा, फिर उस असर के हिसाब से यह ग़ौर करें कि यह फ़ैसला लागू किया जाना चाहिए या नहीं, यह भी अहम बात है।

एक और बात तो इस सिलसिले की आख़िरी बात है, अवाम की आर्थिक दशा है। यह बहुत अहम मुद्दा है। मैनें कहा कि जब लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में परेशानी होती है जैसे यही घर और घर के किराए की महंगाई या इस तरह की दूसरी चीज़ें तो कुछ लोग सच में हर तरफ़ से फंस जाते हैं, इससे आप के वो सारे अच्छे काम जो आप करते हैं पीछे चले जाते हैं। यानी इतनी मेहनत से आप ये जो इतने सारे अच्छे काम करते हैं, आम जनता की आर्थिक परेशानियों की वजह से वह नज़रों से ओझल हो जाते हैं, यह बहुत अफ़सोस की बात है! इस पर काम करें। ईरान पर लगायी जाने वाली अक्सर पाबंदियों का अस्ली निशाना लोगों की आर्थिक दशा है यानी दुश्मन, अवाम की आर्थिक दशा को बंधक बनाना चाहते हैं। इस लिए पाबंदियों  को बे असर करने की कोशिश करना चाहिए। यक़ीनी तौर पर बहुत कुछ किया जा रहा है, पाबंदी ख़त्म करने के लिए बात चीत की जाए, वह अपनी जगह पर सही है और सही काम भी यही है, लेकिन उसके साथ ही पाबंदियों को बे असर करने के लिए भी काम जारी रहना चाहिए। पांबदियों को बे असर करने का एक सब से सामने का पैमाना यह है कि आप महंगाई कम करें, यानी महंगाई कम करने की कोशिश करें। अब यह जो कहा गया कि महंगाई इतने फ़ीसद से कम होकर इतने फ़ीसद हो गयी है, यह अच्छी बात है लेकिन यही काफ़ी नहीं है, यानी कई बरसों से लगातार इंफ़्लेशन में दो डिजिट की बढ़ोत्तरी का जारी रहना अच्छी चीज़ नहीं है, आप सब को कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे यह महंगाई जितना मुमकिन हो कम हो जाए। मुझे बताया गया है कि कुछ ऐसे काम हैं जिनका असर महंगाई कम करने में दूसरे कामों से ज़्यादा तेज़ी से सामने आता है, जिनमें से एक काम, अधूरे पड़े प्रोजेक्ट्स को पूरा करना है, यह जो अधूरे प्रोजेक्ट्स हैं और जिनकी तादाद बहुत ज़्यादा है, इन्हें अगर पूरा कर दिया जाए, तो इंफ्लेशन में कमी पर उनका असर बड़ी तेज़ी से पड़ेगा, जैसा कि एक्स्पर्ट्स ने हमें बताया है। या फिर बैंकों में डेब्ट टू इनकम के रेशो का ख़राब होना है जिसका आप लोगों ने ज़िक्र किया, यह इसी तरह के मुद्दे हैं। या दलाली को रोकना भी ज़रूरी है, किसान बड़ी मेहनत से बाग़ लगाता है, फल पैदा करता है लेकिन उसे जो क़ीमत मिलती है उससे दस गुना या उससे भी ज़्यादा क़ीमत में वह फल बाज़ार में पहुंचता है। इसका कोई उपाय किया जाना चाहिए, यह भी मंहगाई में कमी के मिशन में और लोगों की आर्थिक दशा में सुधार के काम में बहुत मददगार साबित होगा।  

दूसरे मुल्कों के साथ संबंध और इन्टरनेश्नल पॉलीसियों में भी मैं दो तीन सिफ़ारिशें करना चाहूंगा, ख़ुदा का शुक्र है कि सरकार इस मैदान में एक्टिव है यानी अच्छे काम हुए हैं कि जिनका मैंने ज़िक्र किया है। अहम बात यह है कि हमारे सामने दूसरे मुल्कों से रिश्तों के बारे में कुछ मौक़े हैं, इन मौक़ों को समझना चाहिए और उनसे सही वक़्त पर फ़ायदा उठाना चाहिए। कभी यह होता है कि किसी मुल्क से हमारे ताल्लुक़ात हैं, जिससे हम फ़ायदा भी उठा सकते हैं लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया जाता, ख़याल रखिए कि यह न होने पाए। यानी मौक़ों को पहचानें और उनसे फ़ायदा उठाएं। दूसरी बात यह है कि जो समझौते होते हैं, कोआपरेशन के लिए जो दस्तावेज़ों पर दस्तख़त होते हैं वह सब काग़ज़ पर ही न रह जाएं। इस वक़्त हमारी सरकार ने बहुत से मुल्कों के साथ कोआपरेशन के लंबी अवधि वाले समझौतों पर दस्तख़त किये हैं, ठीक है अब आगे क्या? उसका नतीजा क्या हुआ? ऐसा न हो कि यह समझौते सिर्फ़ काग़ज़ तक ही रह जाएं, यह अहम है।

एक और बात यह है कि जब हम कहते हैं कि “दुनिया के साथ काम” तो मुल्क के कुछ सियासी हल्क़े “दुनिया” का मतलब चंद, ख़ास तौर पर वेस्टर्न मुल्कों को समझते हैं, उन्हें लगता है कि “दुनिया” का मतलब यही है! अगर उनके साथ संबंध है, अगर उनके साथ क़रीबी सहयोग और लेन देन है तो हमारे संबंध पूरी दुनिया से हैं, और अगर उनके साथ हमारे ताल्लुक़ात थोड़ा बहुत कम हो गए तो मानो पूरी दुनिया से ही हमारे ताल्लुक़ात ख़त्म हो गए। यह ग़लत है, यह पुरानी सोच है, यह 100 साल पहले की सोच है। जी हां 100 साल पहले ऐसा ही था, कुछ युरोपीय मुल्क थे जिनके हाथ में पूरी दुनिया थी और उनसे संबंध का मतलब पूरी दुनिया से संबंध था। अब उस दौर को 100 साल गुज़रे चुके हैं। अब इस रूढ़िवादी और पुरानी सोच से बाहर निकलना चाहिए। “दुनिया के साथ ताल्लुक़” यानी अफ़्रीक़ा के साथ संबंध, लैटिन अमरीका के साथ संबंध, एशिया के साथ संबंध। एशिया में ह्यूमन और नेचुरल रिसोर्सेज़ का ख़ज़ाना भरा पड़ा है, अफ़्रीक़ा भी इसी तरह है। अक्सर पश्चिमी देश, अफ़्रीक़ा और इस तरह के मुल्कों पर दबाव डाल कर मालदार बने हैं। दरअस्ल युरोपीय मुल्कों ने अपनी दौलत, एक तरह से अफ़्रीक़ी और कुछ एशियाई देशों को लूट कर जमा की है। हमें यह सब नहीं भूलना चाहिए, इन सब मुल्कों से ताल्लुक़ात ज़रूरी हैं। इस बुनियाद पर, दूसरे मुल्कों से ताल्लुक़ात का मापदंड और तराज़ू, नेशनल इन्ट्रेस्ट और मुल्क की इज़्ज़त है। यह भी अहम है, मुल्क की प्रतिष्ठा बहुत अहम है और इस सिलसिले में न तो किसी का वर्चस्व स्वीकार करना चाहिए और न ही किसी पर वर्चस्व क़ायम करना चाहिए, यानी हम दूसरों पर वर्चस्व के भी ख़िलाफ़ हैं और दूसरों के वर्चस्व को क़ुबूल करने के भी ख़िलाफ़ हैं।

कुछ और सिफ़ारिशें भी करता चलूं। एक सिफ़ारिश तो यह है कि आम जनता के समान रहने का सिलसिले जारी रखें, यह बहुत अहम काम है। यह जो आप लोग आम जनता से निजी तौर पर अपनाइयत से मिलते हैं और नरमी के साथ उनसे बात करते हैं, उनके वहां आते जाते हैं, उनके घरों में जाते हैं, उनके फ़र्श पर बैठते हैं, यह बहुत अच्छा काम है, इस सिलसिले को बंद न होने दें, यह बहुत अच्छा मौक़ा है।

दूसरी बातः बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों से जितना हो सके बात चीत करें, यह बहुत अच्छा काम है, मुल्क के स्कालर, अपनी सोच रखते हैं, योजना रखते हैं, अच्छा रास्ता दिखाते हैं, बहुत अच्छी बातों पर उनकी नज़र होती है, उनके साथ संपर्क ज़रूर बनाए रखें, अलग अलग विभाग उनसे संबंध रखें और इस ताल्लुक़ को जारी रखें।

एक और बातः यूनिवर्सिटियों में जाना भी बहुत ज़रूरी है, यूनिवर्सिटियां बहुत अहम हैं, चाहे वहां जाकर स्टूडेंट्स से मिलें या फिर वहां पढ़ाने वाले टीचरों के बीच जाएं, उनसे मिलना, उनकी बातें सुनना और ज़रूरी बातें उन्हें बताना, यह सब ज़रूरी है। उन्हें बहुत सी बातों के बारे में पता नहीं होता। सही है कि वे स्टूडेंट हैं, टीचर हैं, बुद्धिजीवी हैं, जानकार हैं, लेकिन बहुत सी बातों का उन्हें पता नहीं होता। यही जो “राहियाने पीशरफ़्त” (8) प्रोग्राम है और उसके तहत स्टूडेंट्स जाते हैं और जो कुछ देखते हैं वह उन सब के लिए हैरान करने वाला और नया होता है। हमारे मुल्क में इतने अच्छे काम हो रहे हैं लेकिन स्टूडेंट्स को उनके बारे में पता नहीं है। जब यह यह सब चीज़ें देखते हैं तो हैरान हो जाते हैं, टीचरों का भी यही हाल है। मैंने एक ज़माने में कहा था कि मुल्क की डिफ़ेंस ताक़त दिखाने के लिए टूर का इंतेज़ाम किया जाए(9) लेकिन अब कहना चाहता हूं कि यह टूर मुल्क के हर मैदान में होने वाली तरक़्क़ी के लिए होना चाहिए ताकि बुद्धिजीवी जाएं और देखें और क़रीब से सच्चाई का उन्हें पता चले। यह भी वह काम है जिससे दुश्मनों की साज़िशों से मुक़ाबले में काफ़ी मदद मिलेगी। दुश्मन को अपनी साज़िशों के लिए जिन जगहों से उम्मीद है उनमें एक जगह युनिवर्सिटियां भी हैं, वहां आप की मौजूदगी उन्हें नाकाम बना देगी।

एक और बात है और एक और सिफ़ारिश, सरकार की मीडिया से संबंधित गतिविधियां हैं कि जिसका ज़िक्र मैंने पहले भी किया। मेरी नज़र में हर काम के लिए उसका प्रचार ज़रूरी है, जो मिशन भी आप शुरु करें उसके साथ प्रचार का भी इंतेज़ाम करें। मिसाल के तौर पर सरकारी रेट पर सस्ते में फ़ॉरेन करेंसी देने का जो सिलसिला आप लोगों ने बंद किया जो कि ज़रूरी था, उसे जनता के लिए अच्छी तरह से बयान करना चाहिए था कि हम ने यह जो काम किया है उसकी वजह यह थी, यह है, उसके फ़ायदे यह हैं, इससे इस तरह का नुक़सान नहीं होगा। जो भी काम किया जाए, उसके साथ प्रचार का भी इंतेज़ाम होना ज़रूरी है।

एक और सिफ़ारिश यह है कि सरकारी ओहदेदारों की बातों में, वादों में, और उनकी तरफ़ से पेश किये जाने वाले आंकड़ों में समानता होनी चाहिए। यानी यह न हो कि मिसाल के तौर पर एक विभाग ने एक आंकड़ा पेश किया, कल को दूसरे किसी विभाग ने उसका खंडन कर दिया और एक नया आंकड़ा पेश कर दिया जो पहले वाले से बिल्कुल अलग हो। या मिसाल के तौर पर कोई वादा किया लेकिन दूसरा कहे कि इस वादे को पूरा करना मुमकिन नहीं, उस वादे पर अमल किया जा सकता है या नहीं, इसका फ़ैसला पहले ही सरकार में कर लेना चाहिए ताकि उसके हिसाब से वादा करने या न करने का फ़ैसला किया जाए। लोगों से मशविरा लें, बारीकी से काम करें, सोच विचार करके और समझदारी से काम करें।

आख़िरी बात वही है जिसका ज़िक्र प्रेसिडेंट साहब ने भी किया हैः माहौल ख़राब करने वालों और हाशिये की बातों को बढ़ाने वालों पर ध्यान न दें, अपना काम करें। कभी आप कोई फ़ैसला करते हैं जो सही फ़ैसला होता है, लेकिन कुछ लोगों को वह पसंद नहीं आता, हंगामा करते हैं, अब तो साइबर स्पेस भी है, हज़ारों आर्टिकल आप के फ़ैसले के ख़िलाफ़ लिख दिये जाते हैं। अगर आप का काम सोच समझ कर किया गया हो और ग़ौर करने के बाद वह फ़ैसला किया गया हो तो फिर ध्यान न दें, अपना काम करें। कभी सरकार पर कोई काम करने का दबाव बनाना होता है और उसे किसी काम पर मजबूर करना होता है तब भी आप देखते हैं कि साइबर स्पेस पर हज़ारों ख़त और बयान जारी कर दिये जाते हैं ताकि आप को उस काम पर मजबूर किया जाए। यह प्रेशर ग्रुप हैं, उन पर ध्यान न दें। सोच समझ कर काम करें, ग़ौर करके काम करें, लेकिन जब फ़ैसला कर लिया “जब किसी काम का पक्का इरादा कर लिया तो फिर अल्लाह पर भरोसा करो”। (10) अल्लाह पर भरोसा करें और मज़बूती से क़दम आगे बढ़ाएं। पैरवी करें मैंने बार बार ज़ोर दिया है और फिर कह रहा हूं कि काम को अधूरा न छोड़ें। कभी इन्सान कोई काम बहुत जोश से शुरु करता है, लेकिन कुछ क़दम आगे बढ़ने के बाद उसका जोश कम हो जाता है, यह सही नहीं है। जोश बाक़ी रखें ताकि काम पूरा हो जाए और इन्शाअल्लाह पूरा हो जाए।

मेरी दुआ है कि अल्लाह आप सब से राज़ी हो और आप सब को इस बात की तौफ़ीक़ दे कि अपने ओहदे के बाक़ी बचे हुए वक़्त में भी इसी तरह की ज़्यादा से ज़्यादा कामयाबी मिलती रहे जिससे अल्लाह राज़ी हो और इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम और इमाम ख़ुमैनी की रूह आप से ख़ुश हो और दुआ है कि शहीदों की पाकीज़ा रूहें भी आप से ख़ुश हों।

      वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू।

 

 

 

 

  1. इस मुलाक़ात के शुरु में प्रेसिडेंट सैयद इब्राहीम रईसी, वाइस प्रेसिडेंट जनाब मुहम्मद मुख़बिर और एनर्जी मिनिस्टर जनाब अली अकबर मेहराबियान ने रिपोर्ट पेश की।
  2.  सहीफ़ए सज्जादिया, दुआ नंबर 22
  3. साउथ पार्स के 11वें फ़ेज़ का सोमवार 28 अगस्त 2023 को प्रेसिडेंट सैयद इब्राहीम रईसी ने उद्घाटन किया।
  4. शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स
  5. 25 जूलाई 2019 में भी यह बात कही थी
  6. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज़ायरों के बीच तक़रीर 21 मार्च 2023
  7. प्रेसिडेंट
  8. एक प्रोग्राम जिसके तहत स्टूडेंट्स को मुल्क की विभिन्न मैदानों में तरक़्क़ी से आगाह किया जाता है।
  9. युनिवर्सिटियों के टीचरों से मुलाक़ात में भी यह बात कही थी, 2 जूलाई सन 2014
  10. सूरए आले इमरान आयत 159